अवलोकन का अर्थ एवं परिभाषा, प्रकार

अवलोकन का अर्थ

संसार के सभी लोग अवलोकन या (Observation) पर ही निर्भर करते हैं। हम सभी रोजमर्रा की जिंदगी में अवलोकन करते रहते हैं। जीवन में हर पल लगातार अवलोकन के माध्यम से ही हम अपना ज्ञान भंडार भरते हैं। अवलोकन का मतलब किसी चीज को देखकर सीखना ही अवलोकन कहलाता है अभी अवलोकन का अर्थ आपको समझ में आ गया होगा। अब हम अवलोकन की परिभाषा ओं की ओर आगे बढ़ते हैं।

अवलोकन की परिभाषाएं

पी. वी. यंग (P. V. Young) के अनुसार -"अवलोकन नेत्रों द्वारा स्वाभाविक रूप से घटनाओं को देख कर व्यवस्थित करने की पद्धति है।"

सी. ए. मोजर के अनुसार - "सुंदर ढंग से अवलोकन को वैज्ञानिक अन्वेषण की एक शास्त्रीय पद्धति कह सकते हैं। अवलोकन में आंखों का प्रयोग अधिक किया जाता है।"

अवलोकन की विशेषताएं

1. प्राथमिक सामग्री का संकलन- अवलोकन पद्धति का प्रयोग प्राथमिक सामग्री एकत्र करने के लिए किया जाता है।  

2. प्रत्यक्ष पद्धत- प्रत्यक्ष पद्धति के अनुसार अवलोकन करता विषय क्षेत्र के साथ अपना सीधा संबंध स्थापित करता है और सामग्री का यथासंभव उचित संकलन करता है।

3. विचार पूर्वक अध्ययन- अवलोकन प्रति अत्यंत धीमी गति से आगे बढ़ने वाली प्रणाली है तथा इसी कारण इसमें जो कुछ भी अध्ययन किया जाता है वह विचार पूर्वक किया जाता है।

4. मारा इंद्रियों का पूर्ण उपयोग- अवलोकन में तनाव इंडिया जैसे कान तथा वाणी विशेषकर आंखों का अधिकतम प्रयोग किया जाता है।

5. अधिक विश्वसनीय सामग्री- इस पद्धति मैं अवलोकन करता स्वयं सूचना दाता के पास जाता है और घनिष्ठ संबंध के निर्माण पश्चात कानों की अपेक्षा व सहायता के द्वारा सामग्री का संकलन किया जाता है।

8. कारण परिणाम संबंध- अवलोकनअवलोकन पद्धति के उद्देश्य घटनाओं का विस्तार तथा उनको उत्पन्न करने वाले कारण परिणाम सहसंबंध खोजने का प्रयत्न करना होता है

9. प्राप्त सामग्री का सत्यापन- प्राप्त सूचनाओं के प्रति संघ का अथवा संदेह होने पर सामग्री का पूरा निरीक्षण किया जा सकता है।

अवलोकन विधि की सीमाएं

1. सामाजिक घटनाएं अवलोकन के योग्य नहीं होती- सभी घटनाओं का अवलोकन नहीं किया जा सकता है कुछ घटनाओं और व्यवहारों का निरीक्षण नहीं किया जा सकता।  सामाजिक व्यवहारों का अवलोकन नहीं किया जा सकता। अतः अध्ययन के लिए अवलोकन पद्धति उपयुक्त नहीं रहती।

2. अवलोकनकर्ता की अनुपस्थिति- कुछ घटनाएं इतनी अप्रत्याशित रूप से घटित होती है कि उस समय अवलोकन करता उपस्थित नहीं होता या नहीं हो पाता।

3. कुछ व्यवहारों का अवलोकन असंभव- कुछ व्यवहार ऐसे हैं जिनका अवलोकन हो ही नहीं सकता जैसे:- भावनाएं, संवेदनाएं तथा व्यक्तिगत विचारों का अध्ययन अवलोकन विधि द्वारा नहीं किया जा सकता है।


अवलोकन पद्धति के प्रकार

अवलोकन पद्धति के प्रमुख तीन चरण होते हैं-


चरण:-1

1. व्यक्तिगत अवलोकन- इस प्रकार से अवलोकन किसी विशेष घटनाक्रम या समूह व्यवहार का अध्ययन करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर किए जाते हैं।

2. सामूहिक अवलोकन- इसमें कई व्यक्ति मिलकर सामग्री का संकलन करते हैं और बाद में सब मिलकर एक व्यक्ति से उस पर विचार विमर्श करते हैं।


चरण:-2.

