सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता से क्या आशय है
सिंधु सभ्यता का आर्थिक जीवन
सिंधु सभ्यता से संबंधित अनेक स्थल है जो खुदाई से प्राप्त हुए अवशेष इस बात को प्रमाणित करते हैं कि सिंधु वासियों का आर्थिक जीवन अत्यंत ही सुखद रहा होगा। सिंधु वासियों के आर्थिक जीवन का वर्णन इस प्रकार से किया जा सकता है—
कृषि- सिंधुवासी गेहूं जौ राई, मटर, खजूर, अनार आदि की खेती करते थे। खेती में लकड़ी के हल्लो तथा कटाई के लिए पत्थर के औजार बनाए जाते थे तथा इसका प्रयोग करते थे। खेतों में सिंचाई के लिए तालाब नदी और वर्षा के पानी इत्यादि से की जाती थी। और ऐसा माना जाता है कि अनाज को रखने के लिए विशाल अन्य भंडार होते थे, और भंडारों के बाहर ही पीसने की व्यवस्था की जाती थी।
व्यापार- ऐसा माना जाता है, कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा इनके प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र थे। आंतरिक और विदेशी व्यापार दोनों ही अच्छी अवस्था में थे। आंतरिक व्यापार बैल गाड़ियों के द्वारा होता था। और विदेशी व्यापार सुमेरिया तक फैला हुआ था। तीन तांबा और बहुमूल्य रत्न बाहर से मंगाए जाते थे। और सूती कपड़े पश्चिमी देशों को बेचते थे।
नाप तौल- खुदाई में चकोर बांट मिले हैं, शायद यहां के निवासी धातु से बनी तराजू का उपयोग भी करते होंगे।
सिंधु सभ्यता में कलाएं
- मिट्टी के बर्तन- सिंधु वासी मिट्टी के सुंदर बर्तन बनाते थे। अनु पर अनेक प्रकार की कलाकृतियों का निर्माण किया जाता था। मिट्टी के बर्तनों में मनुष्यों के चित्र भी पाए गए हैं।
- मुहरें- हड़प्पा से प्राप्त मुहरों में भी कलाकृतियां हैं। विभिन्न धातुओं से बनी मोहरों पर अंकित भैंस बाग तथा गैंडे के चित्र इस बात के संकेत देते हैं कि सिंधुवासी उच्च कोटि के कारीगर थे।
- मूर्तियां— हिंदू वासी मूर्ति निर्माण में निपुण थे। मूर्तियों का निर्माण मुलायम पत्थर व चट्टानों को काटकर किया जाता था। अधिकांश मूर्तियां स्त्रियों की बनाई जाती थी।
- ताम्रपत्र- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में वर्गाकार आयताकार ताम्रपत्र मिले हैं। इन पर एक तरफ मनुष्य अथवा पशु की आकृति बनी है और दूसरी तरफ लेख है। यह ताम्रपत्र ताबीज जैसे लगते हैं।
- धातु कला- सिंधु सभ्यता के लोग विभिन्न विभिन्न वस्तुओं को बनाने में बड़े निपुण थे। कीमती पत्थरों को काटकर तथा छांट कर यह लोग सुंदर आभूषण का निर्माण करते थे। सोना व चांदी से सुंदर आभूषणों का निर्माण किया जाता था। चांदी पीतल व तांबे की अनेक वस्तुओं का निर्माण किया जाता था। इसके अतिरिक्त शंख से भी विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता था।
- सिंधु घाटी की लिपि- सिंधु वासियों को लिपि ज्ञान था, किंतु आज तक यह लिपि पूर्ण रूप से पढ़ी नहीं जा सकी है। लिपि चित्रात्मक थी। इनमें लगभग 400 वर्ण हैं, इस लिपि में कहीं वर्णों का तथा कहीं संकेत आत्मक चित्रों का प्रयोग किया जाता था।
जीवन हड़प्पा सभ्यता के सामाजिक जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं
खुदाई में प्राप्त हुए विशाल नगरों को देखते हुए “डॉ. पुसाल्कर का मानना है कि उस समय की सामाजिक स्थिति अत्यंत उच्च रही होगी।” हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन का वर्णन इस प्रकार से किया जा सकता है।
सामाजिक संगठन- सिंधु सभ्यता के प्राप्त स्रोतों से यहां आभास होता है कि उस समय समाज वर्गों में विभाजित नहीं था। किंतु अलग-अलग परिवारों में रहने की व्यवस्था थी। घरों का निर्माण अत्यंत कुशलता पूर्वक किया जाता था।
