संगठन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, लाभ, चरण, उद्देश्य, विशेषताएं

Sangathan kya hota hai; संगठन मतलब सभी का एक गठन, इस तरह से हम आसानी से समझ सकते हैं कि संगठन अर्थात सभी व्यक्तियों का समावेश या साथ रहना और साथ में रहकर अपने व्यवसाय या व्यापार को आगे बढ़ाना ही संगठन कहलाता है। यहां हम और आसानी से समझ सकते हैं- Sangathan ka arth ‘संग’ अर्थात सभी का साथ होना, ‘ठन’ अर्थात व्यवस्था अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्तियों का एक साथ व्यवस्थित रूप में होना ही संगठन कहलाता है।

इसे हम उदाहरण के तौर पर और अच्छे तरीके से समझ सकते हैं तो चलिए देखते हैं

उदाहरण:

मान लीजिए कोई अकेला या Single व्यक्ति फल और सब्जियों का Business करना चाहता है या व्यापार करना चाहता है। तब शुरुआत में उसके पास इतने पैसे नहीं होंगे कि वह अकेला व्यक्ति उस कार्य को कर सके। और उस Business के लिए उसमें श्रमिक लगा सके, बीज खरीद सके, पानी की व्यवस्था कर सके, और उन फलों को बाजार तक ले जाने के लिए उचित वाहनों की व्यवस्था कर सके। आदि यह सब कार्य केवल एक व्यक्ति नहीं कर सकता। इस Time उस व्यक्ति को संगठन की आवश्यकता होगी जो उस Business में उसका साथ दें तो इसके लिए वह व्यक्ति क्या करेगा अपने साथ और 2-3 लोगों को उस Business में शामिल करेगा। वो कहते हैं ना कि एक से भले दो, दो से भले तीन। तो इस तरह से इनका संगठन धीरे-धीरे Grow होता जाएगा।

संगठन का अर्थ | sangathan ka arth

sangathan ka arth; संगठन व्यक्तियों का समूह होता है जो किसी संस्था द्वारा निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों को एकत्रित करना और उनके बीच कार्यों को बांटना ही संगठन कहलाता है।

संगठन की परिभाषा | sangathan ki paribhasha

प्रो. लुइस एच. हैने के अनुसार-संगठन व्यक्तियों का समूह है जो किसी निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों को एकत्रित करना और उनके बीच कार्यों को बांटना ही संगठन कहलाता है।

उर्विक के अनुसार- “किसी कार्य को पूरा करने के लिए क्रियाओं को किया जाए तथा उन क्रियाओं को व्यक्तियों के बीच वितरित ही संगठन कहलाता है।”

संगठन के प्रमुख प्रारूप के प्रकारों का नाम | sangathan ke prakar

1. रेखा संगठन

2. रेखा व कर्मचारी संगठन

3. क्रियात्मक संगठन

4. समिति संगठन

5. परियोजना संगठन।

इस प्रकार से संगठन के प्रमुख प्रारूप पांच प्रकार के हैं।

रेखा संगठन किसे कहते हैं?

रेखा संगठन, संगठन की सबसे सरल एवं पुरानी पद्धति है। इसमें कार्यो का विभाजन अनेक स्वतंत्र विभागों में किया जाता है। आधुनिक लेखकों ने इसे कई नामों से पुकारा है, जैसे- सैनिक संगठन, आदेश संगठन, विभागीय संगठन आदि। इसका सर्वोच्च अधिकारी महाप्रबंधक होता है। वह अपना आदेश विभागीय मैनेजर को, विभागीय मैनेजर- सुपरिटेंडेंट को, सुपरिटेंडेंट- फोरमैन को, फोरमैन श्रमिकों को, आदेश देता है इस तरह से अधिकार तथा दायित्वों की रेखा एक सीधे क्रम में ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होती है इसलिए इसे रेखा संगठन कहते हैं।

रेखा संगठन की दो विशेषताएं

  1. इसमें आदेश का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होती है।
  2. आदेश देने वाला पदाधिकारी केवल एक ही होता है।

रेखा एवं कर्मचारी संगठन क्या है

रेखा एवं कर्मचारी संगठन में काम का विभाजन स्वतंत्र विभागों में किया जाता है और उत्तरदायित्व का विभाजन भी लंबवत होता है। लेकिन सहकारिता को प्रोत्साहन देने के लिए प्रत्येक विभाग में विशेषज्ञ नियुक्त किए जाते हैं, जो परामर्श का कार्य करते हैं।

रेखा व कर्मचारी संगठन की विशेषताएं

  1. इस संगठन में अधिकार व उत्तरदायित्व ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है।
  2. इस संगठन में योग्य कर्मचारियों की उन्नति के लिए अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।
  3. इसमें सोचने एवं परामर्श देने व करने के कार्य दोनों अलग-अलग होते हैं।

