सामाजिक स्तरीकरण किसे कहा जाता है?
समाज के संपूर्ण सदस्यों को उच्च या निम्न स्थिति में बांट दिया जाता है जब यह विभाजन समाज द्वारा स्वीकृत कर लिया जाता है तो उसे सामाजिक स्तरीकरण (samajik starikaran) कहा जाता है।
सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ
सामाजिक स्तरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्तियों के समूहों को उच्च एवं निम्न स्थिति में विभक्त कर दिया जाता है, और जब यह विभाजन समाज द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उसे सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं।
सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषा | definition of social stratification
सदरलैंड तथा वुडवर्ड के अनुसार - “स्तरीकरण साधारण शब्दों में वह अंतः क्रिया अथवा विभेदीकरण की प्रक्रिया है, जिसमें कुछ व्यक्तियों को दूसरे व्यक्तियों की तुलना में उचित स्थान प्राप्त होता है उसे सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं।”
रेमण्ड मुरे के अनुसार - “स्तरीकरण समाज का उच्च एवं निम्न सामाजिक इकाइयों में किया गया क्रमागत विभाजन है।”
उपर्युक्त विद्वानों के विचारों से स्पष्ट होता है कि सामाजिक स्तरीकरण का आशय उस श्रेणीकरण से है जिसमें समाज के सभी सदस्य उच्च एवं निम्न क्रमानुसार इस प्रकार सजे रहते हैं, जिससे समाज व्यवस्था सुचारु रुप से संचालित होती रहती है।
उदाहरण:- उदाहरण के लिए हम प्रदेश स्तर की पुलिस संरचना को ले सकते हैं, जिसमें सबसे ऊंचा स्तर पुलिस महानिदेशक (I. G.), फिर पुलिस उपमहानिरीक्षक (D. I. G.), और उसके बाद पुलिस अधीक्षक (S. P.), फिर पुलिस अधिक सहायक अधीक्षक (A.S.P.), फिर थाना प्रभारी इंस्पेक्टर (S.O.), फिर इंस्पेक्टर (S.I.), फिर सहायक इंस्पेक्टर (A.S.I.), फिर हवलदार व अंतिम और सबसे निम्न स्थिति सिपाही की होती है। इस प्रकार के स्तरीकरण से पुलिस व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जाता है। आशा करता हूं आपको सामाजिक स्तरीकरण ठीक से समझ में आ गया होगा।
सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएं बताइए | Describe the features of social stratification
1. सामाजिक स्तरीकरण की प्रकृति सामाजिक है- सामाजिक स्तरीकरण कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण समाज में व्याप्त है। सामाजिक स्तरीकरण को समझने के लिए समाज में व्यक्तियों को प्राप्त विभिन्न पदों एवं परिस्थितियों के आधार पर ही समझा जा सकता है। सामाजिक संस्थाएं जैसे:- धर्म, शिक्षा, परिवार, विवाह एवं राजनीति आदि भी समाज में स्तरीकरण उत्पन्न करती है।
2. सामाजिक स्तरीकरण प्राचीनतम पद्धति है- स्तरीकरण समाज में अति प्राचीन काल से ही विद्यमान रहा है। मार्क्स की मान्यता है कि प्रत्येक युग में समाज में दो वर्ग रहे हैं— एक श्रमिक और दूसरा पूंजीपति। इस प्रकार वर्ग स्तरीकरण प्रत्येक समाज में सदैव से विद्यमान रहा है।
3. सामाजिक स्तरीकरण प्रत्येक समाज में पाया जाता है- आदि काल से लेकर आज तक कोई भी ऐसा समाज नहीं है जिसमें स्तरीकरण ना पाया गया हो। इसके आधारों एवं स्वरूप में अंतर हो सकता है, लेकिन सामाजिक स्तरीकरण सभी जगहों पर विद्यमान रहा है।
