अलाउद्दीन खिलजी की विजय अभियान का वर्णन कीजिए | Alauddin Khilji Ki Vijay abhiyan

 अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख विजयें (alauddin khilji ka vijay in hindi) 

alauddin ki vijay abhiyan
alauddin ki vijay abhiyan


     तो  हेल्लो स्टूडेंट्स आज हम (alauddin khilji ki vijay abhiyan) के बारे में चर्चा करेंगे। इसके पिछले पोस्ट में हमने अलाउद्दीन  के प्रारंभिक जीवन के बारे में चर्चा की थी, अगर इसके बारे में आपने नहीं पढ़ा तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं- अलाउद्दीन खिलजी का जीवन परिचय-alauddin khilji ka jivan Parichay.

Introduction: अलाउद्दीन खिलजी बड़ा महत्वकांक्षी शासक था। सिकंदर महान की तरह वह भी विश्व विजय करने के सपने देखने लगा। उसे अपने शासन के आरंभिक वर्षों में मंगोल आक्रमणकारियों के विरुद्ध एक दो बार अत्यधिक सफलता मिली। उसने गुजरात पर विजय पाई। यह सेवा बड़ा अभिमानी हो गया था। वह सोचने लगा कि क्यों ना वह विश्व विजय का प्रयास करें, जैसा कि सिकंदर ने किया था जबकि उसके पास शक्ति है, धन है वह भी ऐसे प्रयत्न से पीछे क्यों रहें? यह सोचकर वह भी विश्व विजय करने का प्रयत्न कर रहा था।


अलाउद्दीन खिलजी के विषयों को प्रमुख दो भागों में बांटा जा सकता है- (alauddin khilji ki vijay ka varnan kijiye)

1. उत्तर भारत की विजय, और 2. दक्षिण भारत की विजय।


उत्तर भारत की विजयें


1. गुजरात की विजय (1297 ई.)-

       अलाउद्दीन ने दिल्ली का सुल्तान बनने के 1 वर्ष बाद साम्राज्य विस्तार की ओर ध्यान दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने प्रमुख दो सेनानायक उलुग खां और नुसरत खां के नेतृत्व में एक विशाल सेना गुजरात पर आक्रमण करने के लिए भेजी। तब वहां की राजधानी अन्हिलवाड़ा थी और उस समय वहाँ का राजा कर्ण था, जो कि अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों के साथ सामना ना कर सका और अपनी पुत्री देवलदेवी को साथ लेकर दक्षिण की ओर भाग गया। और उसने दक्षिण के देवगिरी के राजा रामचंद्र के यहां शरण ली। मुस्लिम सेना ने अन्हिलवाड़ा को बहुत लूटा। कर्ण देव की रानी कमला देवी आक्रमणकारियों के हाथ लगी, उसे दिल्ली भेज दिया गया। इसके बाद मुस्लिम सेना ने सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर दिया। तथा समुद्री बंदरगाह को भी लूटा।


2. रणथम्भौर की विजय (1299-1301 ई.) -

     अलाउद्दीन का दूसरा आक्रमण रणथम्भौर के किले पर हुआ। रणथम्भौर राजपूतों का एक प्रसिद्ध दुर्ग था। यहां पृथ्वीराज चौहान द्वितीय का वंशज हमीर देव राज्य करता था। हमीर देव ने अनेक ऐसे मंगोलों को शरण दी थी जो दिल्ली साम्राज्य के शत्रु थे। उसके इस दुस्साहस के लिए दंड देना अलाउद्दीन आवश्यक समझता था। इसलिए सुल्तान ने उलुग खां और नुसरत खां को रणथम्भौर जीतने के लिए भेजा। शाही सेना ने झाईन का गढ़ जीत लिया। और रणथम्भौर के किले को चारों ओर से घेर लिया गया। राणा हमीर देव ने शत्रुओं का बड़ी वीरता से सामना किया और नुसरत खां को मार डाला। इस तरह हमीरदेव ने झाईन को पुनः जीत लिया। इस पराजय का समाचार सुनकर अलाउद्दीन को स्वयं रणथम्भौर के लिए प्रस्थान करना पड़ा। इसी बीच अवसर पाकर उसके भतीजे अतक खां ने आक्रमण किया अलाउद्दीन के सहायकों की वजह से यह सफल रहा। इस घटना से सुल्तान भविष्य के लिए सावधान हो गया। सुल्तान ने रणथम्भौर पहुंचकर किले पर मजबूत घेरा डलवा दिया। हमीरदेव ने लगभग 1 वर्ष तक डटकर मुकाबला किया। बाद में हमीर देव का प्रधानमंत्री रणमल सुल्तान से जाकर मिल गया उसकी सहायता से दीवारों पर चढ़कर उस पर अधिकार कर लिया। हमीर देव एवं उनके परिवार के सभी सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया गया। और उसके बाद में अलाउद्दीन ने रनमल का भी वध करवा दिया। और यहां का शासन उलुग खां को सौप कर सुल्तान दिल्ली वापस लौट गया।


