पुष्यमित्र शुंग की उपलब्धियां, शासनकाल, पुष्यमित्र की विजयें

पुष्यमित्र शुंग कौन था (Who was Pushyamitra Shunga)

पुष्यमित्र शुंग,‌ शुंग वंश का संस्थापक था। पुष्यमित्र शुंग अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का प्रधान सेनापति था। 187 ई. पू. इसने अपने शासक बृहद्रथ की अपने सेना के सम्मुख ही हत्या कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया। सिहासन प्राप्त करने के बाद पुष्यमित्र को किसी प्रकार से विरोध का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन जनता मौर्य शासक के कुशासन और अत्याचारों से ऊब चुकी थी। इसके संबंध में आर. सी. मजूमदार लिखते हैं कि:- “ज्ञात होता है कि राजवंश के परिवर्तन को जनता ने स्वीकार किया, क्योंकि उत्तर कालिक मौर्य अत्याचारी हुए तथा यवन आक्रमण के वेग को रोकने में और मगध की सैनिक शक्ति की मर्यादा की रक्षा करने में असमर्थ हुए।”

पुष्यमित्र शुंग का चरित्र चित्रण

पुष्यमित्र एक वीर सैनिक तथा कुशल शासक था। वह ब्राह्मण था फिर भी उसने क्षत्र धर्म अपनाया। लगता है कि बाल्यकाल से ही व सामरिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था। अपनी योग्यता के बल से ही वह मौर्य साम्राज्य की सेना का सेनापति बना था। और धीरे-धीरे साम्राज्य की सारी शक्ति उसने अपने हाथ में ले ली। अपने सैनिकों के सामने ही सम्राट का वध करके उसने सेना की अपनी लोकप्रियता का पूर्ण परिचय दिया।

इससे यह स्पष्ट होता है कि वह एक कुशल सेनाध्यक्ष और अपने सैनिकों का अत्यंत प्रेम पात्र था। वह पाटलिपुत्र के सिंहासन पर बैठने के बाद उसने मगध साम्राज्य को संगठित करना आरंभ कर दिया। उसने साम्राज्य के अलग होने की चेष्टा करने वाले प्रांतों को फिर से अपने अधीन किया और साम्राज्य की पश्चिमी सीमा को सुदृढ़ बनाया। उसने साम्राज्य के विस्तार को बढ़ाया और आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। मगध साम्राज्य को सुरक्षित और सुव्यवस्थित रखने व सैनिक योग्यता का पूर्ण परिचय दिया। ब्राह्मण होने के कारण उसने वैदिक परंपरा धर्म तथा संस्कृति की पुनर्स्थापना का सफल प्रयास किया। लुप्त हो चुके अश्वमेध यज्ञ को उसने फिर से आरंभ किया। ब्राह्मण धर्म का राजधर्म बनाकर उसने फिर से उसकी मर्यादा को स्थापित किया। संस्कृत को फिर “गौरवपूर्ण“ स्थान प्राप्त हो गया और महर्षि पतंजलि के महाभाष्य तथा मनुस्मृति इसी काल में लिखे गए। इस प्रकार पुष्यमित्र ने वैदिक संस्कृति का पुनरुद्धार किया। पुष्यमित्र संकीर्ण विचारों का व्यक्ति था और बौद्धों के साथ उसका व्यवहार अच्छा नहीं था।

पुष्यमित्र की विजयें | पुष्यमित्र शुंग की प्रमुख विजय

1. यूनानीयों से युद्ध:-

पुष्यमित्र की मुख्य सफलता यूनानी आक्रमणों को विफल करने में थी‌। यूनानी यों ने भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा को जीतकर बृहद्रथ मौर्य के समय में अयोध्या तक आक्रमण किए। सेनापति पुष्यमित्र ने उन्हें परास्त करके वापस जाने के लिए बाध्य किया था। संभवत पुष्यमित्र की यूनानी यों के विरुद्ध इस विजय ने ही उसके सम्मान में वृद्धि करके उसे सम्राट बनने में सहायता दी थी। लेकिन पुष्यमित्र के सम्राट बनने के बाद यूनानीयों ने अपने शासक डिमेट्रियस के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया और सिंधु नदी के तट पर एक युद्ध हुआ। इस युद्ध का कारण यूनानीयों द्वारा पुष्यमित्र के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ लेना था। इस युद्ध में से अग्नि मित्र के पुत्र वासु मित्र ने यूनानी यों को परास्त किया जिसके कारण पुष्यमित्र शुंग के समय में यूनानी सिंधु नदी से आगे नहीं बढ़ सके। यूनानीयों को दो बार परास्त करने के कारण पुष्यमित्र ने दो बार अश्वमेध यज्ञ किए।

