इटली में फासीवाद के उदय के कारण - in Hindi

        इटली में फासीवाद का जन्म कब हुआ यह जानना बहुत जरूरी है, तो प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात इटली में फासीवाद का जन्म हुआ, तो वहीं दूसरी ओर जर्मनी में नाजीवाद का जन्म हुआ। कैटलबी के शब्दों में— "प्रारंभ में फासीवाद जन्मजात प्रवृत्ति के रूप में उदित हुआ। लेकिन बाद में वह एक वाद अथवा एक सिद्धांत और विशिष्ट प्रकार की शासन प्रणाली के रूप में विकसित हुआ।" नाजीवाद का नेतृत्व हिटलर ने किया था तो फासीवाद के नेता मुसोलिनी ने फासीवाद को उत्कर्ष की चरम सीमा तक पहुंचाया।

     एक बात उल्लेखनीय है कि प्रथम विश्वयुद्ध में इटली मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ रहा था और जर्मनी मित्र राष्ट्रों का विरोधी था, फिर भी इटली में जर्मनी की तरह फासीवाद का जन्म हुआ। यह बात सोचनीय है कि 1860 ईस्वी से इटली में गणतंत्र शासन व्यवस्था थी, लेकिन अचानक फासीवाद की धारा ने उसे उखाड़ फेंका जो कि यूरोप के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी।


फासीवाद की परिभाषा

मुसोलिनी के अनुसार- "फासीवाद कोई ऐसा सिद्धांत नहीं है जिनकी हर बात को विस्तार पूर्वक पहले से ही स्थित कर लिया गया हो। फासीवाद का जन्म कार्य किए जाने की आवश्यकता के कारण हुआ है। अतः फासीवाद सैद्धांतिक होने के स्थान पर प्रारंभ से ही व्यवहारिक रहा है।"

       "फासीवाद यथार्थ पर आधारित है, जबकि साम्यवाद सिद्धांत पर। हम सिद्धांत तथा विवाद के बदले हमसे निकलना चाहते हैं। राज्य के अंदर सब कुछ है, राज्य के बाहर कुछ नहीं तथा राज्य के विरुद्ध कुछ भी नहीं है।"

फासिस्ट नेता मुसोलिनी

      मुसोलिनी को राष्ट्रीय नेता मारने के लिए सभी लोगों को बाध्य किया गया था। स्कूलों में छात्रों को यह हटाया जाता था कि मुसोलिनी ठीक से काम करता है। कानों में या मंत्र फूंका जाता था कि विश्वास करो आज्ञा मानो और युद्ध करो। पुरुषों और स्त्रियों को मुसोलिनी के प्रति आज्ञाकारी ताकि शपथ लेनी पड़ती थी। मुसोलिनी सर्व शक्तिशाली व्यक्ति बन बैठा था। और मुसोलिनी इटली को प्रथम श्रेणी का राष्ट्र बनाने में सफल हो गया।


इटली में फासीवाद के उदय के कारण

1. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद असंतुष्टि- इटली के युद्ध में सम्मिलित होने का लक्ष्य उपनिवेश प्राप्त करना था। पेरिस के शांति सम्मेलन में अपना लक्ष्य पूर्ण न होते देख इटली वासियों में असंतुष्टि छा गई थी।

2. इटली की आंतरिक स्थिति- प्रथम युद्ध का अंत हो जाने के बाद लाखों व्यक्ति बेकार हो गए थे। 1918 के बाद इटली की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। क्योंक फैक्ट्रियों के मजदूर हड़ताल करने लगे थे।

3. सरकार की उदासीनता- सरकार ने इटली के खेती करने वाले लोगों और औद्योगिक मजदूरों की दुर्दशा पर कोई दिलचस्पी नहीं ली अतः इससे फासिस्ट वाद का उदय हुआ। साधारणतया इटली में कहीं किसानों का जीवन अति कास्टमय व्यतीत हो रहा था। कहीं मिलों में हड़तालें व तोड़फोड़ की वारदातें साम्यवादी उग्र प्रदर्शन कर रहे थे तो कहीं मिलों में मजदूर वर्गों ने अपना अधिकार कर लिया था, कहीं किसानों ने भूमि पर कब्जा कर लिया था।

