उद्यमिता विकास क्या है ? आर्थिक विकास में उद्यमिता की भूमिका

 उद्यमिता विकास का अर्थ

उद्यमिता विकास से सबसे  साहसिक योग्यता व्यक्तियों का ही चयन किया जाता है जिससे देश में औद्योगिकी संस्थाओं तीव्र गति से स्थापना किया जा सके देश में आत्मनिर्भर बन सके। दूसरे शब्दों में देखा जाए तो उद्यमिता के विकास व्यक्तियों की उन साहसिक क्षमताओं को पहचानने और उसे विकसित करने के लिए प्रयोग हेतु उन अवसर को उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया होती है।

सामाजिक – आर्थिक विकास में पर्यावरण उद्यमिता की भूमिका

उद्यमिता का विकास सामाजिक आर्थिक पर्यावरण की ही देन होती है जहां एक और हमें देखने को मिलता है सामाजिक पर्यावरण उद्यमी को कार्य करने एवं विकसित करने का क्षेत्र  अवसर प्रदान करता है वहीं दूसरी और देखा जाए तो आर्थिक पर्यावरण उद्यमी को आवश्यक संसाधन प्रदान करता है परिणाम स्वरूप प्रगति के पथ पर चला जाता है सामाजिक आर्थिक वातावरण में एक महत्वपूर्ण योगदान होता है जो उद्यमिता के विकास की उसे सामाजिक आर्थिक पर्यावरण पर निर्भर करती है।

सामाजिक पर्यावरण की भूमिका

उद्यमी समाज में जन्म लेता है समाज में रहकर विभिन्न क्रियाएं शुरू करता है यदि उद्यमी को समाज में पृथक कर दिया जाए तो उसका समुचित अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इस सामाजिक संस्कृति घटकों में पारिवारिक, पृष्ठभूमि,सामाजिक मूल्य ,आदर्श ,रीति रिवाज ,वंश परंपराएं ,धर्म, विचार आदि की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

1. पारिवारिक दबाव— सहासियों के विकास में परिवार के दबाव के महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं परिवार में स्वतंत्र कार्य करने एवं अत्यधिक धन कमाने की इच्छा सदस्यों को कार्य करने की प्रतिष्ठा अर्जित करने आदि की इच्छा के कारण व्यक्ति उद्योग लगाने की ओर आकर्षित होते हैं।

2. जोखिम वहन की क्षमता— जोखिम उठाने की चुनौती भी व्यक्ति के व्यवहार को साहसिक बना देती है उस व्यक्ति के जोखिम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने एवं जोखिम उठाने की क्षमता को ही उद्यमिता कहा जाता है।

3. आत्मनिर्भरता— स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर जीवन जीने की इच्छा व्यक्ति को शासक बनने के लिए प्रेरित करती है ऐसे ही व्यक्ति दूसरे से सुझाव एवं मार्गदर्शन के बिना ही किसी परियोजना की कल्पना करके उसे उसे रूप में प्रधान करता है इससे आत्मनिर्भर बढ़ाने हेतु प्रयास किए जाने चाहिए।

4. समाज में परिवर्तन— व्यक्तियों को सामाजिक परिवर्तनों के अनुसार व्यावसायिक योजनाओं के द्वारा मानवीय मूल्यों एवं मानवीय संबंधों का विकास करके समाज में पुनर्निर्माण में सहयोग बनाना पड़ता है इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन उद्यमिता को सृजनात्मक कार्य करने के लिए दिशा प्रदान करता है।

5. सामाजिक पर्यावरण में जागरूकता— सामाजिक पर्यावरण के प्रति जागरूकता व्यवसायिक संस्थानों की गरिमा को बढ़ाती है जो सामाजिक परिवर्तन में समाज की मानवीय प्रवृत्तियों की इच्छाओं में एक शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर में परंपराओं आदि घटकों में निर्मित होता है।

