वर्षा किसे कहते हैं, वर्षा के प्रकार, लाभ/हानि

वर्षा किसे कहते हैं

वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प की मात्रा द्राविभूत होकर जब बूंदों के रूप में धरातल पर गिरती है, तो उसे वर्षा कहा जाता है। हमारे भारत देश में जून से लेकर सितंबर माह तक वर्षा होती है।

वर्षा से लाभ-

वर्षा से कई तरह के लाभ होते हैं, जैसे- 

  • वर्षा होने से गर्मी का प्रकोप कम होता है।
  • वर्षा होने से ही किसानों की खेती के लिए उपयुक्त पानी की उपलब्धता होती है।
  • वर्षा होने के कारण ही पशु,पक्षियों तथा पालतू जानवरों के लिए भी पानी की सुविधा होती है।
  • वर्षा पानी पीने का भी एक स्रोत है कहीं कहीं ऐसा भी होता है की पानी की सुविधा न होने पर वर्षा पर ही निर्भर होना पड़ता है।

वर्षा से हानि-

जिस तरह एक सीके के दो पहलू होते है ठीक उसी तरह वर्षा में भी लाभ व हानि दो पहलू होते हैं।

  • अत्यधिक वर्षा होने से घर व मकानें बह जाती है, तथा इससे जन धन की हानि होती है।
  • बहुत अधिक  वर्षा होने के कारण सड़कों व गलियों में पानी जमा हो जाता है जिससे आने जाने में असुविधा होती है।
  • वर्षा ऋतु में हर जगह कीचड़ भर जाता है इससे गंदगी बढ़ती है ।
  • वर्षा ऋतु में अनेक प्रकार के बीमारियों का खतरा बना रहता है।
  • अत्यधिक वर्षा से पशु पक्षियों तथा जीव जंतुओं के लिए भी खतरा बना रहता है।
  • अत्यधिक वर्षा के कारण किसानों के फसलों को भी नुकसान पहुंचते हैं।

वर्षा के प्रकार-

वर्षा तीन प्रकार की होती है-

  1. संवहनीय वर्षा
  2. पर्वतीय वर्षा
  3. चक्रवातीय वर्षा

1. संवहनीय वर्षा— जब वायु गर्म हो जाती है तो वह संवाहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है और ऊपर उठकर फैल जाती है जिससे इसका तापमान गिर जाता है और ऊंचाई अनुसार प्रति 1000 फीट पर 3.3 फैरानहाइट तापमान कम हो जाता है जिसके कारण आपेक्षिक आद्रता बढ़ जाती है जिससे वह संतृप्त होती है और संघनन प्रारंभ हो जाता है संघनन के बाद दौड़-धूप वर्षा बादल बनते हैं और मूसलाधार वर्षा होती है इस प्रकार की वर्षा भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में नियंत्रित रूप से प्रतिदिन होती है।

2. पर्वतीय वर्षा— उष्ण और आद्रता वनों के मार्ग में जब कोई पर्वत पठार ऊंची पहाड़ियां आ जाती है, तो पवन को ऊपर चढ़ना पड़ता है। ऊपर उठने से ठंडी हो जाती है और वर्षा कर देती है मानसूनी प्रदेशों में तथा पछुआ हवाओं की पेटी में इस प्रकार की वर्षा अधिक होती है।

वायु की दिशा वाले सामने पर्वतीय भाग में अधिक वर्षा होती है तथा विपरीत भाग में कम वर्षा होती है इसे वृतीछाया प्रदेश कहते हैं। इस कमी का कारण यह है कि हवाएं पर्वत से टकराकर सामने वाले भाग में अधिक वर्षा कर देती है। क्योंकि जब वह पर्वत के दूसरी ओर नीचे उतरती है तब तक उनकी वर्षा करने की क्षमता घट जाती है। तथा उतरते समय दबाव के कारण वे गर्म होने लगती है और गर्म हवाएं वर्षा नहीं करती हैं।

3. चक्रवातीय वर्षा— चक्रवात के आंतरिक भाग में जब भिन्नता वाली पवने आपस में मिलती हैं तो ठंडी हवाएं गर्म हवाओं को ऊपर की ओर धकेलती है। ऊपर उठने पर पवन ठंडी हो जाती है और वर्षा कर देती है।


इन्हें भी पढ़ें:-


This is For you:-

  • हमारे भारत देश में कब से कब तक वर्षा होती है?
उतर:- Comment करें|

Comments

Post a Comment

Hello, दोस्तों Nayadost पर आप सभी का स्वागत है, मेरा नाम किशोर है, और मैं एक Private Teacher हूं। इस website को शौक पूरा करने व समाज सेवक के रूप में सुरु किया था, जिससे जरूरतमंद लोगों को उनके प्रश्नों के अनुसार उत्तर मिल सके, क्योंकि मुझे लोगों को समझाना और समाज सेवा करना अच्छा लगता है।