वैज्ञानिक पद्धति क्या है | वैज्ञानिक पद्धति का वर्णन
vaigyanic padhati kya hai;वैज्ञानिक पद्धति की विवेचना करने से पहले हमें विज्ञान की विवेचना करना आवश्यक होगा तभी हम वैज्ञानिक पद्धति को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
विज्ञान अंग्रेजी के Science शब्द का हिंदी रूपांतर है, वि + ज्ञान = विज्ञान। यहां 'वि' का अर्थ है- विशेषज्ञ और 'ज्ञान' का अर्थ- जानकारी से है। इस प्रकार विशेष जानकारी को ही विज्ञान कहा जाता है। यह विशेष ज्ञान व्यवस्थित पद्धति के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। जिसकी हमेशा जांच हो सके इस प्रकार विज्ञान का तात्पर्य उस ज्ञान से है जो व्यवस्थित विधियों द्वारा प्राप्त किया गया हो जिसकी सत्यता की जांच हो सके और जिसमें भविष्यवाणी करने की क्षमता हो, वैज्ञानिक पद्धति कहलाता है।
वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ | vaigyanic padhati ka arth
वैज्ञानिक पद्धति, वैज्ञानिक अध्ययन की एक व्यवस्थित पद्धति है। इसके अर्थ को समझाते हुए समाजशास्त्र के जनक ऑगस्ट काम्टे ने कहा है कि, "वैज्ञानिक पद्धति में धर्म, दर्शन या कल्पना का कोई भी स्थान नहीं है। इसके विपरीत निरीक्षण प्रयोग और वर्गीकरण की एक व्यवस्थित कार्य प्रणाली को वैज्ञानिक पद्धति कहते हैं।
वैज्ञानिक पद्धति की परिभाषा दीजीए | vaigyanic padhati ki paribhasha
कार्ल पियर्सन के शब्दों में- "समस्त विज्ञानों की एकता उसकी पद्धति में है न की विषय सामग्री में।"
लुण्डबर्ग के शब्दों में- "वैज्ञानिक विधि में समंको का क्रमबद्ध अवलोकन, जिनमें वर्गीकरण या निर्वाचन सम्मिलित हैं। हमारे प्रतिदिन की निष्कर्षों तथा वैज्ञानिक विधि के मुख्य अंतर औपचारिकता की मात्रा, दृढ़ता सत्यापन किए जा सकने की योग्यता और व्यापक रूप से प्रमाणिकता में निहित होता है।"
इन परीभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक पद्धति ज्ञान प्राप्त करने की व्यवस्थित प्रणाली है जिसमें तथ्यों का अवलोकन, वर्गीकरण, सारणीयन तथा सामान्यीकरण सम्मिलित है।
वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताएं लिखिए | वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए
1. सत्यापनशीलता (Verifiability)- सत्यापन ही ऐसा गुण है जिसके कारण वैज्ञानिक विधियां अन्य विधियों की तुलना में अधिक प्रामाणिक मानी जाती है। इसमें कोई भी व्यक्ति निर्धारित प्रविधि का प्रयोग कर किसी भी समय निष्कर्षों की जांच कर सकता है। इस प्रकार वैज्ञानिक पद्धति में यह बात महत्वपूर्ण है कि इसमें किसी भी सिद्धांत को बलपूर्वक नहीं बनवाया जाता लेकिन परीक्षण करके सत्यापन किया जाता है।
सत्यापन के लिए यह आवश्यक है कि उस सत्य का अवलोकन किया जा सकता हो जैसा कि लुण्ड बर्ग ने लिखा है- " यदि किसी सिद्धांत के निष्कर्षों के सत्यापन के लिए अवलोकन आवश्यक है लेकिन वह अव्यवहार या असंभव है, तो उसे वैज्ञानिक होने के स्थान पर दर्शनशास्त्रीय ही माना जाएगा।"
2. निश्चयात्मकता (Definiteness)- वैज्ञानिक पद्धति स्पष्ट निश्चित एवं विशिष्ट होती है, निश्चयात्मकता के लिए विषय सामग्री को स्पष्ट रूप से परिभाषित की जाती है, और उनका स्मरणीयन और वर्गीकरण किया जाता है।
3. वैषयिकता (Subjectivity)- वैज्ञानिक के लिए पूर्ण रूप से वैषयिक होना असंभव सा होता है। लेकिन समुचित मात्रा में पर्याप्त वैषयिकता भी वैज्ञानिक विधि के लिए उपयुक्त मानी जा सकती है। सत्यापन के लिए वैषयिकता का होना नितांत आवश्यक है। इसकी महत्ता पर प्रकाश डालते हुए वुल्फ का कथन है कि - "सही ज्ञान की प्रथम आवश्यकता ऐसे तथ्यों को प्राप्त करने की इच्छा व योग्यता है जो कि बाह्य स्वरूप प्रचलित विचारधारा तथा व्यक्तिगत विचारों से प्रभावित ना हो।"
4. सामान्यता (Generality)- सामान्यता वैज्ञानिक प्रकृति की एक अनिवार्य विशेषता है। वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान प्रयास सभी के ऊपर लागू होता है। लेकिन यह तभी संभव होता है जब की समस्या से संबंधित निष्कर्षों को वैज्ञानिक आधार पर निकाला गया हो। वुल्फ का कथन है कि, "विज्ञान के व्यक्तिगत पदार्थों अथवा व्यक्तिगत पदार्थों के समूहों से संबंध नहीं रखता।