इतिहासकारों का कहना है कि वर्ग अथवा वर्ण में विभाजित न होने पर भी समाज व्यवसाय के आधार पर चार भागों में विभाजित हो गया था-
1. विद्वान— इसमें ज्योतिषी वैद्य तथा पुरोहित आते थे।
2. योद्धा— सुरक्षा एवं प्रशासनिक कार्यों में अधिकारी इस वर्ग में आते थे।
3. व्यवसायी— उद्योगपति एवं व्यापारी इसमें आते थे।
4. श्रमजीवी— किसान, मछुआरे, मजदूरी करने वाले आदि।
खुदाई से प्राप्त हुए तत्कालीन मकानों को देखकर ऐसा लगता है, कि संभवत यह लोग आर्थिक स्थिति में बहुत अंतर नहीं रहा होगा क्योंकि सभी मकान लगभग एक समान हैं।
भोजन— सिंधु सभ्यता के लोगों का मुख्य आहार गेहूं और चावल, मटर, दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ, सब्जियां फलों के अतिरिक्त गाय, भेड़, मछली, कछुए, मुर्गे आदि जंतुओं के मांस का भी सेवन करते थे, वे खजूर भी खाते थे लेकिन उनका मुख्य आहार गेहूं ही था।
वेशभूषा एवं आभूषण— सिंधु सभ्यता के समय का कोई भी कपड़ा उपलब्ध नहीं हैं, अतः तत्कालीन वेशभूषा के विषय में जानने के लिए तत्कालीन मूर्तियों पर निर्भर होना पड़ता है। इनसे ज्ञात होता है कि शरीर पर दो कपड़े धारण किए जाते थे।
सौंदर्य प्रसाधन सामग्री — ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक युग के समान भी सिंधु सभ्यता में भी स्त्री व पुरुष सौंदर्य प्रसाधन को अत्यंत पसंद करते थे। इस बात की पुष्टि के लिए खुदाई में प्राप्त सामग्री से होती है। स्त्रियां दर्पण कंघी कागज सूरमा सिंदूर बालों के चित्र तथा पाउडर का प्रयोग करती थी। दर्पण उस समय कांसे के तथा कंघी हाथी के दांत के बनाए जाते थे। दर्पण अंडाकार होते थे, कांसे के बने हुए रेजर भी पुरुषों द्वारा प्रयोग में लाए जाते थे।
मनोरंजन के साधन— सिंधु सभ्यता के निवासियों में मनोरंजन के साधन में प्रमुख शिकार खेलना, नाचना, गाना, बजाना तथा मुर्गों की लड़ाई देखना था, जुआ खेलना भी मनोरंजन के प्रमुख साधनों में से एक था विभिन्न प्रकार के पार्षदों का मिलना इस बात की पुष्टि करता है। बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौनों का निर्माण किया जाता था।
औषधियां— इतिहासकारों का कहना है कि सिंधु सभ्यता के निवासी विभिन्न औषधियों से परीचित थे। और वे हिरण बारहसिंगा के सींग, नीम की पत्तियों एवं शिलाजीत को औषधियों की तरह प्रयोग करते थे, चिकित्सा के उदाहरण भी कालीबंगा एवं लोथल से प्राप्त होते हैं।
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन
सिंधु सभ्यता धर्म के विषय में जानने के लिए पुरातात्विक स्रोतों का सहारा लेना पड़ता है। सिंधु सभ्यता के जीवन में किस देवता की सबसे अधिक मान्यता थी यह भली-भांति ज्ञात नहीं है। के.एन. शास्त्री का विचार है कि वैदिक काल के समान सिंधु सभ्यता में भी पुरुष देवताओं का अधिक महत्व था। अभी हम देखेंगे "हड़प्पा संस्कृति धार्मिक जीवन का वर्णन कीजिए" ! धार्मिक जीवन की विशेषता इस प्रकार से की जा सकती है-
मातृदेवी की पूजा - मातृदेवी अर्थात सिंधु सभ्यता की खुदाई में मिली एक मूर्ति का नाम है, मातृदेवी के अनेक मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं। एक मूर्ति एक अर्धनग्न स्त्री को चित्रित करती हैं, जिसके सिर पर टोपी और गले में हार तथा कमर में तगड़ी है। मातृदेवी को 'माता' 'अंबा' 'काली' एवं 'कराली' आदि नामों से जाना जाता था होगा।
योनि पूजा - खुदाई में प्राप्त सीप, मिट्टी, पत्थर आदि के बने छ्ल्लों से यह प्रतीत होता है कि वे लोग योनि पूजा भी करते थे।
