नृजातिकी पद्धति की विशेषताएं, महात्व एवं दोष

नृजातिकी पद्धति क्या है

नृजातिकी पद्धति अंग्रेजी के Ethnomethodology का हिंदी रूपांतर है। एथनोमैथाडोलॉजी दो शब्दों से मिलकर बना है— Ethno और methodology जहां पर Ethno का अर्थ लोक ज्ञान है, और methodology का अर्थ पद्धति या अध्ययन का तरीका है।

नृजातिकी पद्धति का उपयोग कैसे किया जाता है

मानव शास्त्र में जनजातियों के जीवन से संबंधित विभिन्न पक्षों को स्पष्ट करने के लिए केतनो मेडिसिन तथा एथनोबॉटनी जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है तथा जनजातियों की स्थानीय औषधियों तथा प्राकृतिक संपदा की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। एक अनुसंधानकर्ता जब किसी समूह की सांस्कृतिक विशेषताओं का प्रत्यक्ष और सूक्ष्म अध्ययन करता है तब इसे हम नृजातिकी पद्धति कहते हैं।

इसे एफ. अब्राहम ने स्पष्ट करते हुए लिखा है— "नृजातिकी पद्धति सामान्य ज्ञान का अध्ययन है जिसके द्वारा अध्ययन करता लोगों की दैनिक गतिविधियों का अर्थ पूर्ण रूप से अवलोकन किया जाता है तथा सामाजिक वास्तविकता ओं को समझने के साथ ही उन्हें बनाए रखने का प्रयत्न भी किया जाता है।"

नृजातिकी पद्धति की विशेषताएं

1. सामाजिक का अध्ययन — यह वह पद्धति है जिसके द्वारा किसी समूह की सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताओं का उनके वास्तविक रूप में अध्ययन किया जाता है। और अधिकांश वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि किसी समूह की सामाजिक वास्तविकता ओं को दैनिक जीवन की क्रियाओं और व्यवहारों के आधार पर ही समझा जा सकता है। सामाजिक जीवन की यह वास्तविकता में किसी समूह के जीवन की गहराई को समझने का आधार है। इस तरह से इस पद्धति के द्वारा एक समूह की विशेषताओं को देखकर सुनकर और उनके अर्थ को समझ कर सामाजिक जीवन की वास्तविकता को समझने का प्रयत्न किया जाता है।

2. दैनिक जीवन की घटनाओं का अध्ययन — इस पद्धति की एक प्रमुख विशेषता दिन प्रतिदिन की घटनाओं को व्यवस्थित रूप से समझना है। ज्ञान की अनेक शाखाएं सामान्य लोगों की दैनिक क्रियाओं के अर्थ को अधिक महत्व नहीं देती। इसके विपरीत व्यवहारिक रूप से प्रत्येक समूह के व्यवहार लोगों की उन दैनिक क्रियाओं से जुड़े रहते हैं जिनका उनके लिए एक विशेष अर्थ होता है। यही कारण है कि यह पद्धति दैनिक जीवन की घटनाओं के अध्ययन पर अधिक बल देती है।

3. अर्थ बोद्ध पर बल दिया जाना — दैनिक जीवन में किसी समूह के लोग विभिन्न घटनाओं में जैसे अनुमान लगाते हैं वह वैसे ही विशेष तरह का व्यवहार करते हैं। इस सीधी सी बात को ही अध्ययन का विषय बना कर सामाजिक अनुसंधान को अधिक व्यवहारिक बनाया जा सकता है इसका तात्पर्य है कि समूह में व्यक्तियों की पारस्परिक कि जाऊं या अंतः क्रियाओं की व्याख्या तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि उसके वास्तविक अर्थ को स्पष्ट न कर लिया जाए। प्रत्येक क्रिया के अर्थ को समझकर ही सामाजिक घटनाओं को समझा जा सकता है। समान क्रिया का विभिन्न समूहों में एक दूसरे से भिन्न अर्थ होता है। यही कारण है कि विभिन्न समूहों की सांस्कृतिक विशेषताएं एक दूसरे से अलग अलग होती हैं।