4. सामाजिक स्तरीकरण के विभिन्न स्वरूप हैं- विश्व के सभी समाजों और सभी कार्यों में सामाजिक स्तरीकरण का समान स्वरूप नहीं रहा है लेकिन देश एवं काल के अनुसार इनके अनेक स्वरूप देखे जा सकते हैं। अति प्राचीन काल में सामाजिक स्तरीकरण का सरलतम आधार आयुर्वेद और शारीरिक शक्ति था। भारत में जाति प्रथा के आधार पर स्तरीकरण पाया जाता था और यूरोप में वर्ग व्यवस्था एवं अर्जित गुणों को अधिक महत्व दिया गया था। मध्य युग में दास एवं स्वामी स्तरीकरण के दो प्रमुख स्वरूप थे। अफ्रीका एवं अमेरिका में प्रजाति भेद भाव का लंबे समय से प्रचलन रहा है। इस प्रकार सभी समाजों में स्तरीकरण का प्रचलन इन्हीं सामान्य नियमों द्वारा ना हो कर स्थान परिस्थिति एवं स्वीकृति द्वारा प्रभावित रहा है।
5. सामाजिक स्तरीकरण परिणामिक है- ट्यूमिन कहते हैं कि सामाजिक स्तरीकरण परिणामिक है। यह समाज में आज समानता उत्पन्न करता है। इस असमानता को हम जीवन जीने के अवसर तथा जीवन शैली में देख सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन जीने के अवसर एवं शैली स्तरीकरण के स्वरूपों के आधार पर अलग-अलग होते हैं। किसी व्यक्ति को कितनी शक्ति, संपत्ति एवं मानसिक संतोष प्राप्त होगा यह समाज में उसके स्तर पर निर्भर है। विभिन्न स्तरों में मृत्यु दर, लंबी आयुस शारीरिक एवं मानसिक रोग संतानों की संख्या, व्यवहारिक संघर्ष, तालाक आदि में भी भिन्नता पाई जाती है। एक व्यक्ति किस प्रकार के मकान एवं पड़ोस में रहेगा किस प्रकार के मनोरंजन के साधन अपनाएगा, माता-पिता से उसके संबंध कैसे होंगे, किस प्रकार की शिक्षा एवं पुस्तकों का प्रयोग करेगा या उसके सामाजिक स्तर पर निर्भर करता है। प्रत्येक स्तर के जीवन अवसर एवं शैली में विभिन्नता पाई जाती है।
सामाजिक स्तरीकरण के आधारों का वर्णन कीजिए
स्तरीकरण के सभी आधारों को हम प्रमुख रूप से दो भागों में बांट सकते हैं—
1. प्राणीशास्त्रीय आधार- समाज में व्यक्तियों एवं समूह की उच्च एवं निमृता का निर्धारण प्राणी शास्त्री आधार पर किया जाता है। प्रमुख प्राणी शास्त्री आधारों में हम लिंग, आयु, प्रजाति एवं जन्म आदि को ले सकते हैं।
- लिंग- लिंग के आधार पर स्त्री और पुरुष के रूप में समाज का स्तरीकरण सबसे प्राचीन है। लगभग सभी समाजों में पुरुषों की स्थिति में स्त्रियों से ऊंची मानी जाती रही है, कई पद ऐसे हैं जो केवल पुरुषों के लिए ही निर्धारित हैं जैसे:- सेना में स्त्रियों को नहीं लिया जाता परंपरा के अनुसार अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी स्त्री नहीं बन सकती यद्यपि संवैधानिक रूप से ऐसी कोई अड़चन नहीं है।
- आयु- प्रत्येक समाज में कई पद ऐसे हैं जो एक निश्चित आयु के व्यक्तियों को ही प्रदान किए जाते हैं। आयु के आधार पर समाज के प्रमुख चार स्तर शिशु, किशोर, प्रौढ़ और वृद्ध पाए जाते हैं। सामान्यता यह महत्वपूर्ण पद बड़ी आयु के लोगों को प्रदान किए जाते हैं। भारत में परिवार जाति एवं ग्राम पंचायत के मुखिया का पद बड़ा होता है। यह माना जाता है कि आयु और अनुभव का घनिष्ठ संबंध है। इसलिए उत्तरदायित्व के कार्य अनुभवी एवं वृद्ध व्यक्तियों को सौंपे जाते हैं।
- प्रजाति- प्रजाति के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण देखा जा सकता है जहां एक से अधिक प्रजातियां साथ साथ रहती हैं। जिस प्रजाति के लोग शासन एवं सत्ता में होते हैं तथा संपन्न होते हैं वह प्रजाति अपने को दूसरी प्रजातियों से श्रेष्ठ मानी जाती है। अमेरिका और अफ्रीका में गोरी प्रजाति ने काली प्रजाति से अपने को श्रेष्ठ घोषित किया है और उसे अनेक सुविधाएं एवं विशेष अधिकार प्राप्त है। अमेरिका का राष्ट्रपति नीग्रो प्रजाति का कोई व्यक्ति नहीं बन सकता है।
