भक्ति आंदोलन का समाज पर प्रभाव
भक्ति आंदोलन में भारतीय जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। इस आंदोलन ने हिंदू मुस्लिम एकता को आगे बढ़ाया और साथ ही जीवन के हर पहलू में क्रांति की।
1. सामाजिक देन
- भक्ति आंदोलन ने ब्राह्मणों के गर्व को चूर-चूर कर दिया। इससे ब्राह्मण जाति अभिमान को गहरा चोट पहुंचा। इसके परिणाम स्वरूप जाति व्यवस्था के नाम पर उत्पन्न होने वाला सामाजिक बिखराव कम हुआ।
- आंदोलन के परिणाम स्वरूप हिंदू मुस्लिम एकता और सहयोग का वातावरण आरंभ हुआ।
- भक्ति आंदोलन ने समाज में ऊंच-नीच की भावना को कम किया और जनसाधारण का शोषण तथा उसकी दुखद दशा को दूर करने में सहायक सिद्ध हुआ।
- भक्ति आंदोलन के कारण दलित जातियों को ऊपर उठने का अवसर मिला क्योंकि इस आंदोलन के समस्त नायक निम्न वर्ग के थे।
- इस आंदोलन ने हिंदुओं को मुसलमान बनने और नैतिक पतन में गिरने से रोका।
2. धार्मिक देन — भक्ति आंदोलन मूलता धर्म प्रधान आंदोलन था।तत्कालीन धर्म व्यवस्था को निम्न रूपों में प्रभावित किया जा सकता है।
- इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप अनेक धर्मों और संप्रदायों में धार्मिक सहिष्णुता का उदय हुआ।
- इस आंदोलन के कारण ब्राह्मणों के कर्मकांड युक्त धार्मिक संस्कारों को गहरा चोट पहुंचा।
- इस आंदोलन के फल स्वरुप अनेक मतों और संप्रदायों का उदय हुआ और गुरु का महत्व बहुत बढ़ गया।
- मूर्ति पूजा का लोप नहीं हुआ परंतु भक्ति मत ने मूर्ति पूजा के प्रभाव को कम कर दिया।
3. साहित्यिक देन — भक्ति आंदोलन ने लगभग सभी प्रांतीय भाषाओं के साहित्य का विकास किया। राजस्थानी साहित्य का श्रीगणेश मीराबाई ने किया और गुरुमुखी का सृजन नानक ने। यद्यपि विद्यापति ने, मैथिली में चैतन्य तथा चंडीदास ने बांग्ला में, नरसी मेहता ने गुजराती में तथा नामदेव और तुकाराम ने मराठी में पद लिखे। इसी प्रकार द्रविड़ भाषाओं में भी कई संतों ने अपनी रचनाएं लिखी। हिंदी भाषा के साहित्य का भी खूब विकास हुआ। हिंदी कविता में भक्ति आंदोलन के कारण एक नया मोड़ आया। भक्ति कवियों ने काव्य की विभिन्न धाराओं में अपने क्रांतिकारी विचारों को प्रस्तुत किया।
4. राजनीतिक देन — भक्ति आंदोलन ने राजनीतिक दृष्टि से भी भारत को प्रभावित किया। पंजाब में सिख जाति का उदय एवं विकास हुआ,क्योंकि सिखों के प्रथम गुरु नानक भक्ति आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे।सिखों ने हिंदू समाज की मुगलों से रक्षा करने में भी पर्याप्त सहयोग प्रदान किया। महाराष्ट्रीयन धर्म के उत्थान का कारण भी भक्ति आंदोलन ही था। इसके फलस्वरूप ही दक्षिण भारत में मराठा शक्ति का उदय हुआ और उसने राजनीतिक क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान स्थापित किया।
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