यह मुख्यता प्रतिनिधि रूपों, किस्मों अथवा वर्गों से संबंधित है, जिन में उपस्थित व्यक्तिगत पदार्थ एक उदाहरण है।" इस प्रकार, जब किसी एक इकाई काअध्ययन किया जाता है तो इससे संबंधित निष्कर्ष उस इकाई के पूरे वर्ग पर लागू होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि वैज्ञानिक नियम सार्वभौमिक होते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सामान्यतया इसकी प्रमुख विशेषताएं है।
5. पूर्वानुमान क्षमता (Predictability)- वैज्ञानिक पद्धति की पांचवी विशेषता भविष्य की ओर संकेत करने की क्षमता होती है। इसका अर्थ यही है कि वर्तमान में जो कुछ दिखाई दे रहा है वह भविष्य में भी समान परिस्थिति में पाए जाने पर सत्य ही होगा। साथ ही यदि घटना में परिवर्तन हो रहे हैं तो उसके आधार पर भविष्य में सत्य की प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होगा, इसकी भविष्यवाणी करना भी वैज्ञानिक पद्धति की विशेषता है। इस प्रकार वैज्ञानिक पद्धति समाज की घटनाओं और परिस्थितियों के बारे में भविष्यवाणी करने में सक्षम होती है।
निष्कर्ष:-
इसके बारे में यह कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक पद्धति में तथ्यों का सत्यापन, निश्चयात्मकता, वैषयिकता, सामान्यतया व पूर्वानुमान की क्षमता होती है साथ ही कार्य-करण संबंधों के आधार पर परिवर्तित होने वाली घटनाओं एवं उनके संभावित परिणामों की ओर भी यह संकेत करता है।
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए
1. समस्या का चुनाव-
सर्वप्रथम अध्ययन करता को किसी समस्या काचुनाव और उससे संबंधित साहित्य या उपलब्ध सूचनाओं का अध्ययन करना होता है समस्या का चुनाव काफी सोच-विचार के बाद एवं पूर्व-अवलोकन को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
2. अध्ययन के उद्देश्यों का निर्धारण-
समस्या का चुनाव कर लेने के बाद अध्ययन के उद्देश्यों का निर्धारण किया जाना अति आवश्यक है यह उद्देश्य सामान्य और विशिष्ट दोनों प्रकार के हो सकते हैं।
3. अध्ययन क्षेत्र-
अध्ययन क्षेत्र भी वैज्ञानिक पद्धति का एक महत्वपूर्ण चरण है। अध्ययन क्षेत्र को निश्चित कर लेना इस दृष्टि से आवश्यक है कि अध्ययन करता स्वयं या जान ले कि उसे किस क्षेत्र का अध्ययन करना है ताकि वह व्यर्थ की सामग्री एकत्रित करने से बच सके।
4. अध्ययन पद्धतियों एवं यंत्रों का चुनाव-
क्षेत्र का निर्धारण कर लेने के बाद अध्ययन हेतु अध्ययन पद्धतियों एवं उपकरणों का चुनाव किया जाता है। अध्ययन करता के उद्देश्य एवं प्रकृति को ध्यान में रखकर यह निश्चित करता है कि उसे सूचनाएं एकत्रित करने के लिए साक्षात्कार विधि, अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग करना है या वैयक्तिक अध्ययन पद्धति या किसी अन्य विधि का। यदि वह है साक्षात्कार विधि का प्रयोग कर रहा है तू अध्ययन के उपकरण के रूप में वह साक्षात्कार निर्देशिका भी तैयार करता है।
5. अवलोकन एवं तथ्यों का संकलन-
विषय सामग्री या घटना का सूक्ष्म एवं सावधानी पूर्ण अवलोकन किया जाता है। अवलोकन के अतिरिक्त अध्ययन की किसी अन्य विधि का सहारा भी तथ्य संकलन हेतु लिया जाता है, संकलित तथ्यों को लिखा जाता है।
6. विश्लेषण एवं व्याख्या -
विश्लेषण एवं व्याख्या भी वैज्ञानिक पद्धति का प्रमुख चरण है। एकत्रित तथ्यों को समानताओं के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटा जाता है। फिर सारणियां तैयार की जाती है एवं तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है कार्य करण संबंधों का पता लगाया जाता है।
7. सामान्यीकरण-
वर्गीकृत तथ्यों के प्रतिमान के आधार पर निष्कर्ष निकाले एवं सामान्य नियम बनाए जाते हैं, इन्हीं सामान्य नियमों को वैज्ञानिक सिद्धांत कहा जाता है।
8. जांच या पुन: परीक्षण-
सामान्य नियमों का जांच एवं पुन: परीक्षण किया जाता है। निष्कर्षों एवं नियमों की जांच की जाती है, यह पता लगाया जाता है कि वह सार्वभौमिक रूप से सही है या नहीं और उनमें संशोधन की आवश्यकता होती है।
9. भविष्यवाणी-
एकत्रित तथ्यों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है भविष्य की घटनाओं के संबंध में पूर्व अनुमान लगाया जाता है।
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