भर्ती का अर्थ एवं परिभाषा, स्रोत, सिद्धांत

भर्ती का अर्थ | bharti ka arth

भर्ती का अर्थ साधारण भाषा में हम कह सकते हैं कि किसी सार्वजनिक या निजी संस्था के रिक्त (स्थान) या पद को भरने से है।

भर्ती की परिभाषा | bharti ki paribhasha

डेल एस. ब्रिच. के अनुसार- “भर्ती का आशय पर्याप्त मानव शक्ति स्रोतों को वितरण करना एवं उनको बनाए रखना, इसमें उपलब्ध कर्मचारियों का एक निश्चित निकाय स्थापित करना भी शामिल है ताकि संगठन में आंतरिक कर्मचारियों को आवश्यकता पड़ने पर प्राप्त किया जा सके।”

भर्ती से क्या आशय है | bharti se kya aashay hai

भर्ती से आशय संस्था के कार्य को सफलतापूर्वक चलाने के लिए रिक्त स्थान को नए कर्मचारियों के द्वारा उन स्थानों को पूरा करने के लिए खोजना, उनसे आवेदन पत्र प्राप्त करना, उनका मूल्यांकन कर उन स्थान को निश्चित रूप से भरना है।

bharti ka arth paribhasha
bharti ka arth  evam paribhasha

भर्ती के कितने स्रोत होते हैं | bharti ke shrot

भर्ती के दो स्रोत होते हैं- 1. आंतरिक स्रोत  2. बाह्य स्रोत

  1. आंतरिक स्रोत - इसके अंतर्गत रिक्त पदों को संस्था के अंदर उपलब्ध कर्मचारियों से भरा जाता है।
  2. बाह्य स्रोत - इसके अंतर्गत रिक्त पदों को भरने के लिए संस्था के बाहर से व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाता है और रिक्त पदों को भरा जाता है।

भर्ती के आंतरिक स्रोत क्या है | bharti ke antrik short

भर्ती के आंतरिक स्रोत इस प्रकार से हैं-

1. निम्न स्तर से ऊंचे स्तर की ओर पदोन्नति- इसमें कर्मचारियों की योग्यता के आधार पर रिक्त पदों को भरा जाता है, जिन्हें हम साधारण भाषा में Promotion भी कहते हैं।

2. अतिरिक्त कर्मचारियों का समायोजन- प्रारंभ में अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता होती है बाद में कार्य कम होने के कारण इनका स्थानांतरण अन्य कार्यालयों में किया जाता है। जिन्हें हम साधारण भाषा में Transfer भी कहते हैं।

3. स्थानांतरण- जब किसी कारणवश संस्था के किसी एक इकाई में कर्मचारियों की संख्या आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो कौन अतिरिक्त कर्मचारियों को संस्था की ही दूसरी इकाई में जहां कर्मचारियों की संख्या कम है वहां स्थानांतरित कर दिया जाता है।

भर्ती के बाह्य स्रोत क्या हैं | bharti ke bahya shrot

भर्ती के बाह्य श्रोत इस प्रकार से हैं-

1. सेवानिवृत सैन्य कर्मचारी - फौज में कार्यरत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु कम होने के कारण प्रबंधक इन्हें कहीं भी भर्ती करना पसंद करते हैं क्योंकि यह बहुत मेहनती, निष्ठावान तथा अनुशासन प्रिय होते हैं।

2. भूतपूर्व कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति- ऐसे कर्मचारी जो किसी कारण निकाल दिए गए थे या स्वयं किन्हीं कारणवश काम छोड़ कर गए थे, परंतु अब कार्य करने के इच्छुक हैं और ऐसे कर्मचारियों का पुराना रिकॉर्ड यदि अच्छा है तो नए कर्मचारियों की तुलना में इन्हें रखना लाभप्रद होता है।

3. वर्तमान कर्मचारियों के मित्र तथा रिश्तेदार- वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों के मित्र व रिश्तेदार जो कि योग्य एवं कर्तव्यनिष्ठ हैं उन्हें भी रिक्त पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

4. परिसर भर्ती- कारखानों या संस्था द्वारा विभिन्न राज्यों के आवेदन पत्र संस्था के द्वारा जमा करवा कर उनमें से कर्मचारियों का चयन किया जाता है। तथा उनकी भर्ती की जाती है।

5. शिक्षण संस्थानों तथा तकनीकी संस्थाओं द्वारा- विभिन्न शिक्षण संस्था तथा तकनीकी संस्थाओं से संपर्क करके रिक्त स्थानों पर होनहार नायकों का चयन करके उनकी आवश्यकता अनुसार भर्ती की जाती है।