पुष्यमित्र ब्राह्मण धर्म का समर्थक था। उसके अश्वमेध यज्ञ यह सिद्ध करते हैं कि उसने ब्राह्मण धर्म के रीति-रिवाजों को पुनः स्थापित किया था। बौद्ध धर्म ग्रंथ जैसे ‘आर्यमंजुश्रीमूलकल्प’ और ‘दिव्यावदान’ उसे बहुत धर्म पर अत्याचार करने वाला बताते हैं। उसके बारे में लिखा गया है कि उसने साकल में बौद्ध विहारों को नष्ट किया और एक भिक्षु के सिर की कीमत 100 सोने के सिक्कों के बराबर रखी। लेकिन पुष्यमित्र पर लगाए गए इस दोष को प्रमाणित नहीं किया जा सकता निसंदेह पुष्यमित्र और शुंग शासक ब्राह्मण धर्म के कट्टर समर्थक थे, लेकिन उनकी धार्मिक नीति असहिष्णुता की नहीं थी।

2. विदर्भ से युद्ध:-

पुष्यमित्र एक बहुत ही शक्तिशाली योग्य प्रतिभाशाली शासक था। उसने मगध के जीर्ण-शीर्ण साम्राज्य को पुनः संगठित करने का प्रयास किया। पुष्यमित्र ने सर्वप्रथम विदर्भ राज्य पर आक्रमण किया। इन दिनों विदर्भ का शासक यज्ञसेन था। विदर्भ का भार पुष्यमित्र ने अपने पुत्र अग्निमित्र पर डाला। उसने यज्ञसेन के भाई मालवासेन को कूटनीति के द्वारा अपनी ओर मिला लिया। और फिर यज्ञ सेन के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। यज्ञसेना अग्निमित्र की सेना का सामना ना कर सका और वह पराजित हुआ और उसने पुष्यमित्र की अधीनता स्वीकार कर ली।

पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल (Reign of Pushyamitra Sunga)

पुराणों में कहा गया है कि मौर्य 137 वर्ष राज्य किए। इसके आधार पर मौर्य वंश की समाप्ति 184 ईसा पूर्व हुई थी। पुष्यमित्र का शासनकाल पुराणों में 26 वर्ष दिया गया है। पुष्यमित्र सेनापति नियुक्त होने के पहले 30 वर्षों तक गवर्नर रहा था। उसे शासन तथा सैन्य बल संचालन का पर्याप्त अनुभव था। उसका शासनकाल 184 ईसा पूर्व से 148 ईसा पूर्व था। 

पुष्यमित्र सुंग ने संकटकाल में राज्य के संचालन की बागडोर अपने हाथों में ली थी। विदेशी आक्रमण की भीषण स्थिति में उसे राजा का वध करने के लिए उसे बाध्य होना पड़ा था। सभी स्रोतों में उसके लिए सेनापति की उपाधि का उल्लेख किया गया है। उसने राजा की उपाधि धारण नहीं कि। उसके पुत्र अग्निमित्र के लिए राजा की उपाधि प्राप्त होती है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने यह मत प्रतिपादित किया कि बृहद्रथ को मारने के बाद पुष्यमित्र ने अग्निमित्र को सिंहासन पर बैठाया था और स्वयं कभी राजा नहीं बना। लेकिन महाभाष्य, मालविकाग्निमित्रम् और अयोध्या अभिलेख में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पुष्यमित्र ने शासन किया और अश्वमेध यज्ञ किए संभव है कि उसने सेनापति का विरुद्ध इसलिए बनाए रखा क्योंकि इस उपाधि से वहां जनसाधारण में प्रसिद्ध था।

पुष्यमित्र शुंग की उपलब्धियां (Achievements of Pushyamitra Shung)

1. मगध साम्राज्य का संगठन:-

पुष्यमित्र के समक्ष पहला कार्य अराजकता को समाप्त करके राज्य को पुनर्गठित करना था। सीमांत प्रदेश अलग हो गए थे और आंतरिक विद्रोह के कारण साम्राज्य कमजोर हो रहा था। फतेहपुर से मित्रों ने पाटलिपुत्र पर अधिकार करने के बाद मगध के निकटवर्ती क्षेत्रों को संगठित किया। क्षेत्र में प्राची, कौशल, वत्स, आकर और अवंती था। पश्चिम क्षेत्रों पर अधिकार दिल रखने के लिए उसने विदिशा द्वितीय राजधानी बनाया। और अपने पुत्र अग्नि मित्र को अपने प्रतिनिधि के रूप में वहां नियुक्त किया। इन नियुक्तियों का उद्देश्य भी था कि यथासंभव दक्षिण भारत में सॉन्ग सत्ता का विस्तार किया जाए। पाटलिपुत्र में सम सत्ता स्थापित होने के बाद विदर्भ प्रांत (नागपुर क्षेत्र) मगध राज्य से पृथक हो गया था। अग्निमित्र का विशेष दायित्व था, कि वह विदर्भ को शुंग राज्य में सम्मिलित करें।

