कुषाण वंश का इतिहास, कनिष्क कौन था

कुषाण वंश कनिष्क का परिचय दीजिए

चीनी ग्रंथों के अनुसार कुषाण यू-ची जाति की एक शाखा से संबंधित थे। यू-ची जाति चीन के उत्तरी पश्चिमी प्रदेश में निवास करती थी। 165 ई. पूर्व में हूंग-नू नामक जाति ने उन पर आक्रमण कर उन्हें वहां से मार भगाया। यू-ची वहां से भागकर सिरदरिया प्रदेश पहुंचे जहां शकों का निवास स्थान था। यूचियों और शकों में संघर्ष हुआ जिसमें यू-ची विजय हुए। शको को वहां से भाग कर जाना पड़ा। लेकिन यूचियों पर वूसुन जाति ने आक्रमण कर दिया। अतः उन्हें वहां से भी भागना पड़ा उन्होंने आगे बढ़कर बैक्ट्रिया और उसके पड़ोसी प्रदेशों पर आक्रमण कर दिया और इन पर अधिकार कर लिया परंतु अब यू-ची जाति पांच भागों में विभाजित हो गई

 इन पांच भागों में से एक शाखा कुषाण कहलाए। इस शाखा का प्रथम शासक कुजुल कदफिस था।

अब यहां सवाल उठ सकता है कि “कुषाण वंश का संस्थापक कौन था

तो अब हम उत्तर में यह कह सकते हैं कि कुषाण वंश का संस्थापक कुजुल कदफिस था।

कुजुल कदफिस:- कुजुल कदफिस कुषाण वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। बैक्ट्रिया के आसपास के प्रदेशों पर अधिकार करने के पश्चात उसने एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान किया। सर्वप्रथम उसने काबुल में निवास करने वाले यूनानी यों को पराजित कर वहां पर अपना अधिकार जमा लिया उसके बाद गांधार प्रदेश पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अतः 80 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

विम कदफीस:- यह कुजुल कदफिस का पुत्र था, कुजुल कदफिस की मृत्यु के पश्चात उनका पुत्र (विम कदफीस) सिंहासन पर बैठा। वह भी अपने पिता के समान वीर तथा महत्वकांक्षी था। उसने थोड़े ही समय में पंजाब, सिंध, कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया। उसके सिक्कों पर शिव खुदा हुआ था, अतः सिद्ध होता है कि वह शैव धर्म का अनुयाई था, विम कदफीस के पश्चात कनिष्क कुषाण साम्राज्य का शासक बना।

कनिष्क कौन था | कुषाण वंश कनिष्क

कुशाल सम्राटों में कनिष्क का महत्व सर्वाधिक है, डॉ रमाशंकर त्रिपाठी के अनुसार - “कनिष्क का भारत में कुषाण सम्राटों में निस्संदेह सबसे आकर्षक व्यक्तित्व है। वह एक महान विजेता और बौद्ध धर्म का आश्रय दाता था। उनमें चंद्रगुप्त की सामरिक योग्यता और अशोक के धार्मिक उत्साह का मिश्रण था।"

कनिष्क प्रथम कौन था और वह किस समय सिंहासन पर बैठा, इस विषय पर विद्वानों में मतभेद है, लेकिन अधिकांश विद्वानों के अनुसार कनिष्क कुषाण वंश का था और विम कदफीस के साथ उसके घनिष्ठ संबंध थे। कनिष्क के सिंहासन पर बैठने की सर्वमान्य तिथि 78ई. मानी जाती है।

कनिष्क का शासनकाल विजय और शासन की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण था ही, लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से भी कनिष्क के काल का विशेष महत्व है उसने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पूर्णतया अपना लिया था।

कनिष्क की उपलब्धियां | kanishk ki uplabdhiyan

विम कदफीस के पश्चात कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक था। कनिष्क के समय में सत्ता अपने शिखर पर पहुंच गई। कनिष्क अत्यंत कुशल योद्धा सेनापति एवं वीर शासक था। गद्दी पर बैठते समय अपने पूर्वजों का काफी बड़ा साम्राज्य उसने उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। जिसे उसने अपनी विजय से और भी विस्तृत किया कनिष्क ने भारतीय प्रदेशों पर विजय करने के अतिरिक्त समकालीन पार्थिया एवं चीन साम्राज्य से भी युद्ध लड़े।

उनके युद्ध इस प्रकार से हैं-

1. पार्थिया से युद्ध- कनिष्क व पार्थिया के शासन के मध्य हुए युद्ध के विषय में चीनी स्रोतों से जानकारी मिलती है। चीनी साहित्य से ज्ञात होता है कि, पार्थिया के शासक ने कनिष्क पर आक्रमण किया था। पार्थिया के शासक द्वारा कुषाण साम्राज्य पर आक्रमण करने के दो कारण थे, जो इस प्रकार से हैं:-

