हेलो students आज हम इस लेख में मनसबदारी व्यवस्था के बारे में हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमे हमने मनसबदारी मनसबदारी प्रथा के गुण दोषों की चर्चा कीजिए आदि के विषय में चर्चा की है। तो आप सभी ध्यान पूर्वक पॉइंट्स को याद कर लेंवे।
मनसबदारी व्यवस्था का प्रारंभ
मनसबदारी प्रथा का प्रारंभ अकबर के काल में हुआ था। क्योंकि उस समय घुड़सवार मुगल सेना का सबसे महत्वपूर्ण अंग था। इसलिए 1566 ई. में अकबर ने उन अधिकारियों की ओर ध्यान देना उचित समझा जो निश्चित संख्या में घुड़सवार रखने के लिए उत्तरदायी थे। घुड़सवार सेना के स्तर को ऊंचा करने के लिए दास प्रथा का प्रचलन किया गया था, क्योंकि जागीरदारी प्रथा के स्थान पर मनसबदारी प्रथा के आधार से सेना के इस अंग का निर्माण किया गया। बाबर और हुमायूं के शासनकाल में अमीरों को जागीरें दी जाती थी। वे उन जागीरो से अपनी सेना और अपना खर्चा काटकर बाकी धन राजकोष में जमा कर देते थे। लेकिन इसमें सम्राट जागीरदार को नगद वेतन नहीं देता था। और सेना का गठन व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पाता था। इसलिए अकबर ने 1566 ईस्वी में मनसबदारी प्रथा को शुरू किया। यह सेना को संगठित करने की ऐसी प्रथा थी जिसमें हर मनसबदार अपनी श्रेणी एवं पद के अनुसार घुड़सवार सैनिक रखता था और मनसब दरबार में उसके पद की श्रेष्ठता और प्रभाव का निर्धारण करता था।
मनसब शब्द का अर्थ—
मनसब शब्द का अर्थ पद एवं प्रतिष्ठा का पद है। इसका अभिप्राय केवल इतना था कि मनसब प्राप्तकर्ता सरकारी सेवा में कार्यरत थे और जरूरत के अनुसार वह किसी भी प्रकार की सेवा करने के लिए तत्पर रहते थे। मनसबदार नागरिक तथा सैनिक दोनों में होते थे।
मनसबदारों की विशेषता, मनसबदारों की क्या-क्या विशेषता होती थी
मनसबदारों की नियुक्ति एवं पद उन्नति—
मनसबदार सीधे सम्राट द्वारा नियुक्त किए जाते थे। और उन्हें सम्राट के सम्मुख उपस्थित होना पड़ता था। जो व्यक्ति मन सब प्राप्त करना चाहता था उसे मीर बख्शी सम्राट के सामने पेश करता था। जिसे सम्राट मनसब प्रदान कर देता था। उसके संबंध में कागजी कार्रवाई पूर्ण होने के बाद एक फरमान जारी किया जाता था। मनसबदार ओं की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए शहजादे और सेनापति संस्तुति करते थे। कई बार शुभ अवसरों पर अथवा उच्च और नए पद पर भोजन से पूर्व मनसबदार बढ़ा दिए जाते थे।
मंसबदारों का वेतन —
मनसबदारों का वेतन नगद या लगभग निर्धारित वेतन के समान राशि राजस्व की जागीर दी जाती थी। अकबर के शासन काल में एक साधारण घुड़सवार का वार्षिक वेतन 240 रु.से अधिकतम 9,600 रु. था। यह वेतन शाहजहां के शासनकाल में घटकर 1630रु. ई. में 220रु. रह गया। मनसबदारों को अपने वेतन में से अपने घुड़सवारों और सैनिकों सामानों आदि पर खर्चा करना पड़ता था। मनसबदार ओं को आज के उच्च पदाधिकारियों की तरह आयकर नहीं देना होता था इसलिए वह बड़े शान से जीवन व्यतीत करते थे।
मनसबदारों पर पाबंदियां—
