सूर्यताप किसे कहते हैं?
सूर्य से आने वाली सौर विकिरण को सूर्य ताप कहते हैं।
सूर्यातप को प्रभावित करने वाले चार कारकों का वर्णन कीजिए
सूर्यताप को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं_
- वायुमंडल की रचना
- पृथ्वी की स्थिति
- दिन की अवधि
- सूर्य किरणों का निक्षेपण
- सौर कलंकों की संख्या
1. वायुमंडल की रचना- सूर्य की किरणों को पृथ्वी के धरातल पर पहुंचने से पहले वायुमंडल की मोटी परत को पार करना पड़ता है, वायुमंडल को पार करने की क्रिया में सूर्य ताप का प्रसारण परावर्तन और शोषण होता रहता है। सूर्य से स्वीकृत समस्त सूर्य ताप का 35% भाग विकिरण और परावर्तन द्वारा सूर्य में पुनः विलीन हो जाता है। 14% भाग वायु मंडल द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है केवल 51% भाग पृथ्वी को प्राप्त होता है। इस प्रकार वायुमंडल सूर्यताप वितरण को प्रभावित करता है।
2. पृथ्वी की स्थिति- पृथ्वी अपनी अंडाकार परिक्रमा पथ पर सूर्य की परिक्रमा करती है फल स्वरुप यह कभी सूर्य से दूर वह कभी पास रहती है। जिससे सूर्यताप प्रभावित होता है और सूर्य से निकटतम दूरी को उप सांवरिया दक्षिणीण और अधिकतम दूरी की स्थिति को आपशौर या उत्तरायण कहते हैं।
3. दिन की अवधि- दिन जितना लंबा होगा सूर्यताप की मात्रा उतनी अधिक होगी, दिन जितना छोटा होगा सूर्यताप उतना कम होगा। पृथ्वी के अक्ष का झुकाव एवं पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण रात और दिन होते हैं। और इनकी अवधि में अंतर आता है, पृथ्वी के अक्ष का झुकाव 23½° (साढ़े 23 डिग्री) है, इस कारण प्रत्येक अक्षांश पर रात और दिन की अवधि अलग-अलग होती है।
4. सूर्य किरणों का निक्षेपण- सूर्य ताप की प्राप्ति सूर्य के किरणों के लंबवत या तीर से पड़ने पर निर्भर करती है लंबवत किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा कम वायुमंडल पार करती है, और कम स्थान गिरती है अतः लंबवत किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा अधिक सूर्यताप प्रदान करती है।
5. सौर कलंकों की संख्या- सूर्य तल पर चंद्रमा की तरह धब्बे विद्यमान हैं, लेकिन इनकी संख्या घटती बढ़ती रहती है जब यह धब्बे कम हो जाते हैं तो सूर्य तक की मात्रा भी कम हो जाती है एवं धब्बे कम होने पर तापमान कम हो जाता है। इस प्रकार यह सूर्य ताप को प्रभावित करती हैं।
वायुमंडल क्यों गर्म और ठंडा होता है | वायुमंडल का गर्म एवं ठंडा होना
- विकिरण
- संचालन
- संवाहन
- अभीवाहन
1. विकिरण- किसी पदार्थ द्वारा अपनी उस्मा को लघु या दीर्घ ऊर्जा तरंगों द्वारा उत्सर्जन की क्रिया को विकिरण कहते हैं।
2. संचालन- आणविक सक्रियता द्वारा पदार्थ के माध्यम से ऊष्मा के संचार को संचालन कहते हैं।
3. संवाहन- विकिरण तथा संचालन प्रक्रिया द्वारा जब वायुमंडल की निचली परत गर्म हो जाती है तो वह हल्की होकर ऊपर उठने लगती है और वायुमंडल में फैल जाती है तथा ठंडी हो कर भारी होने लगती है, इसी पदार्थ में एक भाग से दूसरे भाग की ओर उस पदार्थ के तत्वों के साथ उष्मा के संचार को संवहन कहते हैं।