1. अनियंत्रित अवलोकन

1. सहभागी अवलोकन- इसके अंतर्गत अनुसंधानकर्ता उन समुदायों अथवा व्यक्तियों से संबंध स्थापित करता है जिनके अध्ययन के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है।

2. असहभागी अवलोकन- इस अवलोकन में अनुसंधानकर्ता किसी ऐसे समूह का सदस्य नहीं बनता जिसकी क्रियाओं एवं व्यवहारों का वह अध्ययन करता है ना  ही वह ऐसे समूह के सदस्यों के साथ व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करता है इस प्रकार का अवलोकन प्रभाव रहित एवं विश्वासनीय होता है।

3. अर्द्ध सहभागी अवलोकन- इस प्रकार के अवलोकन में अवलोकनकर्ता समूह की क्रियाओं में इस सीमा तक भाग लेता है कि वह आवश्यकता पड़ने पर एक कुशल वैज्ञानिक की भांति तटस्थ होकर भी कुछ सूचनाएं प्राप्त कर सके।


2. नियंत्रित अवलोकन- 

     व्यवस्थित अवलोकन एक नियंत्रित अवलोकन है। इस प्रकार की प्रणाली में अनेक प्रकार के साधनों द्वारा अवलोकन को नियंत्रित किया जाता है। अनुसंधानकर्ता के लिए अनुसंधान के विषय पर नियंत्रण रखना अत्यंत कठिन होता है, लेकिन हम कम से कम अपने ऊपर तो नियंत्रण रख सकते हैं। अवलोकन करता पर नियंत्रण रखने के लिए कुछ साधनों जैसेकी :- अवलोकन की विस्तृत योजना पहले से ही बना लेना अनुसूची व प्रश्नावली का प्रयोग विस्तृत क्षेत्रीय नोट्स, मानचित्र का प्रयोग एवं अन्य साधनों को जैसे:- डायरी, कैमरा, टेप-रिकॉर्डर आदि का प्रयोग किया जाता है।


3. सामूहिक अवलोकन-

        इस प्रणाली में एक ही समस्या व सामाजिक घटनाओं का अवलोकन अनेक अनुसंधानकर्ता द्वारा होता है, जो कि इस सामाजिक घटना के विभिन्न पहलुओं के विशेषज्ञ होते हैं। अनेक व्यक्तियों द्वारा सामग्री एकत्र करके और बाद में केंद्रीय व्यक्ति द्वारा उस सबकी देन का संकलन एवं उससे निष्कर्ष निकाले जाते हैं।


चरण:-3.

सहभागी अवलोकन

     सहभागी अवलोकन का प्रयोग सर्वप्रथम “श्री लिंडमैन” ने सन 1924 में अपनी पुस्तक “सोशियल डिस्कवरी” में किया था।इस अवलोकन में अवलोकन कर्ता समूह में इतना अधिक घुल मिल जाता है कि वह अपनी व्यक्तिगत भावना को छोड़ देता है। और बिना अपना उद्देश्य बताएं हुए उनके क्रियाकलापों में भाग लेकर उनका अध्ययन करता है।


सहभागी अवलोकन के लाभ या महत्व

1. प्रत्यक्ष अध्ययन- इस पद्धति के द्वारा समूह के व्यवहारों का प्रत्यक्ष अध्ययन होता है। समूह के सदस्य के रूप में भाग लेता है, जिन से घनिष्ठ संबंधों का अवसर प्राप्त होता है।

2. विस्तृत सूचनाएं- इस पद्धति के द्वारा विस्तृत एवं सूक्ष्म अध्ययन संभव नहीं हो सकता है। अन्य पद्धतियों के द्वारा अनेक महत्वपूर्ण तथ्य छूटने की संभावनाएं रहती हैं।

