पाषाण काल किसे कहते हैं
पाषाण काल उस काल को कहते हैं जब मानव पत्थरों से बने औजारों का अधिकतर उपयोग करता था, जैसे पत्थरों से आग जलाना, पत्थरों का हथियार बनाना इत्यादि। इस तरह से अधिकतम कार्य पत्थरों के द्वारा ही किया जाता था। इस समय को पाषाण काल कहते हैं।
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पाषण युग के प्रमुख औजार |
इतिहासकारों के द्वारा इस काल को मुख्य तीन कालों में बांटा जाता है-
- 1. पुरापाषाण काल
- 2. मध्य पाषाण काल
- 3. नवपाषाण काल
1. पुरापाषाण काल
पुरापाषाण काल का समय अनुसंधानकर्ताओं के आधार पर भारत में 5 लाख ई. पूर्व से 8000 ई. पूर्व तक मानी जाती है। पुरापाषाण कालों को इतिहासकारों ने तीन भागों पर बांटा है_
- A. पूर्व पुरापाषाण काल
- B. मध्य पुरापाषाण काल
- C. उत्तर पुरापाषाण काल
इसके विभाजन के दो कारण है। पहला पाषाण उपकरणों के विकास कि गति के आधार पर और दूसरा जलवायु में होने वाला परिवर्तन के आधार पर।
A. पूर्व पुरापाषाण काल:- अवशेष प्राप्ति के स्थान और खोजों के आधार पर पूर्व पुरापाषाण काल अवशेष निम्नलिखित स्थानों पर प्राप्त हुए हैं।
- कर्नाटक- कृष्णा, मालप्रभा एवं घटप्रभा नामक नदियों की घाटियों से अवशेष मिले हैं।
- पंजाब- पंजाब में सोहन नदी की घाटी से अवशेष मिले हैं।
- महाराष्ट्र- महाराष्ट्र में प्रवरा नदी की घाटी से प्रमाण मिले हैं।
- मध्य भारत- नर्मदा की घाटियों, तुगभद्र एवं पेनार के मध्य क्षेत्र से प्रमाण मिले हैं।
- तमिल नाडु- तमिलनाडु के बादामदुरइ, मनाजनकरन और अतिसक्कम से हथियार मिले हैं।
हथियार और औजार उपरोक्त सभी स्थानों से मिले हैं। हाथ के प्रयोग की कुल्हाड़ी आदि प्राप्त हुए हैं। पत्थर के यह उपकरण सुव्यवस्थित नहीं होते थे। यहां गड़ासे, खड्ग उपकरण आदि हथियार काटने छीलने व शिकार करने के काम आते थे।
B. मध्य पुरापाषाण काल:- अवशेष प्राप्ति के स्थल में निम्नलिखित प्रमुख स्थान पर अवशेष मिले हैं
भारत में मध्य पूरापाषण युग के अवशेष कहाँ पाए गए हैं
- 1. महाराष्ट्र- महाराष्ट्र में नेवासा से बहुत अधिक मात्रा में उपकरण मिले हैं।
- 2. मध्य प्रदेश- नर्मदा व तुगभद्र नदियों के तट पर अवशेष मिले हैं। इसके अलावा प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में भी अवशेष मिले हैं।
सभी स्थानों से हथियार मिले हथियारों में बेधक खुरचनी, वेधनियां, हस्तकुठार एवं शल्क औजार प्राप्त हुए हैं। शल्क औजार इस काल की महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है।
पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं | भारतीय पूरापाषण संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं
1. औजार- भारत में इस काल का मानव पत्थरों के औजारों का उपयोग करता था। उत्खनन से प्राप्त उपकरणों के आधार पर कहा जाता है कि इस समय के औजार अव्यवस्थित रहते थे।
2. रहन सहन- यहाँ पर आपके परीक्षा में यह सवाल पूछ सकता है की पूरापाषण काल में मानव कहाँ रहता था तो इस काल में भारत का मानव गुफाओं में निवास करता था। ये गुफाएं तालाबों, नदियों व जल स्रोतों के निकट प्राप्त हुई है। इनका जीवन घुमकड़ी जीवन था। ये लोग आज काल की तरह एक जगह नहीं रहते थे, ये लोग भोजन की तलास में नदियों तालाबों के किनारे रहते थे। और वहाँ का भोजन रहते तक वहीं निवास करते थे। भोजन के समाप्त होने पर जगह बदल देते थे। इस प्रकार इनका जीवन व्यतीत होता था।
