उपल्कापना । परिकल्पना का अर्थ, परिभाषा, महत्व एवं विशेषताएं

उपल्कापना । परिकल्पना का अर्थ लिखिए

किसी भी शोध या अनुसंधान कार्य प्रारंभ करने से पूर्व अनुसंधानकर्ता को समस्या के संबंध में प्रतिमान के आधार पर पहले चिंतन कर लेना होता है। इस प्रकार परिकल्पना का अनुमान है, जिसका उपयोग अनुसंधान कार्य को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है। हम बिना उपकल्पना के एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा सकते हैं। उपकल्पना कुछ विद्वानों ने इस प्रकार से परिभाषित किया है—


उपकल्पना । परिकल्पना की परिभाषा

उपकल्पना सामाजिक अनुसंधान की केंद्र बिंदु होती है। कुछ समाज शास्त्रियों ने इसे परिभाषा देते हुए अपने अपने शब्दों में परिभाषित किया है।


प्रो. एम. पी. श्रीवास्तव के अनुसार — "उपकल्पना सामाजिक अनुसंधान मैं सत्य की खोज के लिए बनाई गई काल्पनिक एवं अनुभव एक रूपरेखा है। जो की सत्यता की जांच व खोज करती है। यह अनुसंधान की आधार स्तंभ होती है।"


लुण्डबर्ग के अनुसार — "उपकल्पना एक सामाजिक एवं काम चलाओ सामाजिकरण है जिसकी सत्यता की परीक्षा अभी बाकी है। बिल्कुल प्रारंभिक स्तरों पर उपकल्पना कोई भी अनुमान, विचार, सहज ज्ञान अथवा कुछ और भी हो सकता है जोकि अनुसंधान का आधार बन जाता है।"


गुंडे तथा हट्ट के अनुसार — "उपकल्पना एक बात का वर्णन करती है कि आगे क्या देखना चाहते हैं। कल्पना भविष्य की ओर देखती है, यह एक तर्कपूर्ण वाक्य है। जिसकी परीक्षा की जा सकती है। यस सही भी सीख होती है और गलत भी।"


स्केट्स के अनुसार — "उपकल्पना एक आस्था रुप से सत्यम आना गया कथन है जिसके आधार पर उस समय तक नवीन सत्य की खोज के लिए आधार बनाया जाता है।"


यदि हम उपकल्पना की अर्थ एवं परिभाषा का विश्लेषण करते हैं, तो इस प्रकार की बातें सामने आती है—

  1. उपकल्पना एक प्रारंभ एक विचार होता है।
  2. इस पर किसी भी प्रस्तावित अनुसंधान कार्यक्रम को आधारित किया जाता है।
  3. इसके द्वारा 'कारण परिणाम' में संबंध स्थापित किया जाता है।
  4. इससे किसी प्रकार के तथ्यों या घटनाओं को सिद्ध अथवा प्रमाणित किया जाता है।
  5. यह अनुभवों एवं मान्यताओं पर आधारित होती है।
  6. इसका मुख्य रूप से किसी सामाजिक समस्या या सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन के लिए अधिक प्रयोग किया जाता है।



उपकल्पना । परिकल्पना के प्रकार का वर्णन | परिकल्पना प्रकार

समाजशास्त्र एवं समाज विज्ञान में अनेक प्रकार की प्रकल्पनाओं प्रचलन है। सामाजिक अध्ययन घटनाओं एवं समस्याओं की प्राकृतिक अनुसंधान के उद्देश्य एवं तथ्यों के आधार पर प्रकल्पनाएं भी कई प्रकार की हो सकती हैं।


1. अनुभावात्मक समानता से संबंधित— यह परिकल्पनाएं मानव के सामान्य ज्ञान, तर्क वाक्य, दैनिक जीवन के अनुभवओं, मान्यताओं, लोकोक्तियों, कहावतो तथा विश्वास पर आधारित होती हैं, उदाहरण के लिए सामान्यतः ऐसी कहावतें प्रचलित हैं कि, 'गंजा व्यक्ति धनवान होता है' पशुओं में सियार, पक्षियों में कौआ, मनुष्यों में नाई तथा स्त्रियों में मालिन चतुर होते हैं। ऐसी प्राकल्पनाओं में समान्य तथ्यों की जांच करना ही अध्ययन का मुख्य उद्देश्य होता है।


2. जटिल आदर्श प्रारुप उसे संबंधित — इस प्रकार की प्रकल्प ना में प्रायः एक सामान्य तथ्य अथवा निष्कर्ष को पूर्व आधार मानकर अन्य क्योंकि तर्क फोन रूप से परीक्षा की जाती है। ऐसी प्राक्कलन आएं अल्पसंख्यक समूह तथा परिचित की दशा उनसे संबंधित होती है। उदाहरण के लिए बर्गेस ने अपने अध्ययन में यह प्राकल्पना की थी कि "केंद्रीयभूत गोलाकार नगर विकास की प्राकृति के लक्षण होते हैं।"

