हर्षवर्धन की विजय का वर्णन करें | उपलब्धियां

प्रस्तावना:- थानेश्वर का वर्धन वंश प्रथम स्वतंत्र एवं शक्तिशाली शासक था। प्रभाकरवर्धन की पत्नी यशोमती ने दो पुत्रों राज्यवर्धन, हर्षवर्धन और एक पुत्री राज्यश्री को जन्म दिया। गौंड शासक शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी। उस समय हर्षवर्धन की आयु केवल 16 वर्ष की थी जब वह थानेश्वर का शासक बना।

हर्षवर्धन की उपलब्धियां का वर्णन (Description of achievements of Harshavardhanan)

हर्षवर्धन की कठिनाइयां और उसका सामना:- हर्षवर्धन की दो प्रमुख समस्याएं थी- एक अपनी बहन राज्यश्री को छुड़ाना और, दूसरा गांव राज्य के शासक शशांक को दंडित करना। हर्षवर्धन ने एक विशाल सेना लेकर कन्नौज की ओर प्रस्थान किया। आगे बढ़ने पर हर्ष के सेनापति भांडी ने बताया कि राज्यश्री कारागार से मुक्त होकर विंध्याचल पर्वत की ओर चली गई है। यह सुनकर गौंड राजा शशांक पर आक्रमण का भार छोड़कर स्वयं राज्यश्री को ढूंढने विंध्याचल की ओर चला गया। और राज्यश्री को ठीक उसी समय देखा जब राज्यश्री चीता में कूदने जा रही थी। बहन को लेकर वापस लौटा, उधर आतंकित होकर शशांक कन्नौज छोड़कर वापस चला गया। राज्यश्री के स्वीकार करने और उसके कोई पुत्र न होने के कारण कन्नौज भी हर्षवर्धन के अधिकार में आ गया और थानेश्वर के स्थान पर कन्नौज को उसने अपनी राजधानी बनाया।

हर्षवर्धन की विजय का वर्णन करें | हर्षवर्धन की विजय

हर्ष से पहले भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया था और इस प्रकार भारत की राजनीतिक एकता अलग अलग हो गई थी। और अभी हर्ष ने पुनः राजनीतिक एकता प्रदान करने का निश्चय किया था।

1. गौंड राज्य से संघर्ष- हर्ष का सबसे प्रबल शत्रु शशांक था। लेकिन ऐसा ज्ञात होता है कि इन दोनों में संघर्ष नहीं हुआ। गंजाम अभिलेख से ज्ञात होता है शशांक गौरवपूर्ण सम्राट के समान शासन करता रहा। यद्यपि अनुश्रुति के अनुसार गणराज्य का अंत हर्ष के मित्र भास्कर वर्मा ने किया।

2. वल्लभी विजय- हर्ष ने वल्लभी विजय पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। नवसारी दान पत्र से यह ज्ञात होता है कि पराजित हुआ। वल्लभी शासक ध्रुव भट्ट ने गुर्जर शासक दक्ष के यहां शरण ली थी। इस विजय के बाद में वल्लभी शासक ध्रुवभट्ट के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए और हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह ध्रुवभट्ट से की।

3. सिंध विजय- हर्ष के चरित्र से ज्ञात होता है, कि हर्ष ने सिंध के राजा को पराजित किया था, परंतु व्हेन सांग ने लिखा है कि जब वसींद में पहुंचा तो वह एक स्वतंत्र राज्य था इसलिए हर्ष की सिंध पर विजय संदिग्ध है।

4. पुलकेशिन द्वितीय से संघर्ष- व्हेनसांग के अनुसार महाराष्ट्र के शासक पुलकेशिन पर हर्ष ने आक्रमण किया और दोनों के मध्य घमासान युद्ध हुआ। पुलकेशिन लेख से ज्ञात होता है कि युद्ध में हस्ती सेना नष्ट हो गई जिसको देख कर हर्ष भयभीत होकर बिना विजय प्राप्त किए वापस चला गया।

5. ओडिशा, मगध तथा पश्चिम बंगाल पर विजय- व्हेनसांग के वर्णन से यह पता चलता है कि भास्कर वर्मा का निमंत्रण पाकर जब कामरूप गया तब हर्ष ने उड़ीसा पर विजय प्राप्त की और मगध पर विजय प्राप्त करके मगध राजा की उपाधि धारण की संभवतः हर्ष ने पश्चिम बंगाल पर भी विजय प्राप्त की थी।

6. कच्छ तथा सूरत विजय- व्हेनसांग के वर्णन से ज्ञात होता है कि हर्ष ने कुछ तथा सूरत पर भी विजय प्राप्त की थी।

7. पंजाब तथा मिथिला विजय- व्हेनसांग के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि हर्ष ने सिंहासनारोहण के 6 वर्ष के अंदर पंजाब और मिथिला पर अधिकार किया था।

8. पर्वतीय प्रदेश पर विजय- 'हर्षरित' से ज्ञात होता है कि हर्ष ने बर्फ से ढके प्रदेश पर भी विजय प्राप्त की थी यह कौन सा प्रदेश था निश्चित नहीं है।

9. कामरूप से संबंध- कामरूप का शासक भास्कर वर्मा हर्ष का मित्र थे लेकिन डॉक्टर मुखर्जी के अनुसार- “हर्ष ने भास्कर वर्मा की अधीनता स्वीकार कर लेने के लिए विवश किया।” डॉक्टर मजूमदर और अधिकांश इतिहासकार कामरूप को स्वतंत्र राज्य स्वीकार करते हैं।

10. विद्रोह का दमन- 618 ई. से 627 ई. के मध्य हर्ष ने अनेक विद्रोह का सामना किया लेकिन उसने अपनी वीरता और धैर्य से इन विद्रोह का दमन कर दिया।

11. विदेशों से संबंध- हर्ष ने विदेशी शासकों से भी संबंध स्थापित किए थे। चीन के साथ दूतों का आदान प्रदान किया गया था। ईरान के शासक और हर्ष ने एक दूसरे को उपहार भेजे थे और हर्ष ने फारस के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित किए थे।

निष्कर्ष:- हर्ष के साम्राज्य के बारे में विद्वानों में मतभेद है। स्मिथ, पाणीकक्कर, मुखर्जी, मजूमदर, निहार रंजन रे ने अपने-अपने मत दिए हैं।

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