सामाजिक समूह क्या है, अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

सामाजिक समूह किसे कहते हैं | सामाजिक समूह क्या है

समूह मानव के जीवन की अत्यंत ही महत्वपूर्ण वास्तविकता है। मानव अपने जन्म से लेकर मृत्यु अवस्था तक कई प्रकार की समूह में रहता है। निरंतर नए-नए समूहों का निर्माण भी करता है। बिना समूहों के व्यक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। समूह में कई प्रकार के जीव जंतु आ सकते हैं जैसे- पक्षियों का समूह, मानव समूह, गायों का समूह, नातेदारी समूह आदि।

साधारण शब्दों में अर्थ :- "सामाजिक समूह ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनके बीच किसी न किसी प्रकार का संबंध पाया जाता है।"

सामाजिक समूह की परिभाषा | Definition of Social Group

टी. बी. बोटोमोर के अनुसार - सामाजिक समूह व्यक्तियों के संकलन को कहते हैं जिसमें—

  1. विभिन्न व्यक्तियों के मध्य निश्चित संबंध होते हैं।
  2. प्रत्येक व्यक्ति समूह और उसके प्रतीकों के प्रति सचेत होता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक samajik samuh का कम से कम प्रारंभिक ढांचा और संगठन होता है और उसके सदस्यों की चेतना का मनोवैज्ञानिक आधार होता है। इस प्रकार का परिवार, गांव, राष्ट्र, मजदूर संगठन अथवा राजनीतिक दल का समूह है।

सामाजिक समूह की विशेषताएं | Social Group Characteristics

1. समूह व्यक्तियों का संग्रह है- Samajik Samuh का निर्माण उन व्यक्तियों के द्वारा होता है जो किसी न किसी Addhar पर स्वयं को एक दूसरे से संबंधित मानते हैं। इस दृष्टिकोण से समूह को एक मूर्त संगठन कहा जा सकता है। समूह का निर्माण करने वाले व्यक्तियों के बीच भौतिक समीप का होना आवश्यक है, क्योंकि एक दूसरे से बहुत दूर रहते हुए भी वे मानसिक संबंधों के कारण samajik samuh का निर्माण कर सकते हैं।

2. निश्चित संरचना- सामाजिक समूह की संरचना विभिन्न समितियों की संरचना में समान स्पष्ट और व्यवस्थित नहीं होती, लेकिन किसी ना किसी रूप में इसके सदस्यों के बीच भी परिस्थिति और भूमिका का कुछ विभाजन अवश्य देखने को मिलता है।

Example के लिए कुछ लोगों की स्थिति खरीदने वालों की होती है तो कुछ अनुसरण करने वालों की। इसी तरह सभी शिक्षक एक samajik samuh के सदस्य हैं लेकिन उनके बीच भी विश्वविद्यालय स्तर से प्राथमिक स्तर तक एक स्पष्ट विभाजन होता है।

3. कार्यों का विभाजन- एक samajik samuh के सभी सदस्य अलग-अलग कार्यों के द्वारा अपने समूह को संगठित बनाने का कार्य करते हैं। साधारण समूह जिन लक्ष्यों को महत्वपूर्ण मानता है, उनकी प्राप्ति कार्यों के विभाजन से ही संभव हो पाती है। उदाहरण के लिए, परिवार एक Samajik Samuh है। जिसके सभी सदस्य अलग-अलग कार्यों के द्वारा परिवार के उद्देश्यों को पूरा करते हैं।

4. हितों की समानता- Samajik Samuh का निर्माण उन्हीं व्यक्तियों के द्वारा होता है, जिनके स्वार्थ एक दूसरे के समान हो। हितों की समानता के कारण ही समूह के सदस्य एक दूसरे के प्रति जागरूक रहते हैं। तथा उनसे सहयोगी संबंधों की स्थापना करते हैं।

5. मनोवैज्ञानिक संगठन- व्यक्तियों का संग्रह होने के साथ ही सामाजिक समूहों को एक मनोवैज्ञानिक संगठन के रूप में देखा जा सकता है। इसका तात्पर्य है कि जिन व्यक्तियों की क्रियाएं लगभग समान प्रकृति की होती है। तथा जो व्यक्ति इसी समानता के कारण स्वयं को एक दूसरे से संबंधित मानते हैं उनसे एक सामाजिक समूह का निर्माण होता है।

6. आदर्श नियमों की प्रधानता- सामाजिक समूह ऐसी इकाई है, जिसे बहुत से आदर्श नियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। क्या आदर्श नियम साधारणतया अलिखित होते हैं तथा सदस्यों में भावनात्मक एकरूपता उत्पन्न करते हैं।