3. खानपान- पशुओं का शिकार कर उनका मांस खाना तथा कंदमूल एवं फलों से इस युग का भारत अपना जीवन यापन करता था। वास्तव में यह समय संघर्ष का समय रहा होगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि पुरापाषाण कालीन मानव बड़ा अव्यवस्थित था। लेकिन सभ्यता के अनेक अंग स्पष्ट रूप से दिखने लगे थे।
2. मध्य पाषाण काल
मध्य पाषाण काल का समय भारत में 8000 ई. पूर्व से 4000 ई. पूर्व तक माना जाता है।
अवशेष प्राप्ति के स्थल
1. पेशावर- पेशावर में जमालगढ़ी में अवशेष प्राप्त हुए हैं।
2. तिन्नवाली- कर्नूल सायेरपुरम नामक स्थानों पर अवशेष मिले हैं।
3. बिहार- बिहार के सरायकला में पाषाण काल के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
4. मैसूर- मैसूर में ब्रह्मागिरी में अवशेष प्राप्त हुए हैं।
5. पंजाब- पंजाब के उचाले नामक स्थानों से उत्खनन में अवशेष मिले हैं।
उपरोक्त स्थानों से इस काल में बहुत से हथियार मिले हैं, जैसे ब्लेड प्वाइण्ट स्क्रेपर, इंग्रेवर, ट्रायंगल क्रेसेण्ड नामक पत्थर के उपकरण प्राप्त हुए हैं। यह हथियार जंपर फ्लिंट चार्ट कल्सेडोनी नामक विशेष पत्थरों से बने गए थे। इस काल के मानव ने 1 इंच से 2 इंच तक के छोटे हथियार भी बनाए थे जिनमें लकड़ी के हैंडल भी मिलते हैं।
मध्य पाषाणकाल के मानव जीवन
- रहन सहन- भारत में इस काल का मानव छोटी मोटी पहाड़ियों पर रहता था। और जानवरों का शिकार कर कच्चा मांस एवं कंदमूल और फल फूल खाता था। कृषि व पशुपालन से वह अपरिचित थे, अतः इनके बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं था।
- संस्कार- भारत में इस कल के मानव ने शवों को दफनाना शुरू कर दिया था। उत्खनन में प्राप्त अस्थिपंजर को देखकर यह ज्ञात होता है।
3. नवपाषाण काल
मध्य पाषाण काल में मानव शिकार कर भोजन इत्यादि इकट्ठा करना और स्थाई निवास करने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। और नवपाषाण काल में मानव ने भौतिक प्रगति के क्षेत्र में नई उपलब्धियां प्राप्त की। इस काल में मानव ने ऐसे स्थान पर स्थाई निवास बनाए जहां उसे नए प्रकार के उपकरण बनाने के लिए पत्थरों की प्राप्ति हो सके और कृषि कार्य के लिए उपजाऊ भूमि इत्यादि देखकर निवास करना चाहा। ऐसे स्थानों पर मानव झोपड़ियों में रहकर कृषि व पशुपालन कार्य करने लगे और अपनी सुरक्षा के प्रबंध भी करने लगे। माना कि इस प्रगति को ध्यान में रखकर गार्डन चाइल्ड ने “इस परिवर्तन को नवपाषाण काल की क्रांति की संज्ञा दी।”
नवपाषाण काल की प्रमुख सांस्कृतिक विशेषताएं
1. उपकरण- नवपाषाण काल के उपकरण अनेक प्रकार के विशेष तकनीक से बनाए गए हैं। इस काल में सभी क्षेत्रों से जो भाषण उपकरण प्राप्त हुए हैं उनमें प्रमुख है हथौड़े, कुल्हाड़ीयां, छेनियां, वसुले, कुदाल आदि। दैनिक उपयोगी उपकरण में सील लोड़ा ओखली आदि भी इस काल से प्राप्त हुए हैं।
इन स्थानों से नई तकनीक द्वारा निर्मित भाषण उपकरणों के साथ ही हड्डि या हिरण के सींग द्वारा बनाए गए अस्थि उपकरण भी प्राप्त होते हैं। दक्षिण भारत की नवपाषाण काल की संस्कृति में हड्डी के बने हुए उपकरण बहुत कम मिले हैं। मिट्टी की बनी हुई चूड़ियां, हड्डी तथा पत्थर के अन्य महत्वपूर्ण सामग्री मिलें हैं।
