ऋग्वैदिक काल किसे कहा जाता है
ऋग्वैदिक काल से आशय उस समय से है जब आर्य पंजाब और गंगा घाटी के उत्तरी भाग में थे। ऋग्वेद एक ऐसा ग्रंथ है जो उस समय के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालता है। जैसे उस समय के धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक इन सभी पहलुओं पर ज्ञान प्रस्तुत करता है उसे ऋग्वेद कहते हैं।
ऋग्वैदिक काल की तिथि क्या है
ऋग्वैदिक काल की तिथि लगभग (1500 से 1000) ईशा पूर्व मानी जाती है।
ऋग्वैदिक काल का सामाजिक दशा
1. जाति प्रथा-
ऋग्वैदिक काल में समाज दो वर्गों या समूहों में बटा हुआ था। समाज के वर्गों में बटा होने का कारण ‘वर्ण ’ अर्थात रंग था। एक वर्ग में अर्य रहे थे, जो कि गोरे रंग के थे और यज्ञ व अग्नि पूजा करते थे। और दूसरे वर्ग में दस्यु थे जो कि काले रंग की थे, लिंग की उपासना करते थे। आर्य संस्कृत बोलते थे और दास अस्पष्ट भाषा बोलते थे जिनकी भाषा का कुछ पता नहीं है। और इनकी नाक चपटी होती थी। ऋग्वेद में ब्राह्मण और क्षत्रिय शब्द का प्रयोग अधिकतम होता था।
2. वैवाहिक जीवन-
वैवाहिक जीवन का आधार पितृसत्तात्मक था। ऋग्वेद में पिता का बच्चों पर पूर्ण नियंत्रण होता था, इतना कि पिता पुत्र को बेच भी सकता था। और पत्नी को घर का आभूषण मानी जाती थी। वह अपने पति ससुर देव जेस्ट नंदन आदि के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होती थी। इससे यह भी पता चलता है कि उस समय संयुक्त परिवार की प्रथा थी।
3. विवाह-
वैवाहिक जीवन का आधार विवाह था। ब्रह्मा विवाह का विशेष प्रचलन था, वैसे गंधर्व, राक्षस, क्षात्र और असुर विवाह के संकेत भी मिलते हैं। बाल विवाह और विधवा विवाह उस समय प्रचलित नहीं था या अज्ञात था। साधारणतया एक पत्नी रखने की प्रथा थी। और संभवतः वेश्या प्रथा का भी प्रचलन था।
4. स्त्रियों की दशा-
ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों की दशा अच्छी थी, यहां उनका मान सम्मान होता था। औरतें यज्ञ भी करती थी। विवाह के समय उन्हें जो धन संपत्ति प्राप्त होती थी उस पर उनका अधिकार होता था। और राज कारोबार पर भी स्त्रियां भाग लेती थी।
5. शिक्षा-
ऋग्वैदिक काल में लड़के और लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था। शिक्षा पाने के लिए किसी स्कूल में नहीं बल्कि गुरुओं के पास स्वयं जाना होता था। और इन्हें शिक्षा मुख के द्वारा ही दी जाती थी अर्थात एक लेक्चरर की भांति शिक्षा दी जाती थी। और इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य उनके चरित्र के विकास के लिए होता था। ऋग्वैदिक काल में लेखन कला का विकास हुआ था या नहीं इसका पता अब तक नहीं चला है।
6. आमोद प्रमोद के साधन-
ऋग्वैदिक काल में आमोद प्रमोद के साधन में रथ दौड़ प्रमुख थी। इसके अलावा शिकार, शतरंज, नाच गाना आदि अन्य कई प्रकार के आमोद प्रमोद के साधन थे।
7. खानपान-
रिग वैदिक काल में यहां भोजन में दूध से बनी वस्तुओं का सेवन अधिकतम किया जाता था। और इसके अलावा जो धान फल सब्जी की आदि का भी प्रचलन था। मांस भी खाया जाता था, परंतु गाय को 'गौमाता' माना जाता था।
8. वस्त्र आभूषण-
वस्त्रों में अटक, द्रपी, निधि आदि मुख्य थे। ऋग्वैदिक काल के सामाजिक दशा के गहनों में कर्णशोभन, कंकण, नोचनी, नीष्कग्रीव आदि का प्रचलन था।
9. मकान-
ऋग्वैदिक काल के मकान मिट्टी और लकड़ी के होते थे।
10. बाल संवारना-
ऋग्वैदिक काल में औरतें छोटी घुटती थी और आदमी या तो कघीं करते थे या चोटी गूथते थे।
11. औषधि का ज्ञान-
ऋग्वैदिक काल में भी औषधियों का ज्ञान होता था लेकिन यह अधिकतर वैद्यों को होता था, इसलिए उन्हें आदर समान दिया जाता था। अश्विनी कई बीमारियां ठीक कर देते थे। अतः ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सक में भी निपुण थे।
ऋग्वैदिक काल की आर्थिक दशा | ऋग्वैदिक काल का आर्थिक जीवन
1. खेती-
ऋग्वैदिक काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती था। हर कोई उपजाऊ जमीन का मालिक होना चाहता था। हल जोतने के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता था। ऋग्वेद में बीज डालने, फसल काटने, अन्न एकत्रित करने और कूटने आदि के बारे में बताया गया है।