3. चित्तौड़ की विजय (1313 ई.)- 

      रणथम्भौर की वजह से उत्साहित होकर अलाउद्दीन ने मेवाड़ को जीतने का निश्चय किया। अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईस्वी में एक विशाल सेना सहित चित्तौड़ के किले को घेर लिया। कहा जाता है कि सुल्तान की इस विजय का मुख्य उद्देश्य मेवाड़ के राणा रत्नसिंह की सुंदर पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना था। क्योंकि पद्मिनी के संबंध में यह प्रसिद्ध था कि वह विश्व सुंदरी है।


4. अन्य प्रदेशों की विजय (1305 ई.) - 

       अलाउद्दीन ने मलवा पर आक्रमण करने के लिए आईन-उल-मुल्क मुलतानी को भेजा। इस युद्ध में मलवा का राजा पराजित हुआ और मारा गया। इस विजय के परिणाम स्वरूप उज्जैन तथा चंदेरी पर खिलजी सेना का अधिकार हो गया। जालौर के राजपूत शासक कनेरदेव ने भी सुल्तान का अधिपत्य मान लिया।

       1308 इसमें मारवाड़ पर आक्रमण किया और दिल्ली से शक्तिशाली दूर सिवाना को घेर लिया। घेरा दीर्घकाल तक चलता रहा फिर भी सफलता नहीं मिली। अब अलाउद्दीन स्वयं उस स्थान पर पहुंचा और इतनी तीव्रता से घेरे का संचालन किया कि मारवाड़ के राजा शीतलदेव को झुकना ही पड़ा। शीतलदेव ने सुल्तान के साथ संधि कर ली,इस संधि के अनुसार उसका किला उसके अधिकार में रहने दिया गया और शेष राज्य सुल्तान ने अपने अमीरों को बांट दिया।

     इस प्रकार उत्तर भारत की विजय पूर्ण हुई और कश्मीर, नेपाल, आसाम तथा उत्तर पश्चिम, पंजाब के कुछ भाग को छोड़कर संपूर्ण उत्तरी भारत दिल्ली साम्राज्य में सम्मिलित हो गया अब सुल्तान ने दक्षिण की ओर ध्यान दिया।



दक्षिण भारत की विजयें


1. देवगिरी की विजय (1306- 07 ई.)-

      देवगिरि के शासक रामचंद्र देव ने सुल्तान को 3 वर्ष से कर देना बंद कर दिया था। दूसरे गुजरात के राजा करण देव तथा उसकी पुत्री देवल देवी को उसने अपने यहां शरण दी थी। इससे नाराज होकर सुल्तान ने अपने नाइब मलिक काफूर को देवगिरी पर आक्रमण करने के लिए भेजा। काफूर को यह आदेश दिया गया कि कर्ण की पुत्री देवलदेवी को पकड़कर दिल्ली लाया जाए। करण देव अपनी पुत्री का विवाह राम चंद्र देव के पुत्र शंकर देव से करना चाहता था।

जिस समय देवल देवी को देवगिरी ले जाया जा रहा था उसी समय मार्ग में वह गुजरात के गवर्नर अलप खां के हाथों में पकड़ी गई जो इस आक्रमण में मलिक काफूर की सहायता के लिए जा रहा था। मलिक काफूर ने देवलदेवी को पकड़कर दिल्ली भेज दिया, जहां उसका विवाह सुल्तान के बेटे खिॼ खां से कर दिया गया। कर्णदेव ने भागकर देवगिरी में शरण ले ली। इसके बाद काफूर ने देवगिरी पर आक्रमण किया। राजा रामचंद्र देव ने बिना युद्ध किए ही आत्मसमर्पण कर दिया। राजा रामचंद्र देव ने दिल्ली जाकर सुल्तान को अपार धन भेंट किया।