4. अभिवहन- 'अभिवहन क्या है?' तापमान तथा ऊष्मा का क्षैतिज रूप में स्थानांतरण अभिवहन कहलाता है। इसमें दबाव शीतल एवं सघन होती हुई अपने नीचे उतरती है जिससे वायु की निचली पदों पर दबाव पड़ता है जिससे उनमें कुछ तापमान बढ़ जाता है, इस प्रकार यह वायुमंडल को गर्म एवं ठंडा करती हैं।
तापमान को नियंत्रित | तापमान को प्रभावित करने वाले कारक
- भूमध्य रेखा से दूरी
- समुद्र तल से ऊंचाई
- समुद्र तट से दूरी
- जल एवं स्थल का भाव
- भूमि का ढाल
- धरातलीय गुण
- प्रचलित पावन
- सागरीय जल धाराएं
1. भूमध्य रेखा से दूरी- किसी स्थान पर उसके अक्षांश के अनुसार ही सूर्य की किरणों का तिरछापन होता है। सामान्यता भूमध्य रेखा पर सूर्य सीधा चमकता है अतः वहां अधिक गर्मी प्राप्त होती है। भूमध्य रेखा से उत्तर और दक्षिण की ओर जाने पर ताप कम होता है।
2. समुद्र तल से ऊंचाई- साधारणतः उंचाई के साथ तापमान घटता जाता है। प्रति 165 की ऊंचाई पर एक 1° डिग्री सेल्सियस कम हो जाता है। अतः जो स्थान समुद्र तल से जितनी अधिक ऊंचाई पर होता है वह उतना ही अधिक ठंडा होता है।
3. समुद्र तट से दूरी- स्थल की अपेक्षा जल धीरे-धीरे गर्म होता है और धीरे-धीरे ठंडा होता है। इस कारण समुद्र स्थल की अपेक्षा गर्मियों में ठंडे और ठंडो के दिन में गर्म रहते हैं। इससे तटवर्ती भागों का तापमान दूर वाले स्थलों की अपेक्षा गर्मियों में कम और ठंडो के दिन में अधिक रहता है। समुद्र से दूर वाले स्थानों पर गर्मियों में अधिक गर्मी और ठंड में अधिक सर्दी पड़ती है। अतः समुद्र के निकटवर्ती में जलवायु सम होती है और दूर वाले स्थानों की जलवायु विषम होती है।
4. जल एवं स्थल का भाव- जल और स्थल के मिलन क्षेत्रों में इनकी दिशा पूर्व पश्चिम की अपेक्षा उत्तर दक्षिण हो जाता है। जल धीरे-धीरे गर्म होता है और धीरे-धीरे ठंडा जबकि स्थल जल की अपेक्षा तुरंत गर्म हो जाती है और शीघ्र ठंडा हो जाती है अतः सूर्यताप की प्राप्ति समान मात्रा में होने पर भी स्थल का तापक्रम जल से अधिक हो जाता है।
5. भूमि का ढाल- धरा के लिए ढाल यदि सूर्य के सामने हैं तो वहां सूर्य की किरणें सीधी पड़ेगी और अधिक समय तक पड़ेगी इसके फलस्वरूप वहां का तापक्रम अधिक हो जाएगा इसके विपरीत ढाल में सूर्य की किरणें वा कम समय तक पड़ेगी अतः वहां का तापक्रम कम होगा।
6. धरातलीय गुण- धरातल की अपेक्षा रेतीली भूमि शीघ्र गर्म होती है और शीघ्रता का परिवर्तन भी कर देती है इसीलिए मरुस्थलीय भूमि पर दैनिक तापांतर अधिक होता है।
7. प्रचलित पावन- निम्न अक्षांशो से उच्च अक्षांशों की ओर चलने वाली हवाएं तापक्रम को बढ़ाती है और उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर आने वाली हवाएं पवनों के तापक्रम को घटाती है।
8. सागरीय जल धाराएं- जिन स्थानों के निकट गर्म जल धाराएं होती हैं, वहां के तापमान को ऊंची बनाए रखती हैं तथा जीनी स्थानों के निकट ठंडे जल धाराएं बहती हैं वहां का तापक्रम घट जाता है क्योंकि इन धाराओं पर से गुजरने वाली हवा है गर्म या शीतल हो जाती हैं।
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21March &23September
ReplyDelete✅✅
DeleteThanks
Delete21 March or 23 September
ReplyDeleteVery nice... Aap isi tarah apne gyan ke bhandar ko bahrte rahiye... Have a good day...
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