शिव पूजा- हड़प्पा की खुदाई में ऐसी मूर्तियां प्राप्त हुई है, जिससे शिव उपासना के विषय में ज्ञान होता है। इस मूर्ति के अतिरिक्त हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से अनेक लिंग मिलना भी इस बात की पुष्टि करता है कि शिव सिंधु सभ्यता निवासियों के एक प्रमुख देवता थे। यह लिंग पत्थर मिट्टी तथा शिव के बने हुए हैं वह विभिन्न आकारों के हैं, कुछ अत्यंत छोटे हैं, व कुछ 4 फुट लंबे हैं।
पशु पूजा- सिंधु सभ्यता में अनेक मुद्राओं पर बैल, भैंस आदि पशुओं के चित्र मिलते हैं। जिनसे उस समय पूजा किए जाने का अनुमान किया जाता है, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु के वासी नाग, कबूतर, बकरा, बैल, आदि पशुओं की पूजा करते थे।
सूर्य पूजा- कुछ मुद्राओं पर सूर्य के चिन्ह वास्तविक एवं पहिया प्राप्त हुए हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु निवासी सूर्य पूजा भी करते थे।
वृक्ष पूजा- सिंधु सभ्यता में कुछ मोहरों पर पीपल का वृक्ष देवी अथवा वृक्ष देवता आदि अंकित मिलते हैं, जिनमें यह प्रमाणित होता है कि उस समय वृक्ष पूजा भी किया जाता होगा। उस समय नीम खजूर शीशम बबूल आदि वृक्षों की पूजा की जाती थी होगी। और सर्वाधिक पवित्र पीपल का पेड़ माना जाता होगा।
नदी पूजा- नदी पूजा की जानेकिए जाने का कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता है लेकिन विशाल स्नान ग्रह हुआ स्नान कुंडों को देखकर इतिहासकारों का विचार है कि उस समय जल पूजा की जाती थी विशाल स्नान कुंड को नदी देवता का प्रतीक माना जाता रहा होगा।
अन्य प्रथाएं- सिंधु सभ्यता के अवशेषों से यह ज्ञात होता है कि आधुनिक युग के समान वे लोग भी पूजा में धूप व अग्नि का प्रयोग करते थे। पूजा करते समय गाने बजाने के भी संकेत मिलते हैं, और इसके अलावा अनेकता ताबीजों के प्राप्त होने से कुछ इतिहासकारों का कहना है कि सिंधुवासी अंधविश्वासी भी थे।
मृतक संस्कार- कुछ समय पहले तक सिंधु सभ्यता मृतक संस्कारों के विषय में कुछ भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी, लेकिन 1946 में हड़प्पा की खुदाई में पता लगाया कि उस समय कब्र में मुर्दे की प्रथा थी। मोहनजोदड़ो की खुदाई से ज्ञात होता है कि सिंधु निवासी धार्मिक विश्वासों के आधार पर तीन प्रकार से मृतक का अंतिम संस्कार करते थे-
1. पूर्ण समाधि- इसमें मृता को अनेक वस्तुओं के साथ भूमि में गाड़ कर समाधि बनाई जाती थी।
2. आंशिक समाधि- इस विधि में पहले मृतक को पशु पक्षियों का आहार बनने के लिए खुले स्थान पर छोड़ा जाता था और बाद में उसकी अस्थियों को पात्र में रखकर भूमि में रखा जाता था।
3. दाह कर्म- इस विधि में शव को जलाकर उसकी राख हस्तियों को कलश में रखकर भूमि में गाना जाता था ऐसे अनेक कलश प्राप्त होने से इतिहासकारों ने लगाया है। उस समय अंतिम संस्कार की यह विधि भी सर्वाधिक प्रचलित रही होगी।
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना का वर्णन करें
नगर योजना एवं वस्तु कला से संबंधित इस प्रकार से जानकारियां एकत्रित हुई हैं-
