किसी भी देश की आर्थिक प्रणाली से आशय उस संस्थागत एवं वैधानिक ढांचे से होता है, जिसमें उस देश की आर्थिक विक्रेता का पता चलता है, और इसे नियंत्रण में किया जाता है,
दूसरे शब्दों में हम यह जान सकते हैं कि जिस अर्थव्यवस्था के अंतर्गत अर्थव्यवस्था संबंधित सभी निर्णय लिए जाते हैं।आर्थिक प्रणाली कहलाती है यह निर्णय अनेक प्रकार के होते हैं जैसे किन किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है उत्पादन कैसे होता है तथा उत्पादित माल को कैसे बाजार में वितरण कैसे होता है।
आर्थिक प्रणाली की परिभाषा
1. जे.आर.हिक्स के अनुसार- “किसी भी स्थिति में अवस्था की कल्पना उपभोक्ता की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उत्पादकों के सहयोग के रूप में किया जाता है।”
2. विलियम इन.लुकस के अनुसार- “आर्थिक प्रणाली मे संस्थाएं निहित होती है जिन्हें व्यक्ति या राष्ट्रीय समूह द्वारा चुना जाता है एवं जिसके माध्यम से उसके साधनों का उपयोग उपभोक्ता मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।”
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है, कि आर्थिक प्रणाली से आशय ऐसे संस्थागत ढांचे से होता है जिनके द्वारा देश की आर्थिक क्रियाएं संचालित किए जाते हैं, आर्थिक उत्पादन के संसाधनों तथा उनके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं के प्रयोग पर सामाजिक नियंत्रण किया जाता है।
प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था किसी ना किसी आर्थिक प्रणाली आधारित होती है आज के वर्तमान समय में प्रमुख रूप में तीन आर्थिक प्रणालियां प्रचलित है यह इस प्रकार हैं पूंजीवाद ,समाजवादी एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था।
आर्थिक प्रणाली की विशेषताएं एवं लक्ष्य
आर्थिक प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं लक्ष्य निम्न प्रकार की है–
1. व्यक्तियों का समूह— आर्थिक प्रणाली व्यक्तियों का समूह होता है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रोजगार की आवश्यकता अनुभव करते हैं और उत्पादन का संचालन करते हैं।
2. अधिकतम आर्थिक कल्याण— आर्थिक प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है जिससे निजी एवं सार्वजनिक आवश्यकताओं की संतुष्टि हो सके।
3. उत्पादन प्रक्रिया— आर्थिक प्रणाली में वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन प्रक्रिया निरंतर रूप से चालू ही रहता है उत्पादन वस्तु या माल उपभोक्ता मैं कम आती है अथवा उत्पादन में प्रयोग होती है।
4. स्वरूप परिवर्तन— आर्थिक प्रणाली का स्वरूप मानवीय आवश्यकताओं से संबंधित होता है अब ओं की स्थिति नहीं होती आवश्यकताएं में परिवर्तन के कारण आर्थिक प्रणाली के स्वरूप में भी परिवर्तन आते रहते हैं।
5. विनियम प्रक्रिया— आर्थिक प्रणाली में विनियम प्रक्रिया द्वारा उत्पादित वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जाता है जिससे कि उन्हें संतुष्टि मिले।
6. मौलिक समस्याएं— प्रत्येक प्रकार की आर्थिक प्रणालियों में मौलिक समस्याएं एक ही प्रकार की होती है।
7. नीतियां— विभिन्न आर्थिक प्रणालियां के अंतर्गत अपनी समस्याओं के समाधान हेतु भिन्न भिन्न प्रकार की नीतियां प्रयोग में लाई जाती है किंतु विचारधारा विशेष के क्रिया हेतु व्यक्तियों में विवेक की आवश्यकता सभी आर्थिक प्रणालियां के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
आर्थिक प्रणालियों के स्वरूप
आर्थिक प्रणाली के दो स्वरूप पाए जाते हैं जो इस प्रकार से है–
1. पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली— इस आर्थिक प्रणाली में आर्थिक स्वतंत्रता होती है जिससे व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा की विस्तार होता है इस प्रणाली में नीति संपत्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है इसी कारण निजी लाभ व्यवसाय की सबसे बड़ी प्रेरणा होती है। व्यवसायिक अपनी प्रगति के लिए निरंतर सक्षम होते हैं इससे तकनीकी विकास में मदद मिलती है, प्रत्येक व्यवसाय अपने व्यवसाय के चयन विस्तार परिवर्तन या अन्य किसी भी प्रकार के निर्णय के लिए पूरी तैयार से स्वतंत्र होता है। पश्चिमी राष्ट्रों में विगत शताब्दी में जो चमत्कारी प्रगति प्राप्त हुई है, वह इसी पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली का ही एक परिणाम है इसका मुख्य कारण यह था कि यह प्रणाली व्यवसाय की प्रेरणा बनाए रखने में मदद या सफल करने में सहायक होते थे पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली व्यवस्था है जिनमें उत्पादित एवं वितरण के प्रमुख साधनों पर नीचे स्वतंत्रता होती है और निजी व्यक्ति उन साधनों को प्रतियोगिता के आधार पर अपने निजी लाभ के लिए प्रयुक्त तैयार करते हैं।
डी. एम .राइट के अनुसार “पूंजी एक ऐसी प्रणाली होती है जिनमें औसत तौर पर आर्थिक प्रणाली जीवन का अधिकांश भाग विशेष विरुद्ध ने विनियोग निजी आर्थिक गैर सरकारी इकाइयों द्वारा सक्रिय एवं पर्याप्त स्वतंत्रता प्रतियोगिता की दशाओं के अंतर्गत लाभ की आशा कि प्रेरणा में किया जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि पूंजीवादी एक ऐसी प्रणाली को व्यक्त करता है जिनमें अधिकांश श्रमिक उत्पादित के साधनों पर अधिकार से वंचित कर दिए जाते हैं और केवल मजदूर की श्रेणी में जीवन यापन करते हैं ऐसे श्रमिकों की आजीविका उसकी सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता उस मुट्ठी पर भारी पूंजीपतियों पर नियंत्रण करती है जिसका उत्पादित के समस्त साधनों जैसे भूमि ,पूंजी ,श्रम ,एवं संगठन आदि पर अधिकार होता है और जो सदैव व्यक्तिगत लाभ की भावना से आर्थिक क्रियाएं करते हैं जो कि इस प्रकार हैं–
1. पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति पूंजी संपत्ति को प्राप्त करने की इच्छा अनुसार व्यक्त करने एवं हस्तांतरण करने के लिए स्वतंत्र होता है।
2. पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली में व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार एवं योग्यता अनुसार किसी भी व्यवसाय को चुनने हेतु पूर्ण स्वतंत्र होता है।
3. पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली में साहसी उत्पादन कार्य हेतु हृदय का कार्य करता है।
4. पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली में व्यक्ति विशेष अपनी आर्थिक क्रियाएं को संपादित करता है।
5. पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली में प्रत्येक पूंजीपति अधिक धन एकत्रित करने के उद्देश्य से केवल पुराने उद्योगों का विस्तार करता है बल्कि एक साथ ही साथ नए नए उद्योगों की स्थापना भी करता है।
2. समाजवादी आर्थिक प्रणाली— पूंजीवादी शोषण तंत्र के विरुद्ध संघर्ष से प्रणाली के क्षेत्र में समाजवादी विचारधारा का जन्म हुआ है इस विचारधारा के अनुसार संपत्ति पर निजी स्वामित्व ना होकर समाज का स्वामित्व होता है, समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार कार्य करते हैं, उसे आवश्यकता अनुसार संसाधन प्राप्त हो इस विचार हेतु जिस व्यवस्था का निर्माण हुआ इसमें सभी संसाधनों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित होता है और सरकार ही सभी संसाधनों के प्रयोग तथा आवंटित कार्य को करती है।
आर्थिक प्रणाली मजबूती से कायम रही परंतु सोवियत संघ के विघटन के बाद अधिकांश देशों में समाजवादी प्रणाली का अंत हो गया समाजवाद प्रणाली के रूप है जिनमें आर्थिक उत्पादन एवं वितरण के मुख्य संसाधनों का स्वामित्व एवं नियंत्रण होता है और सहकारिता के आधार पर इससे संसाधनों का प्रयोग अधिकतम समाजवादी या सामाजिक लाभ के लिए किया जाता है।
Notes chahiye
ReplyDeleteMishrit pranali nhi baaki sab best h
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