तो हेल्लो स्टूडेंट्स आज हम बिस्मार्क का मूल्यांकन कीजिए के बारे में चर्चा करेंगे। इसके पिछले पोस्ट में हमने बिस्मार्क की विदेश नीति , बिस्मार्क की गृह नीति , बिस्मार्क की विदेश नीति के उद्देश्य, के बारे में चर्चा की थी, अगर इसके बारे में आपने नहीं पढ़ा तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं
बिस्मार्क का मूल्यांकन
19वीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास में बिस्मार्क न केवल जर्मनी का अपितु संपूर्ण यूरोप का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली राजनीतिज्ञ था। प्रशा की शक्ति उसके जीवन का आदर्श रही थी। उसने कहा था "हम प्रशा के रहेंगे" शताब्दियों से विभक्त और अव्यस्थित जर्मनी को प्रशा के नेतृत्व में मात्र 9 वर्षों में ही संगठित राज्य बना दिया।
अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु बिस्मार्क ने झूठ - छल - कपट सभी अनैतिक साधनों का प्रयोग किया उसने विभिन्न राज्यों में फूट डालकर घृणा उत्पन्न करके तथा मतभेद एवं झगड़े कराकर यूरोपीय राज्यों के परसपरिक विरोध का लाभ उठाकर बर्लिन को यूरोप की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना दिया।
रक्त और लौह की नीति का अनुयाई भी बिस्मार्क सैनिकवादी होने के साथ ही चतुर कूटनीतिज्ञ भी था। अपने शत्रु को मित्र हीन बनाकर युद्ध करना उसकी नीति का प्रथम सिद्धांत था। कूटनीतिक दांव-पेच के द्वारा वह शत्रुओं के पक्ष से ही युद्ध का आरंभ करता था। छल और शक्ति दोनों उसकी कूटनीति के प्रमुख तत्व थे फूट डालना एवं शासन करना (Divide and Rule) की विदेश नीति का अनुसरण करना उसके नीति का अंग था।
उसकी राजनीति मात्र जर्मनी और यूरोप के लिए थी। यूरोप के इतिहास में बिस्मार्क का पतन एक नए युग का प्रारंभ था। बिस्मार्क ने स्वयं हमारी पुरानी नीति का समापन कर हमें नए मार्ग का निर्देशन दिया यह निश्चित है, कि उसने ना तो जर्मनी के इस नए विकास की कल्पना की थी, और ना इस युग की समस्याओं की। मैरियट ने उसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है - "19वीं शताब्दी के इतिहास में वह सदैव उच्च स्थान पर रहेगा।"
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