सूफी मत की विशेषताएं

सूफी आंदोलन की विशेषताएं

सूफीवाद की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं


1. ईश्वर एक है — सूफी मत के अनुसार अल्लाह या ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान है। अल्लाह और बंदे में कोई अंतर नहीं है। बंदे के माध्यम से ही खुदा तक पहुंचा जा सकता है। सूफी साधक ईश्वर पुर रहीम रूप में देखते हैं। सूफी मानते थे कि दृष्टि की विभिनता में ईश्वर की एकरूपता   निहित है।


2. ईश्वर की कल्पना सुंदर स्त्री के रूप में — सूफी संतों ने ईश्वर की कल्पना एक सुंदर स्त्री के रूप में की है। ईश्वर और साधक के संबंध प्रेमी और प्रेमिका थे। उनके अनुसार अल्लाह के दो स्वरूप हैं— निर्गुण और सगुण । टी से उत्पन्न होकर पुनः जाति में विलीन हो जाता है। अल्लाह अपने एक कत्व से संतुष्ट ना होकर अपना दूसरा रूप उत्पन्न करता है। ईश्वर का यह नया रूप जीव आशिक या प्रेमी बन जाता है। और अपनी माशूका यानी प्रेमिका ईश्वर से प्रेम करने लगता है। प्रेमी की प्रेमिका के प्रति तड़पन ही सूफी मत की प्रमुख विशेषता है।


3. प्रेम को महत्व —सूफी दर्शन में प्रेम का बड़ा महत्व है। सूफी संतों के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति प्रेम द्वारा ही हो सकती है और प्रेमिका की दर्पण का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म में लीन हो जाना है। फना ब्रह्म में लीन हो जाने की स्थिति है। जब प्रेमी को फना प्राप्त कर लेने की चेतना नहीं रहती तो उस स्थिति को फना फुल फना कहते हैं। महिला सूफी संत राबिया करती हैं, —" ईश्वर में ऐसी डूब गई हूं कि मेरे हृदय में ना तो किसी वस्तु के लिए प्रेम बाकी रह गया और न घृणा।" शेख निजामुद्दीन औलिया को ईश्वर प्रेम में लीन हो जाने के कारण ही महबूबे—इलाही कहा जाता था।


4. गुरु का महत्व — सूफी जीव और ब्रह्म मेरी मिलने में शैतान को सबसे बड़ा बाधक मानते हैं। गुरु ही लोगों की शैतान से रक्षा करता है। और सूफी संप्रदाय में गुरु का विशेष महत्व है। 


5. संगीत को महत्व — सूफी संगीत की विशेष महत्व देते हैं। वे संगीत को ब्रह्म तक पहुंचाने का साधन मानते हैं। संगीत और नृत्य में डूबकर जीव दिव्यानंद की उस स्थिति को प्राप्त कर लेता है जहां उसे ब्रह्म की अनुमति होने लगती है।


6. हृदय की शुद्धता— सूफी मत हृदय की सुविधा के लिए उपवास, तपस्या, दान और तीर्थ यात्रा को आवश्यक मानते हैं। उनका मानना है कि सांसारिक विशेष भागों से अलग रह कर ही ह्रदय की पवित्रता को बनाए रखा जा सकता है। वे संयम और आत्म अनुशासन को महत्व देते हैं।


7. आचरण की शुद्धता — सूफी साधक बाह्य वैभव और धन संपत्ति को साधना में बाधक मानते हैं। उन्होंने सामाजिक और नैतिक जीवन की शुद्धता के लिए अपने शिष्यों को न्याय तथा परोपकार के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। निजामुद्दीन औलिया कहते थे कि नाम जपना अधिक कार्य तो वृद्ध नारी भी कर सकती हैं। खुदा के पदों का काम कुछ और ही है और वह है, " मजबूरों की फरियाद सुनना, बूढ़े और असहाय की आवश्यकताओं को पूरा करना और भूखों का पेट भरना।" 


8. अध्यात्मिक स्वतंत्रता के समर्थक — सूफी संतों ने आध्यात्मिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए राज दरबारों से दूर रहने की नीति अपनाई। धनवानो की संगति से वे बचते थे।


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