पवन किसे कहते हैं?
धरातल पर तापक्रम और वायुदाब की विभिन्नता के कारण वायु में गति या वायु संचरण होता है क्षैतिज रूप में गतिमान वायु को पवन कहते हैं।
वायु धारा किसे कहते हैं?
ऊर्ध्वाधर गतिमान वायु को वायु धारा कहते हैं।
पवनों के प्रकार
पवनों को दो भागों में बांटा जा सकता है_
- स्थाई पवनें
- अस्थाई पवनें
1. स्थाई पवनें
इन पवनों की विशाल वेग आदि निश्चित होती है अतः इन्हें स्थाई प्रचलित पवनें कहते हैं यह पवनें निम्नलिखित हैं-
- डोलड्रम या शांत पेटी में चलने वाली भूमध्य रेखीय पछुआ पवनें- भूमध्य रेखा के 5 डिग्री उत्तरी व 5 डिग्री दक्षिणी में न्यून वायु दाब पेटी विद्यमान है यहां हवाएं गर्म होकर ऊपर उठती है अतः इनका संचालन ऊर्ध्वाधर होता है। अतः इसे शांत पेटि या डोलड्रम कहते हैं।
- व्यापारिक पवनें- यह पवनें आयान वृत्तीय उच्च दाब की पेटियों से भूमध्य रेखीय कम दाब की पेटियों की ओर चलती हैं यह पवन उपोषण उच्च वायुदाब पेटियों से भूमध्य रेखीय की और निश्चित रूप से तथा वर्ष भर चला करती है उत्तरी गोलार्ध इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम होती है अतः इन्हें उत्तरी गोलार्ध में उत्तरी पूर्वी पवन एवं दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक पवनें कहा जाता है। इन पवनों की दिशा के कारण प्राचीन काल में व्यापारी अपनी नावों को चलाने के लिए इन पवनों की सहायता लेते थे अतः इनका नामकरण व्यापारिक पवन किया गया इनका विस्तार 30-35° डिग्री उत्तरी व दक्षिणी अक्षांश के बीच है।
- पछुआ पवनें- पछुआ पवन उपोषण उच्च वायुदाब पेटी से उपद्रवी न्यून वायुदाब पेटी से उपद्रुवीय न्यून वायुदाब पेटी की ओर दोनों गोलार्धों में चला करती हैं इसका विस्तार 30-35° डिग्री से 60-65° डिग्री के मध्य है, इनकी दिशा उत्तरी गोलार्ध में दक्षिणी पश्चिमी से उत्तर पूर्व और पश्चिमी गोलार्ध में उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व रहती है यह हवाओं के साथ साथ चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर चला करती है दक्षिणी गोलार्ध में स्थल की कमी के कारण इन दोनों का वेग अति तीव्र हो जाता है अतः 40-45° डिग्री दक्षिणी अक्षांशो के मध्य इनको गरजने वाली चालीसा कहते हैं।
- ध्रुवीय पवनें- ध्रुव पर अत्यधिक शीत के कारण वर्ष भर उच्च वायुदाब बना रहता है अतः उच्च वायुदाब से उप ध्रुवीय न्यून वायुदाब की ओर दोनों गोलार्ध में पवनें चला करती हैं। उत्तरी गोलार्ध में इनकी दिशा उत्तर पूर्व और दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण पूर्व होती है इनका विस्तार 65° डिग्री अक्षांश तक है।
2. अस्थाई पवनें-
1. मानसूनी हवाएं- मानसूनी हवाएं हवाएं हैं जो ग्रीष्म ऋतु में सागर से स्थल की ओर और शीत ऋतु में स्थल से सागर की ओर चलती हैं यह वर्ष में दो बार अपनी दिशा ऋतु परिवर्तन के साथ साथ बदलती हैं कि स्थलीय और जलीय समीर हैं यह दो प्रकार की होती है।