मनसबदारों को निश्चित संख्या में घोड़े और सैनिक रखने होते थे। उन्हें अपने घुड़सवारों का हुलिया मीर बख्शी के पास दर्ज कराना होता था। और घोड़ों का दगवाना होता था। समय-समय पर उन्हें निरीक्षण के लिए अपने घोड़े और सैनिक लाने होते थे। मनसबदारों को केंद्र के अनुसार सैनिक अभियानों पर जाना होता था। मनसबदारों पर लगी पाबंदियों के कारण मुगलों की सेना की कार्यकुशलता बहुत बढ़ गई। लेकिन अकबर के काल के बाद मनसबदारों पर लगा नियंत्रण ढीला पड़ गया। शाहजहां के काल में दिए गए मनसब का 1/3 अथवा 1/4 निरीक्षण के लिए लाना ही मनसबदारों के लिए जरूरी था। लेकिन जो मनसबदार जितने अधिक बढ़िया घोड़े और सैनिक रखता था उसे ₹2 प्रति घोड़े और सैनिक के अतिरिक्त पारितोषिक मिलता था।
मनसबदारी व्यवस्था के गुण और दोष
मनसबदारी व्यवस्था के गुण —
- यह प्रथा जागीरदारी प्रथा से श्रेष्ठ थी क्योंकि मनसबदारी प्रथा जागीरदारी प्रथा की तरह वंशानुगत नहीं थी। और मनसबदार को प्रतिमाह वेतन लेने के लिए स्वयं प्रांत में आना पड़ता था। इसलिए उस पर सरकार का सीधा नियंत्रण होता था और वह जागीरदारों की तरह विद्रोह नहीं करते थे।
- मनसबदारी प्रथा में कुशल सैनिक तथा असैनिक पदाधिकारी प्रदान किए क्योंकि स्वयं सम्राट योग्यता के आधार पर उनकी नियुक्ति करता था और जो मनसबदार जितना अधिक स्वयं को युद्ध अथवा प्रशासन में योग्य साबित करता था उसे उतना ही जल्दी पदोन्नति का अवसर प्राप्त होता था।
- कुछ विद्वानों की राय है कि मनसबदारों की मृत्यु के बाद जब्ती प्रथा के आधार पर उनकी संपत्ति पर सरकार अधिकार कर लेती थी। इससे राज्य की आर्थिक स्थिति किसी हद तक सुधरी और मनसबदारी ने धन के लालच से भ्रष्ट तरीकों द्वारा अधिक धन एकत्र नहीं किया।
- मनसबदार ओने कला और साहित्य को संरक्षण और प्रोत्साहन दिया। कई साहित्यकार और कलाकार उनके संरक्षण में रहते थे।
- मनसबदारी को सेना संबंधी अनेक जिम्मेदारियां सौंप कर मुगल सरकार कई प्रशासनिक कठिनाइयों से बच गई।
- सांस्कृतिक समन्वय में भी मनसबदारी प्रथा सहायक सिद्ध हुई क्योंकि इसमें विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग शामिल थे।
मनसबदारी व्यवस्था के दोष
- ऊंचे वेतन और मनसबदारी की मृत्यु के बाद सरकार द्वारा संपत्ति हड़प लेने की प्रथा ने उनमें विलासिता और फिजूलखर्ची को बढ़ावा दिया।
- क्योंकि सैनिकों को वेतन स्वयं मनसबदार देते थे इसीलिए सेना सरकार के स्थान पर मनसबदार के प्रति अधिक वफादार थी।
- प्रत्येक मनसबदार की सेनाओं के रखरखाव प्रशिक्षण और अनुशासन में अंतर था इसलिए सेना में राष्ट्रीयता की भावना की कमी रही।
- मनसबदारों की प्रशासनिक और सैनिक दोनों प्रकार के कार्य करने पड़ते थे, इसीलिए ना तो वे पूर्णतया प्रशासनिक कार्यों में विशेषज्ञ होते थे और ना ही सैनिक कार्यों में ।
- धोखेदार और बेईमान मनसबदार आपस में मिलकर निरीक्षण के समय मिलते जुलते घोड़े और सैनिक प्रस्तुत कर देते थे और इस तरह कागजों पर तो सेना और घोड़े पूरे रहते थे लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता था।
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ReplyDeleteThanks you bhlo🤗🤗🤗🤗🤗
ReplyDeleteWelcome 💐 💐
DeleteVery short and easy explane
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