अशोक की धार्मिक नीति का वर्णन, अशोक और बौद्ध धर्म

अशोक के धम्म का वर्णन करें

सम्राट अशोक के बारे मे सामान्य परिचय :-

          सम्राट अशोक का पूरा नाम  देवानांप्रिय अशोक मौर्य था ,और उनकी पत्नी  का नाम महारानी देवी था | सम्राट अशोक के गुरु कौन थे ? इसका उतर , सम्राट अशोक के गुरु आचार्य चाणक्य जी  थे |उनके पिता का नाम बिन्दुसार और माता का नाम सुभद्रांगी (रानी धर्मा) था | 

सम्राट अशोक की मृत्यु कब हुई?

अशोक ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया उसके बाद लगभग 232 ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हो गई। 

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को कब अपनाया ?

अशोक ने कलिंग विजय के पश्चात बौद्ध धर्म अपना लिया था। उन्होंने सत्य,अहिंसा के  नियमों को धर्म में परिवर्तन करते हुए अशोक धम्म की स्थापना की। 

अशोक के धम्म का वर्णन करें

               अशोक का धर्म क्या था ? इतिहासकारों के समक्ष या सदैव एक विवाद ग्रस्त प्रश्न रहा है| विभिन्न विद्वानों ने इस विषय में अपने अपने विचार प्रकट किए हैं| डॉ. एफ. डब्लयू. टोमस का मत है कि वह जैन धर्म का अनुयायी था। 

विद्वान है रस के अनुसार अशोक का प्रमुख धर्म ब्राह्मण था। विस्मित तथा आर के मुखर्जी ने उसके धर्म को सार्वभौम माना है, अर्थात उसके धर्म में सभी धर्मों के अच्छे गुणों का समावेश था।  

अशोक के धर्म होने में संदेह अधिकांश विद्वान अशोक के धर्म को बौद्ध धर्म मानते हैं। परंतु कुछ विद्वानों ने उसके बहुत होने का संदेह व्यक्त किया है। यह विद्वान है सेनार्ट कर्न तथा फ्लीट। भारतीय विद्वानों में डॉक्टर आर के मुखर्जी तथा डॉ आर एस त्रिपाठी के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। डॉक्टर. आरके. मुखर्जी के अनुसार —"अशोक के धर्म को उस समय से प्रचलित किसी भी धर्म से नहीं मिलाया जा सकता। धर्म निसंदेह बौद्ध धर्म नहीं था क्योंकि उसमें चार महान सत्य और अष्ट मार्ग का कहीं उल्लेख नहीं है। और ना ही कारण और परिणाम की विचारधारा और बौद्ध के आदित्य वाद का ही उल्लेख है निर्वाण का विचार हमें कहीं नहीं मिलता।"

अशोक के बौद्ध होने के प्रमाण — उपर्युक्त विचारों के विरोध में अनेक विद्वानों ने तर्क दिए हैं और अशोक के धर्म को बहुत धर्म ही माना है। डॉक्टर भंडारकर के मत में,— "यदि अशोक के विभिन्न अभिलेखों का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि उसका व्यक्तिगत धर्म भी बौद्ध धर्म था और जिस धर्म का उसने प्रचार किया हुआ भी बौद्ध धर्म था ।"

डॉ. आर. सी. मजूमदार के अनुसार, "अपने एक अभिलेख में अशोक ने स्पष्ट रूप से बौद्ध धर्म और संघ में अपना विश्वास प्रकट किया है। उसने बुद्ध को भगवान कहा है। उसने भगवान बुद्ध के जन्म और ज्ञान प्राप्ति की स्थान स्थानों की तीर्थ यात्रा की उसने घोषित किया कि भगवान बुद्ध द्वारा जो कुछ भी भाषित है सभी सुभाषित है।"

बौद्ध होने के अन्य प्रमाण

  1. दीप वंश तथा महा वंश के अनुसार राज्य अभिषेक के नावे वर्ष न्याग्रिध नामक व्यक्ति ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
  2. चीनी यात्री भी बौद्ध धर्म का अनुयायी स्वीकार करते हैं।
  3. भाब्रू शिलालेख में उसने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि जो बौद्ध संघ में भेद उत्पन्न करेंगे उन्हें दंडित किया जाएगा।
  4. अशोक ने बौद्ध तीर्थों की यात्राएं की।
  5. उसने यज्ञ पशु बलि आदि जैसे कर्मकांडोऺ का घोर विरोध किया।
  6. अपने शासनकाल में अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में उसने तीसरी बौद्ध संगत करवाई। 
  7. बौद्ध धर्म का प्रचार भी घुसने तन, मन, धन से किया था।
  8. भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को शिलालेखों और स्तूप ऊपर अंकित करवाया।
  9. संघ की गतिविधियों और कार्यों का निरीक्षण करने के लिए अशोक ने कुछ कर्मचारियों की नियुक्ति की। 

अशोक के धर्म का स्वरूप 

      बौद्ध धर्म का अनुयाई होते हुए भी अशोक ने अपनी प्रजा को जिस धर्म का पालन करने का आदेश दिया वह सार्वभौम धर्म था। अर्थात ऐसा धर्म जिसमें सभी धर्मों के अच्छे अच्छे गुणों का समावेश हो जाता है। अशोक का यह धर्म सर्व मंगल कारी है जिसका मूल उद्देश्य प्रत्येक प्राणी का मानसिक नैतिक तथा आध्यात्मिक उद्धार करना है। उसके धर्म की प्रमुख विशेषता यह है, कि उसका स्वरूप अत्यधिक सरल, सर्वमान्य तथा व्यवहारिक था। उसमें जटिल तथा कठिन विधियों और कर्मकांडो का कोई स्थान नहीं था।

               ब्रह्माणी मात्र पर दया करना, सत्य बोलना, सब से कल्याण की कामना रखना, माता-पिता का अदर तथा गुरुजनों का अदर करना धर्म के प्रधान लक्षण थे।

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