1. नगर योजना- सिंधु सभ्यता की प्रमुख विशेषता अत्यंत सुनियोजित नगरों का निर्माण किया जाना है। खुदाई से प्राप्त अवशेषों को देखकर इतिहासकारों का यह मानना है कि सिंधु सभ्यता के नगर नदियों के किनारे बसाये गए थे। हड़प्पा रवि तथा मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के किनारे स्थित है। नदियों से नगर की सुरक्षा करने के लिए बांधों का निर्माण कराया गया था। नगरों के अवशेषों को देखकर ऐसा लगता है कि मानो यह नगर कुशल इंजीनियरों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए हों। सड़कें कच्ची थी, लेकिन कच्ची सड़के होने के पश्चात भी साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखा जाता था होगा। कहीं-कहीं पर सडकों के किनारे चबूतरे बने हैं संभवत: यहां दुकानें भी लगती होंगी।
सड़क के किनारे नाliy होती थी जो पक्की एवं ढकी हुई थी। प्रत्येक गली में भी नाली होती थी जो सड़क की नाली से मिलती थी। इन नालियों को बनाने के लिए पत्थर, ईंटों व चूने का प्रयोग किया जाता था।
2. भवन निर्माण— नगर निर्माण के समाज सिंधु सभ्यता निवासी भवन निर्माण में भी निपुण थे। इसकी पुष्टि हड़प्पा मोहनजोदड़ो आदि से प्राप्त अवशेषों से होती है। इनके द्वारा निर्मित मकानों में सुख सुविधाओं की पूर्ण व्यवस्था थी। भवनों का निर्माण भी सुनियोजित ढंग से किया जाता था इनके भवन निर्माण ओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है-
A. साधारण भवन- साधारण लोगों के रहने के मकानों का निर्माण सड़क के दोनों ओर किया- इन मकानों का आकार आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा होता था। मकान कच्चे व पक्के दोनों प्रकार के बनाए जाते थे। खुदाई से प्राप्त कुछ मकान ऐसे भी मिले हैं जिनमें दो ही कमरे हैं। मकान एक से अधिक मंजिल के भी होते थे ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए पत्थरों की सीढ़ियां बनाई थी। खिड़कियां एवं दरवाजे गलियों में खुलते थे। मुख्य सड़क की ओर दरवाजे व खिड़कियां ना होने का कारण संभवत धूल को मकान में आने से रोकना था।
B. सार्वजनिक एवं राजकीय भवन- सिंधु सभ्यता संबंधित देशों के खुदाई के परिणाम स्वरुप तथ्य सामने आया है कि यहां मकानों के अलावा राजकीय एवं सर्वजनिक भवन भी थे। मोहनजोदड़ो में एक गड्डी थी जिसका निर्माण पहाड़ी पर किया गया था। बढ़ो से रक्षा करने के लिए चारों ओर एक ऊंचा बांध था। इनमें अनेक मीनारें थी। गड्ढे के अंदर ऊंचे चबूतरे पर सुंदर भावनाओं का निर्माण किया गया था।
C. अन्न भंडार गृह- हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में कुछ विशाल भवन मिले हैं जिन्हें अन भंडार गृह मानते हैं। मोहनजोदड़ो में सार्वजनिक भोजनालय के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
3. सार्वजनिक स्नानागार- मोहनजोदड़ो की खुदाई में एक विशाल स्नानागार का भी पता चला है। इस स्नानागार का भवन अत्यंत भव्य है। स्नान कुंड पानी को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था की गई थी। इससे अनुमान लगाया जाता है कि समय-समय पर जलाशय की सफाई की जाती होगी। जलाशय के पास ही एक कुआं है जिसे जलाशय में पानी भरा जाता होगा।
Yes of course you can do it.
ReplyDeleteThankyou' for your Love & Support..😘😘😘 ...
DeleteHave a Good Day... Keep supporting me like this.
Pr aapko nishkarsh bhi lekha hota h.
ReplyDeleteHannn
DeleteSo good answer love for your
ReplyDeleteThankyou❤️❤️❤️for your Support and love you & Have a good Day...
DeleteThankyou sir 🙏
ReplyDeleteWelcome' Have a good Day...
DeleteRight sindhu sabhyata me gai ka varan nhe mila hai
DeleteThoda book ke base p likho qki sindhu sabhyata m gay ka bare m koi jankaari nhi milti
ReplyDeleteProject help ke liye thank you so much sir
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