साम्राज्यवाद के उदय के कारण और परिणाम

साम्राज्यवाद के उदय के कारण

साम्राज्यवाद के उदय के कारण इस प्रकार से हैं-

1. औद्योगिक कारण- यूरोपीय देशों में औद्योगिक क्रांति होने का कारण उत्पादन में तीव्र वृद्धि तथा कच्चे माल की आवश्यकता थी। क्योंकि एशिया और अफ्रीका में औद्योगिक क्रांति नहीं हुई थी। अतः यहां यूरोपीय देशों के लिए कच्चा माल उपलब्ध था और तैयार माल बेचने के लिए बाजार भी उपलब्ध थी। लेकिन भी एशिया एवं अफ्रीका के देश साम्राज्यवाद के शिकार हो गए।

2. उग्र राष्ट्रवाद- 19वीं सदी में यूरोप उग्र राष्ट्रवाद की भावना अपनी चरम सीमा पर थी, जिसके परिणाम स्वरूप यूरोपीय देशों ने दूसरे देशों पर अधिकार करना अपना कर्तव्य समझा। तो अब यूरोपीय देशों में साम्राज्यवाद की दौड़ शुरू हो गई। जबकि एशिया और अफ्रीका के देशों में अभी तक राष्ट्रवाद का उदय नहीं हुआ था।

3. एशिया और अफ्रीका की कमजोर सरकारें- एशिया और अफ्रीका देशों की सरकारें कमजोर थी वहां की जनता असंतुष्ट थी और उनको आशा थी कि विदेशी यहां पर सरकार कायम करेंगे, उससे उन्हें राहत मिलेगी, इसका फायदा साम्राज्यवादी देशों ने उठाया।

4. सैनिक कमजोरी- यूरोपीय देशों के पास आधुनिक हथियारों से युक्त सेनाएं थी, तथा दूसरी ओर एशिया एवं अफ्रीका के देशों की सेनाएं कमजोर थी। इनके युद्ध करने के तरीके और हथियार पुराने थे, अतः यूरोपीय सेनाओं के सामने टिक नहीं पाए।

5. सभ्यकारी लक्ष्य का विचार- यूरोपीय विद्वानों ने साम्राज्यवाद को सही साबित करने के लिए यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि यूरोप की रेत जाति को ईश्वर ने पिछड़ी हुई जनजातियों को सभ्य बनाने के लिए दायित्व प्रदान किया है। अतः श्वेत जातियां एशिया और अफ्रीका के लोगों को सभ्य बनाने के दायित्व से उन पर अधिकार कर रही है, इस विचार के कारण एशिया और अफ्रीका साम्राज्यवाद का शिकार हो गया।

6. ईसाई धर्म प्रचार- ईसाई मिशनरियों ने साम्राज्यवाद के प्रचार में योगदान दिया। ईसाई धर्म प्रचारक धर्म प्रचार के पवित्र कार्य के लिए अनजान क्षेत्रों में अकेले चले जाते थे उनके पीछे व्यापारी और सैनिक भी जाते थे, वे उनकी सुरक्षा के उद्देश्य से सैनिक नियुक्त किए जाते थे। और उस अज्ञात क्षेत्र को पहले अपने संरक्षण में लेकर उसे अपना अधिकार क्षेत्र घोषित कर देते थे। इस प्रकार ईसाई धर्म के प्रचार के उद्देश्य ने साम्राज्यवाद को प्रोत्साहित किया।


साम्राज्यवाद के परिणाम  या (प्रभाव)

साम्राज्यवाद के दो परिणाम निकले एक सकारात्मक प्रभाव और दूसरा नकारात्मक प्रभाव वे दोनों इस प्रकार से हैं-