इस प्रकार की प्राकल्पना का उद्देश्य अनुभवी एकरूपताओं में तार्किक रुप से निकाले गए संबंध की उपस्थिति का परीक्षण करना होता है। ऐसी प्राकल्पनाओं में विभिन्न कारकों के बीच कार्तिक अंतर संबंधों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इसलिए इन्हें संबंधात्मक प्राकल्पना भी कहते हैं। क्योंकि यह प्रकल्पनाएं तार्किक निष्कर्ष पर आधारित होती है अतः यह सिद्धांत निर्माण में भी सहयक होती है।


3. विश्लेषणात्मक चरों से संबंधित — कुछ प्रकल्पनाएं विश्लेषणात्मक के संबंध से संबंधित होती है कोई भी सामाजिक घटना अनेक कारको व परिणामों वाली होती है। फिर भी इन में से कोई एक आखिरी प्रमुख कारक होता है और अन्य कारक सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए बाल अपराध के लिए मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत का, मानसिक विकृति और दुर्लभता को और वंशानुक्रमवादी बुरेवंशाक्रम को उत्तरदाई मानते हैं। इस प्रकार की प्रकल्पना को कारणात्मक प्रकल्पना भी कहते हैं।

इसमें यह क्या होता है कि यदि किसी एक कारक में परिवर्तन होता है तो वह किस सीमा तक दूसरे कारक को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए उत्तम फसल, उत्तम खाद, बीज, भूमि पर्यावरण, पानी की पर्याप्त मात्र पर निर्भर करती है। यदि इनमें से किसी एक कारक में परिवर्तन कर दिया जाता है तो फसल पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह जानने का प्रयास करना कारणात्मक प्रकल्पना का है।


4. सकारात्मक प्रकल्पना — कुछ प्रकल्पनाओं का संबंध सकारात्मक कथनों से होता है, जैसे 'पुरुष कि अपेक्षा स्त्रियां अधिक दयालु होती है, गरीबों की अपेक्षा धनवान अधिक अपराध करते हैं।


5. नकारात्मक प्राक्कलनाएं — इस प्रकार की परिकल्पना मैं कथनों को नकारात्मक रुप से प्रस्तुत किया जाता है जैसे— 'पुरुष की अपेक्षा स्त्रियां अधिक दयालु नहीं होती है, 'गरीबों की अपेक्षा धनवान अधिक अपराध नहीं करते हैं'।


6. शून्य कथनों से संबंधित — इस प्रकार की प्रकल्पना में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों संभावनाओं को सम्मिलित किया जाता है और परीक्षण द्वारा उन्हें स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है, जैसे— पुरुष और स्त्रियों की दयालुता में कोई अंतर नहीं होगा, गरीब एवं धनवान की प्रवृत्ति में कोई सार्थक अंतर नहीं होता।


7. कामचलाऊ परिकल्पना — ऐसे अनुमान व अस्थाई महत्वपूर्ण विचारों को जो किसी अनुसंधान का आधार बन सकते हैं उसे कामचलाऊ प्रकल्पना कहते हैं। कामचलाऊ परिकल्पना किसी भी अध्ययन को प्रारंभ करने का एक प्रारंभिक विचार होता है। जो अनुसंधानकर्ता को अनुभव होता है वह उसमें परिवर्तन एवं संशोधन करता जाता है। ‌ यह भी हो सकता है कि वह प्रारंभिक विचार को पूरी तरह त्यागकर उसके स्थान पर नए प्राकल्पना बना ले। क्योंकि यह विचार का स्थाई कार्यवाहक और कामचलाऊ महत्व का होता है। इसलिए इसे कामचलाऊ या कार्यवाहक प्रकल्पना कहते हैं। उदाहरण के लिए प्रारंभ में भौतिक वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि, परमाणु अविभाज्य है, लेकिन बाद में अध्ययन के आधार पर उन्हें प्रकल्पना बदलनी पड़ी जब यह ज्ञात हुआ था कि परमाणुओं का और अधिक विभाजन संभव है।


