दैव निदर्शन प्रणाली का अर्थ, परिभाषाएं, गुण, दोष

दैव निदर्शन प्रणाली | पद्धति का अर्थ

निदर्शन के सभी प्रकारों में दैव निदर्शन सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथा सर्वाधिक प्रचलित विधि है। इस प्रणाली में अनुसंधानकर्ता के स्वयं के पक्षपात तथा मिथ्य झुकाव की संभावना नहीं रहती है। इस पद्धति के अंतर्गत सभी इकाइयों को समान अवसर प्रदान किया जाता है। इकाइयों के चयन का कार्य कुछ विशेष विधियों की सहायता से पूर्ण सहयोग पर छोड़ दिया जाता है। अर्थात इसमें इकाइयों का चुनाव मनुष्यों के हाथ में नहीं रहता बल्कि दैव योग से होता है।

दैव निदर्शन की परिभाषाएं

गुडे तथा हट्ट के अनुसार - “दैव निदर्शन में समग्र इकाईयों को क्रमबद्ध किया जाता है की चयन प्रक्रिया उस समय की प्रत्येक इकाइयों को चुनाव की समान संभावना प्रदान करती है।”

फ्रेंकयेट्स के अनुसार- “दैव निदर्शन हुआ है जिसमें समग्र अथवा जनसंख्या की प्रत्येक इकाई कोनी दर्शन में सम्मिलित होने का समान अवसर प्राप्त होता है।”

हार्पर के शब्दों में, - “एक दैव निदर्शन वह निदर्शन है जिसका चयन इस प्रकार हुआ कि समग्र की प्रत्येक इकाई को सम्मिलित होने का समान अवसर प्राप्त हुआ हो।”


दैव निदर्शन की चयन पद्धतियां

1. लॉटरी प्रणाली- इस प्रणाली के अंतर्गत सामग्री की समस्त इकाइयों के नाम अलग-अलग कागज की चिट्ठों पर छोटे चौकोर कार्ड पर लिख लिए जाते हैं। इसके बाद उन्हें एक बर्तन या झूले में डालकर खिलाया जाता है ताकि वे सभी मिल जाए और फिर आंख बंद करके आवश्यक संख्या में चित्रों को निकाल लिया जाता है। जैसे हम बचपन में चोर पुलिस खेला करते थे ठीक उसी प्रकार का है।

2. कार्ड अथवा टिकट प्रणाली- इस पद्धति में सर्वप्रथम एक ही आकार, रंग, मोटाई के कार्डों पर अथवा टिकट पर समग्र की समस्त इकाइयों के नाम अथवा नंबर या अन्य कोई चीन लिख दिए जाते हैं। और फिर उन सब को मिलाकर एक गोल्ड राम में डाल दिया जाता है। ड्रम को 50 बार घुमाकर सभी कारों को मिला लिया जाता है। इसके बाद अचानक ही एक कार्ड निकाल लिया जाता है। फिर ड्रम को 50 बार हिलाया जाता है, फिर दूसरा कार्ड निकाला जाता है। इसी प्रकार जितने निदर्शन ओं का चुनाव करना होता है उतनी बार या प्रक्रिया चालू रखी जाती है। जो कार्ड इस प्रकार चुनाव में आ जाते हैं, उन्हीं से संबंधित इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।

3. नियमित अंकन प्रणाली- इस प्रणाली में अध्ययन क्षेत्र की समस्त इकाइयों को काल, स्थान, परिस्थिति एवं आकार आदि के अनुसार व्यवस्थित रूप में निदर्शन हेतु जमा लिया जाता है। अनुसंधानकर्ता निदर्शन के आंकड़ों को निर्धारित करता हुआ प्रत्येक इकाई का निदर्शन पूर्व निर्धारित मध्यांतरों के मध्य में करता जाता है; — जैसे यदि हमें 200 विद्यार्थियों में से 20 विद्यार्थी चुनने हैं तो हम प्रत्येक 10वें विद्यार्थी को अध्ययन के लिए चुन लेंगे।

4. अनियमित अंकन प्रणाली- इस प्रकार के दैव निदर्शन में अनुसंधानकर्ता इकाइयों को आवश्यकता अनुसार चुन लेता है। इसमें प्रथम तथा अंतिम अंक छोड़ दिया जाता है। ‌ अनुसंधानकर्ता क्षेत्र की समस्त सूची में किन्ही भी इकाइयों पर अध्ययन हेतु निशान लगा लेता है। परंतु वास्तव में इस पद्धति में त्रुटियां रहने की अधिक संभावना रहती है।

