निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा, तत्व, महत्व, कार्य, सिद्धांत

निर्देशन क्या है

निर्देशन अर्थात ‘निर्देशन’ के नाम से ही पता चलता है कि किसी व्यक्ति को आदेश देना या निर्देश देना ही निर्देशन कहलाता है।

निर्देशन की परिभाषा

विलियम न्यूमैन के अनुसार- “निर्देशन का संबंध प्रबंधक अपने कर्मचारियों तथा अन्य लोगों से योजनाओं को सफलतापूर्वक कराने के लिए कहता है उसे हम निर्देशन कहते हैं।”

निर्देशन के कार्य

निर्देशन के कार्य इस प्रकार से हैं—

1. आदेश- निर्देशन का प्रमुख कार्य अपने कर्मचारियों को आदेश देना होता है।

2. पर्यवेक्षण- किसी संस्था के कर्मचारी दिए गए आदेशों के अनुसार कार्य को सही तरीकों से कर रहे हैं या नहीं इसकी जांच करने के लिए प्रबंधक को उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करना होता है।

3. मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण- कर्मचारियों को सही कार्य करने के लिए उनका मार्गदर्शन करना आवश्यकता पड़ने पर उन्हें प्रशिक्षण देना निर्देशक का कार्य होता है।

4. समन्वय- निर्देशन एक महत्वपूर्ण कार्य है, जिसमें कि कर्मचारियों तथा प्रबंधक के मध्य समन्वय अर्थात तालमेल बनाना होता है।

निर्देशन के तत्व | निर्देशन के तत्व क्या है

1. पर्यवेक्षण

पर्यवेक्षण प्रबंध के निर्देशन कार्य का एक महत्वपूर्ण तत्व है, इसका अर्थ है कि काम पर कर्मचारियों की देखभाल करना और उनकी समस्याओं के समाधान में मदद करना सारा काम योजनाओं के अनुरूप हो सके, पर्यवेक्षण में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी एक अधिकारी और कर्मचारी में आमना सामना होता है।

2. नेतृत्व

एक प्रबंधक तभी सफल हो सकता है जबकि वह नेतृत्व योग्यता से परिचित हो। नेतृत्व का मूल अनुसरण है अर्थात वही व्यक्ति नेता बनता है जिनकी बातों को लोग अनुसरण करते हैं। लोग उन्हीं व्यक्तियों का अनुसरण करते हैं जो उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके‌। जब एक बार लोग किसी प्रबंधक का अनुसरण करने लग जाए तो उनका प्रभाव इतना हो जाता है कि उनके कहने पर वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।

3. संदेशवाहन

यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के सूचना देने तथा समझाने की प्रक्रिया है। एक प्रबंधक को अपने कर्मचारियों को बार-बार यह बतलाना पड़ता है कि उन्हें क्या करना है? कैसे करना है? क्या कब करना है? दूसरी ओर कर्मचारियों की प्रतिक्रियाओं को जानना भी जरूरी होता है यह सब जानने के लिए संदेशवाहन की आवश्यकता होती है।

4. अभीप्रेरणा

अभिप्रेरणा का अर्थ कर्मचारियों को संस्था के उद्देश्यों के प्रति अधिक उत्साह एवं कुशलता के साथ साथ उन्हें कार्य के प्रति प्रेरित करना है। एक प्रबंधक तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसको उन बातों की जानकारी न हो जो व्यक्तियों को प्रेरित करती है। व्यक्तियों को प्रेरित करने के लिए वित्तीय एवं अवितीय प्रेरणा दी जाती हैं।


निर्देशन के सिद्धांत

निर्देशन के सिद्धांत इस प्रकार से हैं

1. अधिकतम योगदान का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार कर्मचारियों को इस प्रकार प्रेरित किया जाए कि कर्मचारियों का अधिकतम योगदान संस्था को प्राप्त हो सके।

2. उद्देश्यों में सामंजस्यता का सिद्धांत

संस्था के उद्देश्य तथा कर्मचारियों के व्यक्तिगत उद्देश्यों में इस प्रकार संबंधित से स्थापित होना चाहिए जिससे कि एक दूसरे के प्रति सहायक हो न की बाधाएं उत्पन्न हो।

3. आदेश की एकता का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार कर्मचारियों को एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए क्योंकि विभिन्न अधिकारियों के आदेश अलग-अलग होते हैं तो कर्मचारी किस आदेश का पालन करें यह दुविधा होती है।

