उद्यमिता का अर्थ ,परिभाषा ,उद्यमिता के सिद्धांत

उद्यम का अर्थ  

 किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए संसाधनों को जुटाना,और कार्य की योजना बनाना एवं उसे पूरा करना ताकि उससे लाभ प्राप्त हो सके। उद्यम व्यवसाय अपना जोखिम खुद उठाता है व्यवसाय में जोखिम की मात्रा उद्यमी की कुशलता पर निर्भर करती है जोखिम उठाने की क्षमता को ही हम उद्यमिता कहते हैं। एक हीक व्यवसाय को निरंतर करते रहने से उद्यमी अपने व्यवसाय में निपुण हो जाता है, उद्यमिता का संबंध प्रत्यक्षत: कार्यकुशलता से हो जाता है, उद्यमी का स्वभाव, व्यवहार एवं कार्यदक्षता उद्यमिता कहलाती है।

प्रत्येक व्यक्ति अपना लक्ष्य निर्धारित करता है तथा उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करता है, लेकिन हर व्यक्ति की लक्ष्य निर्धारण एवं लक्ष्य प्राप्ति की क्षमता अलग अलग होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने संस्कार, वातावरण तथा शिक्षा के द्वारा विकसित करता है और मानसिकता के अनुसार ही अपना लक्ष्य निर्धारित करता है।

उद्यमिता की परिभाषा

(1) जे.ई. स्टेपनेक  के अनुसार:- उद्यमिता किसी उपक्रम में जोखिम उठाने की क्षमता संगठन की योग्यता तथा विधिकरण करने एवं नवप्रवर्तनो को जन्म देने की इच्छा है।"

(2) आर्थर एच.कोल के अनुसार:- उद्यमिता किसी व्यक्ति या समूह के रूप में एकत्रित व्यक्तियों का वह कार्य है जिसके द्वारा किसी लाभ प्रधान व्यवसाय की इकाई की स्थापना संचालन एवं विकास किया जाता है ताकि आर्थिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन व वितरण किया जा सके।"

(3) पारीक एवं नाडकर्णी के अनुसार:- उद्यमिता से आशय समाज में नए उपक्रम स्थापित करने की सामान्य प्रक्रिया से है।"

(4) एच. डब्ल्यू. जॉनसन के अनुसार:-  उद्यमिता 3 आधारभूत तत्वों का योग है अन्वेषण, नवप्रवर्तन एवं अनुकूलन।"

(5) जोसेफ ए. शुंपीटर के अनुसार:-उद्यमिता नवाचार कार्य है यह स्वामित्व की अपेक्षा नेतृत्व कार्य है।"

(6) पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार:- व्यवसाय में अवसरों को अधिक करना अर्थपूर्ण है वास्तव में उद्यमिता कि यही सही परिभाषा है।"

(7) लाक्स के अनुसार:- उद्यमिता जोखिम उठाने की इच्छा आय एवं प्रतिष्ठा की चाह तथा स्व अभिव्यक्ति सृजनात्मकता एवं स्वतंत्रता की अभिलाषा का मिश्रण है।"

(8) रॉबर्ट के. लैम्ब के अनुसार:- उद्यमिता सामाजिक निर्णय का वह स्वरूप है जो आर्थिक नवप्रवर्तनो सम्पन्न किया जाता है।"

(9) रिच मैन तथा कोपेन के अनुसार:- उद्यमिता किसी सृजनात्मक  अथवा खुली प्रणाली की ओर संकेत करती है, यह नवप्रवर्तन जोखिम वाहन तथा गतिशील नेतृत्व का कार्य है।"

(10) के.के.गुप्ता के अनुसार:- उद्यमिता से तात्पर्य व्यवसाय में नवीन अवसरों की खोज करके सामाजिक नवप्रवर्तन करने एवं लाभप्रद निर्णय लेने की क्षमता से है।"


उद्यमिता के सिद्धांत

उद्यमिता के सिद्धांत को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है—

1. मनोवैज्ञानिक सिद्धांत—

इस सिद्धांत के अनुसार उद्यमिता के विचारधारा में मूल प्रेरक मनोवैज्ञानिक घटक होते हैं उद्यमिता के विकास पर व्यक्ति की आंतरिक मनोवृतियों पर प्रभाव पड़ता है। इनके प्रमुख मनोवैज्ञानिक सिद्धांत इस प्रकार से है—

  1. नवप्रवर्तन विचारधारा:- उद्यमिता की इस विचारधारा को जो. जोसेफ शुम्पीटर ने विकसित किया है जिसमें नव प्रवर्तन को उद्यमी का प्रमुख कार्य बतलाया गया है, कि उद्यमिता का व्यवहार प्रत्येक स्थिति में सृजनात्मक होती है। और इसमें मनोवैज्ञानिक शक्तियां निहित होती है उन्हीं से वह अभिप्रेरित होती है क्योंकि उद्यमिता का जन्म अपने निजी औद्योगिक साम्राज्य को स्थापित करने की इच्छा से हुआ है।"
  2. उपलब्धि विचारधारा:- इस विचारधारा के अनुसार इनका विचार यह है की उपलब्धि को पाने के लिए तीव्र इच्छा  होती है जिससे अपने व्यवसाय की ऊंचाइयों को छूने के लिए वह जोखिम उठाता है उसे  हम उद्यमिता कहते हैं।
  3. अल्प समूह विचारधारा:-  इस विचारधारा के अनुसार इसका यह मतलब होता है कि समाज में किसी पीड़ित अल्प समूह की सृजनात्मक ही उद्यमिता का मुख्य स्रोत है इसने जापान के 'समराई समुदाय' के आधार पर इस विचारधारा का विकास किया है और किसी सामाजिक समूह की प्रतिष्ठा कभी होना ही चाहिए व्यक्तिगत निर्माण एवं उद्यम के विकास का मूल्य कारण बन जाता है।
  4. व्यवहार वादी विचारधारा:- इस विचारधारा में John kunkel ने यह कहा है उद्यमिता का विकास किसी भी समाज की विगत एवं विद्यमान समाजिक संरचना पर निर्भर करती है यह विभिन्न सामाजिक आर्थिक प्रणव से प्रभावित होता है इसके अनुसार ही उद्यमिता पर परिस्थितियों से विशेष संयोजन पर निर्भर करती है।"


