आर्थिक भूगोल का अर्थ एवं परिभाषा, विषय क्षेत्र, उपागम

आर्थिक भूगोल का अर्थ | Arthik Bhugol ka Arth

आर्थिक भूगोल में क्षेत्रीय विभिन्नताओं पर आधारित मानवीय आर्थिक क्रियाकलापों का अध्ययन करते हैं। क्योंकि आर्थिक क्रियाकलाप मनुष्य के गुणात्मक जीवन स्तर को दर्शाते हैं। आर्थिक भूगोल के विकास प्रक्रिया में उपलब्ध संसाधनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

आर्थिक भूगोल की परिभाषा | Arthik Bhugol ki Paribhasha

आर्थिक भूगोल के संबंध में प्रमुख भूगोलवेत्तावों ने अपने अपने विचारों को प्रस्तुत किए हैं, जो कि इस प्रकार से है।

प्रो. जिम्मरमैन के अनुसार- “आर्थिक भूगोल मनुष्य के आर्थिक जीवन और आर्थिक वातावरण से संबंधित होती है।”

प्रो. आर. ई. मरफी के अनुसार- “आर्थिक भूगोल मानव के जीविकोपार्जन की विधियों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर मिलने वाली समानताओं और असमानताओं का अध्ययन कराता है।”

प्रो. स्टैंप के अनुसार- “आर्थिक भूगोल उन भौगोलिक और अन्य कारकों से संबंधित होते हैं जो मनुष्य की उत्पादकता को प्रभावित करते हैं, लेकिन वहां तक, जहां तक कि, वे उत्पादन और व्यापार से जुड़े रहते हैं।”

जोन्स के अनुसार- “मनुष्य के उत्पादन से वितरित प्राकृतिक तत्वों एवं आर्थिक दशाओं के संबंधों का अध्ययन आर्थिक भूगोल कहलाता है।”


आर्थिक भूगोल का विषय क्षेत्र | Arthik Bhugol ka Vishaykshetr

आर्थिक भूगोल के कार्य क्षेत्र के संबंध में निम्नलिखित विचार धाराएं हैं—

1. आर्थिक भूगोल मानव की आर्थिक क्रियाओं और उनके जीविकोपार्जन के साधनों का अध्ययन है।

2. आर्थिक भूगोल मानव के भौतिक और सांस्कृतिक वातावरण का अध्ययन है जिसका कि उसके जीवन और कार्यो पर प्रभाव पड़ता है

3. आर्थिक भूगोल विश्व के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले कृषि खनिज एवं उद्योग साधनों के उत्पादन वितरण एवं उपभोक्ता व निजी व्यवसाय, परिवहन के मार्गों का समुचित अध्ययन है।

आर्थिक भूगोल के विषय क्षेत्र में तीन पक्षों का अध्ययन मुख्य रूप से किया जाता है–

  1. प्राकृतिक संसाधन- प्राकृतिक संसाधनों के मूल्यांकन के अंतर्गत हम किसी प्रदेश या किसी क्षेत्र में स्थित जलवायु, मिट्टी के प्रकार एवं इनके गुण और वातावरण पर इनके प्रभाव, जलीय संसाधन, वनस्पति एवं पशु संसाधन, खनिज संसाधन आदि के बारे में अध्ययन करते हैं।
  2. मानवीय संसाधन- मानवीय संसाधन के अंतर्गत जनसंख्या, जनसंख्या का घनत्व एवं वितरण, विशेषताएं, स्त्री-पुरुषों का अनुपात, आयवर्ग, साक्षरता, स्थानांतरण, सामाजिक संगठन, बस्तियां, मार्ग एवं कारखाने आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है।
  3. आर्थिक क्रियाएं- आर्थिक क्रियाओं में आर्थिक संसाधनों का विकास, विदोहन और योजनाओं का अध्ययन किया जाता है।

मानव द्वारा की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं को इन चार भागों में बांटा जा सकता है_

