नियोजन क्या है, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य, प्रकृति, क्षेत्र

नियोजन किसे कहते हैं

Niyojan meaning in Hindi: नियोजन किसी भी काम को करने से पहले  योजना बनाई जाती है उस योजना के अनुसार ही कार्य करना नियोजन कहलाता है।

नियोजन का परिभाषा | niyojan ki paribhasha

1.एम.ई.हार्ले के अनुसार:  क्या करना चाहिए इसका पहले से ही तय किया जाना नियोजन है इसमें विभिन्न वैकल्पिक उद्देश्य, नीतियों,एवं कार्यक्रम का चयन किया जाना निहित होता है।

2. कूण्ट्ज  के अनुसार: नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है कार्य करने के मार्ग का सचेत निर्धारण है निर्णय को उद्देश्यों, तथ्यों तथा पूर्ण विचरण अनुमानों पर आधारित करना है।

3. एलन के अनुसार: नियोजन वर्तमान में भविष्य को प्रभावित करने वाले निर्णय को लेने का एक विवेकपूर्ण आर्थिक एवं मध्य है।

4. विलियम एच. न्यूमैन के अनुसार: सामान्य  भविष्य में क्या करना है इसे पहले से तय करना ही नियोजन है इस दृष्टि से नियोजन में मानवी अत्यंत व्यापक एवं विस्तृत रूप का समावेश है।

नियोजन की विशेषताएं | niyojan ki vhishestayen

नियोजन की विशेषताएं निम्नलिखित है—

1. नियोजन भविष्य से संबंध रखता है।

2. नियोजन प्रबंध का प्रथम कार्य है।

3. नियोजन एक निरंतर जारी रहने वाला प्रक्रिया है।

4. नियोजन द्वारा विभिन्न विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प का चयन किया जाता है।

5. नियोजन प्रबंधन की कुशलता का आधार होता है।

6. नियोजन बदली हुई परिस्थितियों से गहरा संबंध रखता है।

7. नियोजन के उद्देश्य की प्राप्ति में योगदान देना।

8. नियोजन एक बौद्धिक भीम है और इसमें व्यवहारिक ज्ञान अत्यंत आवश्यक है।

नियोजन का उद्देश्य | niyojan ka uddeshy

नियोजन के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

1. गतिविधियों में निश्चित लाना— नियोजन का पहला उद्देश्य यह होता है कि उनके संस्था की सारी गतिविधि को ज्ञात कर सके।

2. पूर्वानुमान लगाना— नियोजन का दूसरा उद्देश्य भविष्य के संबंध में पहले से ही पूर्वानुमान लगाना एवं ग्राहकों का कार्य, उत्पादन,सरकारी नियमों आदि में परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगाना।

3. विशिष्ट दिशा प्रदान करना— संस्था में निर्धारित लक्षण को प्राप्त करना।

4. समन्वय स्थापित करना— नियोजन का उद्देश्य में कार्य करने के लिए विभागों एवं विभिन्न कर्मचारी के कार्य संबंध में समन्वय स्थापित करना।

5. प्रबंध में मितव्ययिता लाना— जब प्रबंध प्रत्येक कार्य की योजना बना लेता है तो सभी दिशा में आगे बढ़ाते हैं और अपने आप काम हो जाता है इस प्रकार विभिन्न क्रिया को कम से कम लागत पर समाप्त करना नियोजन का मुख्य उद्देश्य होता है।

नियोजन की प्रकृति | niyojan ki prakrti

नियोजन की प्रकृति को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है—

1. नियोजन प्रबंध का कार्य—  प्रबंध का कार्य नियोजन ,संगठन ,समन्वय, निर्देशन ,अभिप्रेरणा तथा नियंत्रण है नियोजन इन सब कार्यों के आधार पर ही तैयार किया जाता है अन्य कार्य की असफलता या सफलता नियोजन पर ही निर्भर करती है।