3. वास्तविक अध्ययन- इसमें अनुसंधानकर्ता बिना अपना उद्देश्य बताएं हुए उनके क्रियाकलाप में भाग लेता है। अतः व्यक्तियों के व्यवहारों में अस्वाभाविक व बनावट नहीं आ पाती है।

4. अति सरल अध्ययन- इसमें अध्ययन करता स्वयं समूह नहीं होता है, समूह में घुल मिलकर आसानी से अध्ययन करता है।

5. अनुसंधानकर्ता की कुशलता में वृद्धि- उसकी कुशलता में वृद्धि होती है और वह समूह के व्यवहारों में परिचित रहता है। वास्तविक घटनाओं से उसका परिचय हो जाता है।

6. संग्रहित सूचनाओं की परीक्षा- अवलोकन करता स्वयं उपस्थित होकर अध्ययन करता है। ऐसी स्थिति में किसी भी घटना की आशंका होने पर उसकी सत्यता की परीक्षा संभव है।


सहभागी अवलोकन के दोष

1. पूर्ण सहभागिता संभव नहीं - इस प्रकार के अध्ययन में सभा गीता की बात कही जाती है लेकिन वह अनेक बार संभव नहीं है, क्योंकि वह व्यवहारिक एवं कठिन है। जंगली व्यक्तियों के अध्ययन में कोई भी व्यक्ति जंगली नहीं हो सकता तथा भिखारियों के अध्ययन में बहुत कम व्यक्ति भिखारी हो सकते हैं।

2. सीमित क्षेत्र अध्ययन- इस प्रकार की पद्धति में अध्ययन का क्षेत्र बहुत ही सीमित होता है, क्योंकि एक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं होता है कि वह दूर दूर तक सहभागिता स्थापित कर सके।

3. खर्चीला पद्धति- यह पद्धति अधिक खर्चीला होता है, क्योंकि अनुसंधानकर्ता को क्षेत्र में जाकर रहना पड़ता है, और जीवन के प्रत्येक व्यवहार का अध्ययन करना पड़ता है ,इस कारण इसमें धन और समय का खर्च अधिक होता है।

4. वैयक्तिकता का अभाव- किसने अनुसंधानकर्ता उस समूह का सक्रिय सदस्य बन जाता है, जिसका वह अध्ययन कर रहा है वह एक ऐसी वैज्ञानिक के स्थान पर समूह का सदस्य बन जाता है। जहां प्रसन्नता दु:ख आदि के अवसर पर उनसे प्रभावित हो जाता है।

5. एक साथ दो कार्य संभव नहीं- इस प्रकार के अनुसंधान में अवलोकन कर्ता को एक साथ दो भूमिकाएं निभानी पड़ती है, जो कि कठिन कार्य है। एक वैज्ञानिक की भूमिका तथा दूसरी समूह के सदस्य की भूमिका। और अनेक बार इनसे संदेह उत्पन्न हो जाता है।

6. अपरिचित गुण के लाभ संभव नहीं- समूह से परिचित रहने के कारण अनेक घटनाओं के छूटने की संभावना रहती है। अनेक घटनाओं को सामान्य समझ कर छोड़ दिया जाता है। इससे अवलोकन सूक्ष्म एवं गृह नहीं हो पाता है। इस कारण समूह के व्यवहारों से अपरिचित रहने के कारण प्रत्येक क्रिया का अध्ययन नहीं हो पाता है।



असहभागी अवलोकन

         इसमें अवलोकनकर्ता समूह की क्रिया में भाग नहीं लेता है। वह केवल दर्शक की भांति समूह की गतिविधियों का निरीक्षण करता है। वह इसमें गहराई से सामाजिक घटना का अध्ययन नहीं करता केवल बाहरी पक्षो पर ही अध्ययन सीमित रखता है।


असहभागी अवलोकन की विशेषताएं या गुण

1. इसमें अनुसंधानकर्ता दूर से यह घटना का अध्ययन करता है और पक्षपात से बचा रहता है। अतः ऐसे अध्ययन में अधिक वैषयिकता बनी रहती है।

2. इस पद्धति के द्वारा भ्रम का निवारण हो जाता है। क्योंकि प्रश्नावली पद्धति से प्रश्नों को समझने में कठिनाई के कारण भी जो भ्रम उत्पन्न होता है वह इस पद्धति के द्वारा सिद्ध हो जाता है।