  • प्राथमिक उत्पादन क्रियाएं- प्राथमिक उत्पादन क्रियाओं में प्रयास भोजन इकट्ठा करना, आखेट, पशु पालन, मत्स्य पालन, आखेट, कृषि आदि क्रियाएं सम्मिलित हैं, इससे प्राकृतिक संसाधनों के सीधे उपयोग की जानकारियां मिलती हैं।
  • द्वितीयक उत्पादन क्रियाएं- द्वितीयक उत्पादन क्रियाओं में प्राकृतिक संसाधनों का रूप बदलकर उन को अधिक शुद्ध और उपयोगी बनाया जाता है इसमें लकड़ी काटना, खान खोदना, निर्माण उद्योग, व्यापार व कृषि आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • तृतीयक उत्पादन क्रियाएं- तृतीयक उत्पादन क्रियाओं में मनुष्य की कार्यकुशलता को दर्शाया जाता है, जैसे प्राथमिक और मुख्य उत्पादक वस्तुओं को उपभोक्ता एवं उद्योगपतियों तक पहुंचाया जाता है। वैसे ही इसमें भी संचार, वितरण संस्थाएं, व्यक्ति विनिमय आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • चतुर्थ उत्पादन क्रियाएं- चतुर्थ उत्पादन क्रियाओं में अप्रत्यक्ष रूप से की जाने वाली सेवाएं हैं जैसे कुछ सेवा शिक्षा स्वास्थ्य प्रबंधन शासन सुरक्षा अंतर्राष्ट्रीय कार्य आदि को सम्मिलित किया गया है।


आर्थिक भूगोल के उपागम | Arthik Bhugol ke upagm

आर्थिक भूगोल के अध्ययन के लिए अनेक उपागमों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक उपागम एक दूसरे के पूरक हैं, आर्थिक भूगोल के संतुलित विवेचन के लिए इन सभी उपागम ओं का संतुलित एवं संबंधित उपयोग लाभप्रद होगा। आर्थिक भूगोल के उपागम को इन चार वर्गों में विभाजित किया गया है।

1.  वास्तुगत उपागम- इसके अंतर्गत प्रत्येक वस्तुओं के वितरण के लिए अलग-अलग विश्लेषण किया जाता है, जैसे गेहूं चावल लौह अयस्क आदि का विश्व में वितरण।

2. प्रदेशिक उपागम- इसमें पहले संपूर्ण विश्व को विभिन्न प्रदेशों में विभाजित कर लिया जाता है। उसके बाद प्रत्येक प्रदेश में साधनों एवं प्राकृतिक वातावरण के पद पर प्रभाव का विश्लेषण किया जाता है।

3. सैद्धांतिक उपागम- सैद्धांतिक उपागम के अंतर्गत किसी वस्तु की विशेषताओं एवं प्रति रूपों का विश्लेषण सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है। ‌ प्रदेशों और वस्तुओं के लिए समान सिद्धांत लागू किए जाते हैं। 

4. क्रमबद्ध उपागम- क्रमबद्ध उपागम में वस्तुओं के वितरण की सम्मानीय सेवाओं का क्रमबद्ध विश्लेषण किया जाता है। इसके द्वारा आर्थिक भूगोल की विशेष दृष्टिकोण और उद्देश्यों का अध्ययन संभव हो पाता है।


Conclusion-

इस प्रकार आर्थिक भूगोल पूर्ण रूप से आर्थिक क्रिया, आर्थिक विकास और मनुष्य के गुणात्मक जीवन स्तर के आर्थिक स्वरूप को दर्शाता है। दोस्तों अगर इस लेख पर आपको कहीं गलत नजर आता है तो Comments के जरिए हमें जरूर बताएं, गलतियां पाए जाने पर तुरंत उस पर सुधार किए जाएंगे।

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Comments

  1. Very nice answer you have prepared, I remembered while writing it, all were the best👍

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  2. Thankyou have a Good Day 💐💐💐, always keep moving forward...

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  5. Thank you 🙏

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