राष्ट्रीय एकता पर निबंध - निबंध

राष्ट्रीय एकता का अर्थ होता है देश या राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना, इसमें केवल प्रेम की भावना का होना काफी नहीं है इसके साथ ही जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति, संप्रदाय इन सभी में एकता का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि इसमें एकता का भी प्रयोग है।

आइए इसे हम विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं_ राष्ट्रीय एकता का मतलब होता है अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना अर्थात अपने जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति, संप्रदाय, उच्च वर्ग, निम्न वर्ग आदि को एक समान मानकर एकजुट रहना ही राष्ट्रीय एकता कहलाता है। जहां पर आपसी भेदभाव ना हो सभी को एक समान समझा जाए। यहां कोई जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति कोई बड़ा नहीं होता वास्तव में इसे ही हम राष्ट्रीय एकता कहते हैं।


निबंध की रूपरेखा

1. प्रस्तावना

2. राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व

  1. जातिवाद
  2. संप्रदायवाद
  3. भाषावाद
  4. क्षेत्रीयवाद
  5. विदेशी षड्यंत्र
  6. सांप्रदायिक संगठन

3. राष्ट्रीय एकता हेतु समस्या का समाधान
4. उपसंहार

प्रस्तावना

राष्ट्रीय एकता का आशय है संपूर्ण भारत के लोगों को एकता के सूत्र में बांधे रखना। जब तक राष्ट्र के लोगों को एकता के सूत्र में नहीं बांध देते तब तक देश का विकास संभव नहीं है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है क्योंकि भारत में लोगों को अपनी पसंद से किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता है। और सभी धर्म के लोग आपस में अलग-अलग बट जाएंगे तो भारत कई भागों में बट जाएगा इससे देश की अर्थव्यवस्था भंग हो जाएगी जिसका फायदा विदेशों के लोग उठाएंगे क्योंकि भारत कई टुकड़ों में बट जाएगी और उसकी आर्थिक शक्ति कमजोर हो जाएगी।

अतः हमें समय रहते सचेत रहना चाहिए और हमें राष्ट्रीय एकता के प्रति प्रेम, और एकरूपता होने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्व

राष्ट्र की एकता में बाधक तत्व तो छोटे बड़े हैं लेकिन निम्नलिखित तत्व प्रमुख रूप से बाधक तत्व है, जो इस प्रकार से हैं—

  1. जातिवाद- जातिवाद राष्ट्रीय एकता को भंग करने की एक घातक प्रणाली है। इससे छुआछूत की भावना बढ़ती है और पारस्परिक घृणा और शत्रुता की भावना पनपती है। जातिवाद कभी-कभी विकराल रूप धारण कर लेती है और आपसी तनाव का कारण बनती है।
  2. संप्रदायवाद- भारत में कई संप्रदाय के लोग रहते हैं लेकिन जब से पाकिस्तान बना तब से संप्रदायिक और असहिष्णुता बढ़ी है। जिसके परिणाम स्वरूप मुरादाबाद कभी इलाहाबाद कभी अहमदाबाद में दंगे फसाद होते रहते हैं, कभी अलीगढ़ तो कभी जमशेदपुर दंगों के कारण आज शांत हो उठते हैं। इनसे अनावश्यक रूप से धन-जन की हानि होती है तथा पारस्परिक द्वेष बढ़ता है।
  3. भाषावाद- भाषावाद हमारी एकता के लिए आधुनिक खतरा है, भारत में जिस प्रकार अनेक धर्म के लोग रहते हैं उसी प्रकार अनेक भाषाएं बोली जाती है, आए दिन अंग्रेजी और हिंदी के झगड़ों के कारण तनाव बढ़ जाता है। भाषावाद के नाम पर कभी-कभी अलग प्रांतों की मांग की जाने लगती है।
  4. क्षेत्रीयवाद- राजनीतिक दलों के कारण भी हमारी एकता खतरे में पड़ती है। उदाहरण के तौर पर तेलंगाना कश्मीर आदि की मांग क्षेत्रीय राजनीति का दुष्परिणाम है, बंगाल बंगालियों के लिए और तमिलनाडु तमिल वासियों के लिए है तो फिर भारतीयों के लिए क्या बचता है और फिर भारतीय कहां है?
  5. विदेशी षड्यंत्र- देश में अराजकता फैलाने दंगे कराने आदि एकता विरोधी संयंत्रों में विदेशी ताकतों का भी बहुत बड़ा हाथ रहता है, कश्मीर आदि की मांगों के पीछे स्पष्टत: विदेशी हाथ है।
  6. सांप्रदायिक संगठन- देश में कुछ ऐसे कट्टर राजनीतिक एवं सामाजिक संगठन बने हैं जो हिंदू और मुसलमानों को एक दूसरे के विरुद्ध भड़काते रहते हैं और दोनों के बीच दंगे कराते रहते हैं।

राष्ट्रीय एकता हेतु समस्या का समाधान

राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए सर्वप्रथम राष्ट्रप्रेम की भावना होनी चाहिए तथा इस क्षेत्र में ईमानदार प्रयास आवश्यक है, दिखावे नहीं।

राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि हम संपूर्ण भारत को एक इकाई मानकर देश के सभी क्षेत्रों के विकास के लिए प्रयास करें। भाषा धर्म जाति संप्रदाय आदि को छोड़कर राष्ट्र के हित के लिए कार्य करें। बंटवारे की भावना और आपसी विवाद को मिलजुल कर सुलझा लें और राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश के हित का बलिदान ना करें।

जातिवाद और छुआछूत की भावना हमारी राष्ट्रीय एकता के लिए घातक सिद्ध होती है इससे भेदभाव ईर्ष्या द्वेष बढ़ते हैं। हमें मानव मानव को एक समझकर जातिवाद की दीवार को तोड़ना होगा। हम सभी भारतीय हैं हमारे संविधान के अनुसार धर्म, मूल, वंश जाति लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करना दंडनीय अपराध है।

उपसंहार

आज विश्व की सबसे बड़ी शक्तियां हमें कमजोर देखना चाहती है वह यह नहीं चाहते कि भारत उन्नति की और आगे बढ़े, ऐसी स्थिति में हम सबको जातिवाद, संप्रदायवाद और व्यक्तिवाद, ऊंच-नीच आदि की भावना को छोड़कर हम सबको एकता के सूत्र में बंधने या जुटने की आवश्यकता है, तभी हम विकास की ओर बढ़ पाएंगे। राष्ट्रीय एकता के अभाव के कारण हमारा अस्तित्व मिट सकता है ईश्वर ऐसा‌ दिन कभी ना दिखाए।


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