द्वयाधिकार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

द्वयाधिकार का अर्थ: जब बाजार में दो ही वस्तुओं की उत्पादक या विक्रेता होते हैं तो ऐसे स्थिति को द्वयाधिकार कहते हैं। इन दोनों विक्रेताओं की वस्तु समान होती है लेकिन कुछ स्थिति में अलग-अलग भी होती है,


द्वयाधिकार की परिभाषा

डॉ. जॉन के अनुसार- "द्वयाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें एक वस्तु के दो अलग-अलग उत्पादक होते हैं, दोनों में कोई समझौता नहीं होने के बाद भी उनका मूल्य समान होता है।"

अतः स्पष्ट है कि द्वयाधिकार का आशय बाजार की एक एसी स्थिति से है, जिसमें किसी वस्तु के केवल दो ही उत्पादक या विक्रेता होते हैं। ये दोनों फ़र्में एक वस्तुओं का उत्पादन एवं विक्रय करती है, उनकी मूल्य नीति एक जैसे भी हो सकती है और अलग भी हो सकती है। बाजार में इस प्रकार के नए फार्म नहीं आ सकते हैं, बाजार में एसी स्थिति कम ही पाई जाती है।


द्वयाधिकार की विशेषताएं

द्वयाधिकार की प्रमुख विशेषताएं 

1. बाजार की इस स्थिति में केवल दो ही उत्पादक पाए जाते हैं।

2. दोनों उत्पादकों अथवा विक्रेताओं द्वारा एक समान या लगभग समान वस्तु का विक्रय किया जाता है।

3. दोनों उत्पादकों अथवा विक्रेताओं की उत्पादन व विक्रय नीति स्वतंत्र होती है।

4. दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा पाई जाती है अथवा एक ही विक्रेता द्वारा अपने मूल्य नीति निर्धारित करते समय यह ध्यान में रखती है कि प्रतियोगी की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए कार्य किया जाए।

5.द्वयाधिकार की स्थिति एकाधिकार से अधिक निकट मानी जाती है।


द्वयाधिकार के अंतर्गत मूल्य निर्धारण

1. फार्म के बीच समझौते हो जाने पर— यदि दोनों फार्म के बीच मूल्य संबंधित समझौता होता है तो ऐसी दशा में मूल्य निर्धारण ठीक एकाधिकार की तरह हो जाता है वस्तु का मूल्य उन बिंदुओं पर निर्धारित रहता है कि जहां पर सीमांत लागत, सीमांत आगम के बराबर होता है परंतु ऐसी स्थिति में संभव नहीं हो पाता है कि वस्तु की मांग लोचदार एवं स्थाई हो तथा दोनों उत्पादकों की वस्तु पर आने वाली लागत समान हो। यदि किसी उत्पादक की लागत कम होती है तो अपनी वस्तु की मांग मूल्य अपेक्षाकृत कम निर्धारित करेगा, जिसमें कि वह बाजार के एक बड़े भाग पर नियंत्रण रख सके।


2. फार्म के बीच कोई समझौता नहीं— यदि दोनों फार्म के बीच मूल्य के संबंध में कोई समझौता नहीं होता है तो दोनों की वस्तुएं एक समान होती है तो ऐसी दशा में दोनों फार्म के बीच मूल्य का युद्ध छिड़ जाता है, तथा प्रत्येक फार्म अपनी वस्तु का मूल्य कम निर्धारित करके मूल्य नेता बनने के लिए प्रयत्नशील रहेगी, यह स्थिति तब तक चलती रहेगी जब तक की वस्तु का मूल्य घटकर सीमांत लागत के बराबर नहीं हो जाता हो, यदि दोनों फार्म की वस्तुओं में थोड़ी बहुत असमानता है तो उनके मूल्यों में थोड़ा बहुत अंतर रहेगा।


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