7. अनिश्चित आकार- सामाजिक समूह के निश्चित आकार का कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता। इसका निर्माण दो तीन व्यक्तियों को लेकर हजारों लाखों व्यक्ति तक से हो सकता है। वर्तमान युग में जैसे जैसे व्यक्तियों के संबंधों का दायरा बढ़ता जा रहा है, सामाजिक समूहों के आकार में भी विधि होने लगी है।

8. ऐच्छिक सदस्यता- एक सामाजिक प्राणी के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को कुछ samajik samuh का सदस्य होना आवश्यक है। लेकिन वह अपनी इच्छा और रूचि के अनुसार किसी भी समूह का सदस्य बन सकता है। कुछ व्यक्ति एक दो समूहों के ही सदस्य होते हैं, जबकि अनेक व्यक्तियों की सदस्यता बहुत से सामाजिक समूह तक फैली हो सकती है। कुछ विशेष समूह की सदस्यता लेना और उसे छोड़ देना भी व्यक्ति के लिए ऐच्छिक है।

9. नियंत्रण का अभिकरण- सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि जिस समूह के प्रति सदस्यों की निष्ठा जितनी अधिक होती है, उसका अपने सदस्यों पर उतना ही अधिक नियंत्रण होता है।

समूहों का निर्माण किस आधार पर होता है?

सोरोकिन ने कुछ आधारों को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना है जो इस प्रकार से है_

  1. नातेदारी एवं रक्त संबंध तथा समान उत्पत्ति में विश्वास।
  2. विवाह संबंध।
  3. धर्म अथवा विश्वासों की समानता।
  4. भाषा की समानता।
  5. समान उत्तरदायित्व।
  6. क्षेत्रीय समिपता।
  7. व्यापारिक हित।
  8. आर्थिक समानता।
  9. सामाजिक मूल्यों अथवा सामाजिक संस्थाओं के प्रति समान लगाव।
  10. किसी सामान्य शत्रु का होना अथवा सामान सुरक्षा की आवश्यकता महसूस करना।
यह सभी दशाएं ऐसी हैं, जिनमें से किसी एक दशा के आधार पर एक समूह का निर्माण हो सकता है।

प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह में अंतर | Difference Between Primary and Secondary Group

प्राथमिक समूह

  1. प्राथमिक समूह का आकार छोटा होता है।
  2. इनमें रक्त संबंधी व्यक्ति की सदस्य हो सकते हैं।
  3. प्राथमिक समूह में हम की भावना पाई जाती है।
  4. प्राथमिक समूह सरल समाज के द्योतक हैं।
  5. प्राथमिक समूह छोटे समुदायों में अधिक पाए जाते हैं।
  6. ग्रामीण जीवन में प्राथमिक समूह का बहुमूल्य होता है।
  7. प्राथमिक समूह में घनिष्ठ का अधिक पाई जाती है।
  8. प्राथमिक समूह में प्रत्यक्ष संबंध पाए जाते हैं।
  9. प्राथमिक समूह में स्वाभाविकता पाई जाती है।
  10. यहां संबंधों में निरंतरता होती है।
  11. प्राथमिक समूह घनिष्ठ संबंध के द्योतक होते हैं।
  12. इनका प्रभाव व्यक्ति पर अमिट होता है।
  13. यहां व्यक्तिवादी का नहीं होती है।
  14. इनकी सदस्यता अनिवार्य होती है।
  15. मानव जन्म के साथ ही इनका प्रादुर्भाव हो गया था।

द्वितीयक समूह

  1. द्वितीयक समूह का आकार बड़ा होता है।
  2. इसमें कोई कोई भी सदस्य बन सकता है सदस्यों की संख्या पर कोई नियंत्रण नहीं होता है।
  3. द्वितीयक समूह में हम की भावना का अभाव होता है।
  4. द्वितीयक समूह जटिल समाजों के द्योतक होते हैं।
  5. द्वितीयक समूह बड़े समुदायों में अधिक पाए जाते हैं।
  6. नगरीय जीवन में द्वितीयक समूह का बहुमूल्य होता है।
  7. द्वितीयक समूह में घनिष्ठता अधिक पाई जाती है।
  8. द्वितीयक समूह में संबंध अप्रत्यक्ष होते हैं।
  9. द्वितीयक समूह में अस्वाभाविकता पाई जाती है।
  10. यहां के संबंध निरंतर नहीं होते हैं।
  11. द्वितीयक समूह में संबंध घनिष्ठ नहीं होते हैं।
  12. इनका प्रभाव अस्थाई होता है।
  13. द्वितीयक समूह में व्यक्तिवादीता ज्यादा पाई जाती है।
  14. इनकी सदस्यता का अनिवार्य होना आवश्यक नहीं है।
  15. इनका प्रादुर्भाव पर्याप्त काल बाद हुआ।

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