चयन का अर्थ एवं परिभाषा, प्रकार, प्रक्रिया, सिद्धांत

चयन का अर्थ

चयन का आशय है चुनाव करना, इसे हम आसान भाषा में समझेंगे किसी संस्था में भर्ती होने के लिए करोड़ों लोग आते हैं और उन करोड़ों लोगों में से संस्था के कर्मचारी केवल उन लोगों का चुनाव करते हैं जो लोग उस संस्था में कार्य करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है। चयन प्रक्रिया में भाग लेने के लिए लोगों में कुछ योग्यताएं होनी चाहिए, चयन प्रक्रिया के द्वारा ऐसे लोगों का चुनाव होता है जो उन योग्यताओं में सफल होते हैं। और चयन प्रक्रिया से ऐसे लोगों को बाहर निकाल दिया जाता है जो कि संस्था में कार्य करने हेतु असक्षम या पूरी तरह से तैयार नहीं होते हैं।

अन्य शब्दों मे चयन का अर्थ

चयन का अर्थ चुनना या चुनाव करना होता है।

चयन प्रक्रिया में प्रयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार

1. बुद्धिमता परीक्षा— यह माना जाता है कि जो व्यक्ति जितना अधिक बुद्धिमान होगा वह उतना ही अधिक किसी भी कार्य को शीघ्र से शीघ्र एवं सरलता से सीख सकता है। यह परीक्षा देने के लिए निश्चित नियम और निश्चित समय में उत्तर देना होता है। इस परीक्षा को लेने का मुख्य उद्देश्य यह है कि वह कितना बुद्धिमान है और कितनी जल्दी किसी भी कार्य को सीख सकता है।

2. प्रवृत्ति परीक्षा— इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य लोगों की छिपी हुई योग्यताओं को पता लगाने के लिए किया जाता है, ताकि यह पता लगाया जा सके उन्हें कितना प्रशिक्षण देना चाहिए और कितना नहीं। प्रवृत्ति परीक्षा में यह देखा जाता है कि व्यक्ति में किसी चीज को सीखने में कितनी रुचि है।

3. व्यक्तित्व परीक्षा— इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों में यह देखा जाता है कि अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करने उन्हें प्रभावित करने और उन्हें प्रेरित करने की कितनी योग्यता है और साथ में यह भी देखा जाता है कि किसी कार्य को करते समय बाधा आने पर उन बाधाओं से किस तरह से निपट सकते हैं।


चयन की प्रक्रिया का विस्तार करें

1. पूर्व परीक्षा— चयन प्रक्रिया में मुख्य परीक्षा के पहले पूर्व परीक्षा की जाती है, पूर्व परीक्षा के माध्यम से अयोग्य व्यक्तियों को अलग कर दिया जाता है। और मुख्य परीक्षा में केवल वे व्यक्ति ही परीक्षा दे सकतें हैं जिन्होंने पूर्व परीक्षा सफल की है।

2. प्रारंभिक साक्षात्कार— प्रारंभिक साक्षात्कार के माध्यम से व्यक्ति की उपयोगिता और निर्णय लेने की क्षमता के बारे में पता लगाया जाता है। 

3. रिक्त आवेदन पत्र भेजना— चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद चयनित प्रत्याशी को रिक्त आवेदन पत्र भरने के लिए भेजा जाता है, इस आवेदन पत्र में शैक्षणिक योग्यता अनुभव अभिरुचि तथा संभावित आवेदन आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस आवेदन पत्र के मुख्य 3 भाग होते हैं।

  1. व्यक्तिगत जानकारी
  2. मनोवैज्ञानिक जानकारी
  3. कार्य एवं योग्यता संबंधी जानकारी।

4. आवेदन पत्र की जांच— प्रत्याशी जब आवेदन पत्र भरकर भेज दिया जाता है, तब आवेदन पत्र के साथ सुलंग्न सभी पत्रों की जांच की जाती है।

5. मुख्य परीक्षा— प्रत्याशियों के चयन का मुख्य आधार मुख्य परीक्षा ही होता है, मुख्य परीक्षा के द्वारा है प्रत्याशियों का चयन किया जाता है। यह परीक्षा मुख्यतः लिखित रूप में होती है। मुख्य परीक्षा में कार्य परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, भाषा योग्यता परीक्षण आदि होते हैं। इन्हीं आधार पर व्यक्तियों का चयन किया जाता है।

चयन के मुख्य सिद्धांतों का वर्णन

1. सक्षम व्यक्तियों का चयन— चयन हमेशा सक्षम व्यक्तियों का ही किया जाना चाहिए आवश्यता पढ़ने पर बाहरी विशेषज्ञों की सेवाएं भी ली जानी चाहिए, इस प्रकार सर्वश्रेष्ठ कर्मचारियों के चयन की संभावना अधिक होती है।

2. निर्धारित प्रभाव के आधार पर— चयन हमेशा निर्धारित व्यक्तियों के आधार पर ही होनी चाहिए ताकि संस्था में किसी भी अयोग्य कर्मचारियों की नियुक्त न हो सके।

3. उपयुक्त स्त्रोत— चयन आंतरिक तथा बाह्य किसी भी स्तरों से किया जा सकता है और यह बात ध्यान में रखी जाएगी की सर्वश्रेष्ठ लोगों का चयन होना चाहिए।

4. चयन संस्था की नीति के अनुरूप— यदि संस्था द्वारा कोई नीति निर्धारित की गई है तो चयन करते समय यह ध्यान में रखा जाता है कि उसी के रूप में चयन होना चाहिए।

5. सभी पहलुओं पर विचार— चयन करते समय व्यक्तियों की शैक्षणिक योग्यता रखा जाता है ताकि कार्य के प्रति व रुचि स्पष्ट अनुभव आदि बातों पर अधिक विचार किया जा सके।

6. लोच— चयन की प्रक्रिया लोचदार होनी चाहिए अर्थात संस्था के हित में आवश्यक पड़ने पर आसानी से परिवर्तन किया जा सके।

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