2. पशुपालन-
आर्य मूलतः कृषक थे और वे बैल, गाय, घोड़ा, बकरी तथा ऊंट आदि पालते थे। उस समय उनकी संपत्ति उनकी पशु थी। बैलों से खेती की जाती थी और गाय से दूध मिलता था, घोड़े भ्रमण करने एवं रथ आदि के काम आते थे। और जानवरों का उपयोग आवागमन के साधनों के रूप में भी होता था।
3. अन्य उद्योग धंधे-
बदलते समय के साथ-साथ आर्यों के उद्योग धंधे भी बदलते गए। और बदलते समय के साथ साथ चार वर्ण हो गए- ब्राह्मण यज्ञ करने और शिक्षा देने का कार्य करने लगे, क्षत्रिय रक्षा करने का कार्य करने लगे, वैश्य खेती करने और पशु पालन और दूसरी कलाओं से संबंध रखने लगे। और जिन लोगों ने बुनाई का पेशा अपनाया उन्हें बुनकर कहने लगे। जो लोग रात और वोट आदि बनाते थे वह जुलाहे कहलाने लगे। और सोने का काम करने वाले हिरर्ण्यकार कहलाने लगे। इस समय लगभग सभी के अपने-अपने वर्ग हो गए जैसे कुम्हार, नाई आदि।
4. व्यापार एवं वाणिज्य-
कृषि और उद्योग से आंतरिक और बाह्य व्यापार को प्रोत्साहित हुआ, कुछ लोगों ने व्यापारी वर्ग बनाया, वे लोग जरूरत लोगों को अधिक ब्याज दर पर कर्ज देते थे।
व्यापार विनियम का माध्यम गाय था। लेकिन यह सुविधाजनक माध्यम नहीं था। यदि किसी वस्तु की कीमत आधी गाय हो तो उसका मूल्य नहीं चूकाया जा सकता था। सिक्कों का प्रचलन उस समय था या नहीं इसका पता तक नहीं चला है और किसी वेद में नहीं है।
ऋग्वैदिक काल की धार्मिक दशा|ऋग्वैदिक काल का धार्मिक जीवन
1. प्रकृतिवाद और मानवीकरण-
ऋग्वैदिक काल के लोग प्रकृति के अजूबे से काफी प्रभावित थे। उन्हें उसमें कुछ शक्तियां नजर आई। इसलिए वे प्राकृतिक चीजों की पूजा करने लगे और उन्हें अमर मानने लगे।
2. बहुदेववाद-
ऋग्वैदिक धर्म बहू देव वादी था, क्योंकि ऋग्वेद में कई देवों का वर्णन मिला है देव का मतलब देने वाला होता है जैसे सूरज, चांद देव हैं, क्योंकि यह सभी को प्रकाश देते हैं लेकिन विशिष्ट धार्मिक विचार के संदर्भ में बहुत देववादी सिद्धांत है। इन देवों की जब स्तुति की जाती है तब उन्हें सर्वोपरि और अमर माना जाता है। क्योंकि इन्हें विश्व का सृजनहार माना जाता है।
3. एकेश्वरवाद-
ऋग्वेद काल में विश्व को एक ही देव का सृजन माना जाने लगा और अंत में जाकर एकेश्वरवाद का जन्म हुआ।
4. कोई मूर्ति पूजा नहीं-
ऋग्वैदिक काल मूर्ति पूजा वाला नहीं था किसी भी मंदिर में मूर्तियां नहीं मिलती है। इंद्र की मूर्ति का उल्लेख है लेकिन कुषान युग से पहले की कोई भी मूर्ति अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। लगता है देवता और मनुष्य में व्यक्तिगत संबंध था।
ऋग्वैदिक काल की राजनीतिक दशा|ऋग्वैदिक काल का राजनीतिक जीवन
1. राजतंत्र-
ऋग्वैदिक काल में राजतंत्र राज्य का प्रमुख स्वरूप था, ऋग्वेद में वर्णित कई काबिले राजा के अधीन थे। ऐसा लगता है राजा का पद पैतृक हो गया था और इसमें जेष्ठाधिकार का सिद्धांत लागू होता था।
2. राजत्व-
राजा की आवश्यकता सैनिक और अन्य कारणों से हुई होगी ऐसा वैदिक साहित्य से पता चलता है। सामान्यता राजपथ पैतृक होता था और दैवी सिद्धांत प्रचलित नहीं था। राजा का पद सर्वोपरि था और वह निरंकुश नहीं था। लगता है उसके अधिकारों पर सभा, समिति जैसे लोकप्रिय परिषदों का नियंत्रण था। उसी परंपरा के अनुसार चलना होता था उसकी गैर जिम्मेदारी पर पुरोहितों का नियंत्रण होता था। उसके प्रमुख कार्य शासन सैनिक तथा न्याय संबंधित थे। राजा अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए प्रजा से ‘कर’ लेता था। यह प्रथा वित्तीय प्रशासन की ओर इशारा करता है।
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ReplyDeleteYou are great sir
Thankyou ❤️❤️
DeleteOr sar ji
DeleteVery helpfull thanks alot 👍
ReplyDeleteVery good answer
ReplyDeleteThank you so much sir
Very helpful
Thank U Sir 🙏
ReplyDeleteThanx sir
ReplyDeleteTq sir ji
ReplyDeleteWelcome all of you....💐
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