अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक जीवन
alauddin khilji ka jivan Parichay |
हेलो स्टूडेंट्स आज हम अलाउद्दीन खिलजी के जीवन के बारे में चर्चा करेंगे तो चलिए देखते हैं आगे-
अलाउद्दीन खिलजी का जीवन परिचय-
इनका पूरा नाम अलाउद्दीन खिलजी था, और इनका जन्म 1250 ई. (बंगाल) में हुआ था, अलाउद्दीन के पिता का नाम शाहिबुद्दीन मसूद था, अलाउद्दिन की पत्नी का नाम कमला देवी था। इनका धर्म मुस्लिम था। अलाउद्दीन की मृत्यु 1316 (दिल्ली) में हुई। अलाउद्दीन के दो बेटे थे कुतिबुद्दीन मुबारक शाह, और शाहिबुद्दीन ओमर।
आपको और एक जरूरी बात बता दें कि कुछ इतिहासकारों का कहना है, अलाउद्दीन उभयलिंगी व्यक्ति था। आप उभयलिंगी का matlab तो समझते होंगे, अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बता देते हैं। आपने अपने जीवन में रोजमर्रा की जिंदगी में कभी ना कभी तो ट्रेनों में सफ़र किया होगा वहां पर आपसे पैसे मांगने के लिए कुछ लोग आये होंगे जो की साड़ी या फिर शूट पहन कर व होंठो में lipstick लगाकर आपसे पैसे मांग रहे होंगे और आप में से बहुतों ने तो पैसे दिए भी होंगे। ऐसे ही लोग होते हैं जिनमें नर और मादा दोनों एक साथ रहते हैं। उन्हें उभयलिंगी व्यक्ति कहते हैं। अलाउद्दीन खिलजी भी इसी प्रकार का व्यक्ति था।
क्या आपको पता है,अलाउद्दीन, जलालुद्दीन का भतीजा व दामाद था। अलाउद्दीन बड़ा ही वीर और उत्साही तथा महत्वकांक्षी व्यक्ति था। जलालुद्दीन ने इसे इलाहाबाद के पास खड़ा का सूबेदार नियुक्त कर दिया था। इस प्रकार अलाउद्दीन पहली बार एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त हुआ था।
अलाउद्दीन सूबेदार के पद पर नियुक्त होने पर भी बहुत से लड़ाइयां लड़ी जिसमें वह विजय भी हुए उनकी कुछ विजय इस प्रकार हैं।
1. मलवा का आक्रमण -
अलाउद्दीन बहुत महत्वकांक्षी व्यक्ति था और अत्यधिक उत्साही सैनिक था। 1292 ईस्वी में उसने मलवा पर आक्रमण किया और भिलसा के नगर को जीतकर बहुत सा धन एवं बहुमूल्य वस्तुएं लूट में प्राप्त की। उसने लूट का एक भाग सुल्तान के पास भिजवा दिया। जिससे प्रसन्न होकर सुल्तान जलालुद्दीन ने उसे कड़ा के अतिरिक्त अवध का भी सूबेदार बना दिया। तो देखा आपने पहले वह कड़ा का केवल सूबेदार था अब वह अवध का भी सुबेदार बन गया।
2. देवगिरी का आक्रमण -
भिलसा विजय करते समय अलाउद्दीन ने दक्षिण के राज्य देवगिरी की समृद्धि एवं वैभव के संबंध में सुना, जिससे उसके हृदय में दक्षिण भारत को विजय करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हुई। 1292 ईस्वी में ही अलाउद्दीन ने सुल्तान से अनुमति ली और देवगिरी पर आक्रमण कर दिया। वहां के राजा राम चंद्र देव ने पहले तो सामना करने की तैयारी की, पर बाद में इस खबर को सुनकर डर गया कि सुल्तान स्वयं भी 20 हजार सैनिकों को लेकर देवगिरी आ रहा है। यह खबर अलाउद्दीन ने झूठी फैलाई थी। इस समाचार से आतंकित होकर रामचंद्र देव ने संधि कर ली, और 1405 सोना तथा बहुत से बहुमूल्य मोती एवं अन्य वस्तुएं भेंट की।
रामचंद्र देव के पुत्र उस समय तीर्थ यात्रा पर थे उनके पुत्र का नाम शंकरदेव था,शंकरदेव जब तीर्थ यात्रा से लौटे तब उन्होंने यह संधि स्वीकार नहीं की और अलाउद्दीन के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। इस युद्ध में अलाउद्दीन की विजय हुई। अलाउद्दीन ने रामचंद्र देव से एलिचपुर का प्रांत छीन लिया और युद्ध में हुई हानि के लिए उसने रामचंद्र देव से 17,250 पौण्ड सोना, 200 पौण्ड मोती, 58 पौण्ड अन्य बहुमूल्य वस्तुएं, 28,250 पौण्ड चांदी, और 1,000 रेशम के थान वसूल किए। इस भारी लूट के बाद अलाउद्दीन वापस कड़ा लौट गया। देवगिरी से प्राप्त हुए धन की सहायता से अलाउद्दीन दिल्ली का सुल्तान बनने में सफल रहा।
अलाउद्दीन खिलजी का राज्याभिषेक
अलाउद्दीन खिलजी की इस वजह से सुल्तान यानीकि जलालुद्दीन बहुत ही प्रसन्न हुआ। और अलाउद्दीन को बधाई देने के लिए दिल्ली से स्वयं कड़ा आया। अलाउद्दीन गंगा पार करके मानिकपुर में सुल्तान के स्वागत के लिए पहुंच गया। जिस समय जलालुद्दीन अपने भतीजे यानी कि अलाउद्दीन से मिल रहा था, ठीक उस समय अलाउद्दीन के इशारे पर उसके सिपाहियों ने सुल्तान यानी कि जलालुद्दीन का वध कर दिया। यह घटना 19 जुलाई 1296 की थी। अब अलाउद्दीन सुल्तान की सेना को अपनी ओर मिलाना चाहता था, इसके लिए उसके मन में यह विचार आया कि -" क्यों ना हम लूट के इस धन को सुल्तान के सेनाओं को बांट दिया जाए जिससे उनकी सेना हमारी ओर आकर्षित हो जाए," इसके परिणाम स्वरूप ही जलालुद्दीन के सैनिक और सरदार उसके साथ मिल गए और अलाउद्दीन ने अपने को सुल्तान घोषित कर दिया। विद्रोहियों को डराने के लिए उसने जलालुद्दीन का सिर भाले से काटकर सारी सेना और प्रजा में घुमाया।
अलाउद्दीन ने दिल्ली में प्रवेश किया और 3 अक्टूबर 1296 को बलबन के लाल किले में उसने अपना नियम अनुसार राज्य अभिषेक कराया।
अलाउद्दीन खिलजी की प्रारंभिक कठिनाइयां
जिस समय अलाउद्दीन ने दिल्ली की गद्दी हासिल की उस समय उसे चारों ओर से कठिनाइयों ने घेर लिया। उसने अपने चाचा की हत्या की थी इस कारण सभी लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखते थे। सेना और प्रजा में धन लूटा कर अलाउद्दीन ने उनको अपनी और मिलाने का प्रयत्न किया था किंतु स्वर्गीय सुल्तान के जलाली अमीर अपने स्वामी के हत्यारे को क्षमा नहीं कर सकते थे।
- इन्हे भी पढ़ें :- अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख विजय अभियान
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ReplyDelete❤️❤️❤️❤️❤️❤️
DeleteBhai aap kesi madad kar sakte ho
DeleteReally helpful 👍😃
ReplyDeleteThankyou ❤️❤️ have a good day💐💐
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