- जन्म- जन्म भी सामाजिक स्तरीकरण उत्पन्न करता है। जो लोग उच्च कुल वंश एवं जाति में जन्म लेते हैं वह अपने को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं।
- शारीरिक व बौद्धिक कुशलता- वर्तमान समय में व्यक्ति की परिस्थिति एवं स्तर का निर्धारण उसकी शारीरिक एवं मानसिक कुशलता योग्यता एवं क्षमता के आधार पर होने लगता है। जो लोग कुशल नहीं हैं तथा पागल एवं आलसी योग्य होते हैं, उनका स्तर उन लोगों से नीचे होता है, और जो बुद्धिमान, परिश्रमी एवं कुशल होते हैं। साम्यवादी देशों में भी इन गुणों के आधार पर स्तरीकरण देखा जा सकता है।
2. सामाजिक सांस्कृतिक आधार- सामाजिक स्तरीकरण प्राणी शास्त्री आधारों पर ही नहीं लेकिन अब अनेक सामाजिक संस्कृतिक आधारों पर भी पाया जाता है उनमें से प्रमुख इस प्रकार से हैं_
- संपत्ति- संपत्ति के आधार पर भी समाज में स्तरीकरण किया जाता है। आधुनिक समाजों में ही नहीं लेकिन आदि काल के समाजों में भी संपत्ति के आधार पर ऊंच-नीच का भेद पाया जाता है। समाज में वे लोग ऊंचे माने जाते हैं जिनके पास अधिक धन संपत्ति होती है। वे सभी प्रकार की विलासिता एवं सुख सुविधाओं की वस्तुएं खरीदने की क्षमता रखते हैं। इसके विपरीत गरीबी तथा संपत्ति हिना की स्थिति निम्न होती है। संपत्ति के घटने एवं बढ़ने के साथ-साथ समाज में व्यक्ति का स्तर भी घटता बढ़ता रहता है।
- व्यवसाय- व्यवसाय भी सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख आधार है। समाज में कुछ व्यवसाय सम्मानजनक एवं ऊंचे माने जाते हैं तो कुछ निम्न। डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासक, प्रध्यापक आदि का पेशा, बाल काटने, कपड़े धोने और चमड़े का काम करने वालों के पेशों से श्रेष्ठ एवं सम्मानीय माना जाता है। अतः इन पेशों के करने वालों की स्थिति भी सामाजिक स्तरीकरण में ऊंची होती है।
- धार्मिक ज्ञान- धर्म प्रधान समाजों में धर्म भी सामाजिक स्तरीकरण उत्पन्न करता है। जो लोग धार्मिक कर्मकांडों में भाग लेते हैं, धार्मिक उपदेश देते हैं एवं धर्म के अध्ययन में निहित रहते हैं, उन्हें सामान्य लोगों से ऊंचा माना जाता है।
- राजनीतिक शक्ति- सत्ता एवं अधिकारों के आधार पर भी समाज में स्तरीकरण पाया जाता है। जिन लोगों के पास सैनिक शक्ति सत्ता और शासन होती है उनकी स्थिति उन लोगों में ऊंची होती है जो सत्ता एवं शक्ति विहीन होते हैं, शासन और शासित का भेद सभी समाज में पाया जाता है।
सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार | Samajik starikaran ke prakar
1. दास प्रथा- दास प्रथा आ समानता के चरम रूप का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें व्यक्तियों के कुछ समूह पूर्ण रूप से अधिकारों से वंचित रखते हैं। अनेक स्थानों पर दास प्रथा का प्रचलन रहा है, किंतु प्राचीन समय में यूनान और रोम में 18 वीं एवं 19वीं सदी में दक्षिणी अमेरिका में इसका प्रमुख रूप से प्रचलन रहा है। एक व्यक्ति जिसे कानून और तथा दूसरे की संपत्ति मानते हैं। प्रत्येक दास का एक स्वामी होता है, जिसके अधीन उसे रहना पड़ता है और अधीनता विशेष प्रकार की होती है। स्वामी को दास पर शक्ति प्रयोग करने की स्वतंत्रता होती है। दास स्वामी की संपत्ति होती है। दास को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं होते। सामाजिक रूप से वह वंचित होता है। दास को अनिवार्य रूप से श्रम करना पड़ता है।