2. विदर्भ से युद्ध:-

शुंगों द्वारा विदर्भ की विजय का विवरण कालिदास के नाटक मालविकाग्निमित्रम् से प्राप्त होता है। इससे ज्ञात होता है कि वह कुछ समय पूर्व सिंहासन पर बैठा था। इसी नाटक में यज्ञसेन को बृहद्रथ के मंत्री का संबंध तथा शुगों का स्वाभाविक शत्रु कहा गया है। ऐसा लगता है कि यज्ञसेन को मौर्य सम्राट ने विदर्भ का शासक नियुक्त किया था। लेकिन संघ द्वारा सत्ता पर अधिकार कर लेने के बाद वह स्वतंत्र हो गया।

अग्निमित्र और यज्ञसेन के संघर्ष का विवरण प्राप्त नहीं होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि अग्निमित्र ने आरंभ में भेदनीति का प्रयोग करके यज्ञसेन के एक संबंधी माधुवसेन को अपने पक्ष में कर लिया। जिस समय माधव सेन अग्नि मित्र से मिलने जा रहा था उस समय यज्ञ सेन ने उसे बंदी बना लिया। अब यज्ञ सेन ने माधव सेन को मुक्त करने के लिए मौर्य मंत्री को मुक्त करने की शर्त रखी। इस प्रकार दोनों पक्षों में युद्ध आरंभ हुआ। अंत में यज्ञ सेन को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य होना पड़ा। अग्नि मित्र ने विदर्भ राज्य को दो भागों में बांटा जिसका एक भाग यज्ञ सेन के पास रहा और दूसरा भाग माधव सेन को दिया गया। दोनों ने शुंगों की अधीनता स्वीकार की।

3. यूनानीयों से आक्रमण:-

पुष्यमित्र शुंग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य योनो के आक्रमणों से राज्य की रक्षा करना था। यूनानीयों ने बैक्ट्रिया में अपना राज्य स्थापित कर लिया था, अशोक के शासनकाल में उन्हें मौर्य साम्राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ लेकिन अशोक के दुर्बल उत्तराधिकारीयों के समय में उन्हें अवसर प्राप्त हुआ और उन्होंने मौर्य साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।

4. खारवेल से युद्ध:-

कुछ विद्वानों का कहना है कि पुष्यमित्र को कलिंग के राजा खारवेल से युद्ध करना पड़ा था। इसका आधार खारवेल का हाथीगुम्फा शिलालेख है। इसमें कहा गया है कि खारवेल ने मगध पर आक्रमण किया था और वृहस्पतिमित्र को पराजित किया था।

5. अश्वमेध यज्ञ:-

अयोध्या अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ किए थे। यज्ञों के द्वारा पुष्यमित्र सुंग ने प्राचीन वैदिक परंपरा को पुनः स्थापित किया। मालविकाग्निमित्रम् में केवल एक यज्ञ का उल्लेख मिलता है। लेकिन पतंजलि ने महाभाष्य में पुष्यमित्र के यज्ञ का उल्लेख किया। इस यज्ञ में संभवत पतंजलि पुरोहित है। पहला यज्ञ पाटलिपुत्र को यूनानीयों के आक्रमण से मुक्त कराने के उपलक्ष में किया गया था। दूसरा यज्ञ पुण्यार्थ किया गया होगा क्योंकि पुष्यमित्र के दूसरे युद्ध का विवरण प्राप्त नहीं होता।

6. पौधों के प्रति नीति:-

पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्म का अनुयाई था। उसके अश्वमेध यज्ञ वैदिक परंपरा में थे। यह ब्राह्मण धर्म के उत्थान का काल था। इस उत्थान का कारण यह था कि ब्राह्मणों ने देश और समाज की रक्षा की थी। जबकि बौद्ध धर्म के अनुयाई अहिंसा के प्रभाव के कारण निष्क्रिय रहे थे। अतः स्वाभाविक है कि बौद्ध ग्रंथ में पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का विरोधी कहा गया है।

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Comments

  1. Bhai isme thodi information aur add karo fir article aur bhi jabardast ban jaayega.

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  2. This article should be in English

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    1. ise aap Chrome Extension ki sahayta se English mein padh sakten hain.

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