व्यूह रचना का अर्थ,परिभाषा,विशेषताएं

 व्यूह रचना का अर्थ

व्यूह रचना in English,(array formation) व्यूह रचना एक सामान्य रूप से मोर्चाबंदी और रणनीति शब्द का उपयोग युद्ध में शत्रु के तारीख को देखकर उसे पराजित करने के लिए अपनी रणनीति निर्धारित करने के लिए किया जाता है लेकिन आजकल इस शब्द का उपयोग व्यवसाय के क्षेत्र में भी किया जाने लगा है मोर्चाबंदी एक ऐसी योजना है जो प्रतियोगिताओं की नीतियों से उत्पन्न विशेष परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए बनाई जाती है व्यवसाय में प्रतियोगी संस्थाओं का सामना करने के लिए जो दीर्घकालीन कार्य नीति बनाई जाती है उसे मोर्चाबंदी या व्यूह रचना कहां जाता है।

व्यूह रचना की परिभाषा

1. रॉबर्ट और एंथनी के अनुसार— कार्य नीति संगठन के उद्देश्य के निर्धन उद्देश्य में परिवर्तन इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त संसाधनों तथा इन संसाधनों को प्राप्त करने एवं विनियोजन करने का निर्णय करने की प्रक्रिया का परिणाम है।

2. मैक्फरलैण्ड के अनुसार— कार्य नीति को अधिकारियों की व्यवहार के रूप में परिभाषित की जाती है जिसका उद्देश्य प्रतियोगिता पर्यावरण में कंपनी अथवा निजी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सफलता प्राप्त करना है जिसका आधार दूसरों की वास्तविकता संभावित क्रियाएं हैं।

व्यूह रचना की विशेषताएं

व्यूह रचना या कार्य नीति की प्रमुख विशेषताएं निम्न है—

1. कार्य नीति का निर्माण— कार्य नीति या मोर्चाबंदी का निर्माण उच्च स्तरीय प्रबंधन द्वारा किया जाता है जिससे मध्य एवं स्तरीय प्रबंधन द्वारा लागू किया जाता है।

2. विशिष्ट प्रतीकूल परिस्थितियों में आवश्यकता— कार्य नीति की आवश्यकता हमें सामान्य परिस्थितियों में न होकर विशिष्ट प्रतिकूल परिस्थितियों में पड़ती है जबकि संस्था के ऊपर खतरा मंडरा रहा हो उन विशिष्ट प्रतिकूल परिस्थितियों में संस्था के उद्देश्य को ध्यान में रखकर उसे तैयार किया जाता है।

3. मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के उपयोग — कार्य नीति या मोर्चा बंदी केवल दिशा निर्देश के लिए नहीं होता है बल्कि उसकी प्राप्ति के लिए सभी मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के उचित उपयोग का बाल होता है।

4. दीर्घकालीन योजना— कार्य नीति या मोर्चाबंदी निर्माण एक दीर्घकालिक योजना है जो की योजना दूर गामी प्रभावों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है।

5. व्यापक एवं समन्वित योजना— कार्य नीति या मोर्चाबंदी एक व्यापक एकीकृत योजना है जिसमें संस्था की सभी क्रियो पर विचार किया जाता है।

6. आगे देखने वाली— कार्य नीति सदैव आगे देखने वाली होती है पीछे देखने वाली नहीं होती है इसे भाभी उद्देश्य अथवा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तैयार किया जाता है जिससे कि कार्य नीति क्रिया की आवश्यकता सदैव नई परिस्थितियों में पढ़ती है।

7. उचित ढंग से लागू किया जाना— कार्य नीति के संबंध में यह महत्वपूर्ण है कि केवल उपयुक्त कार्य नीति का निर्धारण करना ही पर्याप्त नहीं है लेकिन उसे उचित ढंग से लागू करना भी आवश्यक है इससे संबंध में असावधनी संस्था के गले में हड्डी बन सकती है।



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