महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म में अंधविश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं था। यह धर्म कर्मकांड, सूक्ष्मदर्शीका, और पौराणिक मान्यताएं पर आधारित नहीं था। यह धर्म बुद्धि वादी और मानव कल्याण के धर्म का आधार था।
गौतम बुद्ध के सिद्धांत | महात्मा बुद्ध के उपदेश
1. चार आर्य सत्य-
महात्मा बुद्ध ने संसार को दुःखमय कहा और इस संबंध में चार आर्य सत्य का प्रतिपादन किया।
- दुःख- सभी संसार में दुःख भरा हुआ है, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और रोग सभी दुःख हैं, इच्छा वस्तु प्राप्त ना होना भी दुःख है।
- दुःख समुदाय- संसार में प्रत्येक दुःख का कोई ना कोई कारण अवश्य होता है, बुद्ध के अनुसार दु:खों का मुख्य कारण तृष्णा है।
- दुःख निरोध- महात्मा बुद्ध के अनुसार रूप वेदना संज्ञा संस्कार और विज्ञान ही दुःख का नरोध है। उन्होंने बताया कि तृष्णा के बिना से प्रत्येक दुःख का विनाश संभव है।
- दुःख निरोध गामिनीप्रतिपदा- यह वह मार्ग है, जिसके द्वारा दु:खों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। बुद्ध ने अपने इस सिद्धांत के अंतर्गत 8 मार्गों का प्रतिपादन किया, इसे बुद्ध के अष्टांग मार्ग भी कहते हैं_ 1. सम्यक् दृष्टि, 2. सम्यक् संकल्प 3. सम्यक् वाणी 4. सम्यक् कर्मान्त 5. सम्यक् अजीव 6. सम्यक् प्रयत्न 7. सम्यक् स्मृति 8. सम्यक् समाधि।
2. दस शील-
बुद्ध ने आचरण की शुद्धता हेतु दस शील के पालन पर विशेष बल दिया। यह दस शील इस प्रकार है_
1. अहिंसा
2. सत्य
3. अस्तेय (चोरी ना करना)
4. ब्रह्मचर्य
5. अपिरग्रह (संग्रह ना करना)
6. नृत्य व संगीत का त्याग
7. सुगंधित पदार्थों का त्याग
8.असमय में भोजन का त्याग
9. कोमल शय्या का त्याग
10. कामिनी कंचन का त्याग
3. अनीश्वरवाद-
महात्मा बुद्ध अनीश्वरवादी थे। उनका ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं था। उनका विश्वास था कि संसार की उत्पत्ति के लिए किसी करता की आवश्यकता नहीं होता, संसार का संचालन कार्य करने से होता है।
4. अनात्मवाद-
आत्मा के विषय में उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाया। आत्मा के विषय में महात्मा बुद्ध मौन ही रहे।
5. वेदों में अविश्वास-
महात्मा बुद्ध और उनके अनुयायियों ने वेदों की प्रमाणिकता का खंडन किया और वेदों में कही गई बातों का भी स्वीकार नहीं किया।
6. कर्मवाद-
महात्मा बुद्ध कर्मवादी थे। उनका कहना है कि मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही परिणाम भुगतने होते हैं। मनुष्य का यह लोक और परलोक उसके कर्म पर निर्भर है। परंतु बुद्ध के कर्म का अर्थ वैदिक कर्मकांड नहीं था, वह मनुष्य के समस्त वार्षिक और मानसिक चेष्टाओं को कर्म मानते हैं।
7. पुनर्जन्म-
बुद्ध का पुनर्जन्म में विश्वास था उनका कहना था कि कर्मों के अनुसार ही मनुष्य का अच्छा बुरा जन्म होता है। उनका यह मानना था कि पुनर्जन्म तो होता है, लेकिन आत्मा का नहीं मनुष्य के अहंकार का होता है।
8. क्षणिकवाद-
महात्मा बुद्ध संसार को नित्य ना मानकर क्षणभंगुर मानते थे। उनके अनुसार संसार की हर वस्तु परिवर्तनशील है।
9. जाती पांती का खंडन-
महात्मा बुद्ध का जाति पाति में कोई विश्वास नहीं था, लेकिन वह समाज एकता में विश्वास रखते थे। उनका कहना है कि बौद्ध धर्म का अनुसरण कोई भी व्यक्ति कर सकता है चाहे वह किसी भी जाति का हो।
10 अहिंसा पर बल-
महात्मा बुद्ध अहिंसा पर बल देते थे। उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के बाद जीवन भर ‘अहिंसा परमोधर्म’ के सिद्धांत का प्रचार प्रसार किया। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने मन, वचन और कर्म से किसी भी जीव को दुःख नहीं पहुंचाना चाहिए।
11. निर्वाण-
महात्मा बुद्ध के अनुसार निर्वाण वह अवस्था है जिसमें ज्ञान की ज्योति द्वारा अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हो जाती है। मनुष्य की समस्त वासनाओं और तृष्णाओं का नाश हो जाता है। महात्मा बुद्ध ने लोगों को उपदेश दिया है कि निर्वाण की प्राप्ति कोई भी व्यक्ति सत कर्मों के द्वारा कर सकता है।
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Hii
ReplyDeleteHello 👋👋, have a Good Day 💐💐
DeleteHiii
DeleteThanks for you answer ke liye again thanks 😋😋😋😋
DeleteWelcome 💐💐
DeleteHii sir
ReplyDeleteMst
DeleteHow ji
ReplyDelete🤔
ReplyDeleteThank you so much 💕💕
ReplyDeleteIs answer se meri bahut help ho gyi.
Bahut acche teacher ho ap
😊😊😊🤭 Thankyou!! All the best, have a good day...
Delete✊
DeleteYou are very hot sir...💋💋💋💋🖕🖕🖕
ReplyDelete😉😉😉 Thankyou ! Have a Good Day 💐💐
DeleteBahut axa
ReplyDeleteशानदार जानकारी, धन्यवाद
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