2. वारंगल के काकतीय राज्य पर विजय (1309 ई. ) - 

        देवगिरी की विजय से उत्साहित होकर सुल्तान ने 1309 ई. में मालिक काफूर को वारंगल पर आक्रमण करने का आदेश दिया। वारंगल का दुर्ग अत्यंत सुदृढ़ था। फिर भी गहरा डाल दिया गया का फूल के सुदृढ़ घेरे में राजा प्रताप रूद्र देव का साहस समाप्त कर दिया। अतर्रा जाने विवश होकर आत्मसमर्पण कर दिया। और 300 हाथी, 700 घोड़े तथा बहुत सा धन उपहार के रूप में दे दिया। और वार्षिक कर देने का वचन भी दिया। इस समस्त संपत्ति को लेकर मलिक काफूर दिल्ली लौट आया। 


3. द्वारसमुद्र के होयसल राज्य की विजय (1310 ई.)-

         अलाउद्दीन ने दक्षिण के तीसरे शक्तिशाली राज्य होयसल पर आक्रमण करने के लिए 1310 ई. में मलिक काफूर तथा ख्वाजा हाजी को एक विशाल सेना के साथ भेजा। इस समय देवगिरी का राजा रामचंद्र देव मर चुका था। और उसके स्थान पर उसका पुत्र संकरदेव वहां का शासक था।

दिल्ली के मार्ग को सुरक्षित रखने के लिए मलिक काफूर ने एक रक्षा सेना देवगिरी में रखवा दी, क्योंकि काफूर को संकरदेव की वफादारी में संदेह हो गया था। वहां से आगे बढ़कर उसने द्वार समुद्र को घेर लिया। उसकी रफ्तार इतनी तेज थी कि वहां के होयसल राजा वीरवल्ल को उसके आने के पूर्व सूचना भी ना मिली और वह अचानक घिर गया। वीर राजा ने वीरता पूर्वक युद्ध किया परंतु उसकी पराजय हुई।


4. मदुरा के पांड्य राज्य की विजय (1311 ई.)-

        द्वारसमुद्र जीतने के पश्चात काफूर ने पांड्य राज्य की ओर प्रस्थान किया जो दक्षिणी प्रायद्वीप के अंतिम छोर पर स्थित है। इस समय वहां पर दो राजकुमार सुंदर पांड्य और विवेक पांड्य में सिंहासन के लिए गृहयुद्ध चल रहा था। सुंदर पांड्य अपने भाई से पराजित होकर दिल्ली चला गया। और अलाउद्दीन से उसने अपना राज्य प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की अलाउद्दीन ने इन अनुकूल परिस्थितियों का पूर्ण लाभ उठाया और काफूर को पांड्य राज्य पर आक्रमण करने का आदेश दिया।

मालिक काफूर विशाल सेना के साथ मदुरा के पांड्य राज्य पहुंचा वीर पांड्य डर कर भाग गया। काफूर ने नगर को लूटा और मंदिरों को नष्ट कर दिया। विजय के बाद काफूर 1311 ई. में दिल्ली लौट गया और अपने साथ अपार लूट का माल ले गया जिसमें 321 हाथियों 20,000 घोड़े तथा 2,750 पौंण्ड सोना था।


5. देवगिरी पर दूसरा आक्रमण (1313 ई.)- 

      देवगिरी के राजा रामचंद्रदेव की मृत्यु के पश्चात उसका स्वाभिमानी पुत्र संकरदेव गद्दी पर बैठा। वह दिल्ली साम्राज्य के अधीन नहीं रहना चाहता था। द्वारसमुद्र मदुरा आदि के अभियान में काफूर ने वहां जो सुरक्षित सेना छोड़ी थी। उसे संकरदेव ने मार भगाया और दिल्ली‌ में वार्षिक कर भेजना भी बंद कर दिया। सुल्तान ने शंकरदेव के इस उद्दंड व्यवहार को देखकर मलिक काफूर को चौथी बार आक्रमण करने के लिए दक्षिण भेजा काफूर ने संपूर्ण देव राज्य को रौंद डाला। शंकरदेव युद्ध में लड़ते-लड़ते मारा गया।

वहां मुसलमान शासक नियुक्त कर दिया गया काफूर देवगिरी से गुलबर्गा पहुंचा और उस पर अधिकार कर लिया उसने समुद्र तट पर पहुंचकर कई बंदरगाहों पर भी कब्जा कर लिया। इसके पश्चात उसने वीर बल्लाल के होयसल राज्य पर आक्रमण किया था कि भविष्य में वह कोई विद्रोह करने का साहस ना करें इन विजयों के पश्चात एक बार फिर बहुमूल्य लूट का माल लेकर काफूर दिल्ली लौट आया।

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