6. कार्य संस्कृति— कार्य संस्कृति व्यक्तियों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो मानसिक विकास की व्याख्या करती है जिन समाजों में व्यक्ति कार्य के प्रति प्रेम एवं रुचि रखते हैं वह सहासियों का विकास शीघ्र संभव हो जाता है।

7. सामाजिक प्रशिक्षण— सामाजिक प्रशिक्षण व्यक्तियों के साहसिक गुणों से संबंधित आत्मविश्वास प्रतिष्ठा पाने की इच्छा अवसरों का उपयोग उपलब्ध इच्छा की चुनौतियों का सामना करना सामाजिक प्रशिक्षण के लिए आत्मनिर्भर पर सामाजिक प्रारंभ से ही दिया जाना आवश्यक होता है।

आर्थिक पर्यावरण की भूमिका

आर्थिक पर्यावरण की भूमिका निम्नलिखित है—

1. संसाधनों की उपलब्धता— आर्थिक पर्यावरण ही उद्यमिता विकास हेतु आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराता है जैसे  की सामग्री, पूंजी, यंत्र ,भूमि ,शक्ति, तकनीकी, ज्ञान, बाजार आदि इन संसाधनों की उपलब्धता व्यक्तियों को विकास हेतु प्रेरित करती है।

2. पंचवर्षीय योजना—अक्सर अपने पंचवर्षीय योजना के बारे में तो सुना होगा सरकार द्वारा बनाई गई पंचवर्षीय योजनाएं का भी उद्यमिकता विकास में अत्यधिक योगदान होता है सरकार ने पंचवर्षीय योजना के द्वारा समय-समय पर उद्यमिताओं के लिए विभिन्न सहायता सुविधा एवं परिणाम उपलब्ध करती है साथी योजनाओं के अंतर्गत औद्योगिकी विकास पर होने वाले खर्चो पर नियंत्रण वृद्धि भी होती है।

3. बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं की भूमिका—बैंक एवं वित्तीय संस्थाओं की रियायती दरो पर वित्त उपलब्ध कर को उद्यमिता की परियोजनाओं का शीघ्र अनुमोद करके अनुसंधान के लिए शीघ्र सुविधा प्रदान करके सहसवादीता को प्रोत्साहित करती है।

4. शोध एवं साहित्य—उद्यमिता विकास में अनेक संस्थाओं का योगदान होता है साहस से संबंधित समस्याओं पर होने वाले प्रकाशन होते रहने से देश में सहासियों का विकास होता है

5. साहस शिक्षा पद्धति— शिक्षा संस्थान द्वारा नवयुवकों में शाह एस प्रवृत्तियों का विकास किया जाता है स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय तकनीकी संस्था प्रधान आदि के द्वारा उधम पाठ्यक्रमों का संचालन किया जाता है।

6. प्रशिक्षण सुविधा—  प्रशिक्षण कार्यक्रमों के द्वारा व्यक्तियों में साहसी योग्यताओं  क्षमताओं का विकास किया जा सकता है कई संस्थाओं द्वारा विचारों के आदान-प्रदान हेतु सम्मेलन का आयोजन किया जाता है भारत में राष्ट्रीय संस्था एवं लघु व्यापार संस्था प्रशिक्षण के अनेक पाठ्यक्रम संचालित करता है।

7. तकनीकी शिक्षा संस्थानों का विकास— आजकल की बढ़नी तकनीकी के उपलब्ध  में वैज्ञानिक क्रिया अनुसंधान आदि का भी उद्यमिता के विकास में योगदान बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना है इस नवीन तकनीक की उत्पादन प्रणालियों से ही नई वस्तुओं का निर्माण किया जाता है तकनीकी शोध से उत्पादन प्रक्रियाओं को नया बनाया जाता है इस प्रभाव सहासियों के विकास पर ही पड़ता है। उद्यमिताओं को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने तकनीकी शिक्षा संस्थानों की स्थापना की है उन उद्यमिताओं को जो इस तकनीकी शिक्षा संस्थानों से शिक्षा प्रदान किए हुए होते हैं उनको ऋण सुविधा प्रदान करने में प्राथमिकता प्रधान की जाती है।

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