मुगल कालीन सामाजिक दशा का वर्णन
तो हेल्लो स्टूडेंट्स आज हम मुगलों का सामाजिक जीवन एवं रहन-सहन के बारे में चर्चा करेंगे।
मुगलकालीन भारतीय समाज का आधार सामंतवादी था। सारे देश में मनसबदारी तथा सामंतों का बोलबाला था, सामंतों के अनेक दर्ज थे। मुगल दरबार सभ्यता और संस्कृति का केंद्र था।
भारतीय समाज उस समय निम्न तीन वर्गों में बांटा हुआ था—
1. उच्च वर्ग—
इसके अंतर्गत बादशाह उनका परिवार और उच्च पदाधिकारी आते थे। इस बात का पता नहीं चलता था कि राज्य की आय का कितना धन वे अपने ऊपर खर्च करते थे। फिर भी ऐसा अनुमान है कि सरकारी व्यय के पश्चात जो पैसा बचता था वह उससे ही अपने लिए खर्च करते थे। ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि सरकारी व्यय पूरा किए बिना ही मुगल बादशाहों ने अपने लिए धन खर्च किया हो। औरंगजेब को छोड़कर बाकी सभी मुगल बादशाह मदिरापान करते थे। मुगल बादशाह मांस और फलों के बहुत शौकीन थे, दावत देने का खूब प्रचलन था। बादशाह और उनके दरबारी बड़े सुंदर वस्त्र धारण करते थे। बादशाह अकबर प्रतिवर्ष अपने लिए 1000 सूट बनवाया करता था। और कुछ ही उपयोग के बाद दान में दे दिया करता था।
राजपूत और सामंत भी ठीक इसी प्रकार विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने भी मुगलों की भांति खाना-पीना पोशाक आदि का आयोजन करना प्रारंभ कर दिया था।यहां तक कि यह लोग इसके लिए बहुत सारा सामान विदेशों से भी मंगाने लग गए थे जिसमें बहुत खर्च होता था।
इसी प्रकार दिनोंदिन इन विलासी राजाओं की विलासिता के कारण दशा बड़ी बिगड़ गई। उन्हें ऋण लेने की भी आदत पड़ गई थी धीरे-धीरे अमीरों की आर्थिक स्थिति खराब होती गई।
2. मध्यमवर्ग—
यह सामान तो मैं निम्न वर्ग था। इसके अंतर्गत छोटे पदाधिकारी और व्यापारी आते हैं यह लोग धनी होने पर भी कम खर्च करते थे। इनमें कुरीतियां बहुत कम थी। यह सरल जीवन व्यतीत करते थे। ये मदिरापान बहुत कम करते थे। समाज में धर्मशालाएं कुएं और तालाब आदि का निर्माण कराते थे। परंतु इन पर सरकारी अंकुश था इनका जीवन सीधा साधा और सुखमय था।
3. निम्न वर्ग—
इसके अंतर्गत किसान और मजदूर आते थे। इनकी हालात संतोषजनक नहीं थी। इनको बेगार भी करनी पड़ती थी। वेतन बहुत कम मिलता था फिर भी इनका चरित्र उच्च वर्ग के लोगों से अच्छा था। यह लोग मदिरापान नहीं करते थे इनका भोजन बहुत साधारण था और इन्हें प्रायः दिन में एक ही बार भोजन मिलता था।
मुगलकालीन सामाजिक बुराइयां
मुगलकालीन भारतीय समाज में बहुत सी कुरीतियां और अंधविश्वास फैले हुए थे। समाज में तंत्र मंत्र और जादू टोने का बहुत प्रचार था। साधु और काफिरों की पूजा भी होती थी। बाल विवाह और बहु विवाह का प्रचलन था। दहेज प्रथा प्रचलित थी। औरंगजेब के समय में सामाजिक पतन के लक्षण दिखाई देने लगे। करमचारी मदिरापान और सुंदरी के अत्याधिक शौकीन हो गई थे।
मुगल काल में नारियों की दशा—
