भक्ति आंदोलन क्या है
मध्यकालीन भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण देश भक्ति आंदोलन थी। जिसने अन्याय और शोषण के प्रति लोगों के जीवन में नए भाव और आत्मविश्वास उत्पन्न किया। आदिकाल से लेकर आठवीं शताब्दी तक अनेक धार्मिक आंदोलनों का जन्म उत्तर भारत में हुआ। लेकिन मध्ययुग के इस धार्मिक आंदोलन का नेतृत्व दक्षिण भारत ने संभाला। भारत में मुसलमानों की मौजूदगी से भक्ति आंदोलन को एक बड़ा प्रोत्साहन मिला। यह इस्लाम धर्म की देन है। इस्लाम धर्म की सादगी, मूर्तिपूजा का विरोध एकेश्वरवाद में विश्वास और जांति पांती के बंधनों का विरोध जो की भक्ति आंदोलन की विशेषता है।
भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति के कारण
- ब्राह्मणवाद का कठिन हो जाना भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति का एक बड़ा कारण बना। याज्ञिक कर्मकांड, मूर्ति पूजा आदि धार्मिक क्रियाओं की जटिलता को साधारण जनता निभा नहीं पा रही थी। इसलिए भक्ति आंदोलन उनके लिए सरल सिद्ध हुआ।
- मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणों के कारण हिंदू मंदिरों और मूर्तियों का विनाश हुआ। जिसके कारण जनता भक्ति और उपासना के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास करने लगी। जिससे भक्ति आंदोलन को प्रोत्साहन मिला।
- इस युग में जाति व्यवस्था का स्वरूप भी बहुत कठिन हो चुका था। अतः निम्न जातियां शोषित एवं असंतुष्ट थी। प्लेन ने धर्म का मार्ग सभी के लिए खोल दिया।
- मुस्लिम शासकों की अत्याचार पूर्ण नीति के कारण निराश जनता भगवान की भक्ति में लीन होकर सुख और शांति के लिए प्रेरित हो गई। और ईश्वर से प्रार्थना करने लगी।
- भारतीयों पर मुस्लिम संपर्क का प्रभाव इस आंदोलन के उदय का एक कारण बना। ब्राह्मण की उपासना जो मुस्लिम धर्म का प्राण थी और इसी ने इस आंदोलन में जान डाल दी।
भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं
भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति भावना ही इसका मूल आधार था। भक्ति आंदोलन के संतों ने भावात्मक भक्ति पर बल दिया।
भक्ति आंदोलन की विशेषताएं
- भक्ति आंदोलन में भक्ति मार्ग को ही सर्वोपरि माना गया और मंदिरों, मूर्तियों, उपवास आदि का विरोध किया गया।
- भक्ति आंदोलन ने सभी मनुष्य को एक समझा और जांती पांती में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया।
- भक्ति आंदोलन में मूर्ति पूजा का विरोध किया। और विरोध करते हुए कहा कि "पत्थर का देवता तो बोलता तक नहीं, फिर वह भला हमारी इस जीवन के दु:खों को कैसे दूर कर सकता है।"
- भक्ति आंदोलन के संतों ने बुद्ध और महावीर के भांती जन भाषा का प्रयोग किया इसके परिणाम स्वरुप इसके सिद्धांतो का व्यापक प्रचार हुआ।
- भक्ति आंदोलन की अनूठी विशेषता इसकी समन्वयकारी भावना थी।
- भक्ति आंदोलन गुरु महिमा को सर्वोपरि स्थान दिया।
- भक्ति आंदोलन के संत एकेश्वर में विश्वास करते थे और विश्वास बंधुत्व की भावना के समर्थक थे।
- भक्ति आंदोलन में सामाजिक, धार्मिक जीवन में बाहरी दिखावे को स्थान नहीं दिया गया। लेकिन सदाचार और चरित्र की शुद्धता पर बल दिया गया।
भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत :—