उपकल्पना । परिकल्पना का महत्व

सामाजिक अनुसंधान में उपकल्पना की अत्यधिक उपयोगिता व  महत्व है। उप कल्पना की सहायता के बिना यदि कोई अनुसंधानकर्ता अध्ययन कार्य करता है तो वह सामाजिक घटनाओं की दुनिया में ठीक उसी प्रकार भटके गाजी सरकार एक ग्रामीण किसान किसी बड़े नगर के राजपथ पर अकेला छोड़ देने पर भटकता है। उपकल्पना अनुसंधानकर्ता को मार्गदर्शन के रूप में इधर-उधर भटकने से रोंका जा सकता है और सच्चे के द्वार पर पहुंचाने या झूठ को प्रमाणित करने में उसको सहायता देती है। यह बात उपकल्पना की निम्नलिखित उपयोगिता व महत्व से स्वस्थ हो जाती है—


1. उपकल्पना अध्ययन कार्य के केंद्र बिंदु को निश्चित करती है — उपकल्पना किसी विषय से संबंधित अनुसंधान सर्वेक्षण के अंतर्गत किए जाने वाले अध्ययन कार्य के स्केनर बिंदु या सीमा को निश्चित करती है। उप कल्पना के द्वारा अनुसंधानकर्ता को यह पता चलता है कि इसे क्या और कितना अध्ययन करना है, किन तथ्य को चुनना और इनको छोड़ना है। श्री गुंडे तथा हट्ट के शब्दों में— "बिना इसके अनुसंधानकर्ता अभी केंद्रित होता है, जो अनिर्दिष्ट विवरण है।" उन्होंने यह भी कहा है कि उपकल्पना से प्रयत्नों की बर्बादी रुक जाती है, और साथ ही अध्ययन कार्य में यथार्थता बढ़ जाती है, इसलिए कहा जाता है कि अच्छे अनुसंधान में उपकल्पना का निर्माण एक केंद्रीय सफलता है।


2. उपकल्पना अनुसंधान क्षेत्र में सीमित करती है— यह अनुसंधानकर्ता को सीमित कर अध्ययन विषय के एक विशिष्ट पहलूओं पर अनुसंधानकर्ता को अध्ययन हेतु आकर्षित करती है। हम जानते हैं कि घटना एवं तथ्यों की दुनिया बहुत बड़ी है। इसी स्थिति में किसी अनुसंधानकर्ता के लिए यह संभव नहीं है, कि वह एक विषय से संबंध समस्त पहलूओं पर एक ही समय पर ध्यान करें यदि ऐसा हुआ तो विषय के अध्ययन में कोई भी विशिष्ट या यथार्थ ज्ञान को प्राप्त नहीं हो सकता और इस प्रकार अध्ययन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सार्थक नहीं कहा जा सकता, लेकिन उपकल्पनाएं अनुसंधान क्षेत्र को सीमित कर अध्ययन को यथार्थ तथा वैज्ञानिक बनाती हैं।


3. उपकल्पना अनुसंधान की दिशा निर्धारित करती है— उपकल्पना अनुसंधानकर्ता का ध्यान अध्ययन विषय के एक विशिष्ट पहलूओं पर केंद्रित कर उसी के अनुसार उसी एक निश्चित दिशा की ओर उन्मुख होती है। इस प्रकार वे अनुसंधानकर्ता के लिए ध्रुव तारे का काम करती है।


4. उपकल्पना संबंध तथ्यों के संचालन में सहायक होती है— उपकल्पना अनुसंधान के क्षेत्र को सीमित तथा इसकी दिशा निर्धारित कर केवल उन्हीं तथ्यों के संकलन के लिए हमें जागृत करती है, जो कि हमारे विषय से संबंध होते हैं इस दिशा में उपकल्पना के प्रयोग के उन तथ्यों कि अंधी खोजा व अंधाधुन्ध संकलन या नियंत्रण होता है जो कि बाद में अध्ययन की जाने वाली समस्या के लिए ब्यर्थ सिद्ध हो। यदि आरंभ में हम सभी तथ्यों को संकलित कर ले भी लेते हैं तो हमें अपनी उपकल्पना की सत्यता या असत्यता को प्रामाणित करने के लिए कुछ विशेष तथ्यों को छांटना पड़ता है।


5. उपकल्पना सत्यता को ढूंढने में सहायक होती है— उपकल्पना हमें प्रत्येक दिशा में सत्य को ढूंढ निकालने के कार्य में  सहायता प्रदान करती है। जैसा कि हम पहले ही संकेत कर चुके हैं कि उपकल्पना के निर्माण के बाद हम इसके वास्तविक तथ्यों के आधार पर जांच करते हैं। इस परीक्षा की जांच कर हम यह प्रमाणित करते हैं कि वह उपकल्पना सही है या यह सिद्ध करते हैं कि वह गलत है। दोनों ही दिशा में हम सत्य को ढूंढ निकालते हैं, क्योंकि किसी वस्तु विशेष को गलत सिद्ध करना भी इसकी वास्तविक सत्यता से परिचित होना है।

