सूफी मत के सिद्धांत
सूफी मत के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं
1. एकेश्वरवाद - सूफी मत इस्लाम की तरफ झुका रहा इसलिए इसने भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखा। वह ईश्वर को अल्लाह अथवा रहीम कहते थे। लेकिन यह पैगंबर मोहम्मद के उपदेशों के साथ-साथ अपने सिलसिले के पीरों के उद्देश्यों को भी महत्व देते थे। सूफी साधकों के अनुसार ईश्वर निरपेक्ष अगोचर, अपरिमित और ननत्व से परे थे।
2. आत्मा - सूफी साधकों ने आत्मा को विश्वास माना हैै। आत्मा में 5 बाह्य तथा 5 आंतरिक तत्व है। उनके अनुसार आत्मा शरीर में कैद है। इसीलिए सूफी साधक मृत्यु का स्वागत करते थे। परंतु वे मानते हैं कि बिना परमात्मा की कृपा से आत्मा का मिलन ईश्वर से नहीं हो सकता।
3. जगत - सूफी साधकों के अनुसार परमात्मा ने जगत की सृष्टि की। यह जगत माया से पूर्ण नहीं है। ईश्वर ने दुनिया को शीशा समझ कर अपनी छाया को देखा है।
4. मानव - सूफी साधकों के अनुसार सभी जीवो में मानव श्रेष्ठ है। सभी प्राणी मानव के स्तर को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
5. कुरान और रहस्यवाद - सूफी साधकों के अनुसार कुरान एक महान ग्रंथ है। लेकिन इसके शाब्दिक तथा बाह्य अर्थ को प्रधानता नहीं देनी चाहिए बल्कि उसके पीछे छिपे रहस्य को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए। सूफियों के रहस्यवाद के अनुसार अल्लाह के कहर से भय नहीं रखना चाहिए। क्योंकि ईश्वर बड़ा दयालु है। इसलिए मानव को उससे मिलन करना चाहिए।
6. गुरु तथा पीर का महत्व - भक्त संतो की तरह सूफी साधकों ने गुरु और पीर का महत्व स्वीकार किया। सूफी साधक पूर्ण मानव को अपना गुरु मानता है। उसके विचार अनुसार बिना गुरु के मानव कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता। आधुनिक इतिहास का डॉ. ताराचंद के अनुसार," पैगंबर मोहम्मद ने मानव को अल्लाह के समक्ष आत्मसमर्पण की सलाह दी तथा सूफी मत के गुरु के समक्ष आत्मसमर्पण पर विशेष बल दिया। "
7. लक्ष्य की प्राप्ति - परमात्मा के साथ एक तो प्राप्त करना सूफी का चरम लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के अनेक साधन है। जैसे- अल्लाह के नाम को जोर से लेकिन दिल से स्मरण करना। सूफी साधक परमात्मा में पूर्ण लाए हो जाने को फना की अवस्था मानते हैं। इस अवस्था में साधक संसारी प्रपंचा में स्वयं को अलग रखकर अपने अस्तित्व को मिटा देते हैं। हां करके मिटने पर ही फना की अवस्था मिल पाती है।
8. प्रेम साधना पर बल - सूफी प्रेम से ईश्वर को प्राप्त करने की आशा रखते हैं। उनके अनुसार प्रेम पूर्वक साधना से ईश्वर के अधिक निकट पहुंच जाता है। प्रेम से परमात्मा संबंधी रहस्यों का भेदन होता है और उसका ज्ञान प्राप्त होता है। सूफी परमात्मा को प्रियतमा तथा साधक को माशूक मानते हैं। माशूक प्रियतमा से मिलने के लिए बेचैन रहता है। प्रेम सेवा अनंत सौंदर्य का सरास्वादन करता है। क्योंकि जहां सौंदर्य नहीं, वहां प्रेम का होना कठिन है। इसीलिए प्रेम पूर्वक साधना ही ईश्वर की अनुभूति का एकमात्र साधन है। सूफी साधकों के अनुसार सच्चा प्रेम एवं भाव नमाज रोजे आदि से अधिक महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष :-
विद्वानों की राय है कि इसी सिद्धांत पर विचारधारा के कारण सूफियों का दृष्टिकोण सुधार हुआ और अनेक गैर इस्लामी लोग सूफी संतों के निकट आए।
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