अशोक के धर्म की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए- Ashok ke Dharm kee Visheshataen

हेलो students आज हम इस लेख में अशोक के धर्म की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए इसके बारे में हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमे हमने ashok ke dharm ki mukhya visheshta ka vishleshan kijiye के विषय में बताया है। कि अशोक ने अपने धर्म के विषय में किस  प्रकार कितनी अच्छी अच्छी बातों को बताया है। और अशोक ने अपने धर्म के प्रचार के लिए कौन कौन से प्रयास किए उनके बारे में बताया है।

अशोक के धर्म की विशेषताएं | Ashok ke dhamm ki mukhya visheshtaon ka vhishleshan kijiye

1. सार्वभौमिकता — अशोक ने धर्म के सभी धर्मों की उच्चतम तथा सर्वश्रेष्ठ बातों का समावेश किया है। 

2. अनुशासन और शिष्टाचार को महत्व - अशोक ने अपने धर्म में अनुशासन और शिष्टाचार पर विशेष बल दिया। वह अपने शिलालेखों में लिखता है,  “जिस प्रकार माता पिता के आज्ञा का पालन होता है, ठीक उसी प्रकार गुरुजनों की आज्ञा का पालन होना चाहिए। और विद्यार्थियों को इसी प्रकार अपने अध्यापकों के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहिए।” 

              अशोक का कहना था कि जिस प्रकार छोटे बड़ों का आदर सम्मान करते हैं, उसी प्रकार बडों को छोटे से प्रेम करना चाहिए और उनके प्रति दया व प्रेम का व्यवहार किया जाना चाहिए।

3. अहिंसा - कलिंग युद्ध के उपरांत अशोक ने अहिंसा पर विशेष रूप से बल दिया। प्रथम शिलालेख के अनुसार उसने उन यज्ञों को बंद करवा दिया जिसमें पशु बलि होती थी। जिनके रसोई घर में पशुओं का मांस पकता था, उसे अशोक ने एक आदेश द्वारा उसे भी बंद करवा दिया। 

4. धार्मिक असहिष्णुता - अशोक संप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता में विश्वास नहीं करता था। उसका कथन था कि हमें सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। एक स्थल पर वह लिखता है, "मनुष्यों को अपने धर्म का आदर करना चाहिए परंतु दूसरे धर्मों की निंदा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म की भलाई करता है और साथ ही दूसरे धर्मों का हित करता है।" 

5. नैतिक आदर्शों की प्रधानता - अशोक ने नैतिक आदर्शों पर विशेष रूप से बल दिया। उसका कथन था कि प्रत्येक प्राणी को ब्राह्मणों, श्रमिकों, साधू आदि के प्रति उदारता का व्यवहार करना चाहिए तथा जीवन में सदा सत्य का पालन करना चाहिए।

6. कर्मकांड और आडंबर उनकी अपेक्षा - अशोक ने धर्म के कर्मकांड मूलक स्वरूप की उपेक्षा की। अशोक के अनुसार जादू टोने तथा व्यर्थ के आडंबरों में आस्था रखना व्यर्थ है। यह सच्ची रीतियां नहीं है। सच्ची नीतियां तो धर्म और नैतिकता के नियमों पर चलती हैं; जैसे — सत्य बोलना, प्राणी मात्र पर दया करना तथा अहिंसा में आस्था रखना।

7. शुद्ध जीवन अपनाने पर बल — अशोक का कथन था कि मनुष्य को यथासंभव शुद्ध और पवित्र जीवन व्यतीत करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि वह हर एक पापों से बचें। जैसे — ईर्ष्या, क्रोध, निष्ठुरता, उग्रता तथा अभिमान अतः मनुष्य को यथासंभव इनसे बचना चाहिए। 


निष्कर्ष:- 

              अशोक के धर्म का संपूर्ण अध्ययन करने के पश्चात हम  इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि उसका धर्म एक सार्वभौमिक धर्म था अर्थात उनके धर्म में जटिलता, कर्मकांड तथा आडंबरों का कोई स्थान नहीं था। उसने अपने धर्म में संकीर्णता का परित्याग कर उसे सर्वजन सुलभ बनाने का प्रशासनिय प्रयास किया है। तो आज के इस लेख में  हमने अशोक के धर्म की प्रमुख विशेषताओं  के बारे में जाना। 

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