बिस्मार्क की विदेश नीति

 बिस्मार्क की विदेश नीति को समझाइए

        तो  हेल्लो स्टूडेंट्स आज हम बिस्मार्क की विदेश नीति की विवेचना कीजिए के बारे में चर्चा करेंगे। इसके पिछले पोस्ट में हमने बिस्मार्क की गृह नीति  के बारे में चर्चा की थी, अगर इसके बारे में आपने नहीं पढ़ा तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं, और आज हम बिस्मार्क की विदेश नीति की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए के बारे में देखेंगे तो चलिए शुरू करते हैं|बिस्मार्क की विदेश नीति का मूल्यांकन कीजिए|

बिस्मार्क की विदेश नीति

1. त्रि-राष्ट्र संघ- ऑस्ट्रिया और फ्रांस दोनों में जर्मनी द्वारा प्रायोजित किए जा चुके थे। बिस्मार्क को या आशंका थी कि कहीं ऑस्ट्रिया एवं फ्रांस दोनों मिलकर उनके ऊपर आक्रमण ना कर दें। अतः सन 1872 ई. में बर्लिन में ऑस्ट्रिया के सम्राट रूस के जार एवं जर्मनी सम्राट के मध्य एक समझौता किया गया एवं 3 सम्राट संघ का निर्माण किया गया कोई निश्चित संधि नहीं थी, लेकिन एक समझौता मात्र था।

संघ के निर्णय-

    1. 1871 ई. की प्रादेशिक व्यवस्था को तीन सम्राट महत्वपूर्ण समझेंगे।
    2. तीनों सम्राट मिलकर क्रांतिकारी समाजवाद का दमन करेंगे जिससे की राजसत्ता का विरोध ना हो
    3. बाल्कन प्रायद्वीप की समस्या जो बार-बार प्रकट होती है उसको पारस्परिक सहयोग के साथ समाप्त करने का प्रयत्न करेंगे।
संघ का महत्व-

      यूरोप में इस संधि का अत्यधिक महत्व है। बिस्मार्क ने अपनी विदेश नीति को इसी संघ के मार्ग की ओर अग्रसर किया। यह उसकी प्रारंभिक सफलता थी। इस संघ का राजनीतिक महत्व अधिक था। फ्रांस को एकाकी बनाए रखने के लिए यह संधि आवश्यक सिद्ध हुई। इस संधि के अभाव में फ्रांस का एकाकी होना संभव था। ऑस्ट्रिया एवं रूस से बिस्मार्क ने समझौता कर लिया जिससे कि बाल्कन प्रायद्वीप की शांति भंग न हो सके इससे यूरोप में जर्मनी की प्रधानता स्थापित हो गई और यूरोप की राजनीति का केंद्र बिस्मार्क बन गया।

संघ की समाप्ति-

        1886 ई. तक यह संघ बिना किसी बाधा के चलता रहा, लेकिन यह संघ अधिक दिन तक स्थाई रूप से नहीं चल सका। यूरोपीय परिस्थितियों में धीरे-धीरे बाधाएं आती गई। जिससे संघ का चलना असंभव सा प्रतीत होने लगा। फ्रांस ने अपनी आंतरिक समस्याओं को सुलझाया और सैनिक शक्ति का विकास किया। इसी समय बाल्कन की समस्या का उदय हुआ। ऑस्ट्रिया सर्बिया और सेलोनिया पर अधिकार करना चाहता था, इधर रूस चाहता था कि टर्की का अंत कर दें। रूस ऑस्ट्रेलिया को हराकर बाल्कन प्रायद्वीप पर अधिकार करना चाहता था। ऑस्ट्रेलिया ने बोसनिया एवं हर्जेगोबिना को अपने अधिकार में कर लिया। रूस के विवादों को हल करने के लिए बर्लिन सम्मेलन बुलाया गया। जर्मनी के बिस्मार्क की अध्यक्षता में सम्मेलन संपन्न हुआ। लेकिन रूस की विचारधारा के अनुसार वह उस सम्मेलन में निष्पक्षता का निर्वाह ना कर सका। उसने रूस के हितों की अवहेलना की और ऑस्ट्रिया के हितों की रक्षा की। जर्मनी के इस व्यवहार से रूस को कष्ट हुआ। रूस के जार ने निश्चिंत होकर युद्ध की धमकी दे दी। यहीं से संघ की समाप्ति हो गई।


