दास प्रथा क्या थी, इसका अंत किसने की थी?
दास प्रथा का अंत किसने किया था?उत्तर - दास प्रथा का अंत अकबर ने सन 1562 में की थी ।
'दास प्रथा' क्या है
ऋग्वेद में दास-दासी दोनों का उल्लेख हुआ है। ऋग्वेद में पुरुष दास कम ही रहे होंगे। दासी को दान की वस्तु के रूप में उल्लेखित किया गया है। स्पष्ट है कि आर्यों एवं देशों के मध्य धार्मिक मतभेद की दीवार थी। आर्य वेदों की उपासना करते थे, यज्ञ करते थे इंद्र को अपना देवता मानते थे और वह जो यज्ञ नहीं करते थे, इंद्र, वरूण की उपासना के पक्षपाती नहीं थे। ऐसे आर्य लोग भी दास कहलाए जो वैदिक धर्म में आस्था नहीं रखते थे।
उत्तर वैदिक काल में दास - दसियों को भेंट में प्रदान करने की प्रथा पूर्ण विकसित हो चुकी थी। दास-दासियों को अपनी सेवा में रखना उसका का प्रतीक माना जाने लगा। दसों का मुख्य कार्य घरेलू कामों में मदद करना था। दास- दासियों के साथ उच्च वर्णों का व्यवहार मानवीय एवं सहायक रहता था।
दासो के प्रकार — दास अनेक प्रकार के होते थे जैसे-
(1) युद्ध में जीता गया दास- युद्ध में दो राजाओं के बीच जीत किसी एक की ही होनी होती है उसी दौरान जो राजा जीतता है वह हारने वाले राजा को अपन यहां दास बना लेते थे।(2) स्वेच्छा से दास कार्य स्वीकारने वाले- स्वेच्छा से इसका मतलब अपनी मर्जी से दास कार्य करना।
(3) गृहस्थ कोटि के दास दासी से उत्पन्न पुत्र- गृहस्थ कोटि इसका मतलब है कि जिनके माता-पिता पहले से ही किसी के यहां दास कार्य कर रहे हैं तथा उनके पुत्र भी उन्हीं के अनुसार ही किसी के यहां दास कार्य कर रहे हो।
(4) क्रय विक्रय से प्राप्त दास- क्रय विक्रय अर्थात दातों को खरीदा जाना ऋग्वेद में उल्लेख किया गया है कि उस समय दूसरे राजाओं के यहां से दसों को खरीदा जाता था।
(5) दान प्रथा से प्राप्त दास- दान प्रथा से तात्पर्य यह है कि एक राजा किसी अन्य राजा को दसों को दान में दिया करता था।
(6) वंश परंपरागत दास- वंश परंपरागत दास इसका मतलब यह है कि जो लोग पहले से ही दास कार्य कर रहे हैं तथा उनके पुत्र पुत्रियां भी किसी के यहां दास कार्य कर रहे हैं।
(7) दंड स्वरूप दस्य कर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य- इसका मतलब किसी व्यक्ति को दंड के रूप में दास कर्म करना।
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