5. ग्रीड पद्धति- इसका चुनाव भौगोलिक क्षेत्रों में किया जाता है। यदि किसी भौगोलिक क्षेत्र से कुछ इकाइयों को अध्ययन के लिए चुनना हो तो उस क्षेत्र का नक्शा सामने रखा जाता है। उस नक्शे के ऊपर ग्रिड प्लेट जो कि सेल्यूलाइट या किसी अन्य पारदर्शक पदार्थ की बनी होती उसे रखी जाती है। इस प्लेट में वर्गाकार खाने कटे होते हैं, जिन पर नंबर लिख दिए जाते हैं। इस बात को पहले ही तय कर लिया जाता है कि किन नंबरों के क्षेत्र को निदर्शन में शामिल करना है? नंबरों का निर्णय भी अचानक लिया जाता है। इस प्रकार नक्शे के जिन भागों पर नंबर के कटे हुए वर्ग आते हैं, उस वर्ग पर निशान लगा लिया जाता है।

6. टिपेट प्रणाली- यहां दैव निदर्शन प्रणाली के प्रकारों में से महत्वपूर्ण प्रणाली है। टिपेट ने 43,600 इकाइयों के चार चार अंको की 10,400 संख्याओं की सारणी तैयार की है। उनका यह कहना था कि यदि संख्याओं को बिना किसी क्रम के कई पृष्ठों पर लिखा जाए तथा वहां के लोगों को नाम की अपेक्षा संख्याएं दी जाए और पहली इकाई को छोड़कर सूची में से हर 20 व्यक्ति के पीछे एक व्यक्ति को चुना जाए और इस सिद्धांत को संपूर्ण जनसंख्या पर लागू किया जाए तो चुनी हुई इकाइयां प्रतिनिध्यात्मक होगी। इस प्रणाली को इसी कारण एल.एच.सी. टिपेट प्रणाली कहते हैं।

दैव निदर्शन प्रणाली के गुण | महत्व

1. सभी इकाइयों के समान रूप से चुने जाने की संभावना- दैव निदर्शन प्रणाली में सभी इकाइयों को समान रूप से चुने जाने की संभावनाएं रहती है क्योंकि अनुसंधानकर्ता किसी भी इकाई के बारे में परिचित नहीं हो रखता है, जबकि दूसरी ओर उद्देश्य पूर्ण प्रणाली में इकाइयों के साथ परिचय रहने के कारण अधिकांश अनुसंधानकर्ता उन्हीं लोगों को साक्षात्कार हेतु चुनता है जो शिक्षित होते हैं अथवा समाज के नेता होते हैं। 

2. सरल विधि- दैव निदर्शन प्रणाली में सूचना दाताओं के चुनाव में किसी भी विशेष प्रकार की बुद्धि नहीं लगानी पड़ती है। नए से नया अनुसंधानकर्ता भी इसका प्रयोग आसानी से कर लेता है।

3. प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली- चुनी हुई इकाइयों के समग्र में अधिकांश गुण होने के कारण पूर्ण प्रतिनिधित्व प्रणाली मानी जाती है

4. मितव्ययी प्रणाली- यह प्रणाली अधिक मितव्ययी है, क्योंकि इसके द्वारा बहुत कम समय और धन में ही निदर्शन का चयन किया जा सकता है।

5. परिशुद्धता- दैव निदर्शन प्रणाली के आधार पर सभी तथ्यों की फिर जांच पड़ताल करने पर उसी प्रकार के तथ्यों की संभावनाएं अधिक मात्रा में रहती है, मगर अन्य प्रणालियों में इस प्रकार की परिशुद्धता में नहीं पाई जाती है,  यह प्रणाली निदर्शन त्रुटियों के संयोग नियमों पर आधारित रहती है।

6. नियंत्रित प्रणाली- इस प्रणाली में अनुसंधानकर्ता हर क्षेत्र में चुनाव करते समय अपने आप को नियंत्रित करता है, और नियंत्रित करने का प्रयास करता रहता है।

7. स्वतंत्र प्रणाली- यह एक ऐसी प्रणाली है जो अपने आप में स्वतंत्र है। यह एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अथवा इकाई के चुने जाने अथवा फेंके जाने के समान रूप से संभावनाएं रहती है।

