भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले छः कारक इस प्रकार से हैं

आज के इस Post में हमने आपको जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए इसके बारे में बताया है भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए?, भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तत्व कौन कौन से हैं? दोस्तों प्रश्न कई तरह से पूछ सकते हैं लेकिन उत्तर इसी प्रकार होंगे, क्योंकि कारक और तत्व दोनों एक ही है।


भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

1. भारत की स्थिति एवं विस्तार

2. पर्वतों की स्थिति

3. जल व थल का वितरण

4. तापमान व वायुदाब का वितरण

5. जेट पवनों का प्रवाह

6. समुद्र तल से ऊंचाई एवं समुद्र तट से दूरी

7. मानसूनी पवने

1. भारत की स्थिति एवं विस्तार- भारत 8° 4' उत्तरी अक्षांश से 37 डिग्री 6 सेंटीग्रेड उत्तरी अक्षांश तक विस्तृत है। इसका दक्षिणी भाग विश्वत रेखा के निकट है, कर्क रेखा इसके मध्य से गुजरता है, जिसके फलस्वरुप कर्क रेखा के उत्तर में महाद्वीपीय जलवायु एवं दक्षिणी भारत में कुल मानसूनी जलवायु पाई जाती है। इस कारण विभिन्न स्थानों के तापमान में बहुत कम अंतर पाया जाता है। भारत का देशांतरीय विस्तार उत्तर में अधिक और दक्षिण में कम हुआ है। अतः उत्तर में दक्षिण की अपेक्षा अधिक विषम जलवायु पाई जाती है।

2. पर्वतों की स्थिति- हिमालय पर्वत के पश्चिम से पूर्व में फैले होने के कारण यह उत्तर से आने वाली ठंडी हवाओं को रोककर भारत को ठंड से रक्षा करता है। वहीं दक्षिणी पश्चिमी मानसून वायु को रोककर वर्षा में सहायक होता है।

3. जल व थल का वितरण- भारत तीन ओर से सागर से घिरा हुआ है, पश्चिम में अरब सागर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण में हिंद महासागर है, प्रायद्वीपीय भारत के कारण मानसूनी पवने दो संख्याओं में बट जाती है एक अरब सागर की शाखा और दूसरी बंगाल की खाड़ी में तथा जल और थल का यह वितरण एवं विस्तार तापमान को प्रभावित करता है। सागर तट के निकटवर्ती क्षेत्रों में सम तथा दूर स्थानों में विषम तापमान पाया जाता है।

4. तापमान व वायुदाब का वितरण- उत्तर भारत के मैदान व प्रायद्वीपीय भारत का उत्तर मध्य भाग ग्रीष्म ऋतु में बहुत गर्म हो जाता है। फलस्वरुप यहां न्यून वायुदाब क्षेत्र विकसित होता है। जिससे आकर्षित होकर मानसूनी पवने वर्षा प्रदान करती है, शीत ऋतु में यह भाग उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है फलस्वरुप स्थल एवं जल की ओर शुष्क पवने चलती है।

5. जेट पवनों का प्रवाह- ऊपरी छोभ मंडल में चलने वाली पछुआ वायु द्वारा पूर्वी वायु धारा का भारत की जलवायु पर व्यापक प्रभाव पड़ता है इनके प्रभाव से मानसूनी पवने चलती है वह चक्रवाती वर्षा होती है।

6. समुद्र तल से ऊंचाई एवं समुद्र तट से दूरी- धरातल से क्षोभ मंडल की ऊपरी सीमा तक तापमान प्रति 165 मीटर की ऊंचाई में 1 डिग्री सेल्सियस कम हो जाता है। इसलिए अधिक ऊंचे स्थान मैदानी स्थानों की अपेक्षा ठंडे रहते हैं। इसी प्रकार जो स्थान तट से दूर रहते हैं उनकी जलवायु अधिक विषम तथा निकट वाले स्थानों की जलवायु सम होती है। भारत के मैदानी भागों में विषम जलवायु होने का यही कारण है।

7. मानसूनी पवने- भारत व्यापारिक पवनों के प्रवाह क्षेत्र में आता है जिसके कारण भारत की जलवायु मानसूनी पवने द्वारा नियंत्रित होती है इस प्रकार मौसम का औसतन मानसूनी जलवायु की विशेषता है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में हमने भारत के जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में बताया है, हम आशा करते  हैं की आपको समझ में आया होगा।

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