  1. प्रथम बैक्ट्रिया पर कनिष्क का अधिकार था। व्यापारिक दृष्टिकोण से बैक्ट्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण था और पार्थिया का शासक बैक्ट्रिया पर अधिकार करना चाहता था।
  2. दूसरा एरियाना प्रदेश पर पहले पार्थिया का अधिकार था, लेकिन बाद में कुषाणों ने इस पर अधिकार कर लिया था। अतः पार्थिया का शासक एरियाना प्रदेश पर पुनः अधिकार करना चाहता था।

इन उद्देश्यों से पार्थिया के शासक ने कनिष्क पर आक्रमण किया लेकिन कनिष्क ने उसे परास्त कर दिया।

2. रोम साम्राज्य से संबंध- कनिष्क के रोम साम्राज्य से मित्रता पूर्ण संबंध थे। इसका कारण यह था कि रूम की भी पार्थिया से शत्रुता थी। पार्थिया दोनों का ही शत्रु था, अतः कुषाण साम्राज्य व रोम के संबंधों में दृढ़ता उत्पन्न हो गई दोनों से परस्पर दूतों का आदान-प्रदान किया।

3. चीन से युद्ध- कुशान वंश के समकालीन चीन में हान वंश शासन कर रहा था। हान वंश अत्यंत शक्तिशाली वंश था। हां शासक के सेनापति पान-चाओ ने खोतान, काशगर, कुचा आदि स्थानों पर विजय प्राप्त कर संपूर्ण चीनी तुर्किस्तान को अपने अधिकार में ले लिया था। इस प्रकार हान साम्राज्य की सीमाएं कुषाण साम्राज्य की सीमाओं से मिलने लगी थी।

कनिष्क ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा हेतु चीनी सम्राट हो-ति के यहां अपना एक दूत भेजकर चीनी राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की। पान-चाओ ने इसे चीनी सम्राट का अपमान समझते हुए कुषाण दूध को बंदी बना लिया। इसकी सूचना मिलने पर कनिष्क ने 70,000 अश्वारोहियों की सेना आक्रमण करने के लिए चीन भेजी। लेकिन खोतान तक पहुंचते-पहुंचते मौसम खराब होने के कारण सेना का बहुत बड़ा भाग नष्ट हो गया। अतः पान-चाव ने उसे आसानी से हरा दिया और कनिष्क को प्रतिवर्ष चीनी शासक हो-ति को कर देने के लिए विवश कर दिया।

कनिष्क की प्रमुख विजय

कनिष्क एक महत्वकांक्षी सम्राट था। वह अपने पूर्वजों के साम्राज्य से ही संतुष्ट नहीं था। सिंहासन पर बैठते ही उसने अपने राज्य के विस्तार का निश्चय किया कनिष्क की प्रमुख विजय हैं इस प्रकार से है:-

1. कश्मीर विजय

सर्वप्रथम कनिष्क ने कश्मीर पर विजय प्राप्त की और उसे अपने राज्य का अंग बनाया। यहां पर कुषाण ने नगर, भवन, उद्यान आदि का निर्माण करवाया।

2. साकेत और मगध पर आक्रमण

चीनी तथा तिब्बती अनु श्रोताओं से हमें ज्ञात होता है कि, उसने साकेत और मगध पर आक्रमण किया और उस पर विजय प्राप्त की थी। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उसने पाटलिपुत्र पर विजय प्राप्त की थी और वहीं से प्रसिद्ध दार्शनिक अश्वघोष उनके साथ आया था।

3. शक क्षत्रपों से युद्ध

कनिष्क के काल में उत्तरी भारत के शक क्षत्रप पर्याप्त शक्तिशाली हो गए थे। कनिष्क ने पंजाब, मथुरा, उज्जैन आदि के क्षेत्रों को पराजित कर वहां पर अपना अधिकार स्थापित किया और मलवा के कुछ भाग को भी जीत लिया।

4. पार्थिया के राजा का आक्रमण

कनिष्क के काल में पार्थिया के राजा ने भारत पर आक्रमण किया जिसका कनिष्क ने बहुत वीरता से सामना किया। पार्थिया का राजा बुरी तरह पराजित हुआ।

5. चीन पर आक्रमण

कनिष्क की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विजय चीन की थी। प्रथम युद्ध मे चीन के सेनापति पानयाओ से पराजित हुआ था, लेकिन इस पराजय ने कनिष्क को निराश नहीं किया। पांडवों की मृत्यु के बाद उसने पुनः चीन पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। इस विजय के बदले में उसे काशगर, यारकन्द और खोतान के प्रदेश मिले।