8. यह प्रणाली विभिन्न प्रकार की चुनाव प्रणालियों हेतु अनुमान प्रदान करती है- यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके आधार पर अनुसंधानकर्ता को इस बात का अनुमान हो जाता है कि किस प्रकार के समग्र में इकाइयों के चुनाव में कौन-कौन सी विधियां स्वीकार करनी चाहिए, और कौन कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए।


दैव निदर्शन प्रणाली की सीमाएं | दोष

अनेक गुणों के पश्चात भी दैव निदर्शन प्रणाली में अनेक ऐसे दोष विद्यमान हैं, जिनके कारण कभी-कभी अध्ययन में प्रतिनिधि पूर्ण होने की संभावना बहुत कम हो जाती है इस प्रकार इस प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं_

1. यह प्रणाली पूर्णता प्रतिनिध्यात्मक नहीं है- दैव निदर्शन प्रणाली एक प्रतिनिधि आत्मक प्रणाली इस कारण से नहीं मानी जाती है, क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि दैव निदर्शन पर चुनी हुई इकाईयों में से सभी इकाइयों के समग्र के विभिन्न उपविभाग ही हो, हो सकता है, चुनी हुई इकाइयों में मात्र एक ही प्रकार के अथवा कुछ ही वर्ग के लोग आ सकते हैं, और अन्य महत्वपूर्ण इकाइयां बिल्कुल छूट गई हों।

2. समग्र सूची की अवैज्ञानिकता- समग्र सूची संपूर्ण नहीं होती, अनेक बार एक ही इकाई की बार-बार आवृत्ति होती है। अनेक बार यह भी देखा जाता है कि मृत और जन्म प्राप्त इकाइयों के नामों को निरस्त या पंजीकृत नहीं किया जाता है। इससे समग्र सूची स्वता ही अवैज्ञानिक हो जाती है। इसी के आधार पर होने वाला निदर्शन भी अवैज्ञानिक होगा।

3. समग्र में एकरूपता का अभाव- दैव निदर्शन के माध्यम से इकाइयों के चुनाव हेतु आवश्यक यह है कि अध्ययन क्षेत्र में समरूपता या समानता हो, प्राय: ऐसा असंभव है। यह माननीय है कि एक व्यक्ति के विचार दूसरे व्यक्ति के विचारों से अलग होते हैं और इसी क्षेत्रीय समानता के अभाव में प्रतिनिधित्व निदर्शन चयन असंभव है।

4. पक्षपात- इकाइयों के चुनाव में पक्षपात का स्वत: ही आरोपण हो जाता है, अनेक बार लॉटरी विधि पक्षपातपूर्ण ढंग से कार्यान्वित की जाती है। ग्रीड और अनियमित अंकन प्रणाली से अध्ययन करता के लिए अभिनति पूर्ण होना स्वाभाविक है।

5. अध्ययन इकाइयों से संपर्क की कठिनाई- दैव निदर्शन से चुनी जाने वाली इकाइयां क्षेत्र दृष्टि से बिखरी हुई होती है। इकाइयों से संपर्क करते समय धन और श्रम की व्यवस्था की कठिनाई आती है।

6. अनियंत्रित प्रणाली- इस प्रकार की प्रणाली में अनुसंधानकर्ता प्रायः सुरक्षा अनुसार ही सूचना दाताओं का चुनाव करता है। वह किसी भी प्रकार से उपयुक्त एवं अनुपयुक्त सूचना दाताओं के बारे में कुछ भी नहीं सोचता। इस कारण इसे अनियंत्रित एवं अव्यवस्थित प्रणाली के नाम से भी पुकारा जाता है।


दैव निदर्शन प्रणाली का प्रयोग करने हेतु आवश्यक सावधानियां_

दैव निदर्शन चुनते समय निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखकर निदर्शन चुना जाए-

1. जिस समग्र से निदर्शन चुनना है, उसका ज्ञान होना चाहिए कि पूर्ण समग्र क्या है, और कहां तक है तथा इसकी प्रकृति क्या है, संभव हो तो उसकी सूची प्राप्त कर लें।

2. प्रत्येक इकाई के चुने जाने की संभावना बराबर हो और एक इकाई के चयन का दूसरी इकाइयों के चयन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। छुट्टी हुई इकाइयों की जगह दूसरी इकाइयों को सम्मिलित नहीं करना चाहिए।

3. निदर्शन चुनते समय अध्ययन करता कि रुचियां और पक्षपात का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।

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