भक्ति आंदोलन का विकास किसी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा लेकिन इसकी लहर संपूर्ण भारत में सैल गई। भक्ति आंदोलन की धारा को लोगों तक पहुंचाने के लिए अनेक संत और सुधारको ने अपना योगदान दिया। भक्ति आंदोलन के संतो ने अपनी वाणी और लेखनी से भक्ति भावना का प्रचार किया जिसके फलस्वरुप तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ।
भक्ति आंदोलन के संत निन्नलिखित हैं :-
शंकराचार्य
इनका पूरा नाम :-आदि शंकराचार्य है, इनका जन्म 788 ई. कालडी़ ग्राम, केरल में हुवा था। और इनकी मृत्यु 820 ई.में स्थान केदारनाथ, उत्तराखण्ड में हुवी। इनके गुरु का नाम गोविन्द योगी था।
रामानुजाचार्य
इनका पूरा नाम रामानुजाचार्य है और इनका जन्म 1017 ई. में पेरुम्बुदूर गाँव, मद्रास मे हुआ था। जो कि अब चेन्नई के नाम से प्रसिद्ध है। और इनकी मृत्यु 1137 में श्रीरंगम, तमिलनाडु में हुवी। इनके पिता- आसूरि केशव दीक्षित जी थे। और इनके गुरु यादव प्रकाश जी थे।
वल्लभाचार्य
इनका जन्म संवत 1530 में हुआ था। और इनकी मृत्यु संवत 1588 में हुई थी। और इनके दो पुत्र थे जिनका नाम गोपीनाथ व विट्ठलनाथ था। और इनकी कर्म भूमि ब्रज थी।
माध्वाचार्य
श्री मध्वाचार्य जी का जन्म दक्षिण भारत में तमिलनाडु के मंगलूर ज़िले के अन्तर्गत बेललि ग्राम में विक्रम संवत 1256 (1199 ई.) को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री नारायण भट्ट और इनकी माता का नाम श्रीमती वेदवती था।
रामानंद
स्वामी रामानंद का जन्म 1299 ई. में प्रयाग में हुआ था।
सूरदास
इनका पूरा नाम महाकवि सूरदास है, और इनका जन्म संवत् 1540 विक्रमी (सन् 1483 ई.) और इनकी जन्म भूमि रुनकता जो की आगरा मे है| और इनकी मृत्यु संवत् 1642 विक्रमी (सन् 1585 ई.) और इनकी मृत्यु स्थान पारसौली थी| और इनके पिता का नाम रामदास है |
नामदेव
नामदेव का जन्म 29 अक्तूबर 1270 को स्थान नरसी-बामनी, महाराष्ट्र में हुआ था| और इनका निधन 03 जुलाई 1350 को हुआ|
विष्णुस्वामी
विष्णुस्वामी का समय 13वीं शती का अनुमान किया जाता है। इनके इनके बारे में अधिक जानकारी का अभाव है|
चैतन्य महाप्रभु
इनका जन्म 18 फ़रवरी सन् 1486 पश्चिम बंगाल मे हुआ था | और इनकी मृत्यु सन् 1534 पुरी, उड़ीसा में हुआ |
रैदास
इनका पूरा नाम संत रविदास है और इनका जन्म1398 ई. में (लगभग) काशी, उत्तर प्रदेश में हुआ था | और इनकी मृत्यु 1518 ई. में हुआ था |
गुरु नानक
इनका जन्म: 15 अप्रैल, 1469, तलवंडी, पंजाब में हुआ था | और इनकी मृत्यु: 22 सितंबर, 1539,एसा माना जाता है की ये सिक्खों के प्रथम गुरु (आदि गुरु) थे। इनके अनुयायी इन्हें 'गुरु नानक', 'बाबा नानक' और 'नानकशाह' नामों से पुकारते हैं।
कबीर
कबीर का पूरा नाम संत कबीर दास है| और इनका जन्म- सन् 1398 काशी उतर प्रदेश मे हुई| और इनकी मृत्यु- सन् 1518 मगहर में हुई |
मीराबाई
मीरा बाई का जन्म संवत् 1504 में जोधपुर मेंकुड्की नामक एक गाँव में हुआ था। मीरा बाई के पिता का नाम रत्नसिंह था।
तुलसीदास
तुलसीदास का जन्म- 1532 ई. हुआ था| और इनकी मृत्यु- 1623 ई. में हुई थी |
केशवदास
केशवदास जी का जन्म सन 1555 ई. में भारत के बुंदेलखंड राज्य ओरछा मध्य – प्रदेश में हुआ था|
दादू
दादू का जन्म संवत् 1601 (सन् 1544 ई.) में अहमदाबाद में हुआ था | और इनकी मृत्यु संवत् 1660 (सन् 1603 ई.) में हुई थी |
- इन्हे भी पढ़ें :- भक्ति आंदोलन का भारतीय समाज को देन
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