सामाजिक मूल्य क्या है समझाइए
सामाजिक मूल्य एक आंतरिक गुण है, मानव इसको सामाजिकरण की सामाजिक, सांस्कृतिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से प्राप्त करता है। प्रत्येक समाज में अपने कुछ आदर्श तथा लक्ष्य होते हैं। इन आदर्शों और लक्ष्यों को उसी दशा में पूरा किया जा सकता है, जबकि समाज के सदस्यों के लिए कुछ निश्चित मान निर्धारित कर दिए जाएं। इस प्रकार वास्तव में सामाजिक मान ही सामाजिक मूल्य है।
सामाजिक मूल्यों का अर्थ
सामाजिक मूल्य व सामाजिक मानक होते हैं जिनके आधार पर अलग अलग सामाजिक दशाओं का मूल्यांकन किया जाता है। यह हमारे लिए कुछ मायने रखते हैं और इन्हें हम अपने समाज और सामाजिक जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। सामाजिक संगठन और समाज के अस्तित्व में सामाजिक मूल्यों का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
सामाजिक मूल्यों की विशेषताएं
1. सार्वभौमिक - सार्वभौमिक का अभिप्राय है कि मूल्य सभी समाजों में पाए जाते हैं लेकिन मूल्यों की प्रकृति सर्वभौमिक नहीं होती है, उदाहरण के लिए विवाह सार्वभौमिक है, परंतु विवाह से संबंधित सामाजिक मूल्य सार्वभौमिक नहीं होते हैं। हिंदू समाज में विवाह एक धार्मिक संस्कार माना गया है, परंतु मुस्लिम समाज में इसे एक सामाजिक समझौता माना गया है। इस प्रकार विवाह सर्वभौमिक होते हुए भी उसकी प्रकृति सार्वभौमिक नहीं है।
2. परिवर्तनशील - समय के अनुसार मूल्यों में परिवर्तन होता रहता है, जो मूल्य आज विद्यमान है वह आवश्यक नहीं कि कल भी रहेगा अतः भावी समाज का निर्माण करना है तो मूल्यों का अध्ययन किया जाना आवश्यक है। समाजशास्त्र के द्वारा सार्वभौमिक मूल्यों आदर्शों तथा प्रतीकों का अध्ययन व्याख्या तथा पोषण किए बिना समाज का निर्माण नहीं हो सकता है।
3. सामाजिक व्यवहार में एकता- समाजशास्त्र को मूल्यों से संबंधित बताया है, मूल्यों के संघर्ष एवं सहयोग पर सभी सामाजिक संबंध और व्यवहार पर आधारित है।
सामाजिक मूल्य के विभिन्न सोपान
डॉक्टर राधा कमल मुखर्जी के अनुसार- सभी मूल्य एक ही स्तर के नहीं होते बल्कि इसमें एक संस्करण देखने को मिलता है इस संस्करण का संबंध मूल्यों के आयामों से होता है यह आयाम मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
1. जैविक आयाम - इसमें स्वास्थ्य, जीवन निर्वाह, कुशलता व सुरक्षा आदि से संबंधित होते हैं।
2. सामाजिक आयाम - इसके अंतर्गत धन-संपत्ति पद तथा प्रेम, न्याय आदि से संबंधित होते हैं।
3. आध्यात्मिक आयाम - इसके अंतर्गत सत्य, सुंदरता, सुसंगती तथा पवित्रता आदि से संबंधित होते हैं।
इन सभी मूल्यों में आध्यात्मिक मूल्य सर्वोच्च होता है, क्योंकि इसका विशिष्ट गुण है जो लोकातित मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। द्वितीय स्थान पर सामाजिक मूल्यों का होता है, जो साधन मूल्य बाह्य मूल्य व क्रियात्मक मूल्य कहलाते हैं। जिनका उद्देश्य सामाजिक संगठन व व्यवस्था को बनाए रखना है। और तीसरे स्थान पर जैविक मूल्यों का होता है। जो जीवन को बनाए रखने तथा उसे तीव्र गति देने के लिए होते हैं। इस कारण इन्हें भी साधन मूल्य और क्रियात्मक मूल्य कहा जाता है।
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