हिटलर की विदेश नीति निम्नलिखित है_
1. राष्ट्र संघ का त्याग- पेरिस शांति संधि में जर्मनी पर रोक लगाई गई थी, कि वह अस्त्र-शस्त्र का निर्माण नहीं कर सकता जबकि इंग्लैंड, फ्रांस आदि देशों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाई गई थी। हिटलर ने स्पष्ट रूप से यह घोषणा कर दी कि जर्मनी ना तो वर्षाय संधि की शर्तों को स्वीकार करता है और ना राष्ट्र संघ की शर्तें उसे स्वीकार है इस प्रकार हिटलर ने राष्ट्र संघ का त्याग कर दिया।
2. इटली, फ्रांस एवं इंग्लैंड से समझौता- हिटलर ने दिखावे के लिए इटली, फ्रांस एवं इंग्लैंड के साथ शांति समझौता किया यह समझौता केवल एक दिखावा था।
3. रोम, बर्लिन, टोक्यो, धूरी का निर्माण - जर्मनी के विरुद्ध इंग्लैंड, फ्रांस, रूस आदि देशों ने एक गुट बना लिया था। परंतु उनमें आपसी मतभेद मौजुद थे। हिटलर ने अधिनायक वादी देशों का एक गुट बनाना चाहा सर्वप्रथम उसने मुसोलिनी के कार्यों का समर्थन करते हुए इटली को मित्र बनाया। उसके बाद रूस के शत्रु जापान से संधि की। इस प्रकार रोम, बर्लिन, टोक्यो (इटली, जर्मनी, जापान) धूरी का निर्माण कर जर्मनी की स्थिति को अत्यधिक मजबूती प्रदान की।
4. वर्साय की सैनिक धाराओं का उल्लंघन तथा शास्त्रीकरण- 16 मार्च सन् 1935 ई. में हिटलर ने घोषणा की कि वह वर्षाय की संधि की शर्तों से बंधा नहीं रहेगा। उसने स्पष्ट कर दिया कि नि:शस्त्रीकरण की दिशा में मित्र राष्ट्र कोई ठोस कदम ना उठा पाए। इसलिए अब जर्मनी भी शास्त्री कारण करने के लिए स्वतंत्र है। मित्र राष्ट्र उस पर कोई कार्यवाही न करने पाए।
5. पोलैंड से संधि- सन् 1934 में हिटलर ने पोलैंड के साथ अनाक्रमण की संधि की। यह संधि एक वर्ष के लिए की गई थी तथा इसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच प्रेम व्यवहार स्थापित करना था। इस संधि से जर्मनी की पूर्वी सीमा रूस से सुरक्षित हो गई।
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