- ग्रीष्मकालीन मानसून- सूर्य 21 जून को कर्क रेखा पर लंबवत चमकता है जिससे एशिया का विस्तृत स्थल भाग अत्यधिक गर्म हो जाता है अधिक तापक्रम के कारण वायुदाब कम हो जाता है इसी समय हिंद महासागर तथा प्रशांत महासागर थल भाग की अपेक्षा शीतल रहते हैं क्योंकि जल धीरे-धीरे गर्म होता है अतः महासागरों पर अपेक्षाकृत अधिक वायुदाब रहता है फल स्वरुप उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर तीव्रता से वायु चलने लगती है यह हवाएं सागर से चलने के कारण नम होती है इन्हीं पवनों को ग्रीष्मकालीन मानसून अथवा दक्षिणी पश्चिमी मानसून कहते हैं।
- शीतकालीन मानसून- शीतकाल में सूर्य दक्षिणायन होता है और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर लंबवत चमकता है। संपूर्ण एशिया पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने के कारण तापक्रम कम हो जाता है और उच्च वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है जबकि हिंद महासागर तथा प्रशांत महासागर अपेक्षाकृत अधिक तापक्रम के कारण न्यून वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है अतः हवाएं एशिया की ओर से इन सागरों की ओर चलने लगती है इसलिए इन दोनों को उत्तरी पूर्वी मानसून या शीतकालीन मानसून कहते हैं तथा इनकी दिशा उत्तर पूर्व होती है।
2. जल एवं थल समीर
- जल समीर किसे कहते हैं?
दिन के समय सूर्य की गर्मी से जल भाग की अपेक्षा स्थल भाग अधिक गर्म हो जाता है अतः स्थल भाग पर कम वायुदाब तथा जल भाग पर अधिक वायुदाब रहता है परिणाम स्वरूप दिन को समुद्र से स्थल की ओर हवाएं चलने लगती है यह हवाएं दिन में 10:00 बजे से सूर्यास्त तक चलती है इन हवाओं को जल समीर कहते हैं।- थल समीर किसे कहते हैं?
सूर्य अस्त के बाद स्थल भाग में जल विभाग की अपेक्षा तीव्र गति से विकिरण होने लगता है अतः स्थल भाग जल की अपेक्षा शीघ्र ठंडा हो जाता है, इस प्रकार स्थल पर उच्च वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है| अतः उच्च वायुदाब क्षेत्र स्थल से निम्न वायुदाब क्षेत्र जल की ओर हवाएं चलने लगती है यह हवाएं सूर्य अस्त से प्रातः 10:00 बजे तक चलती है, इन हवाओं को थल समीर कहते हैं।
3. घाटी समीर- घाटी समीर किसे कहते हैं? घाटी व पर्वत समीर को दैनिक समीर भी कहते हैं क्योंकि 24 घंटे में इनकी दिशा दो बार परिवर्तन होती है। दिन में घाटी से पर्वत की ओर पवन चलती है तथा रात्रि में पर्वत से घाटी की ओर पवन चलती है। दिन के समय घाटियों के निचले भागों में अधिक तापक्रम के कारण हवाएं गर्म होकर ऊपर उठती है और पर्वत के सहारे ऊपर चोटी तक पहुंचती है इन्हें घाटी समीर कहते हैं।
4. पर्वतीय समीर- रात्रि के समय पर्वत के ऊपरी भागों का तापक्रम निचले घाटी की अपेक्षा कम हो जाता है अतः वहां शीतल धरातल के संपर्क से वायु भी शीतल होकर सावधान हो जाती है और घाटी की अपेक्षा यहां उच्च वायुदाब हो जाता है घाटी की अपेक्षाकृत गर्म रहती है अतः वहां न्यून वायुदाब हो जाता है इस उच्च वायुदाब से न्यून वायुदाब की ओर पर्वत के ढाल के सहारे ठंडी हवाएं नीचे घाटी में उतरती है इन्हें पर्वतीय समीर कहते हैं।
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यह आपके लिए 3 प्रश्न है, जिसका उत्तर Comment में देना है_
- सूर्य कर्क रेखा पर कब लंबवत चमकता है?
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