1. सकारात्मक प्रभाव

  1. अनेक नए राष्ट्रों का उदय- साम्राज्यवाद ने अनेक नए देशों को जन्म दिया जो भूतकाल में नहीं थे।
  2. राष्ट्रीयता की भावना में वृद्धि- यातायात के क्षेत्रों में तीव्र गति से वृद्धि हुई तथा उपनिवेश के लोग परस्पर नजदीकी संपर्क में आ सके, और लोगों में बौद्धिक चेतना जागृत हुई जिसके फलस्वरूप उपनिवेशों की जनता में साम्राज्यवाद के विरुद्ध राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ।
  3. एक समान नियम व कानून का उदय- साम्राज्यवाद के फलस्वरुप उपनिवेशों में एक जैसे नियम और कानून बनाए गए। उदाहरण के लिए गुलामी के पहले भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में बटा हुआ था और सभी राज्यों के अपने अपने नियम और कानून थे। अंग्रेजी साम्राज्य द्वारा भारत के कई नियम और कानून को भंग कर संपूर्ण भारत में एक जैसे नियम कानून की स्थापना की गई।
  4. राजनीतिक चेतना की भावना का उदय- साम्राज्यवाद ने उपनिवेशों के लोगों का एक सामान्य भाषा के माध्यम से संस्कृति, विचारों, साहित्य और आधुनिक शिक्षा से संपर्क स्थापित किया। इससे उपनिवेशों में ना केवल राजनीतिक चेतना का विकास हुआ बल्कि कई सामाजिक कुरीतियों एवं रूढ़िवादी परंपराएं भी समाप्त हो गई।
  5. नए विज्ञान और तकनीक के संपर्क में आना- एशिया और अफ्रीका के अनेक देश पश्चिमी दुनिया में विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में हो रहे नए परिवर्तन से पूर्णतया अनजान थे, उन्होंने उनसे संपर्क स्थापित किया और अपने लाभ के लिए इन्हें विकास कार्यों को अपना लिया।

2. नकारात्मक प्रभाव

  1. स्वतंत्रता की समाप्ति- स्वामी देशों ने अपने उपनिवेश ओं की जनता पर खुलकर अत्याचार किए। उन देशों की सभी आर्थिक राजनीतिक अधिकार छीन लिए गए। जिसके फलस्वरूप जनता में विवशता छा गई, और गुलामी की मनोवृति ने उन्हें पकड़ लिया, उनका स्वाधीनता के प्रति प्रेम नष्ट हो गया।
  2. आर्थिक शोषण- उपनिवेशों के विशाल संसाधनों का साम्राज्यवादी शक्तियां बेरहमी से शोषण कर रहे थे, इसके फलस्वरूप उन देशों के स्थानीय उद्योग नष्ट हो गए। और उनके कच्चे मालों को बहुत कम दामों में बड़े पैमाने पर अपने देश ले जाया गया। उदाहरण के लिए प्राचीन काल में भारत सूती वस्त्र उद्योग के लिए विश्वविख्यात था। लेकिन गुलामी के बाद यह दोनों ही उद्योग नष्ट हो गए।
  3. बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन- यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों ने साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ अपने उपनिवेश की जनता का धर्म परिवर्तन भी किया और बड़े पैमाने पर उन्हें ईसाई बनाया। अपने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अच्छे-बुरे सभी उपाय अपनाएं। यही कारण है कि आज इन राष्ट्रों में बड़ी संख्या में ईसाई हैं।
  4. जातीय भेदभाव एवं अहंकार- साम्राज्यवाद से जातीय भेदभाव को बढ़ावा मिला। जो देश अन्य देशों पर अपना कब्जा किए थे वे अपने को अन्य देशों के लोगों से श्रेष्ठ समझते थे। और उपनिवेश वासियों को पिछड़ी एवं हेय की दृष्टि से देखते थे। उदाहरण के लिए दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति को ले सकते हैं।
  5. उपनिवेशों की संस्कृतियों का विनाश- साम्राज्यवादी देशों ने उपनिवेशों में स्थाई रूप से शासन करने के लिए योजनाबद्ध ढंग से धीरे-धीरे उपनिवेशों की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट कर दिया। इसके लिए विदेशी भाषा और सभ्यता संस्कृति का गुणगान किया गया तथा उसकी अपनी भाषा सभ्यता एवं संस्कृति को पुरानी कहकर निंदा की गई। विदेशी भाषा के प्रसार और धर्म परिवर्तन के कारण धीरे-धीरे उपनिवेशो की जनता अपने स्वामियों की सभ्यता एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझने लगी और उनकी जीवन पद्धति का अनुसरण करने लगी। इसके परिणाम स्वरूप गुलाम राष्ट्रों की संस्कृति या नष्ट होने लगी।
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