3. इस पद्धति के द्वारा सही और विश्वसनीय सूचनाएं प्राप्त होती हैं, क्योंकि इसमें पक्षपात की संभावना कम रहती है। सूचनादाता भी इस प्रकार की जानकारी देने में संकोच कनवर नहीं करते हैं।

4. इसमें समय कम लगता है और धन की बचत होती है।

5. अवलोकन करता को आदर एवं सहयोग अधिक प्राप्त होता है क्योंकि वह निष्पक्ष रहने के कारण प्रत्येक वर्ग का सहयोग प्राप्त कर लेता है।



असहभागी अवलोकन के दोष या सीमाएं


1. इसमें अनुसंधानकर्ता गहराई से किसी घटना का अध्ययन नहीं करता है।

2. इसमें अनुसंधानकर्ता एक अजनबी व्यक्ति की तरह रहता है।

3. विशुद्ध असहभागीक अवलोकन कठिन है, क्योंकि समुदाय से पूर्णरूपेण अलग रहकर अध्ययन करना कठिन है।

4. इस पद्धति के द्वारा वास्तविक जानकारी प्राप्त नहीं होती है


अवलोकन के गुण या महत्व 

1. अवलोकन विधि से अध्ययन बहुत सरल हो जाता है| आखों से देखकर अध्ययन करना सरल माना जाता है और यह अवलोकन प्रविधि से संभव है|

2. इस विधि से मानव प्राचीन काल से ही अवलोकन करता आ रहा है |

3. यह एक प्रत्यक्ष विधि अवलोकन है| जिससे हम व्यवहार को देखकर प्रत्यक्ष अध्ययन करते हैं|

4. इस विधि के द्वारा विश्वसनीय तथ्य प्राप्त होते हैं|

5. शोधकर्ता के लिए अवलोकन उपकल्पनाओ के निर्माण में सहायक होता है| उपकल्पनाओं के परीक्षण मे अवलोकन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|

6. अवलोकन के द्वारा जो अध्ययन किया जाता है ,विषयगत होता है| संकलित तथ्यों मे सत्यपनशीलता पाई जाती है|

7. अवलोकन पद्धति के द्वारा सूक्ष्म व गहन अध्ययन करना संभव होता है, क्योंकि नेत्रों के प्रयोग से मानव व्यवहार के सूक्ष्म तथ्यों को प्रकाश मे लाया जा सकता है|


अवलोकन के दोष या सीमाएं 

सभी सामाजिक घटनाएं अवलोकन योग्य नहीं होती है, अवलोकन प्रविधि की अपनी अलग सीमाएं होती है, इसके सभी दोष या सीमाएं इसप्रकार हैं-

1. अवलोकन विधि मे गलतियाँ होने की संभावनाए होती है|

2. सभी प्रकार की सामाजिक घटनाओं के लिए उपयुक्त होती है, यह वधि पती पत्नी के संबंधों के लिए ठीक नहीं होती है|

3. अध्ययनकर्ता कभी कभी घटना घटती है , तो उपस्थित नहीं रहता है ,एसे में यथार्थ अध्ययन नहीं हो सकता हैं |

4. ज्ञानों की भी परिसीमाएं होती है|

5. इसमे समय और धन का दुरपयोग अधिक होता है|


सहभागी और असहभागी अवलोकन में अंतर

1. सहभागिता की प्रकृति के आधार पर - यह दोनों विधियां एक दूसरे से भिन्न है सहभागी अवलोकन में शोधकर्ता अध्ययन समूह का अभिन्न अंग बनकर घटनाओं का अध्ययन करता है, जबकि असहभागी अवलोकन के अंतर्गत उसकी भूमि का एक अपरिवर्तित और तटस्थ दृष्टि के रूप में होती है।


2. अध्ययन की गहनता के आधार पर- इसमें एक स्पष्ट अंतर है असहभागी अवलोकन के द्वारा समूह के व्यवहारों तथा संबंधित घटनाओं का सूक्ष्म से सूक्ष्म और अत्यधिक गहन अध्ययन करना भी संभव हो जाता है।