2. समाजशास्त्रीय सिद्धांत—

समाजशास्त्रीय की मान्यता रही है कि ऐसी क्रियाएं समाज के मूल्यों से प्रभावित होती है समाज में विभिन्न व्यक्तियों की स्थिति परंपरा संस्कृति मूल्य श्रम आदि घटक उद्यमिता के विकास को प्रभावित करते हैं—

  1. सामाजिक परिवर्तन मे विचारधारा:- उद्यमिता की विचारधारा का विकास मैक्स वेबर ने किया था इन्होंने सबसे पहले बताने का यह प्रयास किया था कि उद्यमिता सिलता का विकास संबंधित समाज की नैतिक मूल्य प्रणाली का निर्माण हो सकता है इसका मतलब यह है कि व्यक्ति जिस धर्म एवं जाति में है धार्मिक मूल्यों एवं विश्वासों को स्वीकार करना होगा उनके व्यवसायिक जीवन का उद्यमिता उर्जा को प्रभावित करते हैं।
  2. संस्कृतिक मूल्य विचारधारा  :- इस सिद्धांत के प्रतिपादन के अनुसार यह उद्यमिता के विकास से संस्कृति मूल्यों भूमिका आदि के महत्वपूर्ण स्थान है उद्यमिता अपने भूमिका अनुमोदन समूह कार्य की आवश्यकता के अनुसार व्यक्तिगत प्रवृत्ति पर निर्भर रहती है।
  3. उद्यमशील समूह विचारधारा :- इस विचारधारा के अनुसार इस बातचीत पर बल देते हुए व्यक्तियों से नहीं उद्यमिता से ही उद्यमी क्रियाओं का विस्तार होता है क्योंकि यह समूह में विशिष्टता के कारण प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है।
  4. संस्कृतिक विचारधारा:- उद्यमिता की यह विचारधारा इस बात का प्रमाण है कि उद्यमिता का विकास केवल ऐसे समाज में ही संभव होता है जैसे समाजिक प्रतिक्रियाएं स्थिर नहीं होती वरना जहां व्यक्ति के रोजगार के लिए व्यापार विकल्प उपलब्ध होते हैं तथा जो उद्यमशील व्यक्तियों की व्यक्तित्व विकास को प्रोत्साहित करता है।

3. आर्थिक सिद्धांत—

इस सिद्धांत के प्रतिपादक मुख्य रूप से यह कहना चाहते हैं कि ऐसे विकास में अनुकूल आर्थिक परिस्थितियां ही सर्वाधिक योगदान देती है कुछ दशकों में ऐसा दिखाया नहीं गया है कि व्यक्ति का आंतरिक चालक आर्थिक लाभ से सदैव संबंधित रहता है इस दृष्टि से यह आर्थिक प्रेरणा है तथा लाभ भी औद्योगिक उद्यमिता के उद्गम की पर्याप्त होती है।"

4. एकीकृत विचारधारा— उद्यमिता का एकीकृत सिद्धांत इस बात पर बल देता है उद्यमिता अनेक सामाजिक ,आर्थिक, राजनैतिक तथा मनोवैज्ञानिक घटकों द्वारा प्रभावित होती है या उद्यम शीलता का विकास अनेक घटकों का परिणाम होता है एक आकृति विचारधारा निम्नलिखित हैं—

1. सहासिक मनोवृति विचारधारा— इस विचारधारा का प्रतिपादन टी.वी. राव ने किया है टी.वी. राव ने उद्यमिता के विकास में सहायक मनोवृति को अत्यंत महत्वपूर्ण माना है यदि देखा जाए तो उद्यमिता का मूलाधार साहसिक मनोवृति का होना है यदि उद्यमी की साहसिक मनोवृति ही है जो उसे जोखिम उठाने ,कदम आगे बढ़ाने तथा नए नए उपक्रमों की स्थापना करने के लिए अभी प्रेरित करती है।"

2. प्रक्रिया विचारधारा— श्री वेंकटराव उद्यमिता के विकास की प्रक्रिया विचारधारा के पांच चरण बताए हैं जिनमें प्रेरणा देना, पहचान, विकास, संवर्द्धन तथा अनुवर्तन क्रिया सम्मिलित है सर्वप्रथम उद्यमिता के विकास हेतु प्रेरणा प्रदान करके विकास का वातावरण निर्मित किया जाता है इसके पश्चात उद्यम शील व्यक्तियों की पहचान की जाती है उन्हें रचनात्मक कार्यों की और प्रवृत्ति किया जाता है उद्यमियों के विकास के लिए प्रबंधकीय, तकनीकी एवं व्यवसायिक मार्गदर्शन कार्यक्रम संचालित किया जाता है।


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