4. समाजवादियों की गतिविधियां- जो देश किसी भी हालात में समाजवादियों के जाल में फंसना नहीं चाहते थे वह एक शक्तिशाली राष्ट्रीय सत्ता की स्थापना चाहते थे। अतः फासीवाद के उदय को प्रोत्साहन मिला।

5. मुसोलिनी का व्यक्तित्व- मुसोलिनी में राजनीतिक चिंतन का गुण था। वह एक जोशीला वक्ता तथा कुशल संगठनकर्ता था। वह 1922 में प्रधानमंत्री बन गया।

6. भविष्यवादी आंदोलन- मैरेनिटी नामक व्यक्ति जो कि इस आंदोलन का नेता था उनका विचार था कि भूतकाल से लेकर भविष्य के लिए मार्ग प्रदर्शित करने का पक्षधर था। उसके युद्ध वादी आंदोलन के प्रभाव से फांसी पार्टी के विचार धाराओं को प्रोत्साहन मिला।

      उक्त परिस्थितियों ने फांसीवाद को पनपने में पर्याप्त भूमिका निभाई। भाग्य से उसे मुसोलिनी जैसा नेता मिल गया। जिसने इटली में फासीवाद का झंडा फहराया और इटली में 1922 से 1944 तक फासीवाद का ही बोलबाला बना रहा।


फासीवाद के सिद्धांत

1. व्यक्तिवाद का विरोधी- मुसोलिनी के अनुसार "फासीवाद का मूल सिद्धांत यह है कि राज्य और उसकी सत्ता सर्वोपरि है। जनता राज्य के लिए होती है, राज्य जनता के लिए नहीं। अतः व्यक्ति को अपने हितों का राज्य के हित में करना चाहिए।" उसने कहा है, सब कुछ राज्य के अंदर है राज्य के बाहर कुछ नहीं और राज्य के विरुद्ध कुछ नहीं।

2. एक दल एक व्यक्ति का शासन- फासीवाद राज्य की विशेषता यह है कि वह सर्व सत्तात्मक राज्य है और उसका आधार है राजनीतिक दल। यह माना गया है कि सर्व सत्तात्मक राज्य लोगों के हितों की रक्षा करता है और जनता की समस्त शक्ति से काम लेता है, इस प्रकार फासीवाद एक राज्य, एक दल और एक नेता को मानता है।

3. जनतंत्र का विरोधी- सर्व सत्तात्मक राष्ट्र के रूप में फासीवाद जनतंत्र का विरोधी है। फासीवाद राजनीतिक दर्शन जनतंत्र के मूल सिद्धांतों को स्वीकार नहीं करता है। वह यह नहीं मानता कि बहुमत को शासन करने का अधिकार होना चाहिए।

4. समाजवाद का विरोधी- मुसोलिनी जितना विरोध जनतंत्र की संस्थाओं का करता था उतना ही विरोध मार्च के समाजवाद का भी करता था। वह ऐतिहासिक भौतिकवाद को नहीं मानता। जनतंत्र और इसी से राष्ट्रीय जीवन के सभी पक्षों में जान आती है।

5. उग्र राष्ट्रवाद का समर्थक- फासीवाद उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा को मान्यता देता है। उस राष्ट्रवाद की राष्ट्र का विकास और विस्तार करता है। फासिज्म के अनुसार शांति कायरों का हथियार है।

6. सहकारी राज्य का समर्थक- फासीवाद का शासन एक सहकारी राज्य है। जिसमें वर्ग संघर्ष को समाप्त कर लोक कल्याण की भावना को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। श्रमिक तथा उपभोक्ताओं के संग स्थापित किए जाते हैं। और एक दूसरे का पूरक बंद बनाकर राष्ट्र की उत्पादक क्षमता व औद्योगिक शांति स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।

7. विश्व शांति का विरोधी- मुसोलिनी का कथन है कि युद्ध के द्वारा मनुष्य की समस्त शक्तियां जागृत रहती है और संसार में वही राष्ट्र श्रेष्ठ माने जाते हैं जो शौर्य और धैर्य के साथ युद्ध कर सकते हैं। इसलिए फासीवाद संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और संघों को अपने सिद्धांत के प्रतिकूल मानते हैं।

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आपके लिए सवाल है:-

  • इटली में जब फासीवाद का जन्म हो रहा था, उस समय वहां का राजा कौन था?

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