2. त्रि गुटों का निर्माण और दोहरी संधि- इस परिस्थिति में जर्मनी को रूस एवं फ्रांस की ओर से युद्ध का भयंकर खतरा उत्पन्न हो गया। यह भी संभव था कि रूस एवं फ्रांस परस्पर संधि कर लें। अतः उसके लिए किसी अन्य शक्ति से मित्रता करनी आवश्यक हो गई थी। उसका ध्यान ऑस्ट्रेलिया की ओर आकर्षित हो गया क्योंकि वहां राजतंत्रात्मक सरकार थी। दोनों में 7 अक्टूबर 1879 ई. में एक रक्षात्मक संधि (Defence Alliance) पूर्ण हुई। यह संधि त्रि-गुट के नाम से विख्यात है।

संधि के निश्चय-

1. यदि जर्मनी ऑस्ट्रिया में से किसी एक पुरुष आक्रमण करे तो दोनों एक दूसरे को संपूर्ण सैनिक सहायता प्रदान करेंगे और दोनों परस्पर संधि सहयोग से तय करेंगे।

2. जर्मनी ऑस्ट्रिया में से किसी एक पर यदि कोई अन्य देश शक्ति आक्रमण करेगा तो दूसरा मित्र उसका सहयोग करेगा और यदि शत्रु को किसी अन्य शत्रु की सहायता प्राप्त होगी तो दोनों मित्र सम्मिलित रूप में युद्ध एवं संधि करेंगे।

3. त्रि राष्ट्र संघ की पुनर्स्थापना- ऑस्ट्रेलिया के साथ संधि करने के पश्चात भी बिस्मार्क रूस से संधि करना चाहता था। वह यह नहीं चाहता था कि रूस उसका विरोधी रहे। बिस्मार्क ने रूस के समक्ष त्रि राष्ट्र संघ के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा। रूस का नवीन जार एलेग्जेंडर तृतीय अभी आंतरिक परिस्थितियों को पूर्ण रूप से अपने पक्ष में ना कर पाया था। इस कारण या ऑस्ट्रेलिया से युद्ध कर अपनी सैनिक शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहता था। अतः उसने त्रि राष्ट्र संघ की पुनर्स्थापना को स्वीकार कर लिया। 1881 ई. में ऑस्ट्रिया रूस एवं जर्मनी के सम्राटों में एक समझौता हो गया जिसके अनुसार या निश्चित किया गया कि यदि तीनों में से किसी को एक निश्चित शक्ति से युद्ध करना होगा तो शेष दोनों शांत रहेंगे।


4. तीन दलिय गुटों की स्थापना- इटली, ट्यूनिस (Tunis) पर अधिकार करना चाहता था, परंतु 1881 ई. में उस पर फ्रांस ने अधिकार कर लिया। इटली ने उसकी नीति का विरोध किया। उसने अनुभव किया कि फ्रांस उसकी शक्ति को कम समझता है। अतः अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को दृढ़ करने के लिए उसने जर्मनी की ओर मिलना उचित समझा। 20 मई 1882 ई. को इटली ने जर्मनी एवं ऑस्ट्रिया से संधि की। यहां अभी तीन गुटों का निर्माण हो गया। इसकी प्रमुख शर्तों को गुप्त रखा गया फिर भी कुछ बातें इस प्रकार हुई—

त्रि दलीय गुटों का निश्चय -

    1. यदि फ्रांस इटली पर आक्रमण करेगा तो जर्मनी एवं ऑस्ट्रिया इटली की सहायता करेंगे।
    2. इटली ने भी आश्वासन दिया कि अन्य कोई शक्ति मित्र राष्ट्रों पर आक्रमण करेगी तो वह भी उनको सहायता प्रदान करेंगे।
    3. यदि दोनों देशों पर कोई दो देश आक्रमण करेंगे तो दोनों मिलकर युद्ध एवं संधि करेंगे।
    4. इस संधि की शर्ते प्रकट न की जा सकी।


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Comments

  1. बहुत ही अच्छी सोच है आपकी
    सहृदय आभार आपका 🥰🥰

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    1. धन्यवाद' आपका दिन मंगलमय हो!!

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    2. Me topp karna chahti hu par mane padhai das sall chodh xiya tha ab me phir se padhna chahti hu or kuch kar ke dikha dena chahti hu

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    3. Yes, we expect you to do something big in your life, God Bless you... Have a Good Day❤️❤️❤️

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  2. Good 👍

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