2. जागीरें- जागीर प्रथा का प्रचलन मध्ययुगीन यूरोप में रहा है जिससे प्रथा एवं कानून की मान्यता प्राप्त थी जागीर प्रथा में 3 वर्ग मुख्य थे—पादरी, सरदार एवं जन साधारण प्रत्येक वर्ग की जीवन शैली एवं संस्कृति अलग थी। सामाजिक स्तरीकरण में सर्वोच्च स्थान पादरियों का था, क्योंकि उस समय राज्य भी चर्च के अधीन था। नियम अनुसार तो पादरी सर्वोच्च थे किंतु उन्हें कोई पद प्राप्त नहीं था इसलिए वे व्यवसायिक रूप में राजवंश के सरदारों के नीचे माने जाते थे। पादरियों को उपाधियां दी गई थी वे सरदारों से कोई संबंध नहीं रखते थे कई पादरी अविवाहित थे अतः उनका कोई परिवार नहीं था। परिवार जो कि समाज स्तरीकरण की इकाई माना गया है। पादरियों कि सामाजिक स्थिति स्पष्ट नहीं थी फिर भी उनके माता-पिता के परिवार के आधार पर उनकी स्थिति निर्धारण किया जा सकता है ।
3. बंद स्तरीकारण : जाति प्रथा— जब हम जातिगत संस्तरण की चर्चा करते हैं तो हमारा ध्यान भारतीय जाति व्यवस्था की ओर जाता है इसका कारण यह नहीं है कि केवल भारत में ही जाति प्रथा पाई जाती है या इसकी पूर्ण रूप यही विद्यमान है। वरन इसका कारण यही है कि भारत में जाति प्रथा की पराकाष्ठा है। भारतीय जाति व्यवस्था का उनके विद्वानों में अध्ययन किया है कि जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसका सदस्यता जन्म जात होती है प्रत्येक जाति का एक नाम और एक व्यवसाय होता है। किस जाति के लोगों का एक वंश गत पेशा होता है और एक जाति के सदस्य अपनी ही जाति में विवाह करते हैं इसका प्रकार प्रत्येक जाति की एक जीवन शैली होती है।
4. खुला स्तरीकरण : सामाजिक वर्ग- वर्ग सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख स्वरूप है लगभग सभी समाजों में वर्ग व्यवस्था पाई जाती है। सामाजिक प्रस्थिति वाले व्यक्तियों के समूह को एक वर्ग कहा जाता है। अब सवाल आता है वर्ग किसे कहते हैं? तो वर्ग, किसी भी आधार पर समाज में समूहों का निर्माण वर्ग कहलाता है। वर्गों का आधार आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक भी है। वर्ग को परिभाषित करते हुए ऑगबर्न लिखते हैं- “एक सामाजिक वर्ग ऐसे व्यक्तियों का योग है जिनकी एक समाज में अनिवार्य रूप से समान सामाजिक स्थिति होती है।”
सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत | Samajik starikaran ke Siddhant
सामाजिक स्तरीकरण के सामान्य सिद्धांत का प्रदुर्भाव दो विचारधारा वाले विद्वानों के प्रयास से हुआ है।
- पहले विचारधारा ने ऐतिहासिक स्तरीकरण के सिद्धांत को प्रस्तुत किया है जिसके प्रवर्तक कार्ल मार्क्स, मैक्स वेबर तथा बर्नर हैं।
- दूसरी विचारधारा वाले पारसंन्स व किंग्सले डेविस हैं। जिन्होंने प्रकार्यवादी सिद्धांत को विकसित करने का प्रयत्न किया।
यहां हम सबसे पहले ऐतिहासिक स्तरीकरण के सिद्धांत को जानेंगे_
मैक्स वेबर का सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धांत | Max Weber ka samajik starikaran ka Siddhant
मैक्स वेबर का कहना है कि— “समाज में पाई जाने वाली आसमान शक्ति की एक संगठित अभिव्यक्ति सामाजिक स्तरीकरण है।”
समाज के सभी सदस्यों में शक्ति का बंटवारा समान रूप से ना होकर आसमान रूप से होता है अर्थात किसी को कम शक्ति और किसी को अधिक शक्ति प्राप्त होती है। समाज में समान शक्ति वाले व्यक्तियों के समूह को वर्ग कहा जाता है। भिन्न-भिन्न वर्गों में शक्ति का विभाजन जिस रूप में होता है उसी के अनुसार समाज में सामाजिक स्तरीकरण या ऊंच-नीच उत्पन्न होता है। मैक्स वेबर का सामाजिक स्तरीकरण का यही सिद्धांत है।