2. नियोजन सार्वभौमिक है— नियोजन की आवश्यकता केवल व्यवसायिक संगठन में ही नहीं बल्कि सभी प्रकार की संगठन में होता है चाहे संगठन व्यावसायिक हो या सामाजिक ,धार्मिक संगठन छोटा  या बड़ा सभी प्रकार के संगठन में नियोजन की आवश्यकता होती है

3. नियोजन चयनात्मक कार्य है— नियोजन प्रबंध का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है योजना के अंतर्गत कार्य करने के विभिन्न सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव किया जाता है जिससे इसके उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।

4. नियोजन से प्रबंध कुशलता बढ़ती है— नियोजन प्रबंधन की कार्य कुशलता में वृद्धि लाता है नियोजन द्वारा जोड़ी जाने वाली सामग्री विधियां, मानवीय साधनों,मशीन व पूंजी के प्रयोग में मितव्ययिता लाने का प्रयास करना।

5. नियोजन समन्वय में सहायक होता है— नियोजन की सफलता से उच्च प्रबंधन कार्य में प्रभावशाली ढंग से संबंध स्थापित करने में सक्षम होता है योजना में प्रत्येक व्यक्ति के कार्य को पहले से ही निर्णय कर लिया जाता है और उन अधिकारों को यह मालूम हो जाता है कि यह व्यक्ति को क्या कार्य करना है और व्यक्तियों से वही कार्य कराया जाता है।


नियोजन का क्षेत्र | niyojan ka kshetr

नियोजन का क्षेत्र को नीम एन क्रियो में शामिल किया जाता है—

1. उद्देश्य— उद्देश्य ही परिणाम होते हैं जिनको प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य निर्धारित करना योजना प्रथम चरण होता है क्योंकि बिना लक्ष्य के व्यवसाय प्रारंभ करना असफलता मानी जाती है इस प्रकार यह कहा जाता है कि उद्देश्य निर्धारित करना नियोजन के आधारशीलता होती है।

2. पूर्वानुमान— पूर्वानुमान का मतलब होता है कि समस्या आने से पहले ही पता चल जाना पूर्वानुमान के सिद्धांतों को अपनाकर समस्याओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है व्यवसाय में नियोजन का आधार है क्योंकि व्यवसाय में  जोखिम की मात्रा सबसे अधिक होती है इसीलिए इस पूर्वानुमान का प्रयोग किया जाता है।

3. नीतियां— नीति एक सामान्य कार्य विधि सहमति होती है यह निरंतर चलने वाला निर्णय निर्देश है जो उच्च प्रबंधन द्वारा तय किया जाता है।

4. कार्य— कार्य नीति द्वारा निर्धारित मार्ग को पार करने की विधि होती है प्रत्येक व्यक्ति के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए नीति बनाई जाती है जो उसे पूरा करने के लिए कार्य विधि द्वारा कार्य करना पड़ता है।

5. नियम— नियोजन प्रक्रिया में योजना का निर्माण करते समय एक निश्चित नियम बनाए जाते हैं  नियम के आधार पर योजनाओं का उपयोग कर कार्य किया जा सके और उन नियमों के आधार पर ही एक अच्छा प्रबंध बना सके। 

6. बजट— आधुनिक व्यवसाय युग में प्रत्येक कार्य अनुमानों के आधार पर किया जाता है बजट भी एक योजना है जिनमें बजट बजट के अनेक प्रकार होते हैं जैसे रोकड़ बजट, क्रय बजट विक्रय बजट, आय व्यय बजट आदि बजट के माध्यम से ही उपक्रम की क्रियो पर नियंत्रण रखा जाता है।

7. कार्यक्रम— नियोजन कार्य को समाप्त करने के लिए एक कार्यक्रम बनाया जाता है  किसी कार्य को करने की  योजना होती  है जिसे निश्चित उद्देश्य के आधार पर ही तैयार किया जाता है यह अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन भी हो सकते हैं।

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