रेखा संगठन के दोष

  1. इस संगठन में पक्षपात की शंका बनी रहती है। किस में सर्वोच्च अधिकारी अपने अधीनस्थों की नियुक्ति, पदोन्नति में पक्षपात कर सकता है।
  2. आधुनिक उद्योग इतने जटिल है कि एक ही व्यक्ति सारे कार्य संपन्न नहीं कर सकता। अतः विशेष टीकाकरण इसमें संभव नहीं है।
  3. किसी अधिकारी के बिना विभागों में समन्वय स्थापित करना कठिन हो जाता है।
  4. अनुशासन पर अधिक ध्यान देने के कारण इस प्रणाली में तानाशाह और बुराइयां आ जाती हैं।
  5. उच्च अधिकारी के गलत निर्णय लेने पर उपक्रम विफल हो जाता है।

रेखा संगठन के लाभ

  1. इस संगठन में सभी व्यक्तियों को अपने कर्तव्यों और दायित्वों का पूरी तरह से ज्ञान होता है।
  2. रेखा संगठन में निर्णय केवल एक ही व्यक्ति द्वारा लिए जाते हैं और शीघ्रता से लिए जाते हैं।
  3. प्रत्येक विभागों को एक ही व्यक्ति के निर्देशों के अनुसार कार्य करना होता है। ताकि उन सभी में आसानी से समन्वय किया जा सके।
  4. इस संगठन प्रणाली में लोगों के आवश्यकता अनुसार इसका Adjustment किया जा सकता है।

परियोजना संगठन क्या है

संगठन की इस विधि के अंतर्गत निर्धारित व्यक्तियों को एक कार्य दल के रूप में संगठित कर उन्हें परियोजना का सारा भार सौंप दिया जाता है। यह विधि किसी विशिष्ट परियोजना को पूर्ण करने हेतु अपनाई जाती है।

संगठन के कोई चार लाभ | sangathan ke labh

1. विकास में सहायक-

एक सर्वश्रेष्ठ संगठन के माध्यम से किसी भी कार्य में तेज गति से विकास होने लगता है, किसी Successful Business के पीछे एक संगठन का बहुत बड़ा योगदान होता है।

2. समन्वय स्थापित होना-

संगठन की सहायता से, कई व्यक्तियों में समन्वय एवं सामंजस्य स्थापित होता है, जिससे प्रशासन द्वारा निर्धारित नीति का पूर्ण परिपालन संभव होता है।

3. भ्रष्टाचार पर नियंत्रण-

एक अच्छे संगठन से भ्रष्टाचार नियंत्रित होता है, जिससे उस संगठन में कार्य करने वाले व्यक्तियों का मनोबल और उत्साह तेजी से बढ़ता जाता है। जिससे संगठन को मजबूत ही मिलती है।

4. मनोबल में वृद्धि-

अच्छे संगठन से उस संगठन में कार्य कर रहे लोगों के मनोबल में वृद्धि होती है। हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पूर्ण ज्ञान होता है और वह अपने कर्तव्य को भलीभांति जानता है।

संगठन क्रिया के प्रमुख चरण

1. क्रियाओं को निश्चित करना -

सर्वप्रथम निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक क्रियाओं का पता लगाया जाता है। यह क्रियाएं व्यवसाय की प्रकृति व आकार पर भी निर्भर है जैसे- एक व्यापारिक संस्था में उत्पादन क्रियाएं नहीं होती। बल्कि प्रत्येक बड़ी-बड़ी क्रियाओं को छोटी-छोटी उपक्रियाओं में बांटा जाता है उदाहरण के लिए उत्पादन क्रिया को कच्चे माल के क्रय‌, संयंत्र, अभिन्यास स्टॉक नियंत्रण मरम्मत व रखरखाव आदि क्रियाओं में विभाजित किया जा सकता है।

2. क्रियाओं को श्रेणियन करना-

क्रियाओं का निर्धारण करके उन्हें विभिन्न वर्गों में इस प्रकार बांटा जाता है कि प्रत्येक वर्ग में एक प्रकार की क्रियाएं सम्मिलित हो मिलती-जुलती क्रियाएं एक ही विभाग में रखी जानी चाहिए जैसे विक्रय विभाग में विक्रय से संबंधित सभी क्रियाएं होती हैं।

3. कर्तव्यों का आवंटन-

समस्त क्रियाओं को श्रेणीबध्द करने के बाद प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता व रुचि के अनुरूप कार्य सौंपा जाता है और उसका उत्तरदायित्व निश्चित किया जाता है प्रत्येक विभाग हाउस में कार्यरत प्रत्येक व्यक्ति के कर्तव्य व दायित्व भली-भांति स्पष्ट करने चाहिए।