शक्ति के संबंध में मैक्स वेबर का कहना है कि शक्ति से हमारा तात्पर्य उस अवसर से है जिसको एक व्यक्ति या अनेक व्यक्ति अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए सामूहिक क्रिया में भाग लेने दूसरे व्यक्तियों द्वारा विरोध करने पर भी प्राप्त कर लेते हैं। मैक्स वेबर की यह मान्यता है कि जिस प्रकार से सामाजिक प्रतिष्ठा किसी समुदाय के विशेष समूह में विभक्त रहती है उसी प्रकार से उसके अनुरूप ही सामाजिक स्तरीकरण का निर्धारण होता है। मैक्स वेबर के संस्थापक रूप से तीन प्रकार की शक्तियों को स्पष्ट किया है आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक शक्ति। मैक्स वेबर ने निम्न प्रकार से स्पष्ट किया है-
1. आर्थिक क्षेत्र में स्तरीकरण— मैक्स वेबर ने आर्थिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण को आर्थिक शक्ति के वितरण के अनुसार बतलाया है। समान आर्थिक हितों तथा समान आर्थिक शक्ति वाले व्यक्ति अपने एक वर्ग का निर्माण करते हैं जिनमें उसका तथा नियमित का अन्य वर्गों के साथ संस्तरण होता है। मैक्स वेबर इस बात से सहमत हैं कि आर्थिक आधार पर समाज को दो भागों में बांटा जा सकता है। पूंजीपति वर्ग अर्थात जिनके पास संपत्ति है तथा संपत्ति की शक्ति का अधिकारी है और दूसरा संपत्तिविहींन वर्ग जो सेवा कार्य में संलग्न रहता है। मैक्स वेबर ने इसके आगे भी इन वर्गों में भी बिना आधार पर वर्ग विभाजन करके स्तरीकरण को स्पष्ट किया है। जैसे संपत्ति के आधार पर वर्ग विभाजन इसके अंतर्गत जमींदार वर्ग, उद्योगपति वर्ग आदि प्रकार के वर्ग निर्मित होते हैं।
2. सामाजिक क्षेत्र में स्तरीकरण— मैक्स वेबर ने सामाजिक क्षेत्र में सामाजिक प्रस्थिति में सामाजिक स्तरीकरण का आधार माना है। समाज में जो व्यक्ति एक समान सामाजिक प्रतिष्ठा का सम्मान तथा सामाजिक स्थिति रखते हैं वह सभी एक ही प्रस्थिति समूह के सदस्य होते हैं। सामाजिक संरचना के अंतर्गत प्रत्येक प्रस्थिति समूह का अपना-अपना अलग स्थान निर्धारित होता है जिसका निर्धारण समाज तथा समुदाय के द्वारा किया जाता है। समाज के द्वारा ही यह निश्चित किया जाता है कि कौन से प्रस्थिति समूह को उच्च माना जाएगा तथा कौन से प्रस्थिति समूह को निम्न माना जाएगा। इस प्रकार सामाजिक संरचना के अंतर्गत समाज या समुदाय के निर्देश अनुसार विभिन्न प्रस्थिति समूह उच्च और निम्न के संस्करण में स्थित हो जाते हैं।
3. राजनैतिक क्षेत्र में स्तरीकरण— राजनैतिक क्षेत्र में किसी व्यक्ति की प्रस्तुति उसकी राजनीतिक शक्ति के आधार पर निर्धारित होती है तथा राजनैतिक शक्ति का प्राप्त होना उस राजनीतिक दल पर निर्भर करता है जिस दल का व्यक्ति सदस्य होता है। यदि कोई व्यक्ति उस राजनीतिक दल का सदस्य होता है जिसकी सत्ता होती है तो अधिक शक्तिशाली होगा और जिसकी समाज में उच्च स्थिति होगी और यदि व्यक्ति उस राजनीतिक दल का सदस्य होता है जिसकी सत्ता नहीं होती तो समाज में उसकी प्रस्थिति राजनीतिक क्षेत्र में निम्न होती है। इस प्रकार राजनीतिक क्षेत्र में राजनैतिक शक्ति के आधार पर व्यक्ति या समूह की प्रतिथि का निर्धारण होता है। और उसी के अनुरूप राजनीतिक क्षेत्र में सामाजिक स्तरीकरण होता है।
अभी हम प्रकार्यवादी सिद्धांत के बारे में जानेंगे
पारसन्स का सिद्धांत
प्रकार्यवादी सिद्धांतों में पारसन्स सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धांत एक प्रमुख सिद्धांत माना जाता है। और यहां पर हम प्रकार्य वादी सिद्धांत ओं में मात्र पार्सेंट के सिद्धांत की विस्तृत विवेचना करके सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी दृष्टिकोण को भलीभांति समझेंगे।