3. समूह के व्यवहारों के आधार पर- सहभागी अवलोकन आशा भागी अवलोकन की तुलना में अधिक उपयुक्त होता है। सहभागी अवलोकन के द्वारा घटनाओं को उनके स्वाभाविक रूप में देखना संभव होता है जबकि आशावादी और लोगन की स्थिति में समूह के लोग अक्सर अपने व्यवहारों में परिवर्तन उत्पन्न कर लेते हैं, इसके फलस्वरूप अध्ययन की वैज्ञानिकता संदेहपूर्ण बन जाती है।


4. समय और व्यय के आधार पर- सहभागी अवलोकन की तुलना में असहभागी अवलोकन को अधिक उपयुक्त माना जाता है, इसका कारण यह है कि आज सहभागी अवलोकन के अंतर्गत समय और साधनों का नियोजन अधिक कुशलता पूर्वक किया जा सकता है।


5. वस्तुनिष्ठता की सीमा के आधार पर- इसके आधार पर भी सहभागी एवं असहभागी अवलोकन की प्रकृति एक दूसरे से भिन्न है। सहभागी अवलोकन के अंतर्गत ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जिसके आधार पर अध्ययन की वस्तुनिष्ठता को प्रमाणित किया जा सके। दूसरी ओर सहभागी अवलोकन के द्वारा न केवल प्रत्येक तथ्य को महत्वपूर्ण मान कर उसका संग्रह किया जाता है, बल्कि कोई भी दूसरा अवलोकन घाट चुनाव का स्वयं भी अवलोकन करके उनकी प्रमाणिकता को समझ सकता है। इसके फलस्वरूप असहभागी अवलोकन अक्सर अधिक वस्तुनिष्ठ बन जाता है।


6. सूचनाओं की सत्यापन शीलता के आधार पर- इसके आधार पर भी यह दोनों विधियां एक दूसरे से अलग हैं। सहभागी अवलोकन के द्वारा स्वयं अवलोकन करता भी अपने द्वारा एकत्रित तथ्यों की पुनर्परीक्षा नहीं कर सकता। इसके विपरीत असहभागी अवलोकन के अंतर्गत अध्ययन की प्रत्येक स्तर पर घटनाओं का पुनर परीक्षण करना संभव होता है। इसका कारण यह है कि असहभागी अवलोकन में विपरीत अवलोकन में साधारणतया उनकी तथ्यों का अवलोकन किया जाता है जो या तो समूह में विद्यमान तत्व होते हैं अथवा जो घटनाएं लगभग एक निश्चित क्रम में घटित होती रहती है। स्वाभाविक है कि ऐसे तथ्यों अथवा घटनाओं का सत्यापन किसी भी समय पुन: किया जा सकता है।


7. अध्ययन पर विधियों के आधार पर भी सहभागी और असहभागी अवलोकन की प्रकृति में काफी भिन्नता है। सहभागी अवलोकन के अंतर्गत अवलोकन करता किसी भी दशा में अपने वास्तविक परिचय को छिपाए रखने का प्रयत्न करता है। इसके फलस्वरूप वह ना तो अनुसूची का प्रवेश कर सकता है और ना ही साक्षात्कार प्रविधि के द्वारा व्यवस्थित रूप से तथ्यों का संग्रह कर सकता है। अधिक से अधिक वह अवलोकन कार्ड को ही उपयोग में ला सकता है और वह भी छिपे तौर पर। इसके विपरीत असहभागी अवलोकन के अंतर्गत उन सभी वैज्ञानिक प्रविधियां तथा उपकरणों का प्रयोग करना संभव है जो किसी भी अवलोकन को अधिक उपयोगी बना सकते हैं।


8. सहभागी अवलोकन तभी सफल हो सकता है, जब अवलोकन करता बहुत अधिक प्रशिक्षित हो। एक छोटी सी गलती से वह समूह के आक्रोश का शिकार बन सकता है। दूसरी ओर सहभागी अवलोकन का सामान्य कुशलता और प्रशिक्षण से भी किया जा सकता है। यही कारण है कि सहभागी अवलोकन की जब तक बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती तब तक सामाजिक घटना उनसे संबंधित प्राथमिक सामग्री का संकलन करने के लिए असहभागी अवलोकन विधि को ही उपयोग समझा जाता है।


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