6. विज्ञापन द्वारा- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, रेडियो, टेलीविजन तथा इंटरनेट पर विज्ञापन देकर भी आवेदन बुलवाया जा सकते हैं, जिनमें से योग्य कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है।

7. रोजगार कार्यालय द्वारा- रोजगार कार्यालय में कार्य के इच्छुक व्यक्ति अपना बायोडाटा समस्त विवरण सहित रोजगार कार्यालय में दर्ज करवाते हैं जिस संगठन में कर्मचारियों के सत्ता होती है वे रोजगार कार्यालय के मध्यम से योग्य कर्मचारियों को अपने संगठन में बुलाकर उनकी भर्ती की प्रक्रिया करते हैं।

भर्ती की पद्धतियों का वर्णन कीजिए | bharti ki padhati

1. मध्यस्थों द्वारा भर्ती- मध्यस्थों द्वारा कर्मचारियों की भर्ती की पद्धति अत्यधिक प्राचीन है। इस पद्धति में चौधरी, सरदार, ठेकेदार, दलालों द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों से श्रमिकों व कर्मचारियों को लाकर श्रम की पूर्ति करते हैं। यह पद्धति वर्तमान में अव्यवहारिक, शोषणकारी तथा अवैज्ञानिक मानी जाती है।

2. विज्ञापन द्वारा भर्ती- विज्ञापन श्रम पूर्ति का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है इस पद्धति में समाचार पत्र या रोजगार समाचार पत्रों में कर्मचारियों की आवश्यकता अनुसार विज्ञापन प्रकाशित करवाते हैं, इसमें योग्यताएं वेतन भत्ते व अन्य शर्तें भी प्रकाशित की जाती है इच्छुक व योग्य व्यक्ति विज्ञापन पढ़कर आवेदन करते हैं और आवेदकों में से योग्य व्यक्ति को कार्य पर नियुक्त कर देते हैं, इस पद्धति में दूर-दूर के क्षेत्रों से योग्य कर्मचारियों को कार्य पर लगाया जा सकता है।

3. रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती- वर्तमान में प्रत्येक जिला स्तर पर वह प्रत्येक विश्वविद्यालयों में रोजगार कार्यालय प्रारंभ किए गए हैं जहां पर रोजगार से संबंधित जानकारी प्राप्त की जाती है। साथ ही यहां बेरोजगार युवक-युवतियों की विस्तृत जानकारी भी उपलब्ध रहती है भर्तीकर्ता रोजगार केंद्रों के माध्यम से विश्रम पूर्ति कर सकते हैं।

4. प्रत्यक्ष भर्ती- यह पद्धति आधुनिक नियम में काफी प्रचलित व उपयुक्त मानी गई है। क्योंकि इसमें भर्ती करता को अपने मनपसंद व योग्य व्यक्ति को सीधे भर्ती करने का अवसर प्राप्त हो जाता है। इस पद्धति में आवेदन पत्रों को बुलाना छांटना साक्षात्कार आदि समस्त क्रियाएं क्रमवार की जाती है कुछ वैज्ञानिक परीक्षण भी इसमें किए जाते हैं। यह विधि पूर्णता आधुनिक वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक होने के कारण अधिकांश प्रतिष्ठानों द्वारा इसे अपनाया जा रहा है।

5. श्रम संघों द्वारा भर्ती- कुछ उपक्रमों में श्रम संगठन जैसे हिंदू मजदूर सभा, एआ. ई, फुटकों आदि अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं सशक्त होते हैं। रोजगार से संबंधित जानकारी उनके कार्यालय में सदैव उपलब्ध होती है अतः आवश्यकतानुसार श्रम संघों के माध्यम से भी श्रम पूर्ति की जा सकती है।

6. मित्रों और रिश्तेदारों द्वारा भर्ती- कुछ उपक्रम अपने कर्मचारियों प्रबंधकों को यह निर्देश करते हैं कि वे अपने विश्वासपात्र व योग्य मित्रों और रिश्तेदारों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करें इससे अच्छे व योग्य कर्मचारी प्राप्त हो जाते हैं तथा इन कर्मचारियों पर विश्वास किया जा सकता है तथा गोपनीयता पर भरोसा किया जा सकता है किंतु इस पद्धति में वर्तमान काफी दोष गए हैं। इसलिए इसे अव्यवहारिक पद्धति माना गया है।