जिसका कि अब तक कोई ज्ञान ना था। उदाहरण के लिए यदि हम सिद्ध करते हैं कि केवल व्यवसाय ही भारतीय जाति व्यवस्था की उत्पत्ति का कारण है, तो यह गलत है। तो हम वास्तव में इन गलत धारणाओं से मुक्त हो जाते हैं, जो की जाति व्यवस्था की उत्पत्ति के लिए केवल पेशा संबंधी सिद्धांत के कारण लोगों के मस्तिष्क में तल तक जड़ पकड़ी थी। श्रीमती यंग ने लिखा है, "एक वैज्ञानिक के लिए नकारात्मक परिणाम उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं, जितने कि सकारात्मक परिणाम।"


उपकल्पना । परिकल्पना  की विषेशता

1. स्पष्टता — एक अच्छी उपकल्पना को अवधारणा के रूप में स्पष्ट होना चाहिए। वैज्ञानिक पद्धति का कोई भी स्तर क्यों ना हो उसमें स्पष्ट ता का होना आवश्यक है। फिर भी उपकल्पना वैज्ञानिक पद्धति का प्रथम स्तर है, यदि इसमें किसी प्रकार से स्पष्टता का अभाव हो।


2. विशिष्टता — एक अच्छी उपकल्पना की दूसरी उल्लेखनीय विशेषता या होनी चाहिए कि यह सामान्य ना होकर अध्ययन विषय के किसी एक पहलू से संबंध हो। ‌ यदि हम किसी विषय के सभी पक्षों का वैज्ञानिक अध्ययन करने के चक्कर में पड़ जाएंगे तो निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं होगा। इसके साथ-साथ उपकल्पना में विशिष्टता का अभाव होता है। तो उसकी सत्यता की जांच करना भी कठिन हो जाती है। और जिस उपकल्पना की जांच नहीं की जा सकती है वह वैज्ञानिक अध्ययन के लिए बेकार है।


3. प्रयोग सिद्धता — एक अच्छी उपकल्पना की तृतीय उल्लेखनीय विशेषता प्रयोग सिध्दता है। इस विशेषता में हमारा तात्पर्य यह नहीं कि उपकल्पना में किसी आदर्श को प्रस्तुत करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। बल्कि इसका संबंध ऐसे विचार से होना चाहिए जिसकी सत्यता की जांच वास्तविक तथ्यों या वास्तविक प्रयोगों के आधार पर की जा सके।


4. उपलब्ध प्रविधियों से संबंध — एक श्रेष्ठ तथा उपयोगी उपकल्पना की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि उसकी सत्यता परीक्षण उपलब्ध प्राविधियों के द्वारा हो। वास्तव में जैसा कि सर्व गुंडे एवं हट्ट ने लिखा है, "सिद्धांत एवं पद्धति एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, जो सिद्धांत का यह नहीं जानता कि उसकी उपकल्पना की जांच के हित में कौन-कौन सी प्रविधियां उपलब्ध हैं वह उपयोगी प्रश्नों के निर्माण में असफल रहता है।" ऐसी स्थिति में उपलब्ध पर विधियों की पहुंच के भीतर ही उपकल्पनाओं का निर्माण करना चाहिए, लेकिन हमें इसका तात्पर्य यह भी ना लेना चाहिए कि उपकल्पनाओं का निर्माण उपलब्ध प्रविधियों द्वारा सीमित हो। बल्कि इसका तात्पर्य केवल इतना है कि इस प्रकार की उपकल्पना का निर्माण किया जाए कि वह अनुसंधान का एक सामाजिक आधार बन सकती है।


5. सिद्धांत समूह से संबंधित — एक अच्छी व उपयोगी उपकल्पना को अंतिम उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसे सिद्धांत समूह से संबंधित होना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि उपकल्पना ऐसी होनी चाहिए जो संबंध क्षेत्र में किसी पूर्व स्थापित सिद्धांत के क्रम में हो, क्योंकि आज संबंध उपकल्पनाओं की परीक्षा विस्तृत सिद्धांतों के संदर्भ में नहीं की जा सकती है। भौतिक विज्ञान में अनुसंधान कार्य के पर्याप्त उन्नत स्तर तक पहुंचने का प्रमुख कारण यही है कि विभिन्न अनुसंधानकर्ता पूर्व सिद्धांत से संबंधित संक्षिप्त एवं स्पष्ट उपकल्पनाओं का निर्माण करके छोटी-छोटी समस्याओं की खोज करते रहते हैं।


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Comments

  1. बहुत ही सुन्दर जानकारी दी भाई

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  2. Very good.....👍

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