चंद्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियों का वर्णन करें

चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल की प्रमुख घटनाएं

चंद्रगुप्त मगध का सम्राट

नंद वंश के राजा और चंद्रगुप्त की सेना में भीषण युद्ध हुआ लेकिन जीत चंद्रगुप्त की हुई, नंद वंश के राजा परिवार सहित मारा गया और 321 ई. पू. आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को मगध का सम्राट घोषित किया।

चंद्रगुप्त द्वारा साम्राज्य का विस्तार

विष्णुगुप्त ‘जिसे हम चाणक्य के नाम से जानते हैं’ ये चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री था। यह एक महान कूटनीतिज्ञ व्यक्ति था। चाणक्य संपूर्ण भारत को एक राज्य के रूप में राजनीतिक स्थायित्व प्रदान करना चाहता था। उसकी योजना के अनुसार सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने साम्राज्य का विस्तार कश्मीर के कुछ भाग को छोड़कर संपूर्ण उत्तरी भारत और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों तक कर लिया।

हिमालय का क्षेत्र— मगध पर आक्रमण के पहले चंद्रगुप्त ने हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र के राजा प्रवर्तक से सन्धि कर ली थी। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र के राजा प्रवर्तक की मृत्यु हो गई थी। उसके पुत्र मलयकेतु ने नंद के मंत्री राक्षस और अन्य सामंतों की सहायता से चंद्रगुप्त के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। प्रधानमंत्री चाणक्य ने कूटनीति द्वारा मलयकेतु के समर्थकों में फूट डाल दी। बाद में मलयकेतु ने चंद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार कर ली।

सेल्यूकस से संघर्ष और चंद्रगुप्त की विजय

चंद्रगुप्त के शासनकाल में यह उसका अंतिम संघर्ष था। सिकंदर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस यूनानी साम्राज्य के पूर्वी भाग का सेनापति था। वह सिकंदर की तरह साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।

बैक्ट्रिया पर विजय प्राप्त करने के बाद सेल्यूकस सिकंदर द्वारा जीते गए भारतीय क्षेत्र पर अपना अधिकार समझ कर उस पर अधिकार करना चाहता था।

सेल्यूकस ने सिंधु नदी पार कर मगध साम्राज्य के अधिकृत क्षेत्र पर आक्रमण की योजना बनाई चंद्रगुप्त ने पश्चिम क्षेत्र की सुरक्षा की विशेष व्यवस्था की थी। सेल्यूकस की सेना को चंद्रगुप्त की सेना ने सिंधु नदी के पश्चिमी भाग में ही रोक दिया था। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस पर विजय प्राप्त की, और सेल्यूकस से संधि कर ली।

सेल्यूकस से संधि

चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस के समक्ष अपनी शर्तों पर संधि के लिए बाध्य किया, और इस प्रकार की शर्तों रखी_

  1. संधि की शर्तों के अनुसार अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और खैबर दर्रे के उस पार हिंदूकुश का समस्त क्षेत्र मगध साम्राज्य को प्राप्त हुआ, इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण नगर हेरात कंधार पर चंद्रगुप्त का अधिकार हो गया।
  2. सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रगुप्त के साथ कर वैवाहिक संबंध स्थापित किया यूनानी लेख एरिया ने इस संबंध का उल्लेख किया है।
  3. चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए, इस संधि का महत्व इसलिए अधिक था, क्योंकि सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त के दरबार में अपने विद्वान राजदूत मेगास्थनीज को भेजा था। मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त के दरबार राज प्रसाद और मगध साम्राज्य के प्रशासन का विस्तृत वर्णन इंडिका में किया है, यह पुस्तक मेगास्थनीज के वर्णन के आधार पर संकलित है।

मगध राज्य की सीमा

चंद्रगुप्त के साम्राज्य की विशालता के संबंध में इतिहासकारों ने कहा है कि, “इसकी सीमाएं इतनी विस्तृत थी कि मुगल शासक तथा अंग्रेज निरंतर प्रयास के बाद भी इतना विस्तृत राज्य स्थापित करने में असफल रहे। ”

चंद्रगुप्त मौर्य के समय मगध साम्राज्य के अधीन हिंदूकुश की पर्वत श्रृंखला अफगानिस्तान से पूर्व में बंगाल और उत्तर में कश्मीर, नेपाल से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक का क्षेत्र आता है।

दक्षिण विजय

चंद्रगुप्त की दक्षिण विजय के बारे में चंद्रगिरी के अभिलेखों से पता चलता है, कि चंद्रगुप्त को दक्षिण भारत का विजेता स्वीकार किया गया है, दक्षिण में चंद्रगुप्त का साम्राज्य उत्तरी मैसूर तक फैला हुआ था।

चंद्रगुप्त का शासनकाल

वायुपुराण और महावंश में चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल के बारे में यह कहा गया है कि उसका शासनकाल 24 वर्ष है, अतः चंद्रगुप्त की मृत्यु 322-24=298 ई. पू. हुई होगी।

भारत का यह एक ऐसा मात्र शासक था जो वैभव और ऐश्वर्य त्याग कर 24 वर्ष शासन करने के बाद सन्यासी बन गया था चंद्रगुप्त की तुलना भारत के अन्य सम्राटों से करना व्यर्थ है, यह एक महान विजेता, महान शासक था, चंद्रगुप्त मौर्य एक अद्वितीय भारतीय सम्राट था।

चंद्रगुप्त मौर्य का मूल्यांकन

चंद्रगुप्त एक कुशल योद्धा, सेनानायक और योग्य शासक था। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने 24 वर्ष के शासनकाल में जितनी भी सफलताएं प्राप्त की थी, इतनी उपलब्धियां किसी अन्य भारतीय शासक ने प्राप्त नहीं की थी। चंद्रगुप्त मौर्य एक ऐसा व्यक्ति था जिसने न केवल यूनानी और विदेशी आक्रमणों को विफल किया बल्कि भारत के बड़े भू भाग को यूनानी अधिपत्य से मुक्त कराया।

चंद्रगुप्त मौर्य ने सर्वप्रथम भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की और निस्संदेह यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। विशेष रुप से चंद्रगुप्त को राजसिंहासन उत्तराधिकार में नहीं मिला था, बल्कि वह निम्न स्तरीय अवस्था में उत्पन्न हुआ था। चंद्रगुप्त ने जिस भारत पर अपना शासन स्थापित किया वह ब्रिटिश भारत से भी अधिक क्षेत्र में विस्तृत था।

चंद्रगुप्त मौर्य नहीं सर्वप्रथम कुशल प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण किया। चंद्रगुप्त मौर्य की प्रशासनिक व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि इस बात की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि भारत में अंग्रेजों ने भी अलग उसी प्रकार की व्यवस्था को अपनाया था, इन दोनों के समय में लगभग 2000 वर्षों का अंतर था।

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