4. अधिकारों को सौंपना-

प्रत्येक व्यक्ति को उसके दायित्व के अनुरूप अधिकार सौंपे जाते हैं ताकि वह अपना कार्य सुचारू रूप से कर सके अधिकारों के प्रयोजन औपचारिक संबंधों का अधिकार स्तनों का विकास होता है। इसके साथ ही विभिन्न स्तरों व विभागों में संप्रेषण व समन्वय की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए।

संगठन प्रक्रिया का संक्षेप में विवेचना कीजिए | sangathan ke Nirman ke Pramukh Charan

1. उद्देश्यों की स्थापना-

कोई संगठन बनाने से पूर्व उस संगठन का उद्देश्य क्या होगा इसका निर्णय सर्वप्रथम करना चाहिए यह बहुत ही आवश्यक है। किसी भी संगठन को बनाने के पूर्व उनका कोई उद्देश्य होना अति आवश्यक है। बिना उद्देश्यों के संगठन का कोई महत्व नहीं है।

2. क्रियाओं का निर्धारण-

संगठन का दूसरा कदम बहुत महत्वपूर्ण है इसमें संगठन की कार्यों का निर्धारण करना होता है। तथा उन कार्यों को संगठित लोग में बांट दिया जाता है। तथा सभी लोगों को उन्हें अपने अपने कर्तव्य समझा दे जाते हैं।

3. क्रियाओं का वर्गीकरण-

संगठन के प्रत्येक चरण में क्रियाओं का वर्गीकरण किया जाता है, इसके लिए विभिन्न क्रियाओं को अलग-अलग Groups में बांट दिया जाता है जैसे- खरीदना, बेचना, विज्ञापन, निरीक्षण, उत्पादन, मजदूरी, वेतन आदि।

4. कार्य का विभाजन-

इस संगठन के अंतर्गत सही कार्य के लिए सही व्यक्ति के सिद्धांत के अनुसार कार्यों का विभाजन किया जाता है। साथ ही कर्मचारियों की जिम्मेदारी भी निश्चित की जाती है।

संगठन के उद्देश्य | sangathan ke uddeshya

1. उत्पादन में मितव्ययिता (Economy in Production)-

संगठन का प्रथम उद्देश्य उत्पादन में वृद्धि लाना है यानी कि कम लागत पर अधिक लाभ प्राप्त करना ही संगठन का मुख्य उद्देश्य है। यहां यह ध्यान रखना है कि न्यूनतम लागत के साथ-साथ वस्तु की (Quality) 'गुणवत्ता'  व (Quantity) 'मात्रा' में गिरावट नहीं आनी चाहिए।

2. समय आश्रम में बचत (Saving in Time and Labour)-

संगठन में श्रेष्ठ मशीनें व यंत्र अपनाई जाती है जिससे कार्य करते समय बड़ी मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता ना पड़े। यहां पर मशीनों को लाने के लिए केवल एक बार खर्च करन पड़ेगा। यहां श्रमिकों की आवश्यकता कम होगी और उत्पादन में वृद्घि होगी। इस तरह से संगठन से लाभ प्राप्त किया जाता है।

3. श्रम और पूंजी में मधुर संबंध (Cordial Relation Between Labour and Capital)-

लगाए हुए पूंजी और कार्य करने वाले श्रमिकों के बीच अच्छा संबंध होना चाहिए ताकि वे भी आपके लगाए हुए पूंजी के कार्यों में सही ढंग से कार्य कर सकें। जिससे आपके Product में Quality बनी रहेगी। और जनता का विश्वास आप पर टिका रहेगा।

4. सेवा भावना रखना (Service Spirit)-

आप सबसे पहले जिस भी कार्य में अपना पूंजी निवेश कर रहे हैं उस कार्य को सबसे पहले आपको लोगों की सेवा करने व उनके लाभ के लिए कार्य करना होगा तभी जनता का विश्वास आप पर बना रहेगा। जनता आप पर Trust करेगी और आपका Product लेने के लिए आपके पास आएगी। जब तक आप जनता का मन नहीं जीत लेते तब तक आप केवल सेवा ही करते रहिए। व्यवसाय का प्रमुख उद्देश्य सर्वप्रथम सेवा फिर लाभ होना चाहिए।

5. निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति (Achievement of Determined Goals)-

संगठन चाहे कोई भी हो संगठन केवल अपने लक्ष्य की प्राप्ति चाहता है। संगठन का प्रमुख कार्य अपने लक्ष्य या उद्देश्यों की प्राप्ति करना होता है।

