अकबर की राजपूत नीति -Akbar ki Rajput niti in Hindi

तो  हेल्लो स्टूडेंट्स आज हम अकबर की राजपूत नीति (akbar ki rajput niti) या मुगलों की राजपूत नीति पर प्रकाश डालिए के बारे में चर्चा करेंगे। इसके पिछले पोस्ट में हमने बलबन की शासन व्यवस्थाके बारे में चर्चा की थी, अगर इसके बारे में आपने नहीं पढ़ा तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं

जिस समय अकबर मुगल सिंहासन पर बैठा उस समय  राजपूत अनेक छोटे-बड़े राज्यों में थे। इस समय राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से अजमेर, मेवाड़, मारवाड़, बीकानेर, जैसलमेर, ओरछा और रणथम्भौर आदि थे। अकबर ने राजपूतों के प्रति विवाह, मित्रता और युद्ध की नीति अपनाई। 

अकबर की राजपूत नीति (akbar ki rajput niti)

1. वैवाहिक संबंधों की स्थापना- राजपूतों के साथ अपने संबंध को मजबूत करने के लिए अकबर ने प्रमुख राजपूत घरानों के राजकुमारियों से विवाह किए। 1562 ईस्वी में जब अकबर आगरा से अजमेर जा रहा था तो आमेर के शासक भारमल अपने परिवार सहित सांगानेर के स्थान पर अकबर से मिला। उसी समय भारमल शाही नौकरी की इच्छा प्रकट करने के साथ-साथ अपनी छोटी बेटी मनीबाई का हाथ विवाह के लिए पेश किया। तो उसे अकबर ने स्वीकार कर लिया। यह अकबर की तीसरी बेगम बनी।

इसी से सलीम का जन्म हुआ। राजा भारमल का अनुसरण करते हुए बीकानेर मारवाड़ और जैसलमेर आदि के राजा ने भी अकबर से वैवाहिक संबंध स्थापित किए। 1584 ईस्वी में राजा भारमल की पोती और भगवान दास की पुत्री से शहजादा सलीम (जहांगीर) का विवाह हुआ जिसकी कोख से खुसरो का जन्म हुआ।

2. राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त करना- अकबर ने राजपूतों को उच्च पद और मनसब प्रदान किए। आमेर के राजा भारमल को काफी ऊंचा पद प्राप्त हुआ। उसका पुत्र भगवानदास 5000 हजार मनसब तक पहुंचा और उसका पौत्र मनसिंह 7000 तक। बीकानेर के रायसिह और जैसलमेर के भीमसेन को महत्वपूर्ण मनसब दिए गए। राजा टोडरमल और बिहारीमल को उच्च सैनिक पदों पर नियुक्त किया गया। अजमेर था गुजरात जैसे सैनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया गया। 20% सैनिक पद राजपूतों को दिए गए।

3. व्यक्तिगत संबंध- अकबर ने अनेक राजपूतों के साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित किए। बीकानेर और बूंदी के राजपूत शासकों के साथ सुख दु:ख में शामिल होने के संबंध स्थापित किए गए। 1593 ईस्वी में जब बीकानेर के राय सिंह का दमाद पालकी से गिरने के कारण मर गया तो अकबर स्वयं मातम मनाने के लिए उसके घर गया। उसकी लड़की को सती होने से रोका क्योंकि उसके बच्चे बहुत छोटे थे।

4. राजपूत समाज में सुधार- अकबर ने तत्कालीन राजपूत समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। और सती प्रथा और बाल विवाह जैसी राजपूत समाज की बुराइयों को बंद कराने का प्रयास किया। और अकबर ने जाति प्रथा की जटिलता को कम करने के लिए अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया। और विधवा विवाह को राजकीय स्वीकृति प्रदान की और बहुत बड़ी उम्र की महिलाओं की शादी पर पाबंदी लगाई। (जो महिलाएं संतान उत्पत्ति की उम्र को पार कर चुकी थी अकबर के काल में वह विवाह नहीं कर सकती थी)

5. राजपूतों को धार्मिक स्वतंत्रता- अकबर ने सभी राजपूत अधिकारियों सैनिकों और राजकीय पदाधिकारियों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की। वे राज दरबार मैं और महलों में रहकर भी अपने सभी त्यौहार जैसे होली, दीपावली, रक्षाबंधन आदि मना सकते थे। यह सभी रीति-रिवाजों को अपनी परंपराओं के अनुसार संपन्न करने की छूट थी। उसने राजपूतों को मंदिर बनवाने तथा पुराने मंदिरों की मरम्मत करवाने के लिए स्वतंत्रता प्रदान की।

6. राजपूत राज्यों को आंतरिक स्वतंत्रता- अकबर ने कौन राजपूत राज्यों की बाह्य नीति को ही अपने नियंत्रण में रखा जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। वह राज्य प्रतिवर्ष सम्राट को कर देता था और जरूरत पड़ने पर सैनिक अभियानों के लिए सैनिक सहायता देनी पड़ती थी। और उन्हें समय-समय पर मुगल दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। और अकबर ने उनके आंतरिक शासन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया।

7. शत्रु राजपूतों से युद्ध- अकबर अनावश्यक युद्ध नहीं चाहता था इसलिए उसने सर्वप्रथम राजपूत राजाओं के पास राजपूत भेजकर संधि प्रस्ताव प्रस्तुत किए। उसने केवल उन्हें राजपूत राजाओं के विरुद्ध युद्ध किए जिसने उसकी संधि स्वीकार नहीं किया। उसने रणभम्भौर, कालिंजर और मेवाड़ के शासकों के साथ ही युद्ध किया। उसने 1567 ईसवी तक मेवाड़ के शासकों के पास अनेक दूत भेजे लेकिन जब उसने सफलता नहीं मिली तो उसने राणा उदयसिंह के विरुद्ध आक्रमण कर दिया।

चित्तौड़ को जीत लिया गया उसने 1572 ई. में उदय सिंह के उत्तराधिकारी राणा प्रताप के पास मुगल प्रभुत्व स्वीकार कर लेने और दरबार में हाजिर होने के लिए कई दूत भेजे लेकिन राणा प्रताप ने मुगलों को चित्तौड़ देने व स्वयं मुगलों को भेंट देने और सेवाएं देने के लिए उपस्थित होने से इनकार कर दिया। इसलिए 1576 ई. में राणा प्रताप के विरुद्ध आसिफ खान के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना भेजी गई और प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। ‌ कुंभलगढ़ और उदयपुर दोनों पर मुगलों का अधिकार हो गया। मेवाड़ के अतिरिक्त मारवाड़ के विरोध का सामना भी अकबर को करना था।‌

उसने मारवाड़ को इसलिए जितना चाहा क्योंकि वह जोधपुर से होकर गुजरात राज्य के लिए जाने वाला मार्ग सुरक्षित रखना चाहता था। उसे शीघ्र पराजित कर दिया और वहां के राजा चंद्रसेन की मृत्यु के बाद उसी के बड़े भाई उदय सिंह को जोधपुर भेज दिया गया। उसने अपनी लड़की गोसाईं अथवा जोधाबाई का विवाह शहजादे सलीम के साथ करके अपनी वफादारी का परिचय दिया। यह विवाह हिंदू और मुस्लिम दोनों तरीकों से हुआ था।


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Comments

  1. Thank you sir

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  2. Too good explanation.Thanx sir😊😊

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  3. Thankyou didi aap ki waja se muje bhut help mili hai

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