4. व्यक्ति को महत्व देना — यह अध्ययन की पद्धति है जो व्यक्ति को अधिक महत्व देती है। इसके द्वारा व्यक्ति के जीवन इतिहास उसके चरित्र की विशेषताएं तथा दैनिक जीवन की सामान्य क्रियाओं को आधार मानकर व्यक्ति के व्यवहारों को समझने का प्रयत्न किया जाता है। इसके अनुसार व्यक्ति ही समूह का निर्माण करने वाली प्रमुख इकाई है, आता किसी समूह में व्यक्तियों के व्यवहारों को समझे बिना उस समूह की सांस्कृतिक विशेषताओं को नहीं समझा जा सकता।

5. सामान्य ज्ञान का अध्ययन — नृजातिकी वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामान्य ज्ञान अथवा लोक ज्ञान के द्वारा सामाजिक घटनाओं को समझने का प्रयत्न किया जाता है। सामान्य ज्ञान का तात्पर्य किसी समूह में प्रचलित व्यवहारों के समान यकृत रोग और अर्थ से होता है। जनसाधारण द्वारा दिन प्रतिदिन की घटनाओं के बारे में जो सामान्य कारण प्रस्तुत किए जाते हैं, नृजातिकी के अनुसार वही अध्ययन की वास्तविक विषय वस्तु होते हैं। इसी कारण गारफिलन्केल का यह मानना है कि कोई भी व्यक्ति समाजशास्त्री हो सकता है जो लोक समाज के सामान्यीकृत व्यवहारों का निष्पक्ष रुप से अध्ययन करता हो।

6. परंपरागत समाजशास्त्र का विरोध — नृजातिकी पद्धति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह वैज्ञानिक प्रत्यक्षवाद तथा समाजशास्त्रीय अध्ययन की इसी तरह की दूसरी पद्धतियों का विरोध करती है। इस पद्धति के द्वारा परंपरागत सिद्धांतों अवधारणाओं और अध्ययन विधियों का महत्व नहीं दिया जाता। उदाहरण के लिए रचनात्मक पद्धति के द्वारा सामाजिक वास्तविकता को स्थिर मानते हुए वृहद और लघु दोनों तरह के सामाजिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके विपरीत, नृजातिकी पद्धति केवल छोटे-छोटे समूह को अथवा लघु स्तरीय अध्ययनों को ही महत्व देते हैं।

नृजातिकी पद्धति का महात्व

सामाजिक अनुसंधान में नृजातिकी को आज एक महत्त्वपूर्ण पद्धति के रूप में देखा जाता है। इसने परंपरागत समाजशास्त्र के विज्ञान से संबंधित भ्रामक विचारों के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण को आम जीवन के व्यवहारिक व सामाजिक अनुसंधान के निष्कर्षों को अधिक व्यावहारिक बना सकते हैं। कुछ विशेष क्षेत्रों में इस पद्धति के महत्व को इस प्रकार समझा जा सकता है।

1. गहन जानकारी प्राप्त होना — इस पद्धति के द्वारा सहभागी अवलोकन को प्राथमिकता देने के कारण किसी भी अध्ययन विषय से संबंधित गहन जानकारी प्राप्त होती है।

2. छोटी घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन — नृजातिकी, अध्ययन का वह तरीका है जिसके द्वारा किसी सीमित क्षेत्र अथवा छोटे समूह से संबंधित छोटी से छोटी घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन किया जाता है। इसके फलस्वरुप अध्ययन विषय के सभी पहलुओं का गहन अध्ययन करना संभव हो जाता है।

3. सामाजिक को समझना आसान — यह पद्धति दिन प्रतिदिन की घटनाओं, सामान्य सामाजिक व्यवहारों तथा उनके अर्थ के अध्ययन पर अधिक बल देती है। यही कारण है कि इसके द्वारा सामाजिक यथार्थता को समझना आसान हो जाता है।

4. वस्तुनिष्ठ ढंग — इस पद्धति में व्यक्तिगत पत्रों, डायरियों, टेप में रिकॉर्ड किए गए वार्तालाप इसी तरह दूसरी लेखों का उपयोग करने के कारण सामाजिक तत्वों को अधिक वस्तुनिष्ठ ढंग से समझा जा सकता है। अध्ययन करता भी स्वतंत्र रूप से उन तथ्यों का अवलोकन करता है जिन्हें किसी विशेष पद्धति के नियम से बांधकर समझ पाना कठिन हो जाता है।