6. संस्था को सशक्त बनाना (To Make Strong Institution)-

संस्था को संगठन मजबूत बनाती है। संस्था को मजबूत बनाने के लिए संगठन का मजबूत होना अति आवश्यक है संगठन के बिना संस्था का कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा। संगठन का दूसरा उद्देश्य संस्था को मजबूत बनाना है।

संगठन की विशेषताएं | sangathan ki visheshta

1. दो या दो से अधिक व्यक्ति का होना-

संगठन केवल एक व्यक्ति का नहीं होता बल्कि यह एक से अधिक व्यक्तियों का समूह होता है जिसे हम संगठन कहते हैं, और उन संगठनों का उद्देश्य अपने व्यवसाय या व्यापार में उन्नति और वृद्धि करना होता है। संगठन किसी पशु पक्षी को हम नहीं कर सकते, संगठन केवल मनुष्य द्वारा बनाए गए समूह को कहते हैं क्योंकि मनुष्य विवेकशील है और वह हमारे भावनाओं को समझता है। कोई एक व्यक्ति संगठन का निर्माण नहीं कर सकता जब तक कि उसमें एक से अधिक व्यक्ति ना हो। इस संगठन में 2 या इससे अधिक व्यक्ति होना अनिवार्य है।

2. निश्चित उद्देश्य का होना-

संगठन बनाने के पूर्व किसी निश्चित उद्देश्य का निर्णय करना अति आवश्यक है बिना उद्देश्य बनाए संगठन का कोई महत्व नहीं रहता है इसलिए संगठन का कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है। मेले में सैकड़ों लोग रहते हैं उसे हम संगठन नहीं कह सकते क्योंकि उनका कोई निश्चित उद्देश्य नहीं होता है। उसे केवल हम भीड़ कह सकते हैं।

3. लक्ष्य का पूर्व निर्धारित होना-

संगठन बनाने के पूर्व हमें लक्ष्य या Target चुनना चाहिए संगठन के लिए यह आवश्यक है कि लक्ष्यों का पूर्व निर्धारित होना अति आवश्यक है ताकि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संगठन बनाया जाए। अतः अतः संगठन के पहले लक्ष्य का निर्धारित करना आवश्यक है।

4. व्यक्तियों का समूह होना-

संगठन किसी पशु पक्षी या अन्य प्राणियों का समूह, संगठन नहीं कहलाता संगठन केवल व्यक्तियों का ही हो सकता है। क्योंकि व्यक्ति विवेकशील होता है और वह हमारी भावनाओं को अच्छी तरह से समझ सकता है और कार्य कर सकता है।

5. संगठन में नेतृत्व का होना-

संगठन में किसी एक व्यक्ति का उच्च पद होना चाहिए ताकि वह अपने नीचे कार्यरत लोगों को अपनी उद्देश्यों के प्रति उनको जागरूक कर सके और उसके अनुरूप कार्य कर सकें। बिना किसी नेता या उच्च पदाधिकारी के लक्ष्य की प्राप्ति करना कठिन है।

6. संगठन एक प्रक्रिया के रूप में-

संगठन एक प्रक्रिया है, अर्थात इसमें लगातार कुछ न कुछ कार्य चलते रहते हैं, जैसे- क्रय, विक्रय, विपणन, समन्वय, संदेहवाहन आदि।

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Comments

  1. Nitish 9304309526

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    1. Hi' Nitish welcome 💐 Aagar aap mujhse contact karna chahte hain to contact page me jakar mujhe direct Email bhej sakte hain. Dhanyawad...

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  2. Thank you very much sir, through this page of yours I am able to complete my assignment today, thank you very much.

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  3. कुजूर जी नमस्कार जोहार,
    आपके द्वारा दी गई जानकारी से मुझे संगठन संचालन के लिए एक अच्छा मार्गदर्शन मिला है, मेरी और से आपको शुभकामनाऐं बधाई, आप इसी तरह से मार्गदर्शन करते रहे आपके मार्गदर्शन से हजारों लाखों भटके हुए कार्यकर्ताओं को सही मार्ग मिलेगा बहुत अच्छा कैडर संदेश है

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  4. 👌👌👌

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  5. संगठन का प्रथम उद्देश्य उत्पादन में वृद्धि लाना है यानी कि कम लागत पर अधिक लाभ प्राप्त करना ही संगठन का मुख्य उद्देश्य है। यहां यह ध्यान रखना है कि न्यूनतम लागत के साथ-साथ वस्तु की (Quality) 'गुणवत्ता' व (Quantity) 'मात्रा' में गिरावट नहीं आनी चाहिए।

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