- मुगल काल में स्त्रियों की दशा अच्छी थी लेकिन प्राचीन काल की भांति अच्छी नहीं हुई थी। समाज में पर्दा प्रथा प्रचलित थी।
- मुसलमानों में पर्दे की प्रथा का सख्ती से पालन किया जाता था। बड़े बड़े अधिकारियों की स्त्रियां घर से बाहर नहीं निकलती थी,यदि उन्हें कहीं जाना होता था तो वे पालकी में बैठकर जाया करती थी।
- शाही घराने की स्त्रियां घर में जब निकलती थी तो कोई भी व्यक्ति सड़क पर नहीं चल सकता था।
- इस प्रकार मुसलमान स्त्रियों में चाहे वैसा ही घर आने की हो या मध्यम वर्ग की पर्दे की प्रथा शक्ति के साथ पालन किया जाता था।
मुगल काल में विवाह प्रथा—
हिंदुओं में बाल विवाह प्रचलित था। बाल विवाह का कारण जैसा कि कहा जाता है लड़कियों का अपहरण था।अकबर ने बाल विवाह को रोकने का प्रयास किया था सामान्यता हिंदुओं में एक ही विवाह किया जाता था परंतु विशेष परिस्थितियों में जैसे संतान आदि ना होने के कारण या चाल चलन खराब होने के कारण दूसरा विवाह भी हो जाया करता था।
मुसलमानों में बहु विवाह भी प्रचलित थी। कुरान के अनुसार एक मुसलमान 4 स्त्रियां एक साथ रख सकता है। बहु विवाह के कारण साधारण मुसलमानों का सामाजिक जीवन अर्थ अस्त-व्यस्त हो जाता था। अतः अकबर ने एक कानून बनवाया था कि एक व्यक्ति एक समय में एक ही स्त्री रखें। यदि उसके संतान ना हो तो आ दूसरा विवाह कर सकता है। यानी मुसलमानों में बहु विवाह की प्रथा प्रचलित थी।
हिंदुओं में विधवा विवाह की प्रथा नहीं थी। पुरुष अपनी स्त्री को तलाक भी नहीं दे सकता था। स्त्रियों में सती प्रथा और जौहर की प्रथा प्रचलित थी।
मुगल काल में वस्त्र एवं अभूषण—
मुगल काल के सम्राट बहुत कीमती और आकर्षक वस्त्र धारण करते थे। वस्त्र सूती और रेशमी होते थे। अमीर भी सुल्तानों की तरह कीमती वस्त्र धारण करते थे। प्रत्येक स्त्री अपने सिर पर चादर या दुपट्टा ओढ़ती थी। हिंदू स्त्रियां साड़ी बांधती थी। मुसलमान स्त्रियां पैजामा और घाघरा का प्रयोग करती थी। और अपने सिर को अनिवार्य रूप से ढक दी थी पैरों में जूतियां धारण करती थी, जो चमड़े की बनी होती थी। अमीर और शाही घराने में जूतियां में रेशम का सुनहरा कार्य किया जाता था।
मुगलों के समय में स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषण धारण करते थे। सम्राट स्वयं भी आभूषण धारण करते थे। अबुल फजल ने 37 प्रकार के आभूषणों का वर्णन किया है, यह आभूषण सोने और चांदी के बने होते थे। निर्धन मनुष्य कौड़ी और धातुओं के आभूषणों का प्रयोग करते थे। राजपूत कर्णफूल धारण करते थे, अंगूठियां और ताबीज स्त्री और पुरुष दोनों ही धारण करते थे। हिंदुओं में कुछ आभूषण सौभाग्य के चिन्ह समझे जाते थे। जैसे पैरों में बिछुवे में सुहाग का चिन्ह समझे जाते थे।
श्रृंगार करने की अलग-अलग विधियां होती थी। हाथों में और पैरों में मेहंदी, आंखों में काजल, होठों में पान यह सभी स्त्रियों का प्रमुख श्रृंगार था।
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