5. अनुसंधानकर्ता में अध्ययन के प्रति रुचि — इस पद्धति का एक प्रमुख गुण यह है कि यह समाजशास्त्र की परंपरागत पद्धतियों के उपयोग से पैदा होने वाली सत्ता को दूर करके अनुसंधानकर्ता में अध्ययन के प्रति नए रुचि उत्पन्न करती है।

6. समाजशास्त्रीय गुप्तचर — कभी-कभी किसी समूह में सामाजिक वास्तविकता ओं को जानने के लिए लोगों के वार्तालाप को 'चुपचाप से सुनने के तरीके' से भी महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त हो जाते हैं। कुछ लेखकों ने इसे समाजशास्त्रीय गुजरी का नाम दिया है। नृजातिकी मैं अध्ययन के ऐसे तरीकों को महत्व मिलने से भी सामाजिक यथार्थ को समझना सरल हो जाता है।

नृजातिकी पद्धति के दोष

वैज्ञानिक अध्ययन के दृष्टिकोण से किसी भी पद्धति को अपने आप में पूर्ण नहीं कहा जा सकता। यह सच है कि इस पद्धति ने समाजशास्त्र की परंपरागत अध्ययन पद्धतियों के दोषों को दूर करके अनेक महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत करने में योगदान दिया है।

  1. यह पद्धति दिन प्रतिदिन की घटनाओं के अध्ययन पर अधिक बल देती है। इस प्रकार इसे एक लघु स्तरीय विधि के रूप में भी मान्यता दी जाती है। स्पष्ट है कि इस पद्धति के द्वारा ना तो किसी व्यापक विषय से संबंधित सामान्य कारण दिए जा सकते हैं और ना ही किसी सिद्धांत का निर्माण करना संभव है।
  2. यह पद्धति केवल गुणात्मक अध्ययन के लिए ही उपयोगी है, इसके द्वारा परिणत मक अध्ययन नहीं किए जा सकते हैं।
  3. यह पद्धति समाजशास्त्र की परंपरागत पद्धतियों का विरोध करती है। वास्तविकता यह है कि अनेक अध्ययन विषय इस तरह के होते हैं जिन्हें समझने के लिए ऐतिहासिक तुलनात्मक तथा संरचनात्मक, प्रकार्यात्मक पद्धतियों का उपयोग करना आवश्यक होता है।
  4. इस पद्धति में अध्ययन करता को आवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता मिल जाती है। इसके फलस्वरूप सामाजिक अनुसंधान में अनेक ऐसे तत्वों का समावेश हो जाता है जो अध्ययन की वैज्ञानिक प्रवृत्ति के विरूद्ध होते हैं।
  5. इस पद्धति की एक कमी यह भी है कि इसके द्वारा सामाजिक परिवर्तन व्याख्या नहीं की जा सकती। वास्तव में सामाजिक परिवर्तन एक तुलनात्मक दशा है जिसे अतीत की घटनाओं के संदर्भ में ही स्पष्ट किया जा सकता है।
  6. इस पद्धति के द्वारा जिन घटनाओं का अध्ययन किया जाता है, वह बहुत साधारण प्रकृति की होती है‌। उदाहरण के लिए, किसी समूह में लोगों के बोलने का ढंग, उनके द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले शब्दों का अर्थ, चलने की और रहने की कला, बच्चों के पालन-पोषण के तरीके, परिवारिक जीवन का ढंग, स्त्री पुरुष की भूमिका आदि इतनी सामान्य घटनाएं है कि केवल इन्हीं के आधार पर सामाजिक घटनाओं को समझ लेने का दावा नहीं किया जा सकता है।
  7. कुछ समाजशास्त्री यह भी मानते हैं कि इस पद्धति का मूल रूप से जनजातियों और दूसरे सरल समाजों का अध्ययन करने वाली एक मानव शास्त्रीय पद्धति है। उसका तात्पर्य है कि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार पर सामाजिक अनुसंधान करने के लिए इसकी उपयोगिता बहुत कम है।

निष्कर्ष

इस पद्धति ने इन दोषों के बाद भी आज इस पद्धति को अध्ययन की एक उपयोगी पद्धति के रूप में देखा जाता है। समाजशास्त्र की परंपरागत अध्ययन पद्धतियों को नए रूप में प्रस्तुत करके समाजिक वास्तविकताओं को समझने में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।


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