भर्ती के आंतरिक स्रोतों के लाभ | antrik shrot ke labh

1. सामान्य नियमों की जानकारी- संस्था में अनेक वर्षो से कार्य करने के कारण इन कर्मचारियों को संस्था के सामान्य नियमों व व्यवसायिक नीतियों की जानकारी अच्छी तरह से होती है। पता नहीं कर्मचारियों की तरह इन्हें जानकारी देना आवश्यक नहीं होता इससे समय व धन की बचत होती है।

2. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि- इस प्रणाली में कर्मचारियों का मनोबल ऊंचा बना रहता है क्योंकि उन्हें यह ज्ञात होता है कि कभी ना कभी उनकी पदोन्नति अवश्य होगी विकासनगर व उत्साह से कार्य करते हैं।

3. पदोन्नति के द्वार खुले रहना- आंतरिक स्रोत से भर्ती विधि में सभी कर्मचारियों के लिए पदोन्नति के द्वार खुले रहते हैं। प्रत्येक कर्मचारी की पदोन्नति भविष्य में अवश्य होगी।

4. भर्ती पर न्यूनतम व्यय- भारती की इस प्रणाली में न्यूनतम व्यय होता है क्योंकि वह सभी औपचारिक बाह्य स्रोतों में करनी पड़ती है और उन पर जो भी व्याय होता है वह आंतरिक भर्ती में नहीं करना पड़ता है इससे बाह्य व्यय बच जाता है।

5. कार्य क्षमता में वृद्धि- इस विधि में सभी कर्मचारियों को यह ज्ञात होता है कि उनकी भविष्य में पदोन्नति होगी साथ ही अधिक कार्य कुशल व लगन कर्मचारियों की पदोन्नति शीघ्र होगी इसी उम्मीद से कर्मचारी पूर्ण लगन से कार्य करते हैं। इससे कर्मचारियों की क्षमता वृद्धि होती है।

6. प्रशिक्षण व्यय में कमी- संस्था के कर्मचारी संस्था की कार्यप्रणाली व कार्यों को करने के ढंग से अच्छी तरह परिचित रहते हैं अतः उन्हें सामान्य कार्यों के लिए प्रशिक्षण देने की आवश्यकता नहीं होती है मात्र नवीन तकनीकी ज्ञान व नई नई प्रणाली का प्रशिक्षण देना पड़ता है। अतः इस तरह से प्रशिक्षण में व्यय में काफी बचत होती है।

भर्ती के सिद्धांत | Bhart ke Shidhant

संसार के किसी भी कार्य को संपन्न बनाने के लिए कुछ मार्गदर्शक या सिद्धांतों की आवश्यकता पड़ती ही है यह सिद्धांत भर्ती की नीति कहलाती है। आदर्श भर्ती के लिए यह आवश्यक है कि वह उनका पालन करें। ‌ वर्तमान में भर्ती का कार्य प्रबंधकों द्वारा किया जाता है। अतः उन्हें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1. भारतीय कार्य शीर्ष प्रबंध से- भर्ती से संबंधित समस्त कार्य हमेशा उच्च प्रबंध से ही होना चाहिए ताकि भर्ती में किसी भी प्रकार का पक्षपात कार्य ना हो सके।

2. विभिन्न विभागों से रिक्त स्थान की जानकारी- शीर्ष विभाग को विभिन्न विभागों से रिक्त स्थान की जानकारी हेतु समय-समय पर बुलाना चाहिए ताकि उसी के अनुरूप भर्ती की जा सके।

3. आवश्यकता के अनुरूप भर्ती- उपक्रम में वर्तमान में जितने पद रिक्त हो उतने पदों पर ही भर्ती होनी चाहिए अधिक भर्ती से उपक्रम पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता है और कम भर्ती करने पर कार्य पूर्ण होने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

4. भर्ती हेतु अलग विभाग- भर्ती का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है अतः इसके लिए कुशल और अनुभवी भर्तीकर्ता का चयन कर अलग विभाग या शाखा खोलनी चाहिए जिससे विभाग या भर्ती शाखा का नाम दिया जा सकता है।

5. नए पदों की स्वीकृति- कार्य बढ़ जाने से अतिरिक्त पदों की आवश्यकता हो तो रिक्त पद निर्माण की स्वीकृति नियोक्ता से ही लेनी चाहिए। क्योंकि अतिरिक्त पद निर्माण से आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।

6. भर्ती कार्य योग्य अधिकारी द्वारा- कर्मचारी व्यवसाय की रीड हड्डी होते हैं, उनके बिना संस्था का कोई भी काम सफल नहीं होगा। अतः इनका चयन अत्यंत ही सोच विचार कर उच्च अधिकारियों द्वारा करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर बाहर से भर्ती विशेषज्ञ को आमंत्रित करना चाहिए।

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