1. गुण- पारसन्स ने गुण के अंतर्गत जन्मजात गुणों को माना है जो व्यक्ति को अपने आप जन्म लेने के बाद बिना किसी प्रयास के समाज और समुदाय द्वारा प्रदान किए जाते हैं। उदाहरण के लिए जैसे; जाति गुण, वशं गुण आदि। एक शूद्र की स्थिति जातिगत सामाजिक संस्थान में निम्न तथा ब्राह्मण की सर्वोच्च होने के कारण शूद्र परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति की स्थिति जातीय गुण के अनुसार निम्न तथा ब्राह्मण की सर्वोच्च होगी क्योंकि हिंदू वर्ण और जाति व्यवस्था की परंपरा के अनुसार ब्राह्मण को सर्वोच्च और शूद्र को निम्न माना जाता है।
2. अर्जित गुण- व्यक्ति व्यवहार कुशलता को अपने स्वयं के प्रयास द्वारा प्रशिक्षण शिक्षण कार्य अनुभव के आधार पर अर्जित करता है जिसके अनुसार उसके व्यक्तित्व का विकास होता है तथा इसी व्यवहार कुशलता के आधार पर व्यक्ति की क्रियाओं का दूसरों की क्रियाओं की तुलना के संदर्भ में मूल्यांकन किया जाता है तथा इसी के अनुरूप समाज में व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण होता है। इस प्रकार विभिन्न व्यक्तियों द्वारा अपने अपने प्रयत्नों से अर्जित व्यवहार कुशलता के आधार में अलग-अलग प्रकार की स्थितियों का निर्धारण होता है। इस प्रकार व्यवहार कुशलता में पाई जाने वाली विभिन्नता के कारण व्यक्ति की विभिन्न परिस्थिति में ऊंच-नीच का संस्तरण बनता है।
3. संपत्ति- व्यक्ति के पास अपने कुछ संपत्ति होती है जिससे वह अपने लिए प्राप्त करता है जो मात्र भौतिक वस्तुओं अर्थात धन, दौलत, मकान, जमीन संपत्ति से संबंधित नहीं होती है, बल्कि व्यक्ति की विशेषताओं के कौशल से भी संबंधित होती है। समाज के अंतर्गत व्यक्ति की अपनी वह संपत्ति सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों आदर्शों एवं मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति की परिस्थिति का निर्धारण करती है। और यह स्पष्ट है कि सामाजिक स्तरीकरण में और सामाजिक स्तर के निर्धारण में यह अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
पारसन्स के अनुसार उपयुक्त तीन आधारों पर समाज में सामाजिक स्तरीकरण होता है। यह समाज विशेष पर निर्भर करता है कि इन आधारों को सामाजिक स्तरीकरण के निर्धारण में किस प्रकार से लागू किया जाए। प्रया: समाज में इन आधारों को समाज की मान्यताओं, आदर्शों उद्देश्यों, मूल्यों आदि के अनुरूप लागू किया जाता है। जैसे धर्म पर आधारित समाज में धर्म से संबंधित व्यवहार कुशलता तथा पूंजीवादी समाज में पूंजी या अर्थ से संबंधित व्यवहार कुशलता ओं का सामाजिक रूप से अत्यधिक महत्व होगा।
आईये आपका इंतजार है:-
- सामाजिक परिवर्तन क्या है, अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, कारण, सिद्धांत
- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकार
- सामाजिक उद्विकास को समझाइए, अर्थ, परिभाषा, विशेषता
Good 👍 sir
ReplyDeleteVery very nice explanation
Deleteमै ias की तैयारी मैं हूँ
ReplyDeleteमेरे ऑप्शनल समाजशास्त्र hai
जिसके इकाई 5 को आपने काफ़ी सराहनीय लेख मैं समजाया
धन्यवाद 🥰🥰
Thankyou ❤️❤️
DeleteBhai aap kha se kr rhe ho optional ki teyari
DeleteThank u aaj mera b.a first year ka exam so I am very thankful to u 💓
ReplyDeleteVery well detailed thanks 🙂
ReplyDelete