सम्प्रेषण का अर्थ | prabhavi sampreshan ka arth
सम्प्रेषण की परिभाषा
के. ओ. लोकर के अनुसार,- प्रभावी संचार एक प्रक्रिया है, इनमें व्यक्तियों, समूहों तथा संगठनों के बीच सूचना को सूचित करने, निवेदन करने प्रोत्साहित करने तथा ख्याति प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रेषित किया जाता है। यह स्पष्ट, पूर्ण व सही होता है, और पाठक का समय बचाती है तथा अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक होती है।
प्रभावी संप्रेषण के तत्व | prabhaavee sampreshan ke tatv
प्रभावी संप्रेषण के आधारभूत तत्वों को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता हैं।
- उद्देश्य (purpose)— संचार उद्देश्य स्पष्ट होना आवश्यक है यह स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए कि आप क्यों संचार कर रहे हैं? आपकी इन संस्थाओं का निंदा करना चाहते हैं ?आप अपने श्रोताओं को क्या बताना चाहते हैं? श्रोताओं के मस्तिक में किस प्रकार के संगठनात्मक छवि बनाना चाहते हैं।
- श्रोता गण (Audience)— आप के श्रोता गण कौन हैं? सौदागर का मस्तिष्क स्तर क्या है ?श्रोता गण अन्य स्रोतों से किस प्रकार भिन्न है ?श्रोता गण से संवाद के बाद किस प्रकार की प्रतिक्रिया की अपेक्षा करते हैं?
- सूचना (information)— किस प्रकार की सूचना प्रेषित करना चाहते हैं ?किस प्रकार के सूचना को प्रेषित करना नहीं चाहते हैं?
- लक्ष्य (Benefits)— आप क्यों संचार कर रहे हैं? आप किस प्रकार के लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं?
- विरोध (Objections)— आपके संचार में कौन से नकारात्मक तत्व हैं? आप किस प्रकार के विरोध की आशा करते हैं? आप विरोध को किस प्रकार समाप्त करेंगे?
प्रभावी संप्रेषण के सिद्धांत | प्रभावी संप्रेषण के मुख्य सिद्धांत
प्रत्येक व्यवसायिक संस्था को अपने उद्देश्य एवं लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सर्वर श्रेष्ठ संप्रेषण व्यवस्था को अपनाना श्रेष्ठ होता है। व्यापक बाजार, प्रतिस्पर्धा की स्थिति में एक प्रभावपूर्ण संप्रेषण व्यवस्था अनिवार्य हो जाता है। प्रभावी संप्रेषण के लिए कुछ सिद्धांतों का निर्धारण किया गया है जिनका पालन करना आवश्यक है। संप्रेषण के सिद्धांतों से आशय मार्गदर्शक नियमों में समूह से हैं जिनके पालन करना संप्रेषण प्रक्रिया अपने निहित उद्देश्यों को प्राप्त कर लेती हैं। अतः प्रभावपूर्ण संप्रेषण व्यवस्था की स्थापना के लिए निम्न सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. पूर्णता का सिद्धांत— संप्रेषण के विषय सामग्री सदैव पूर्ण होनी चाहिए। इसमें सभी तथ्यों और विचारों का समावेश होना चाहिए। अपूर्ण विषय सामग्री अनेक जटिलताओं एवं अवशेष को उत्पन्न नहीं करती, बल्कि संदेह की परिस्थितियों का निर्माण कर सकती है।
2. संछिप्तता का सिद्धांत— प्रभावी व्यवसायिक संप्रेषण को संक्षिप्त होना चाहिए। संदेश में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। संक्षिप्त संदेश से तात्पर्य आसानी से प्रेषक को समझ आए इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। संचार माध्यमों में पिछले कुछ वर्षों में एक क्रांति हुई है। अनेक नवीन माध्यम का प्रचलन व्यवसायिक जगत में बढ़ा है ।
3. शिष्ठता का सिद्धांत— संप्रेषण सदैव श्रेष्ठ भाव में किया जाना चाहिए। जिससे व्यवसायिक प्रगति के लिए मैत्री पूर्व संबंध स्थापित हो सके। शिष्टता के लिए यह भी आवश्यक है कि संदेश का शीघ्र उत्तर भाषा की शालीनता, कार्यों में भूल के लिए क्षमा याचना की जानी चाहिए। आक्रमक एवं चिढ़ाने वाली भाषाओं से बचना चाहिए।
4. निरंतरता का सिद्धांत— संप्रेषण प्रणाली तभी प्रभावित हो सकती है। जब दोनों पक्षों के मध्यम निरंतर गति से संप्रेषण चालू रहे, जिससे निरंतर विचारों के आदान-प्रदान का लाभ मिल सके। संदेश के महत्वपूर्ण तथ्यों का सही ढंग से प्रदर्शन किया जाए। हमेशा संदेशों के आदान-प्रदान से मुख्य बिंदुओं पर पुनर्विचार भी असानी से कर सकते है।
5. स्पष्टता का सिद्धांत— संप्रेषण की भाषा स्पष्ट एवं सरल होनी चाहिए। ताकि जिनके पास संदेश भेजा गया है उन्हें उसी रूप में समझ आ जाए जिस रूप में संदेश भेजने वाला उन्हें समझना चाहता है, साथ ही जो संदेश भेजा जा रहा है वह पाने वाले को पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाना चाहिए।
6. अर्थपूर्णता का सिद्धांत— संप्रेषण उद्देश्यपरक होना चाहिए। प्रत्येक व्यवस्था एक संदेश में महत्वपूर्ण अर्थात सनिनहित होता है। संप्रेषण प्रक्रिया का शार यह है कि संदेश में जिस विचार अथवा अर्थ को प्रेषित किया जा रहा है उसी अर्थ एवं विचार को असानी से समझ जा सके।
7. ध्यानपूर्वक सुनने का सिद्धांत— संप्रेषण एवं प्रापक दोनों को ध्यान पूर्वक सुनना चाहिए। संप्रेषक को श्रोताओं द्वारा की जा रही प्रश्नों को ध्यान पूर्वक सुनना चाहिए तथा प्रापक को वह संदेश ध्यान पूर्वक सुनना चाहिए तथा उसके बाद प्रश्न करने चाहिए।
8. उपयुक्तता का सिद्धांत— संदेश के प्रेषण का माध्यम उपयुक्त होना चाहिए, ताकि मिथ्य धारणाएं जन्म ना ले सके। प्रभावी संप्रेषण के लिए आवश्यक है कि संचार व्यवस्थित ढंग से होनी चाहिए। संप्रेषण माध्यम की उपयुक्तता का निर्धारण परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए।
9. शोर कम करना— संप्रेषण तभी प्रभावी हो सकता है, जब प्रापक संपूर्ण संदेश को भली-भांति सुने। इसलिए संप्रेषण करते समय दैनिक शोर को कम करना चाहिए।
10. शारीरिक संकेतों पर नियंत्रण— संप्रेषण के दौरान संप्रेषण को अपने शारीरिक संकेतों वैसे ही प्रयोग करना चाहिए जैसा संकेत का भाव हो, अन्यथा संकेत नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
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thank you sir 😇😇
ReplyDeleteWelcome' have a great day..❤️❤️❤️❤️
DeleteThanku 😍😍😀
ReplyDeleteWelcome' Have a Good Day ❤️❤️❤️❤️
DeleteVishasta
ReplyDeleteThank u sir its very helpfull for me 😊😊😊
ReplyDeleteWelcome 💐💐
DeleteNot thanku sar
ReplyDeleteThankyou sir
ReplyDeleteWelcome 💐💐💐
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