2. मिट्टी के बर्तन- नवपाषाण काल में गोलाकार कटोरे, गहरे कटोरे, बोतल की तरह दिखने वाले घड़े, थालियां, प्लेट आदि अनेक प्रकार के पात्र इस काल से प्राप्त होते हैं। इनमें लाल रंग से रंगने की प्रक्रिया प्रचलित थी। पकाने के बाद मिट्टी के बर्तनों पर डिजाइनें बनाई जाती थी। मिट्टी के बर्तन चाक पर बनाए जाते थे।
3. पशुपालन- नवपाषाण काल के सभी स्थलों से पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई है। इस बात का संकेत है कि नवपाषाण काल में पशु पालन की प्रक्रिया भी रही होगी। यह हड्डियां पालतू भेड़ बकरी तथा छोटे सिंह वाली मवेशी की है। भेड़ बकरियां सबसे अधिक होती थी। जंगली जानवरों में सूअर तथा हिरण की हड्डियां प्राप्त हुई हैं। जल जीवो में कछुआ तथा मछलियों के अस्थि अवशेष प्राप्त हुए हैं। दक्षिण भारत के स्थलों से गाय, बैल, भैंस, सूअर की हड्डियां प्राप्त हुई है। इन पशुओं की प्राप्त अस्थियों से यह निष्कर्ष निकलता है कि गाय, बैल, भैंस, बकरी, पालतू पशु थे तथा शेष जानवरों का शिकार किया जाता था।
4.कृषि- नवपाषाण काल को क्रांति काल कहा जाता है। क्योंकि इस काल में गेहूं जाओ मशहूर मटर के दाने अवशेषों में प्राप्त हुए हैं जो इस बात का संकेत देते हैं कि यहां कृषि फार्म क्रमसा विकसित हो रहा था। इस क्षेत्र में धान के दाने भूसे तथा पुआल के अवशेष भी चिपके हुए मिले हैं। इस प्रकार या निष्कर्ष निकला या गया कि चावल यहां की मुख्य खाद्यान्न थी। दक्षिण भारत में 9 पार्षद स्थलों से चना, मूंग, कुलथी तथा रागी की खेती के प्रमाण मिले हैं। अनाज रखने के लिए मिट्टी के मटके का उपयोग किया जाता था।
5. आवास- उत्तरी भारत के नौसैनिक स्थानों में बुरझाहोम के स्थल धरातल पर गोल अंडाकार गड्ढे मिले हैं। जिनके बारे में यहां माना जाता है कि यह आवास स्थल थे। इस कॉल के मकान अपेक्षाकृत बड़े और आयताकार थे। फर्श पर गेरू रंग का लेप मिलता है, घरों से चूल्हे सील, लोड़े एवं मिट्टी के बर्तनों के अवशेष मिले हैं। यहां रहने के लिए लकड़ियों के अलटो को जमीन में गाड़ कर गोलाकार या अंडाकार झोपड़ी का निर्माण किया जाता था। झोपड़ी की छत घास फूस की होती थी।
दक्षिण भारत के निवासी बांस का उपयोग झोपड़ी बनाने के लिए करते थे उत्खनन में झोपड़ियों के बनाने में प्रयुक्त स्तंभों के गर्त मिले हैं। झोपड़ियों के फर्श के गोबर तथा मिट्टी से लिपाई पुताई कर साफ सुथरा बनाया जाता था। कभी-कभी चूने के घोल की पुताई भी की जाती थी।
6. संस्कार- दक्षिण भारत में समाधान के प्रमाण बताते हैं कि शवों को मकान के अंदर फर्श के नीचे ही बाहर दफनाया जाता था नागार्जुनीगोंडा में आवास क्षेत्र बाहर कब्रिस्तान मिला है। आंशिक शवाधान, अस्थि, कलश या तीन प्रकार की अन्य संस्कार की परंपराएं प्रचलित थी। समाधिया गोलाकार अथवा अंडाकार गड्ढों के रूप में प्राप्त हुई हैं। इन समाजों से प्राप्त मानव कंकाल पर गेरुआ रंग छिड़का गया है। मानव कपड़ों को देखने से अज्ञात होता है कि लोग संभवत कपाल क्रिया करते थे। मानव के साथ कुत्ते बकरे आदि पालतू पशुओं को दफनाया जाता था। आंशिक शवाधान में कुछ मानव अस्थियों को दफनाया जाता था।
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