4. संप्रेषण का सिद्धांत

इसमें संप्रेषण की बाधाओं को दूर कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रेषित संदेश, संदेश प्राप्त करता तक उसी रूप में समझा व प्राप्त किया गया है, जैसे कि भेजा गया था।

5. अनौपचारिक संगठन का सिद्धांत

अनौपचारिक संगठन का प्रयोग औपचारिक संगठन के दोषों को दूर करने तथा सूचनाओं का सफलतापूर्वक आदान प्रदान करने के लिए किया जाता है।

6. नेतृत्व का सिद्धांत

कर्मचारियों को उच्च अधिकारी द्वारा प्रभावी नेतृत्व प्रदान करना चाहिए जिससे कि कर्मचारियों के व्यवहारों में सकारात्मक परिवर्तन आ सके।

निर्देशन का महत्व | निर्देशन का महत्व लिखिए

1. निर्देशन प्रेरणादायी शक्ति है

निर्देशन के जरिए कर्मचारियों में कार्य करने के प्रति आकर्षण व प्रेरणा जागृत होती है। यह एक ऐसी शक्ति है जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति कार्य करने को तत्पर हो जाता है। निर्देशन के माध्यम से कर्मचारियों में कार्य के प्रति रुचि बढ़ जाती है।

2. कार्य में एकरूपता

उदाहरण के लिए 5 महिलाओं को समान मात्रा में सामग्री उपलब्ध कराने पर सभी महिलाओं के द्वारा तैयार किए गए खाने में अलग अलग स्वाद आएगा, ऐसे ही कार्य में रूचि एक समान सामग्री व सुविधाएं उपलब्ध कराने पर भी कार्य का स्वरूप अलग अलग होगा अतः कार्य में एकरूपता लाने के लिए निर्देशन जरूरी है।

3. कार्य के लिए मार्ग तैयार करना

किसी भी कार्य को करने के लिए मानसिक, बौद्धिक था शारीरिक का तैयार होना अति आवश्यक है। और इसके लिए निर्देशन का दिया जाना भी आवश्यक है‌। निर्देशन बौद्धिक क्रिया का प्रवाह है। कार्य का उचित नियोजन व रूपरेखा तैयार कर शारीरिक क्रिया वाले अधीनस्थों को निर्देशन के माध्यम से कार्य सौंप दिया जाता है इस प्रकार निर्देशक द्वारा कर्मचारियों को कार्य के प्रति तैयार किया जाता है, जिससे कार्य करने का एक अच्छा मार्ग प्राप्त हो जाता है।

4. उत्पादन में अधिकता

निर्देशन के कारण बड़े पैमाने के उत्पादन में कार्य एवं उत्पादन में वृद्धि होती है। बड़े पैमाने के उत्पादन में अनेक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। इसके द्वारा कार्य में एकरूपता लाने के लिए निर्देशन आवश्यक है। उत्पादन में ग्रहों ग्रहों में आपसी समन्वय बनाए रखने और कर्मचारियों में एक ही करण की भावना बनाए रखने के लिए उचित निर्देशन का होना अति आवश्यक है।

5. निर्देशन का सर्वोपरि महत्व

प्रबंध के सभी कार्य जैसे नियोजन, संगठन, समन्वय, अभिप्रेरणा, नियंत्रण, संप्रेषण, नवाचार आदि सभी में निर्देशन की आवश्यकता होती है, बिना निर्देशन के यह सभी कार्य महत्वहीन होंगे क्योंकि सभी कार्यों का शुभारंभ निर्देशन के अनुसार ही होता है।

6. निर्देशन का सर्वव्यापी महत्व

निर्देशन के महत्व को केवल प्रबंधक तक सीमित नहीं रखा जा सकता बल्कि निर्देशन की आवश्यकता सर्वव्यापी है। राजनीति अर्थव्यवस्था खेलकूद मनोरंजन शैक्षणिक स्थान धार्मिक स्थल व संस्था संगठन समूह आदि सभी क्षेत्रों में निर्देशन की आवश्यकता होती है। विद्यालय में भी निर्देशन के बिना कोई भी कार्य आगे नहीं बढ़ सकता विद्यालय में निर्देशन प्राचार्य द्वारा किया जाता है।

इस प्रकार व्यवसाय प्रबंध राजनीतिक धार्मिक शैक्षणिक खेल-जगत सिनेमा सभी क्षेत्रों में निर्देशन की आवश्यकता होती ही है इसके बिना कार्यों की दिशा या सही लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती है निर्देशन के बिना लक्ष्य प्राप्त करना अत्यंत कठिन होगा।

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