कनिष्क का साम्राज्य विस्तार

अपनी विजय के द्वारा कनिष्क ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जो पश्चिम में अफगानिस्तान, काशकंद खोतान तथा यारकन्द से लेकर बनारस और, उत्तर में मथुरा से लेकर अरब सागर तक फैला था। कनिष्क की मुद्राएं बंगाल में भी मिलती हैं अतः अनुमान किया जाता है कि पूर्व में इस का साम्राज्य बंगाल तक फैला था।

शासन प्रबंध:- कनिष्क के शासन प्रबंध के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। जो कुछ साधन प्राप्त हैं उनके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि उसने पुष्पपुर या पेशावर को अपनी राजधानी बनाया। यहीं से केंद्रीय शासन का संचालन हुआ।

कनिष्क का चरित्र - चित्रण और मूल्यांकन

कनिष्क के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ विसेंन्ट स्मिथ लिखते हैं कि, कुषाण सम्राटों में केवल वही एक ऐसा नाम छोड़ गया जो भारत की सीमाओं से बाहर भी प्रसिद्ध था अतः जिसकी माता के लिए लोग लालायित रहते हैं कनिष्क के चरित्र की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार से हैं।

1. महान विजेता:- कनिष्क एक महान विजेता और साम्राज्यवादी था। उनके ऊपर वीरता साहस और गुण कूट-कूट कर भरे थे। सिंहासन पर बैठते ही उसने साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण आरंभ कर दिया और जीवन भर युद्ध और संघर्ष द्वारा वह अपने साम्राज्य का विस्तार करता रहा। कट्टर बौद्ध होते हुए भी उसने अपनी युद्ध यात्राएं बंद नहीं की। इसके फलस्वरूप केवल भारत में ही नहीं बल्कि भारत की सीमाओं के बाहर एशिया के विशाल भाग पर भी उसने अपना राज्य स्थापित किया। चीन पर 2 बार आक्रमण करना पार्थिया के राजा को आक्रमण में विफल करना आदि उसके साहस और वीरता के प्रबल प्रमाण हैं। इस प्रकार विजेता के रूप में कनिष्क की गणना महान शासकों में करना पूर्णतया उचित है।

2. कुशल प्रशासक:- विजेता होने के साथ-साथ कनिष्क एक कुशल प्रशासक था। उन्होंने विदेशी तथा भारतीय प्रशासकीय व्यवस्था का सुंदर ढंग से समन्वय किया। उसकी ग्रेड और कुशल प्रसाद की व्यवस्था का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनके शासनकाल में कोई उपद्रव या विद्रोह नहीं हुआ। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद देश में जो अराजकता तथा अव्यवस्था फैल गई थी उसे कनिष्क ने अपनी प्रभावशाली शासकीय व्यवस्था द्वारा समाप्त कर दिया।

3. महान धर्मतत्वेता:- कनिष्क एक विजेता और महान योद्धा होने के साथ-साथ एक महान धर्मतत्वेता भी था। अशोक के समान ही उसने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। उसने बौद्ध सम्मेलन बुलाकर धार्मिक विवाद को समाप्त करवाया और महायान धर्म को राज्य धर्म घोषित किया। अशोक के समान उसने विदेशों में बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए प्रचारक भेजें।

4. महान निर्माता:- अशोक के समान वह एक महान निर्माता था। अपने शासनकाल में उसने 2 नगरों का निर्माण करवाया। एक नगर तक्षशिला के पास बनवाया जिसके खंडहर आज भी उपलब्ध हैं। दूसरा नगर कश्मीर के पास बनवाया जिसका नाम उसने कनिष्कपुर रखा। अपनी राजधानी पोस्ट पुर में कनिष्क ने 400 फीट ऊंचा एक लकड़ी के स्तंभ तथा बौद्ध विहार का निर्माण करवाया। यही एक स्तूप भी बनवाया जिसमें भगवान बुध के पवित्र अवशेष रखवाए। इसके अतिरिक्त साम्राज्य के विभिन्न भागों में उसने अनेक विहारों तथा स्तूपों का निर्माण करवाया।

5. साहित्य और कला का प्रेमी:- कनिष्क भारतीय इतिहास का एक महान विद्या प्रेमी सम्राट था। गणेश जी के काल में साहित्य ने बहुत प्रगति की। उसने अपनी राज्यसभा में विद्या ने राज्यों को आश्रय देकर भारतीय विज्ञान के विकास में भारी योग दिया। वासुमित्र अशोक घोष तथा नागार्जुन उसकी श्रद्धा के विशेष पात्र थे। वासु मित्र ने बौद्ध ग्रंथों पर अनेक प्रमाणिक ती काय लिखी।

कुषाण वंश के शासक कनिष्क किस धर्म के अनुयायी थे

कुषाण वंश के शासक कनिष्क बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, और उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था।

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